
कांग्रेस की इस जीत ने कई इतिहास बनाए हैं। और, सबसे बड़ी बात ये कि इसका पूरा श्रेय मी़डिया उन राहुल गांधी को दे रहा है जिनको अभी कुछ समय पहले तक राजनीति का नौसिखिया-बच्चा कहा जा रहा था। फिर आखिर अचानक राहुल ने क्या कमाल कर दिया। दूसरी बात ये भी कोई कमाल किया भी है या सिर्फ महज ढेर सारे संयोगों के एक साथ होने ने राहुल के गाल के गड्ढे बढ़ा दिए। और, अपनी मां सोनिया की ही तरह उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए मंत्री बनने से इनकार कर दिया।
अब देखते हैं कि राहुल ने आखिर किया क्या जो, पूरा मीडिया और पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के आगे नतमस्तक है। राहुल गांधी ने दरअसल कोशिश करके अनी उन सभी कमियों पर खुद हमला करने की कोशिश की जिसका इस्तेमाल उनके खिलाफ विपक्षी जमकर कर रहे थे। वंशवाद, सिस्टम की कमी, भ्रष्टाचार, नौजवानों को राजनीति में जगह न मिलना और सबसे बड़ा गांधी-नेहरू परिवार का राज। राहुल ने एक-एक करके इस सब पर चोट पहुंचाई। बहुत कम लोगों को याद होगा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय दिया गया राहुल का वो बयान जिसमें राहुल ने गैर गांधी कांग्रेसी प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहाराव को ही दोषी ठहराते हुए कहा था कि अगर उनके यानी गांधी परिवार का कोई प्रधानमंत्री होता तो, बाबरी मस्जिद नहीं गिरती। सभी ने राहुल गांधी के इस बयान को बचकाना करार दिया था यहां तक कि विपक्षियों के हमले से डरी कांग्रेस भी इस मुद्दे को जल्दी से जल्दी दबाने की कोशिश करने लगी थी। लेकिन, वो पहला बयान था राहुल क राजनीतिक जमीन बनाने की कोशिश की शुरुआत की।
उस बयान से और कुछ हुआ हो या न हुआ हो। देश भर के मुसलमानों को एक सीधा संदेश गया कि मुसलमानों के हितों के रक्षा करने लायक गांधी परिवार ही था और आगे भी रहेगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इसका असर नहीं दिखा। राहुल गांधी को फ्लॉप करार दे दिया गया था। इसका अंदाजा राहुल को पहले से ही था इसीलिए राहुल ने उसी समय साफ-साफ कह दिया था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश विधानसभा 2012 और लोसभा 2009 का चुनाव लड़ रही है। राहुल ने लोकसभा के लिहाज से 100 ऐसी विधानसभा चुनीं और वहां यूथ कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश की। ये राहुल ही थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल नहीं होने दिया। अब सोचिए कांग्रेस के 21 सांसद दिल्ली पहुंच गए हैं। जबकि, रेशमी कुर्ते में टेलीविजन स्क्रीन पर मुस्कराते अमर सिंह कांग्रेस को उसकी हैसियत याद दिलाते घूम रहे थे और कुल जमा 15-20 सीटें ही देने को तैयार थे।
उत्तर प्रदेश के अलावा राहुल को संभावना दिख रही थी- मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब में। तीनों ही राज्यों में बीजेपी या फिर एनडीए की सरकार थी। कांग्रेस विपक्ष में थी- राहुल ने इस स्थिति का फायदा उठाकर लोकतांत्रिक तरीके से युवक कांग्रेस के चुनाव करा डाले। मौका मिलने से और पीठ थपथपाने से उत्साहित नौजवान कांग्रेस के साथ जुड़ गया। गुजरात में मोदी की जड़े काफी मजबूत हैं लेकिन, फिर भी कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ गया। मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को झटका लगा। पंजाब में तो, अकाली सरकार के कर्म राहुल के लिए सोने पे सुहागा साबित हो गए।
एक और राज्य महाराष्ट्र- यहां तो हींग लगी न फिटकरी और राहुल की कांग्रेस के लिए रंग चोखा ही चोखा। खुद को असली शिवसेना बताने वाली बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने मुंबई की सभी सीटों पर एक लाख से ज्यादा वोट बटोरे हैं। राज्य में भर राज की सेना को इतने वोट तो नहीं मिले कि वो सांसद दिल्ली भेज पाएं लेकिन, इतने वोट जरूर मिल गए कि वो, कांग्रेस को एतिहासिक सफलता दिलाने की सीढ़ी बन गए।
