Wednesday, December 30, 2009

क्या सलीके से दर्शन होने पर भगवान का महत्व कम हो जाता है



वैसे तो अकसर धार्मिक स्थलों पर अराजकता के किस्से अकसर देखने-सुनने को मिल जाते हैं। लेकिन, अभी राजस्थान के दौसा जिले के एक धार्मिक स्थल पर अराजकता का जो नजारा दिखा वो, सब पर भारी था। दौसा जिले के मेंहदीपुर में स्थित बालाजी हनुमान का मंदिर कुछ ऐसी ही अराजकता का शिकार है।


मंदिर के बाहर बाकायदा बालाजी ट्रस्ट का बोर्ड दिखा जिससे ये तो तय हो गया कि कुछ स्वनाम धन्य स्वयंभू धार्मिक ठेकेदारों ने बालाजी मंदिर से आने वाली आय से अपना कल्याण करने का रजिस्ट्रेशन करा रखा है। लेकिन, भगवान के भक्तों का हाल इतना बुरा हो जाता है कि मैं बालाजी मंदिर के सामने करीब 4 घंटे की लाइन में लगने के बाद भी बाहर से ही दर्शन करके लौट आया।



वैसे तो, किसी भी धार्मिक स्थल पर हर आस्थावान मत्था टेकने चला जाता है। लेकिन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोगों के लिए बालाजी हनुमान का विशेष महत्व है। दिल्ली से करीब 270 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे से गांव मेंहदीपुर में ये मंदिर है जो, इसी मंदिर की वजह से बेहद अस्त व्यस्त गंदे से कस्बे का रूप धर चुका है। एक मुख्य सड़क के दोनों तरफ आश्रम-धर्मशालाओं की लाइन लगी है। और, मंदिर के आसपास का पूरा इलाका प्रसाद की दुकानों में तब्दील हो गया है। हर घर में रुकने का भी इंतजाम है। कुछ मिलाकर पूरा इलाका इन्हीं बालाजी की ही कृपा से खा रहा है। लेकिन, जो भक्त यहां के लोगों के खाने का इंतजाम कर रहे हैं उन भक्तों की ऐसी दुर्दशा हो जाती है कि बहुत पराक्रमी और अंधभक्त न हो तो, दोबारा आने का साहस न कर पाए। कम से कम मेरे जैसे सामान्य आस्था वाले लोग तो नहीं ही।



दरअसल इस मंदिर की दुर्दशा के पीछे एक और बड़ी वजह है जो, मुझे वहां पहुंचने पर ही पता चली। वो, ये कि बालाजी हनुमान के साथ ही भैरव और प्रेत दरबार भी है। जहां ज्यादातर लोग रोग निवारण या प्रेत बाधा दूर कराने के लिए आते हैं। ऐसे लोगों की भीड़ थी जो किसी न किसी भूत-प्रेत बाधा के मरीज को लेकर आए थे। अंधमान्यता ये भी है कि यहां का दर्शन एक बार कर लेने के बाद किसी को कभी प्रेत बाधा नहीं होती है। मंदिर के सामने की लोहे की रेलिंग पर एक दूसरे के साथ गुंथे ताले दरअसल वो लोग बांधकर जाते हैं जिनकी प्रेत बाधा उन्हें लगता है कि बालाजी ने दूर कर दी।


हम लोग दिल्ली से निकले शाम के करीब 6 बजे और 9 बजे के आसपास मथुरा पहुंच गए। लेकिन, तय किया गया कि रात में ही मेंहदीपुर पहुंच जाया जाए तो, सुबह दर्शन करके जल्दी मथुरा वापसी कर लेंगे। रात के करीब बारह-साढ़े बारह बजे हम लोग मेंहदीपुर पहुंचे। जबरदस्त सर्दी की रात में सभी धर्मशालाओं-आश्रमों से हाउसफुल की सूचना मिल रही थी। हारकर एक धर्मशाला के केयरटेकर का नंबर मिलाया गया। उसने बुला लिया। अंदर बनी उस धर्मशाला में पहुंचे तो, पता चला कि कमरा तो, वहां भी नहीं खाली है। लेकिन, उसने स्टोर रूम साफ करवाकर उसी में गद्दे लगवा दिए। लगे हाथ ये हिदायत भी दे दी कि एकाध-दो घंटे जो सोना हो सो लीजिए। 3-4 बजे तक लाइन में लग जाएंगे तो, 12 बजे तक दर्शन हो जाएगा। लगा कि ये बेवजह डरा रहा है।


लेकिन, ये लगा कि जितनी जल्दी दर्शन हो जाएगा मथुरा-वृंदावन में उतना ज्यादा समय मिल जाएगा। आखिरकार आलस करते-ठंड से डरते हम लोग नहा-धोकर साढ़े चार बजे मंदिर पहुंच गए देखा तो, मंदिर के बगल से सटी गलियों में अंदर तक भीड़ लाइन लगाए खड़ी थी। खैर, हम लोग भी लाइन में लग गए। पता चला कि सात बजे से आरती शुरू होगी। आठ बजे से दर्शन शुरू होगा। फिर भई लाइन अभी से क्यों तो, जवाब ये कि अभी से लाइन में लगेंगे तो, ही जाकर 11-12 बजे तक दर्शन हो पाएंगे। दरअसल जानबूझकर आधी रात से ही लाइन लगाने की भूमिका मेंहदीपुर के दुकानदारों से लेकर आश्रम-धर्मशाला तक वाले ऐसी बना देते हैं कि बेचारा दर्शन करने वाला डरकर आधी रात से ही बालाजी की ब्रांडिंग मजबूत करने में जुट जाता है। कुल मिलाकर धर्म के ये ठेकेदार धार्मिक लोगों की आस्था का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।


