Wednesday, January 23, 2013

बीजेपी पार्टी विद द् डिफ्रेंस

वेबसाइट पर सबसे ऊपर विद डिफ्रेंस का नारा

आखिरकार पूरी भद्द पिटवाकर ही सही लेकिन, भारतीय जनता पार्टी उस मुश्किल से उबर गई जो, उसके लिए खुदकुशी की राह पर जाने जैसी हो गई थी। एक ऐसा राष्ट्रीय अध्यक्ष जो, राज्य स्तर पर भी कद्दावर नेताओं में नहीं गिना जाता था वो, बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष था। वजह ये कि देश या कहें कि दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आशीर्वाद पूरी तरह से उस राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ था। काया और माया (सबसे बड़ा रुपैया) से पार्टी चलाने की गडकरी नीति आखिरकार सफल नहीं हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूर्ण आशीर्वाद की खबरों से दूसरे-तीसरे दर्जे वाले पार्टी नेता भले ही खुलकर नितिन गडकरी के खिलाफ बोलने से बचते रहे लेकिन, जो पहली कतार में बैठने के हकदार बने हुए हैं वो, खुलकर गडकरी के नेतृत्व पर तगड़े सवाल खड़े करते रहे।
बार-बार ये कहा जाता रहा और अब भी जिस तरह से गडकरी ने जाते-जाते मुंबई एयरपोर्ट पर क्लीनचिट के बाद वापस लौटकर आने वाला बयान दिया उससे लग यही रहा है कि संघ का पूर्ण आशीर्वाद अभी भी उन्हीं के साथ है। लेकिन, इस बार के अध्यक्ष बनने के बीजेपी के पार्टी विद द् डिफ्रेंस वाले नारे को ताकत दी है। अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर के दौर तक भारतीय जनता पार्टी के पार्टी विद द् डिफ्रेंस पर सवाल खड़े करने वाले भी कम ही थे। लेकिन, धीरे-धीरे कमजोर अध्यक्षों के दौर और फिर संघ-बीजेपी की रोज की खींचातानी की खबरों ने पार्टी विद द् डिफ्रेंस के नारे को कमजोर कर दिया था। बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के बावजूद कांग्रेस, बीजेपी को बेहयाई से पलटकर ये जवाब देने लगी कि बीजेपी की सरकारें भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। एक लाख रुपए की बंगारू की बचकानी घूस वाली तस्वीर के बाद तो, ये आरोप धारदार हो गए थे। जिसका इस्तेमाल बीजेपी विरोधी पार्टियों के साथ कोई भी राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी पर हमले के लिए करने लगा था।
फिर जब राजनाथ सिंह के ही पिछले कार्यकाल के बाद लालकृष्ण आडवाणी और उनकी D फोर मंडली के कॉकस से निकालने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक राज्य स्तर के नेता नितिन गडकरी को राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए लेकर आया तो, पार्टी विद द् डिफ्रेंस का एक और भ्रम टूटा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर रिमोट से सरकार चलाने का जो, आरोप लगा था उसका भी तोड़ मिल गया। मजबूती से ये जवाब आने लगा था कि अगर सोनिया गांधी बिना सरकार में हुए यूपीए की सुपर प्राइम मिनिस्टर हैं तो, संघ भी तो, बीजेपी का सुपर प्रेसिडेंट है।
वंशवाद का आरोप भी कांग्रेस पर उतना धारदार नहीं बैठ रहा था क्योंकि, राज्यों में बीजेपी नेताओं के पुत्र-पुत्रियां भी उसी आधार पर आगे बढ़ने लगे थे। और, पार्टी विद द् डिफ्रेंस की छवि बीजेपी को संभालना इससे भी मुश्किल हो रहा था कि वहां गांधी नाम के बिना सर्वोच्च तक नहीं पहुंचा जा सकता तो, यहां नागपुर का आशीर्वाद इसके लिए परम आवश्यक शर्त है। ये सच है कि नितिन गडकरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सरसंघचालक मोहनराव भागवत के आशीर्वाद ने ही 11 अशोक रोड पर कुर्सी संभालने का मौका दिया। लेकिन, सच ये भी है कि लालकृष्ण आडवाणी की बढ़ती उम्र से आने वाली विसंगतियों के बावजूद उनके नजदीकी बीजेपी नेताओं से ही बीजेपी की पहचान बनना भी बीजेपी के हित में नहीं था। इसीलिए मोहन भागवत को किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश हुई जो, संघ के व्यक्ति निर्माण के एजेंडे को बीजेपी में सलीके से लागू कर सके और पुराने निर्मित व्यक्ति उसको अपने पैमाने पर कसकर तोड़ न सकें।
