Saturday, January 02, 2010

ये हाईवे तो तरक्की के हैं लेकिन, ...



तरक्की की कई नई इबारतें साफ दिखने लगी हैं। इबारतें अभी पूरी कॉपी में 2-4 पन्नों पर ही लिखी हैं। इसलिए इन इबारतों का असर अभी खास नहीं दिखता। लेकिन, ये इबारतें पूरी कॉपी भर दें तो, सचमुच तरक्की के हाईवे पर हमारी रफ्तार तेज हो जाएगी।

अटल बिहारी वाजपेयी जीवित हैं लेकिन, ज्यादा ध्यान देकर न सोचा जाए तो, ये तगड़ा भ्रम होगा कि वाजपेयी जी हमारे बीच हैं या नहीं। मैं जब भी किसी शानदार हाईवे पर गाड़ी दौड़ाता हूं तो, अनायास मुझे अटल बिहारी वाजपेयी याद आ जाते हैं। अभी दिल्ली से मथुरा और फिर भरतपुर के रास्ते कटकर आगरा जयपुर हाईवे पर जाना हुआ। अब मुझे ध्यान में नहीं आ रहा है कि इन दोनों में से किसी हाईवे की बेहतरी में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का योगदान रहा है या नहीं। लेकिन, शानदार चमकते किसी भी हाईवे को देखकर अटल सरकार की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना याद आ जाती है।

दिल्ली से बालाजी तक के रास्ते में दिल्ली से फरीदाबाद तक और मथुरा से आगरा-जयपुर हाईवे को मिलाने वाले रास्ते की दूरी को छोड़ दें तो, सफर शानदार था। गाड़ी में किसी तरह की थकान नहीं महसूस हो रही थी। मजे से 80-90 की रफ्तार पर बिना किसी तनाव के गाड़ी चल रही थी।

आगरा जयपुर हाईवे के रास्ते में एक जगह पहाड़ काटकर रास्ता बनाना पड़ा है। देखकर मन में आया इसके बनने से पहले कैसे लोग इस पहाड़ को लांघते रहे होंगे। अब अगर सिस्टम कुछ ऐसा बन जाए कि तरक्की इन हाईवेज के जरिए दिल्ली से जयपुर तक के रास्ते में पड़ने वाले गांवों में 80-90 की रफ्तार से चले तो, अगले 10-15 सालों में दिल्ली को भी बाहर से आने वाले लोगों से कुछ निजात मिल जाए। आगरा-जयपुर हाईवे के रास्ते के गांवों के लोगों की जेब में कुछ ज्यादा पैसे आ जाएं। करोड़ो के इंफ्रास्ट्रक्चर से दिल्ली संवारने के बाद भी कई किलोमीटर लंबे जाम में फंसने से दिल्ली के लोग बच जाएं। लेकिन, मुश्किल ये है कि ये हाईवे ज्यादा पैसे के कम पैसे को खींचने जैसे चुंबक का काम कर रहे हैं। छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर लोग सटासट खींचते चले आ रहे हैं।

बड़े शहरों-छोटे शहरों के बीच रास्ता तो, झमाझम जुड़ गया है। लेकिन, खाई बढ़ती जा रही है। खैर, छोड़िए न मैं बात शानदार हाईवे की कर रहा था। इतना बेहतरीन हाईवे। सबकुछ व्यवस्थित कि स्पीडोमीटर अगर सेट करके छोड़ दिया जाए तो, भी कहीं मुश्किल नहीं। लेकिन, हाईवे को दोनों तरफ सुरक्षा के लिए लगी एल्यूमीनियम की बाड़ आसपास के गांव के लोगों को जरा कम समझ में आती है। सो धीरे से वो, एल्यूमीनियम की बाड़ काटकर तरक्की वाले हाईवे में घुसने का इंतजाम करते जा रहे हैं।

कई किलोमीटर बाद यू टर्न लेने का समय कहां है। इसलिए ये गांव वाले धीरे से अपनी समझदारी का इस्तेमाल करके हाईवे के बीच के डिवाइडर को जगह-जगह साफ कर देते हैं। अब इस सफाई के बीच अगर गांववाले की बाइक को अगर हाईवे की स्पीड के लिहाज से चलती कार या दूसरी गाड़ी टक्कर मार दे तो, हाईवे पर बवाल की नई कहानी शुरू हो जाती है। तरक्की के हाईवे पर तरक्की के साथ कदमताल मिलाती कारें-ट्रकें-बसें फुंक जाती हैं।

ये तरक्की के हाईवे बड़ी कहानियां लिख रहे हैं। सचमुच की तरक्की की। शानदार सफर की। छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर पलायन की। बड़े शहरों से छोटे शहरों-कस्बों में थोड़ा बहुत बढ़ती कमाई की। तरक्की के हाईवे में जुगाड़ से घुसने की कोशिश की-शॉर्टकट की। बड़ी कहानियां हैंपरदेस फिल्म में शायद ये डायलॉग है कि असल भारत देखना है तो, रेलगाड़ी में स्लीपर में यात्रा करो। अब मुझे लगता है कि असल भारत देखने के लिए तरक्की के ये हाईवेज ज्यादा मुफीद हैं।


7 comments:

  1. हाईवे बनाते समय यदि सरकार आस पास के गाँवों के लिए स्वयं ही कोई जुगाड़ कर दे तो उन्हे जुगाड़ की जरूरत नही रहेगी..।।
    बहुत बढ़िया व विचारणीय पोस्ट लिखी है।धन्यवाद।

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  2. हर्ष भाई यकीनन आपने जो विचार करा है वो सत्य का बिम्ब है। तरक्की के महामार्गों की डामर से लिखी लम्बी काली सी कहानी आंख वालों को दिखाई दे जाती है। पनवेल,खोपोली,लोणावला से भी ये हाई वे गुजरा है और जिन पर गुजरा है वो अधिकतर पहचान के हैं.....

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  3. सही लिखें हैं,विचारणीय पोस्ट.

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  4. हाइवे की कहानी आपने खूब लिखी है, अगर वाजपेयी जी के प्लान पर ये सरकार रोक ना लगाती तो अबतक स्वर्णिम चतुर्भुज पूरा हो चुका होता । अब हाइवे बन गये है तो आवागमन दोनो तरफ से हो गांववाले ही शहर में ना आयें पर उद्योग भी गावों में जायें क्यूकि साधन तो अब हैं ही ।

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  5. बेहतरीन। आपको नए साल की मुबारकबाद।

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  6. हां आपने बहुत सटीक विश्लेण किया । स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को खटाई में डालना अफ़सोसनाक है

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  7. अंधों की सरकारें है, इन्हें सड़कों के किनारे वाले लोग दिखते ही कहां है वर्ना पर्याप्त संख्या में अंडरपास या फ़्लाइओवर, हाइवे बनाने के साथ-साथ ही नहीं बना दिये जाते ?

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