और, जो आधी रात से लाइन में लगते हैं वही बेवकूफ भी गजब बनते हैं। हम लोग भी बने। नियम का पालन करते लाइन में लग गए। बाद में देखा तो, मंदिर के सामने लाइन की बजाए पूरी जनसभा जैसी भीड़ फैलती चली गई। न तो कोई पुलिस का इंतजाम- नही मंदिर से कमाने-खाने वाले ट्रस्टियों का कोई अता-पता। मंदिर के ट्रस्ट का कार्यालय खोजना चाहा तो, पता चला कि ऑफिस तो, आठ बजे तक खुलेगा।


खैर, मंदिर के बाहर भूत-प्रेत बाधा से ग्रसित अभुआते-लटपटाते-गिरे लोगों को देखकर मेरा मन इतना खराब हो चुका था कि मैंने चार घंटे लाइन में लगने के बावजूद मंदिर में न जाने का फैसला कर लिया और मंदिर के बाहर से ही दर्शन करके जाकर गाड़ी में आराम करने लगा। लाइन में लगने के दौरान बालाजी के अनन्य भक्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के निवासी एक अधेड़ उम्र के सज्जन ने दावा किया कि एक ट्रक दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी इस कदर टूटी थी कि वो उठने-चलने लायक नहीं रहे थे लेकिन, ये बालाजी की ही कृपा थी कि कुछ ही दिनों में दवा बंद करने के बावजूद वो लाइन में फिर से बालाजी के दर्शन के लिए खड़े हैं। महिलाओं-लड़कियों पर ही ज्यादा भूत-प्रेत बाधा दिख रही थी इसका जवाब उन अधेड़ साहब ने दिया कि हम-आप भी तो लड़कियों की ही तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं। खैर, ये जवाब मुझे इसलिए नहीं पचा कि पहले तो मैं भूत-प्रेत नहीं मानता। और, अगर भूत-प्रेत होते भी हैं तो, क्या सिर्फ पुरुष ही होते हैं। ये नया शोध का विषय मिल गया। अगर ये हो तो अच्छा है कि महिलाएं ऐसे कर्म अपने जीवन में ऐसे कर्म कम ही करती हैं कि उन्हें भूत-प्रेत बनना पड़े।

अब मेरा ये लिखा बालाजी ट्रस्ट के लोग तो पढ़ने से रहे। लेकिन, अगर किसी तरह ट्रस्ट के लोगों को ये बात समझ में आ जाए तो, शायद मेंहदीपुर का बेतरतीब कस्बा बालाजी की कृपा से अच्छी प्रति व्यक्ति कमाई वाली जगह में बदल सकता है। वहां रहने वालों का जीवन स्तर सुधर सकता है। उन्हें भी आधी रात से ही जगकर प्रसाद-चाय, नाश्ता बेचकर रोटी का जुगाड़ करने की जद्दोजहद से मुक्ति मिल सकती है। लेकिन, इसके लिए आधी रात से बालाजी दर्शन की लंबी लाइन का डर दिखाने के बजाए एक व्यवस्थित तरीका तैयार करना होगा। 

10 comments:

  1. मुझे जो सबसे अच्छी बात लगती है आपकी वो है...विषय का चयन...जबर्दस्त ढंग से अपने आस-पास से जुड़ी हुई...!

    बेहतरीन..!

    लेख बेहद पसंद आया..!

    ReplyDelete
  2. धर्म के ठेकेदारों ने ही तो धर्म के विनाश का ठेका भी ले रखा है। बहुत सी जगहों पर यही हाल है। धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. हम एक "सिस्टम" अपनाने से कतराते है. बेवजह मेहनत भी कौन करे? क्यों करे? जहाँ इस प्रकार की भीड़ के लिए व्यवस्था की गई है, वहाँ जा कर सीख सकते है, लागू कर सकते है.

    ReplyDelete
  4. एक बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  5. बहुत सार्थक आलेख!!


    मुझसे किसी ने पूछा
    तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
    तुम्हें क्या मिलता है..
    मैंने हंस कर कहा:
    देना लेना तो व्यापार है..
    जो देकर कुछ न मांगे
    वो ही तो प्यार हैं.


    नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. अनेक मन्दिरों के देवों-देवियों को दूर से नमन कर लौटा हूं मैं।

    ReplyDelete
  8. हर्ष जी अच्छे और सच्चे लोग मंदिर प्रशासन या और अन्य सामाजिक सरोकारों से दूर भागेंगे तो गुंडे और टुच्चे किस्म के लोग अपनी दादागिरी चलाएंगे ही |

    दूर की छोडिये .... हमारे आस पास के मंदिरों मैं भी अव्यवस्था आम है पर हम-आप इस अव्यवस्था की आलोचना भर कर के संतुस्ट हो जाते हैं, कभी अव्यवस्था को दूर करने के लिए कमर नहीं कसते ....

    ReplyDelete
  9. जिस kisi ne भी अव्यवस्था को दूर करनी ठान ली ... वहां पे मंदिर की व्यवस्था जरुर सुधरी है .... पटना का हनुमान मंदिर और कुनाल के प्रयास अनुकरणीय है पर ऐसा प्रयास होते dikhte नहीं |

    ReplyDelete
  10. राकेश जी से सहमत।

    धर्म को घटिया लोगों के हवाले छोड़कर हम अपने उत्तरदायित्व की इतिश्री कर लेते हैं और फिर ऐसी ही तकलीफ़ से दो-चार होते हैं।

    नववर्ष की शुभकामनाएं।

    ReplyDelete

शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...