काफी हद तक ये काम नितिन गडकरी ने किया भी। लेकिन, गडकरी की मुश्किल ये थी कि गडकरी जमीनी नेता कभी रहे नहीं। महाराष्ट्र में भी वो, विधान परिषद के जरिए ही सत्ता सुख ले पाते थे। और, सबसे बड़ी बात ये कि देश में क्या नब्ज चल रही है इसको भांपने का कोई यंत्र वो तैयार ही नहीं कर सके। तैयार कर सके तो, सिर्फ अपनी कारोबारी बुद्धि से सर्वे के जरिए देश को जानने का फॉर्मूला। देश सर्वे/पोल से जाना जा सकता तो, देश के नेता कोई और ही होते तो, गडकरी कैसे सफल होते। नहीं सफल हुए। दुखद ये कि शुद्ध संघ आशीर्वाद से राष्ट्रीय नेतृत्व का मौका पाने वाले गडकरी ने स्वयंसेवक के पैमाने पर बीजेपी की राजनीति को कसने के बजाय अवसरवादी पैमाने पर कसा। वो, अवसरवादी पैमाना ये कि कैसे भी करके यूपी में ढेर सारी सीटें लाओ। अवसरवादी पैमाना था तो, पार्टी विद द् डिफ्रेंस बीजेपी कैसे उस पर सफल हो पाती। असफल हो गई।
पार्टी विद द् डिफ्रेंस बीजेपी एक और वजह से थी। वो, वजह ये थी कि बिना संसाधन के वो, पार्टी चलाते थे। संघ, बीजेपी व्यक्ति, चरित्र निर्माण करते थे। संसाधन अपने आप जुट जाते थे। नितिन गडकरी नई परिभाषा लेकर आए। वो, उसी तरह पार्टी चलाना चाहते थे। जैसे, कांग्रेस चलती है। यानी सत्ता मिली रहे तो, संसाधन मिले रहते हैं और पार्टी भी मजबूत होती रहती है। कांग्रेस का फॉर्मूला है ये काम भी करता है कि पार्टी जमीन पर भले कमजोर रहे। सत्ता, संसाधन से मजबूत हो ही जाती है। गलती से पार्टी विद द् डिफ्रेंस बीजेपी भी कांग्रेसी फॉर्मूले को आजमाने लगी। यहां भी गडकरी गड़बड़ा गए।
अब राजनाथ सिंह का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना चाहे जिन परिस्थितियों में हुआ हो लेकिन, इससे पार्टी विद द् डिफ्रेंस वाला बीजेपी का टैग फिर से उसे वापस मिलता दिख रहा है। या कहें कि पार्टी इसे फिर से पूरी ताकत से इस्तेमाल कर सकती है। गडकरी से नाराजगी दिखाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा का बयान आया कि अगर गडकरी पहले ही चुनाव लड़ने से मना कर देते तो, पार्टी की छीछालेदर होने से बच जाती। लेकिन, मुझे लगता है कि ये अच्छा हुआ। बेहद नाराज यशवंत सिन्हा का बयान इस मामले में काफी अहम है। जब उनसे पूछा गया कि क्या वो, गडकरी से अभी भी नाराज हैं तो, उन्होंने कहाकि जो, हुआ उससे वो, बेहद खुश हैं। और, इस अध्यक्षी के चुनाव ने बीजेपी की ताकत और कांग्रेस की कमजोरी जाहिर कर दी है। यशवंत सिन्हा ने आगे बढ़कर कहाकि कांग्रेस चमचों की पार्टी है। और, वो खुली चुनौती दे रहे हैं कि अगर कोई कांग्रेस में सोनिया गांधी या राहुल गांधी के किसी फैसले के खिलाफ बोल पाए। यही बीजेपी की असल ताकत है। संघ और बीजेपी एक दूसरे के पूरक हैं। कई गैर स्वयंसेवक भी अब बीजेपी के बड़े नेता हैं और बनेंगे क्योंकि, वो संघ-बीजेपी जैसा ही सोचते करते हैं। इसका संतुलन भी काफी बेहतर हो रहा है ये भी इस अध्यक्षी के चुनाव में दिखा। अब इसी पार्टी विद द् डिफ्रेंस के वापस मिले टैग को बीजेपी अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सके तो, 2014 उसके अनुकूल हो सकता है। और, इस टैग को बरकरार रखने का सबसे बड़ा जिम्मा सहमति के अध्यक्ष बने राजनाथ सिंह पर है।
(ये लेख दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में छपा है)

