वंदेमातरम खूब सर्च हो रहा है। मेरे ब्लॉग पर ही हर रोज 2-4 लोग तो वंदेमातरम सर्च करते आ ही जा रहे हैं। मेरी पिछले 15 अगस्त को लिखी पोस्ट गूगल अंकल की कृपा से फिर ताजा हो गई है। साल भर बाद ठीक वैसे ही जैसे अपन लोगों में स्वाधीनता-आजादी-देश का स्वाभिमान ये सब हिलोरे मारने लगता है कुछ खास मौकों पर।
लेकिन, ये कमाल नहीं है कि हम अपनी आजादी का जश्न उससे जुड़ी खास तरह की गदगद अनुभूति रोज नहीं कर पाते। अब मैं ये क्यों कह रहा हूं। मुझे लगातार ये सवाल परेशान करता है। चीन हमारे 20-30 टुकड़े करने के सपने देख रहा है। लेकिन, फिर भी हम जब एक देश बनने की सोचते हैं चीन या अमेरिका हमें सबसे पहले याद आते हैं। हम अब भी गुलाम हैं इसका प्रमाण हम गाहे बगाहे देते हैं रहते हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक दिन याद आ गई तो, लेख में मैंने ये भी लिखा दिया कि क्या वजह है कि आज भी हम जॉर्ज पंचम की शान में गाए गए गाने को अपना राष्ट्रगान माने बैठे हैं। वैसे इस पर बहुत विवाद है। लेकिन, जब विवाद खड़ा ही हुआ था तो, ये आखिर क्यों नहीं हो सका कि एक बार इसे ठीक से समझा समझाया जाता कि रवींद्र नाथ टैगोर ने भारत भाग्य विधाता किसे कहा है।
हमारे लेख पर ऑफिस में साथी गिरिजेश और दीपू से जब चर्चा आगे बढ़ी तो, कुछ सवाल जो, उठे वो मैं यहां डाल रहा हूं। आप लोग भी बताइए- और तो मामला सब तर्क और पुराने साक्ष्यों पर ही जाकर टिक जाता है। क्योंकि, गुरु रवींद्र नाथ ठाकुर तो इसे साफ करके गए नहीं।
- अगर भारत भाग्य विधाता ईश्वर को माना गया है तो, इस गान के समय एकदम अकड़कर सैनिक अंदाज में क्यों खड़े रहते हैं। ईश्वर के सामने तो, आस्था रखने वाले नतमस्तक रहते हैं।
- जन गण मन गाने के लिए कुछ सेकेंड्स का समय तय है। किसी भी भजन या भक्ति गीत में कोई समय
नहीं होता।
उसी चर्चा में ये भी आया कि वंदेमातरम को राष्ट्रगान बनाने पर आम सहमति सिर्फ इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसे पेटेंट सा करा लिया है। इसलिए कम्युनिस्ट इसे राष्ट्रगान के तौर पर मानने के लिए तैयार नहीं हैं। हाल ये जन गण मन सेक्युलरिज्म गान हो गया है और वंदेमातरम संघी या राष्ट्रवादी (कभी-कभी तो इसे भी कुछ लोग सांप्रदायिक करार दे देते हैं) गीत भर रह गया है।
मैं तो 4 चार साल मुंबई में रहा और सारे सिनेमाहॉलों में पिक्चर शुरू होने से पहले जन गण मन पर देश के प्रति पूरी आस्था के साथ खड़ा होता था। और, वंदेमातरम सुनकर भी रगों में लहू का संचार तोड़ा तेज हो जाता है। लेकिन, इस तरह के विवाद के बाद क्या इस बात की जरूरत नहीं है कि जनता, सभी पार्टियां इस एक बात पर एकमत हों। क्योंकि, हमारी गुलामी की बहुत सी निशानियां हमारे आसपास हमें कचोटती मिलती रहती हैं। फिर राष्ट्रगान तक पर ये विवाद बना रहा तो, कैसे हमारी आजादी पूरी हो सकेगी।
आज 15 अगस्त है स्वाधीनता दिवस है। आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं
वंदेमातरम
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
स्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें..!!
ReplyDeleteआज देशभक्ति में भी वोट नज़र आते हैं...तभी तो ये हाल है.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteye wiwad to kafee purana hai .
ReplyDeleteWande Mataram ko congress kaise mane jab ki isme ma ko naman hai aur muslim to ek allah ke alawa kisike samane zukate nahee to ye to hone se raha.