Sunday, August 23, 2009

इसमें सरोकार भी है, समाज भी और कारोबार भी.. ये भी मीडिया है


इस चैनल ने मीडिया के वो सारे तर्क झुठला दिए हैं। मीडिया में बैठे उन सब लोगों को तमाचा मारा है जो, कहते घूमते हैं कि जो, बिकता है वहीं हम दिखाते हैं। और, उस बिकने के नाम पर नंगई, लुच्चई, एक हाथ की खबर को 4 हाथ की बना देते हैं। राखी सावंत को अपने प्रेमी को थप्पड़ मारते दिखाते हैं।


खबरों में मसाले की चाशनी लगाकर बेचने वालों के लिए ये ज्यादा समझने वाली बात है। लेकिन, वो क्या समझेंगे क्योंकि, उनके ऊपर तो ठप्पा लगा है कि वो, खबरों को ऐसे दिखाते हैं। बिना सनसनी बेचे उनका काम नहीं चलता। सवाल ये नहीं कि वो, कितना न्यायसंगत तर्क देते हैं। सवाल ये है कि वो, उस तर्क के साथ क्या कर रहे हैं। क्योंकि, मीडिया का काम ये तो हो ही नहीं सकता कि जो बिकता है वही दिखाएंगे। वो, फिर खबरों को दिखाने वाला हम लोगों का मीडिया हो यानी न्यूज चैनल या फिर एंटरटेनमेंट मीडिया या फिर फिल्म बनाने वाले या दूसरे ऐसे ही मीडिया के लोग।


क्योंकि, मीडिया तो, लोगों को जगाने-पढ़ाने-प्रेरित करने के रोल में रहना चाहिए। फिर वो खबरों वाले मीडिया के अच्छी खबरों के साथ बुरी खबरों के खिलाफ मुहिम चलाने की बात हो या फिर समाज को जागरूक करने वाली आगे बढ़ाने वाली खबरें हों। एंटरटेनमेंट मीडिया से एकदम से इस देश की आत्मा ही गायब हो गई। दूरदर्शन, पर सरकारी शिकंजे ने उसे दूर से दर्शन के लायक ही बना दिया तो, निजी खबरों, एंटरटेनमेंट चैनलों ने मुकाबले में गजब की परिभाषा गढ़नी शुरू कर दी। जो, ज्यादातर हर रोज अपनी सहूलियत और अपने संसाधन-हाथ आई खबर के लिहाज से तय होता रहा।


दरअसल मुश्किल ये हुई कि भारतीय टेलीविजन मीडिया अपरिपक्व है, अपनी बाल्यावस्था में है। उसे बड़ा लंबा सफर तय करना है। पश्चिम के मीडिया के बराबर पहुंचना है, उससे मुकाबला करना है। इन तर्कों के चक्कर में भारतीय टेलीविजन मीडिया पश्चिमी खबरों के करने के तरीकों को, कैसी खबरों को तवज्जो देनी है-उन सबमें पश्चिम के टेलीविजन का ही जाने-अनजाने अनुसरण करने लगा। इसमें मुझे भी संदेह नहीं है कि पश्चिम में ही टीवी पत्रकारिता और एंटरटेनमेंट मीडिया शुरू हुआ तो, तकनीक और समझ के लिहाज से हमें उनकी तरफ देखना ही पड़ेगा लेकिन, नजर भी हम उनकी जो, उधार लेने लगे उसने बड़ा बेड़ा गर्क किया।

चमकता इंडिया दिखाने के चक्कर में हर खबरों और एंटरटेनमेंट मीडिया पर चमकते लोगों की खबरें और उन्हीं पर बनाने वाले धारावाहिक भी बने। और, पिसता भारत भी चमकते इंडिया के साथ चलना चाहता था। इसलिए टीआरपी भी खूब मिली। उस चमकने और पिसने के बीच एक वर्ग तैयार हुआ जिसने टीआरपी का टेलीविजन ही तैयार कर लिया। उसमें खबरों में इंडिया टीवी पैदा हो गया तो, एंटरटेनमेंट में स्टार प्लस पर K का पेटेंट सा करा लेने वाली एक पत्नी के दस बीस पति और एक पति के दस बीस अवैध-वैध रिश्तों वाले सीरियल की मालकिन टीवी की महारानी बन गई।



ऐसा नहीं है कि इंडिया टीवी और स्टार प्लस ने मीडिया में बुरा ही किया है। बहुत से लोगों के चेहरे से इंडिया टीवी ने परदे नोच फेंके तो, स्टार प्लस ने एंटरटेनमेंट का एक अलग फलक तैयार कर दिया। लेकिन, मुश्किल ये हुई कि इसको एक छोटा सा आयाम माना जाता इसके बजाए यही मीडिया है ये मान लिया गया।