Monday, January 21, 2013

बीजेपी आजतक - ताजा स्टेटस अपडेट


ऐसे ही आज मैंने कुछ स्टेटस अपडेट्स डाले। एक बार उसे एक साथ पढ़ा तो, मुझे लगा कि ये तो, जाने-अनजाने भारतीय जनता पार्टी के ताजा हाल का विश्लेषण जैसा कुछ हो गया। ये पांचों स्टेटस एक साथ चिपका रहा हूं। क्योंकि, आज कई संयोग एक साथ बने हैं संघ के सबसे बड़े सपोर्ट सिस्टम वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह लौटे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पुराने नितिन गडकरी की ताजपोशी की रिपोर्ट आ रही है। और, फिर से संघ-बीजेपी पर हिंदू आतंकवाद का आरोप लगा है। व्यक्ति निर्माण ही मूल सवाल दिख रहा है।
 
1- गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे आश्वस्त हैं कि तीसरी बार यूपीए की सरकार बन जाएगी। और, इस चुनाव में बीजेपी-संघ के शिविरों से निकले आतंकवादी वोट नहीं डालेंगे और न ही उनके सगे-संबंधी-शुभचिंतक। और, वोट डालेंगे तो, भी इतने कम हो गए हैं कि सरकार यूपीए की ही बनेगी। तो, शिंदे साहब इन आतंकवादियों के खिलाफ मुदकमे-जेल की कार्रवाई यूपीए 2 में होगी या यूपीए 3 का इंतजार करें। #rss #bjp #terrorism

 2- राम जेठमलानी के बेटे Mahesh Jethmalani नितिन गडकरी के खिलाफ BJP अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ना चाहते हैं और वो, इतने भर से ही #tweeter पर नंबर 1 पर हैं। इस नब्ज को संघ, बीजेपी समझे तो, बेहतर। #rss #FB #BJP

3- कल्याण सिंह BJP में वापस आ गए हैं। कार्यकर्ता उत्साहित हैं। कल्याण भी पुराने जोश में भाषण देने की कोशिश कर रहे हैं। कह रहे हैं हमने 60 लोकसभा जिता के दी हैं। अब तो, 50 की ही बात कर रहे हैं। पूरे प्रदेश के दौरे की बात कह रहे हैं। चुनाव नहीं लड़ेंगे ये भी कह रहे हैं। जय श्रीराम का नारा लगा रहे हैं। बजरंगबली को भी याद कर रहे हैं। लेकिन, खांसने लगते हैं। क्या पुराने दिन लौटेंगे
4- एक जमाने में कल्याण सिंह, उमा भारती की अनुशासनहीनता को संघ के खिलाफ समझाकर उन्हें बाहर कर दिया गया। और, ये करने-कराने वाले ही बीजेपी के बड़े नेता हो गए। अब नितिन गडकरी सिर्फ पुराने बीजेपी नेताओं कल्याण सिंह-उमा भारती की वापसी कराके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रिय हैं।

और अंत में –

5- बीजेपी का काम अच्छा। बड़े-बड़े नाम अच्छे। फिर भी BJP को मजबूत बनाने का असली काम उसके काम और बड़े-बड़े नाम से ज्यादा शिंदे-दिग्विजय जैसों के बयान क्यों करने लगे हैं। #BJP #RSS इस पर सोचेगा क्या?

नहीं सोच रहे हैं तो, सोचिए कि जब सरकार के खिलाफ इतना गुस्सा लोगों में हो फिर भी आपकी बात पर भारत का लोकतंत्र भरोसा जताने को तैयार क्यों नहीं है?

Thursday, January 17, 2013

असली खेल तो अब शुरू होगा !

