Friday, September 30, 2011

जल्दबाजी मोदी को भारी पड़ेगी?


नरेंद्र मोदी के उपवास के दौरान लालकृष्ण आडवाणी
 गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में अब तक जो, दिखता रहा है कि वो, हर फैसला बड़ा सोच-समझकर लेते हैं। इसी से ताकतवर भी हुए। लेकिन, अब लालकृष्ण आडवाणी का ये विरोध नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी मुसीबत बनता दिख रहा है। इतनी हड़बड़ी ठीक नहीं। दिल्ली फिर दूर हो जाएगी।

और, सबसे बड़ी बात ये है कि नरेंद्र मोदी को ये समझना होगा कि अगर उन्हें 6 करोड़ गुजरातियों से आगे बढ़कर 120 करोड़ से ज्यादा हिंदुस्तानियों का नेता बनना है तो, उस अंतर के लिहाज से व्यवहार करना होगा। अगर ये अंतर नरेंद्र मोदी की समझ में नहीं आया तो, बस गुजरात को परिवारों को घूमने की जगह या फिर ऑटो हब बनाकर ही खुश रहना होगा।

नरेंद्र मोदी को तो, वैसे भी अच्छे से पता है कि विद्रोही तेवर दिखाने वाले भाजपाई नेता कितने भी बड़े हों। उनका हश्र क्या होता है। कुछ को तो, उन्होंने ही निपटाया है। और, उन्हें ये तो, अच्छे से पता होगा कि निपटा इसीलिए पाए कि पार्टी उनके साथ थी। एक जमाने के दिग्गज कल्याण सिंह आज जबरन ये बयान देते घूम रहे हैं कि वो, बीजेपी में किसी कीमत पर नहीं लौटेंगे। वो, ये नहीं बता पाते कि कीमत देने के लिए उन्हें खोज कौन रहा है। या उनके पास कीमत देने गया कौन था। कल्याण उस वक्त देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री थे और नरेंद्र मोदी से ज्यादा बड़े हिंदू हृदय सम्राट थे। उमा भारती तो, मध्य प्रदेश तक में जाकर बीजेपी की सरकार बनवा आईं थीं। आखिरकार उन्हें पार्टी की गति से ही चलते हुए लौटना पड़ा।

और, ये नरेंद्र मोदी और बीजेपी के हित में होगा कि ऐसी नौबत न आए कि मोदी की तुलना कल्याण, उमा (जैसे वो बाहर गई थीं) के साथ हो। अभी मोदी को शांत रहने की जरूरत थी। मोदी ने जिस तरह से उपवास के दौरान सबको छोटा दिखाने की कोशिश की वो, किसी को कैसे पचेगा। जबकि, आडवाणी अब कितने दिन। ये समझकर मोदी को फैसला लेना चाहिए। आडवाणी के बाद बीजेपी की स्वाभाविक पसंद वो बन जाते। और, ऐसे समय में नरेंद्र मोदी की ये राजनीति नीतीश कुमार जैसे लोग और बीजेपी में कम जनाधार वाले आडवाणी के पीछे घूमने वाले नेताओं की राजनीति चमकाने में मददगार होगी। क्योंकि, चमत्कार हो जाए और अभी सरकार गिरे, जो होने वाला नहीं है, तो, भले आडवाणी पीएम इन वेटिंग स प्रधानमंत्री बन पाएं। 2014 तक तो, उनकी दावेदारी किसी सूरत में नहीं बचेगी। और, ये बात नरेंद्र मोदी और उनके सभी शुभचिंतकों को समझना होगा।

क्योंकि, ये महज संयोग नहीं हो सकता। नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच जंग काफी समय से चल रही है। अभी लोकसभा चुनाव को दो साल से ज्यादा बचे हैं। पिछली बार भी 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात के चुनाव के समय ही ये घोषणा हो गई थी कि लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। और, करीब पांच साल बाद फिर वैसा ही दृष्य है। गुरु गुड़ रह गए चेला चीनी हो गया की देसी कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।

3 comments:

शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...