पिछले कई दिनों से मीडिया में उड़ंतू उस्ताद उसैन बोल्ट की ही चर्चा है, होनी भी चाहिए। बोल्ट हर रोज अपने ही रिकॉर्ड को 100 मीटर की रेस में ऐसे तोड़ते जा रहे हैं कि उन पर डोपिंग का शक तक होने लगा। बोल्ट का रिकॉर्ड बनाना मुझे चौंकाता है। लेकिन, बोल्ट का हवा में उड़ना मेरे रोंगटे नहीं खड़े कर पाता। कलर्स पर मुंबई के राजेश अमरेली का मलखंभ देखकर रोंगटे खड़े हो गए। मजा आ गया जब शेखर कपूर ने कहाकि मैं लिखूंगा कि मलखंभ को ओलंपिक में शामिल किया जाए एक और गोल्ड मेडल तो आएगा। मध्य प्रदेश के लोकमान्य तिलक सांस्कृतिक न्यास के बच्चों के शरीर में भू मुझे वैसा ही लोच दिख रहा था जो, किसी भी ओलंपियन जिम्नास्ट में होता है।




INDIA’S GOT TALENT शो में M sonic बैंड के लीडर के गले में लटके लॉकेट में चे ग्वारा की फोटो दिख रही थी। मुझे पूरा भरोसा है कि चे ग्वारा की लॉकेट या फिर टी शर्ट, चड्ढी बनियान पहनने वाले आधे से ज्यादा लोगों को चे ग्वारा के बारे में पता नहीं होगा। हां, चे ग्वारा पर बनी फिल्म MOTORCYCLE DIARY के जरिए भले कुछ नौजवान चे ग्वारा से जुड़ जाते हों। मेरे छोटे भाई आनंदवर्धन ने तुरंत पलटकर कहा। बताइए ना अपने किस महापुरुष की फोटो बनी टी शर्ट, लॉकेट आते हैं। कोई कंपनी बनाती है क्या।



हम जिस पश्चिमी नजरिए को खबरों से लेकर एंटरटेनमेंट मीडिया तक बेचते हैं कि जो, बिकता है वही बेचते हैं उस नजरिए को अपने पक्ष समझने में ही नाकामयाब रहे। हमें नजरिया बेचना आज तक नहीं आया। हम पश्चिमी सामान से लेकर उनके नजरिए तक सबके खरीदार रहे। हम अपना न सामान बेच पाते हैं न, नजरिया।



कहते हैं न कि मुनाफा चाहिए, धंधे में। फिर चाहे वो, एंटरटेनमेंट या फिर खबरों का ही धंधा (कोई आहत हो रहा हो तो, थम जाए आजकल यही तर्क तो हर दूसरे दिन स्थापित करने की कोशिश हो रही है) क्यों न हो। लेकिन, मैं तो ये तर्क लेकर आया हूं कि कौन कहता है कि भारतीय नजरिया बिकेगा नहीं। चूंकि, अच्छा नजरिया है लेकिन, ब्रांडिंग अच्छा नहीं है। इसलिए खराब नजरिया अच्छी पैकिंग-अच्छी ब्रांडिंग से जमकर बिक रहा है।



कलर्स पर एक भी शो ऐसा नहीं है जो, अपना काम पूरा न कर रहा हो। बािका वधू सीरियल का मैं जबरदस्त प्रशंसक हूं। सुनते हैं इस कहानी को लिखने वाला इसे लेकर सालों घूमता रहा लेकिन, किसी को वो, कहानी सीरियल बनाने लायक लगी ही नहीं। वो, कहते हैं ना अंग्रेजी में – DOWNGRADED STORY, WITHOUT TRP। ये बालिका वधू ही था जिसने कलर्स को साल भर में ही नंबर एक एंटरटेनमेंट चैनल बना दिया। ग्रामीण अंचल पर बनी कहानी सबसे ज्यादा बिक रही है। समझदार लोगों में और समझ भर रही है।


हर शो कुछ न कुछ कहता है-समझा जाता है। दरअसल मैं कलर्स के बहाने सिर्फ ये समझने-समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि भारतीय नजरिया दुनिया खरीदे उस पर चले इसके लिए पहले हमें ही इसे समझना होगा। ये नजरिया ये है कि हमें अपने टैलेंट को समझना होगा, उनकी इज्जत करनी होगी। उन्हें दुनिया के सामने रखना होगा। और, भारतीय नजरिए से खबरें, एंटरटेनमेंट मीडिया को करना होगा। मैंने ऐसे ही कह डाला या इसमें कुछ बात आपको भी लग रही है। बताइए जरूर- क्योंकि, मैं खुद खबरों के मीडिया में हूं- समझना चाह रहा हूं।

1 comment:

  1. भारतीय मीडिया , समाचार चैनलों, धारावाहिकों, पर बहुत समय बाद कुछ सन्तुलित पढने को मिला..धन्यवाद...

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