चुनाव सिर्फ डेढ़ साल दूर रह गया है। बजट सत्र भी है। ऐसे में सरकार खुद डीजल कीमतें बढ़ाने का फैसला कैसे लेती। इसीलिए तेल कंपनियों के हवाले ये कर दिया गया। आज आधी रात से दाम बढ़ने की बात है। लेकिन, मुझे लगता है कि अगर हुई भी तो, आज सिर्फ रस्मी बढ़त होगी। खेल आगे होगा। औऱ, अच्छा ही है कम से कम बार-बार अपनी सारी असफलताओं का ठीकरा सरकार वित्तीय घाटे (सब्सिडी) के मत्थे तो नहीं मढ़ सकेगी।

फिर सब्सिडी का खेल खत्म हो जाएगा तो, सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के भी खेल पर रोक लगेगी। फॉर्च्यून 500 की लिस्ट में बनी रहेंगी क्या। जब रिलायंस इंडस्ट्रीज के रहते दूसरी किसी भी सरकारी कंपनी के किसी भी तरह से उससे आगे जाने में पसीने निकलने लगते हैं। अब सोचिए अगर तेल कंपनियों के सामने भी रिलायंस इंडस्ट्रीज आकर खड़ी हो गई तो, क्या होगा? और, मुझे तो, याद है सबको याद होगा। रिलायंस के बंद हो गए पेट्रोल पंप जब खुले थे तो, कैसे आसपास के इलाके के लोगों की आंखें चमकने लगीं थी कि अरे पेट्रोल पंप ऐसे भी होते हैं। पेट्रोल पंप तो, सरकारी तेल कंपनियों के जमाने में सिर्फ तेल भराने के लिए होते थे। हां, कुछेक जगहों पर सरकारी कंपनियों ने भी मॉडल पंप खोले जहां डीजल-पेट्रोल के साथ कुछ और इंतजाम भी किए। लेकिन, कितने पानी, हवा और गाड़ी पोंछना।

लेकिन, जब रिलायंस आया तो, हर रिलायंस पेट्रोल पंप के साथ होटल-मोटल की भी योजना थी। कई बार रिलायंस के तरफ से सरकार को यही निवेदन गया कि हमें बराबरी की लड़ाई का मौका दो। यानी अगर सब्सिडी सरकारी तेल कंपनियों को दे रहे हो तो, हमें भी दो। क्योंकि, हम भी तो, लोगों को ही डीजल-पेट्रोल बेचेंगे। लेकिन, फॉर्च्यून 500 का तमगा छिनने के डर से सरकार ये इजाजत भला कैसे देती। लेकिन, अब जब पेट्रोल-डीजल दोनों के दाम सरकार नहीं, तेल कंपनियां ही तय करेंगी तो, वो भला घाटा क्यों सहेंगी। अब सरकार अंडररिकवरी के जरिए उनकी बैलेंस शीट तो चमकाने से रही। फिर तो, अंग्रेजी में लेवल प्लेइंग फील्ड तैयार हो जाएगी।

अब इस लेवल प्लेइंग फील्ड पर कौन बेहतर खिलाड़ी साबित होगा ये बताने-समझाने की जरूरत है क्या ? याद है ना भारत हॉकी का विश्व चैंपियन था। ध्यानचंद जादूगर थे। फील्ड बदली। चैंपियन बदल गए। देखिए तेल के खेल में क्या होता है।

Tuesday, January 15, 2013

20000 का बाजार और यूपीए की सरकार!

क्या बाजार का मूल स्वभाव ही चोरी, सट्टेबाजी है। कल वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पहले के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के समय के एक कानून को 2016 तक के लिए टालने का एलान किया। ये कानून इनकम टैक्स विभाग के अधिकारियों को ज्यादा अधिकार देता है कि वो..., विदेशियों की भारत में टैक्स चोरी के मामले की अच्छे से जांच कर सकें। तब से हंगामा मचा था। चिदंबरम ने आते ही इसे 2013-14 तक टाला था। लेकिन, इत्ते से बात नहीं बनी। अब विदेशी निवेशकों को राहत है कि ये कानून GAAR 2016 तक लागू नहीं होगा। इससे बाजार कल खूब भागा। आज भी। बाजार के काम करने की क्या यही मूल शर्त है कि चोरी करने वालों पर शिकंजा न कसे। वो, उसी रकम को घुमाते रहें और बाजार बढ़ाते रहें।
 
