भारत देख समझ लिया जाए तो, जीवन सफल हो जाए। अभी मेंहदीपुर के बालाजी हनुमान के दर्शन के लिए गया था। आगरा-जयपुर के शानदार हाईवे से होकर वहां के लिए रास्ता जाता है। मथुरा से इसके लिए रास्ता कटता है।
आगरा-जयपुर हाईवे पर घुसने के कुछ ही देर में हमारी नजर अगल-बगल के गांवों के नाम वाले बोर्ड पर पड़ी। लगा ये सारे नाम कुछ अलग हैं। कम से कम उत्तर प्रदेश के गांवों-शहरों में ऐसे नाम तो हमें नहीं दिखे। यूं ही लिखता चला गया। दरअसल इनके अर्थ वैसे ही होंगे जैसे दूसरे राज्यों के गांवो-कस्बों के नाम होते हैं। बस ये नाम राजस्थान की बदलती भाषा के लिहाज से भी बदल गए होंगे।
विनउवा
बहुआ का नगला
छौंकरवाड़ी
लुधावई
सेवला
पहरसर
रैना
डेहरा
नदबई
महवा
हंतरा
वैर
अरोडा
हलैना
नया गांव माफी
नसवारा
तिलचिवी
झालाटाला
बछरैन
खेडाली
गदसिया
रौत हंडिया
हिंडौन
समलेटी
पडाली
पीपलखेड़ा
टिकरी जाफरानी
उलूपुरा
लुलहारा
सिनपिनी
राजस्थान के उसमें भी खासकर दौसा जिले के कुछ ब्लॉगर होंगे तो, शायद इन जगहों के नाम के पीछे की कुछ कहानी बता पाएंगे तो, जानकारी बढ़ेगी। थोड़ी बहुत राजस्थानी भी बैठे बिठाए सीखने को मिलेगी।
नववर्ष की अनेको हार्दिक शुभकामनाये और बधाई
ReplyDeleteआपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeletebahut sundr,नए साल की शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत रोचक नाम है....
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएं।
शेखावत जी शायद प्रकाश डालें.
ReplyDeleteवर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
हाँ, अलग हैं ये नाम !
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो !
हर गाँव की अपनी कहानी होती है। मुझे नहीं लगता कि अधिकांश गांवों के नाम की कहानी उस गांव के लोगों को भी पता होगी।
ReplyDeleteअब कोटा शहर को लीजिएं। नगर बसने के पहले दक्षिण में अकेलगढ़ नाम का स्थान था जहाँ भीलों के समूह का राज्य था जिस के सरदार का नाम कोट्या था। हाड़ा राजपूतों ने उन्हें पराजित कर कोट्या का वध कर दिया। इसी स्थान पर जहाँ कोट्या का वध हुआ बाद में गढ़ का निर्माण हुआ। गढ़ के मुख्यद्वार के पास आज भी भील सरदार कोट्या और उस के साथियों की समाधि मौजूद है। जिन्हें सिंदूर लगा कर पूजा जाता है। कोट्या के नाम से नगर का नाम कोटा पड़ा। है न विचित्र कथा। इस नगर का नाम विजेता के नाम पर नहीं अपितु पराजित भील सरदार के नाम पर रखा गया है।