 
वैसे, अपने पी चिदंबरम साहब बाजार भगाने के पुराने उस्ताद हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव हैं और ये 2013 की शुरुआत है यानी करीब डेढ़ साल का समय है। 2007 अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा पता नहीं कितने लोगों को याद है। यही पी चिदंबरम साहब वित्त मंत्री थे। शेयर बाजार अचानक धड़ाधड़ कर गिरने लगा था। सट्टेबाजों ने तेजी से निवेश निकालना शुरू कर दिया। और, उस समय भी पी नोट्स और FII का ही झंझट था। लेकिन, वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उस गिरते बाजार में एंट्री क्या ली। सब मामला पलट गया था किसी फिल्म की कहानी जैसा। तब भी ये समझना मुश्किल नहीं था कि आखिर ये बौराया बाजार किसका भला कर रहा है। हाल ये है कि अगर आप घूम टबलकर इस देश के निवेशकों से चर्चा कर लें तो, झूठ बोलकर बुद्धिमान बनने के चक्कर में भले ही सीना चौड़ा किए बाजार से कमाई करने की कहानी सुनने को मिल जाएं। लेकिन, थोड़ा डिटेल में बात कीजिएगा तो, समझ में आएगा कि हमें तो, बड़ी समझ थी लेकिन, कभी ब्रोकरेज के चक्कर में पिट गए तो, कभी बस चूक गए टाइप के बहानों से खुद के बाजार विशेषज्ञ होने की बात बताने वाले लोग मिल जाएंगे। और, इसी विशेषज्ञ होने की कमजोरी को सरकार समझ चुकी है। इसीलिए उसे पता है कि सेंसेक्स सरपट दौड़ता रहे तो, देश की जनता को तरक्की का आभास होता रहेगा। भले उसकी जेब में हुआ छेद बड़ा होता जा रहा है।
 
गजब के फॉर्मूले पर चल रही है यूपीए सरकार। यूपीए 1 पता नहीं किस चमत्कार से आ गई। लेकिन, यूपीए 1 ऐसे ही चमत्कारों से आई थी। 2007 अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में आई इस गिरावट और उसके चमत्कारिक उभार के ठीक पहले यानी अक्टूबर 2007 के पहले पखवाड़े में ही सरकार ने 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी थीं। और, उन तैयारियों का आगाज भी हो गया था।  उसका असर ये रहा है कि 2009 में यूपीए 2 सत्ता में। और, 2009 में सरकार बनने के साथ ही सरकार के होने पर ही सवाल खड़े होते रहे। देश के सभी राज्यों में कांग्रेस पिटती रही। सिवाय दिल्ली के। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी, बिहार में कांग्रेस गायब सी ही रही। लेकिन, अब जब फिर 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ डेढ़ साल ही बचे हैं तो, चिदंबरम साहब का चमत्कार दिखने लगा है। नीति विकलांगता से ग्रस्त यूपीए 2 अचानक सारी नीतियों को कड़ाई से लागू करने लगी है या लागू करने की बात करने लगी है। शेयर बाजार का एक अहम वाला सूचकांक सेंसेक्स फिर से 20000 की तरफ जा पहुंचा है। आज तो, छूकर वापस लौटा है। विदेशी निवेशकों को टैक्स चोरी पर भी सरकारी इनकम टैक्स अधिकारी ज्यादा कड़ाई नहीं कर सकेंगे ये खबर सुनते ही विदेशी निवेशक हर तरह की कमाई लेकर भारतीय शेयर बाजार की चमक फिर बढ़ाने में लग गए। मकर संक्रांति के दिन जब प्रयाग (इलाहाबाद) के महाकुंभ में श्रद्धालु आस्था, पुण्य की गठरी संजोने में लगे थे तो, विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से मुनाफे की गठरी तैयार करने में लगे हुए थे। 14 जनवरी को FII यानी विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में $ 185.41 मिलियन की रक लगा दी। अब कहां टिक पाएंगे इस रकम के सामने हमारे विदेशी निवेशक। ठीक वैसे ही जैसे कहां वॉलमार्ट की लॉबी के आगे टिक पाएंगे हमारे देसी किराना वाले।
 
लेकिन, इसे सरकार क्यों माने। क्यों समझे। बिना माने-समझे और विदेशियों, विदेशी पैसे की चिंता से ही तो, यूपीए 2 आया। यूपीए 3 का भी जुगाड़ लगा लिए हैं। कम लोगों को कम पैसे देने वाली डायरेक्ट कैश सब्सिडी ट्रांसफर योजना को सरकार के मंत्री मैच विनर कह रहे हैं। समझ रहे हैं न सेंसेक्स के 20000 वाले बाजार और सरकार के बनने में बड़ा तालमेल है।

Monday, January 14, 2013

महिला सशक्तिकरण, मकर संक्रांति, नौकरी


मां-बाप के साथ वो मजबूत लड़की
महिलाओं को घर के अंदर रहना चाहिए। लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए। खाप जैसे तय करे वैसे चलें, तभी वो सुरक्षित हैं। मजबूत हैं। लेकिन, असल मजबूती महिलाओं की चाहिए तो, क्या करना चाहिए। वही महमूद ने जो, 70 के दशक में गा के कहा था। ना बीवी ना बच्चा ना बाप बड़ा ना भैया द होल थिंग इज दैट की भैया सबसे बड़ा रुपैया। ये था पुरुष सशक्तिकरण का फॉर्मूला। महिला सशक्तिकरण के लिए इस गाने में ना पति ना बच्चा ना बाप बड़ा ना भैया द होल थिंग इज दैट की भैया सबसे बड़ा रुपैया।

आज सुबह मकर संक्रांति पर घर से खिचड़ी खाकर निकला। पत्नी ने परंपरा के लिहाज से काली उड़द की दाल, चावल, घी और दक्षिणा के साथ निर्देश दिया कि इसे मंदिर में जाकर पंडितजी को दे दीजिए। अच्छा हुआ मैं चला गया। मंदिर में पंडित जी को खिचड़ी, दक्षिणा पकड़ाकर निकल रहा था कि एक लड़की व्हीलचेयर पर मंदिर की सीढ़ियों से भगवान को प्रणाम कर रही थी। लड़की के साथ उसके मां-बाप भी थे। एक दूसरी महिला आई। संवेदना जताते हुए कहा लड़की को काफी तकलीफ है और उसकी वजह से आप लोगों को भी। पोलियोग्रस्त लड़की की मां ने तुरंत पलटकर कड़ाई से जवाब देते हुए एक लाइन में कहा- कोई तकलीफ नहीं है, मेरी लड़की नौकरी करती है।

दरअसल यही है महिला सशक्तिकरण का एकमात्र फॉर्मूला। और, महिला क्या किसी को भी मजबूत बनाने का बस यही फॉर्मूला है।

Saturday, January 05, 2013

ये मामला इतना सीधा नहीं है !

दुष्कर्म की घटना के अकेले चश्मदीद को जी न्यूज एडिटर ने अपने पत्रकारीय पुनर्जन्म के लिए इस्तेमाल किया है। ये बहस चल रही है। बहस ये भी कि ऐसे संवेदनशील मसले की भी पैकेजिंग बड़ी घटिया हुई है। हमें लगता है कि ये दोनों बातें काफी हद तक सही हो सकती हैं। लेकिन, मेरी सामान्य बुद्धि इस घटना में इसलिए जी के साथ है क्योंकि, सुधीर ने जो किया ये उसे करना ही चाहिए। बड़ा दाग धोने का मौका जो उसके पास है। लेकिन, य...े साहस दिखाने के बजाए टीवी के महान संपादक सरकारी स्थिरता पर क्यों लामबंद हैं। अब ये इंटरव्यू तो हमेशा सरकार पर उंगली उठाता रहेगा। दूसरी बात टीवी इतना ही संवेदनशील रहता है कि किसी भी घटना की पैकेजिंग अतिमहत्वपूर्ण होती है। कितनी भी संवेदनशील खबर पर घंटों न्यूजरूम में इस बात पर खर्च होते हैं कि कौन सा संगीत या गाना लगे कि और ज्यादा लोग इससे जुड़ जाएं। ये बहसें छोड़िए। सुधीर को दोषी ठहराते रहिए, जरूरी है। लेकिन, इस मुद्दे पर जी के साथ आइए, उसके साहस को सलाम कीजिए। वरना सरकारी चाबुक तो, तैयार है ही।

जो, लोग इसे कानून के खिलाफ बता रहे हैं उनकी जानकारी के लिए सिर्फ ये लड़का ही नहीं। उस लड़की के पिता भी न्यूज चैनलों को साक्षात्कार देना चाह रहे हैं। उनकी लड़की के नाम को सम्मान से जाना जाए ये चाहते हैं पहचान-सम्मान देने में न तो मीडिया साथ दे रहा है न सरकार। फिर से सोचिए सारा मामला समझ में आ जाएगा।

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...