राज ठाकरे जैसा काम आंध्र प्रदेश में देश के किसी भी राजनेता से ज्यादा भीड़ जुटाने वाले स्टाइलिश अभिनेता चिरंजीवी ने कर दिया। प्रजाराज्यम को मिले वोट ने चंद्रबाबू नायडू को पीछे धकेल दिया। कांग्रेसी मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी का सत्यम घोटाले जैसा पाप भी धुल गया। तमिलनाडु में भी हर चुनाव का चलता फॉर्मूला पलट गया। अम्मा के गठजोड़ की बढ़त श्रीलंका में तमिलों पर हुए सेना के हमले ने खत्म कर दी। काला चश्मा लगाए करुणानिधि को तमिल हितों की रक्षा करते दिल्ली साफ नजर आने लगी।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी माता वसुंधरा का दिमाग नहीं सुधरा। राजसी ऐंठन से ऊबी राजस्थान की जनता ने लोकतांत्रिक रजवाड़े कांग्रेस के पक्ष में वोट कर दिया। इसके अलावा राहुल ने देश की जनता को संदेश दिया वो, काम कर गया। राहुल पॉश कॉलोनी के ऐसे नौजवान की तरह व्यवहार कर रहे थे जो, किसी दलित बस्ती के हक के लिए पॉश कॉलोनी से ही लड़ता दिखता है। ये फॉर्मूला काम कर गया।
चौथे दौर के चुनाव के बाद राहुल ने जिस तरह के परिपक्व राजनेता की तरह व्यवहार किया वो, निर्णायक साबित हुआ। राहुल ने कहा- उनके नाम के आगे गांधी-नेहरू नाम लगा हुआ है। इसे वो बदल नहीं सकते। लेकिन, उन्होंने वही कहा जो, उनके विरोधी उन पर हमले के लिए कहते हैं। राहुल ने कहा- वंशवाद लोकतंत्र के लिए घातक है और वो, पूरी कोशिश करेंगे कि इसे खत्म किया जाए। ये कहते वक्त उन्हें ख्याल तो जरूर रहा होगा कि पूरी यूथ ब्रिगेड जिसका हल्ला किया जा रहा है – किसी न किसी पुराने कांग्रेसी नेता के बेटे-बेटी की तस्वीरें दिखाकर मीडिया नौजवानों को उनका हिस्सा मिलने की बात कर रहा है – वो पूरी यूथ ब्रिगेड राजनीतिक विरासत ही आगे बढ़ा रही है।
दरअसल भले ही लोग कहें कि वंशवाद, भ्रष्टाचार, सिस्टम की खामी अब मुद्दा नहीं रह गया है। लेकिन, उसी तरह से मुद्दा है जैसे बड़ा से बड़ा शराबी ये नहीं चाहता कि उसकी औलाद नशे को हाथ तक लगाए। राहुल ने इस नब्ज को पकड़ा और अपने पिता की तरह भाषण दे डाला कि रुपए में दस पैसे भी आम लोगों तक नहीं पहुंचता। भाषण ही देना था दे दिया। गुलाम भारत ने सच्चे मन से राहुल की बात स्वीकार कर ली। कोई भला ये पूछने वाला कहां था कि जब आपका ही परिवार पिछले 62 सालों में बड़े समय तक देश पर शासन कर रहा था तो, मतलब यही हुआ ना कि बचे नब्बे पैसे का भ्रष्टाचार कांग्रेस की ही देन है।
राहुल ने कांग्रेस का संगठन खड़ा किया। क्योंकि, ये सिर्फ राहुल ही कर सकते थे। मनमोहन जैसे सोनिया माता के इशारे पर चलने वाले प्रधानमंत्री के होने की वजह से सत्ता तो वैसे ही उनकी दासी थी। इस पर जो रही-सही कसर थी वो, राहुल गांधी के भाई वरुण गांधी ने पूरी कर दी। मीडिया के The Other Gandhi वरुण गांधी ने भाषण देकर बीजेपी के लिए एक सीट पक्की की। बाकी देश की सरकार चलाने भर की सीट भाई राहुल के पाले में चली गई। एकमुश्त मुसलमान वोट के पड़ने से। मुस्लिम वोटों ने ही दरअसल लेफ्ट को कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा। हाथी पस्त हो गया। तो, साइकिल पंचर भले न हुई लेकिन, दिल्ली की दौड़ से बाहर कर दी गई। मुसलमान इतनी जबरदस्त पलटी खाए कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों की पार्टी बनाने का सपना दिखाने वाले MIM के औवैसुद्दीन ओवैसी हैदराबाद से सांसद होकर आए और राहुल के बगल बैठकर चाय की चुस्की ले रहे थे। आजमगढ़ से निकलकर पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की अकेली पार्टी बनने का दावा करने उलेमा काउंसिल का चिराग जलाने वाला भी संसद तक न पहुंच पाया।
लेफ्ट के पिछले तीस सालों के करम की खराबी शायद थोड़ा बहुत छिप भी जाती लेकिन, नंदीग्राम और सिंगूर में चली गोली और मुसलमानों का डर कि बीजेपी न आ जाए। कांग्रेस के लिए सोने पे सुहागा हो गया। बिहार में नीतीश को लेकर मुसलमानों में कोई डर नहीं था। इसीलिए वहां न तो राहुल का चमत्कार चला। न तो सोनिया-मनमोहन का अगुवाई वाली सरकार की लाभकारी योजनाओं (NREGS) का कुछ असर हुआ।
इतने सारे एक साथ बने संयोगों ने राहुल गांधी को इतना बड़ा बना दिया है कि पिता राजीव की कैबिनेट के साथी और कुछ दादी इंदिरा की कैबिनेट के कांग्रेसी नेताओं तक को राहुल ही तारणहार दिख रहा है। गुलाम भारत फिर स्तुतिगान में जुट गया है। लेकिन, यही स्तुतिगान राहुल गांधी के लिए असली चुनौती साबित होगा। कांग्रेस अपने रंग में फिर आने लगी है। लोकतांत्रिक तानाशाह कांग्रेसी नेता अपने हिस्से की मलाई चाटने के लिए हर चाल चलना शुरू कर चुके हैं। जब ऐसे सत्ता दिखने लगती है तो, कांग्रेस में सारा लोकतंत्र धरा का धरा रह जाता है। और, राहुल गांधी के लिए इसे जिंदा रखना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी। फिलहाल थोड़ी चैन की सांस राहुल इसलिए भी ले सकते हैं कि अभी बीजेपी छितराई हुई है और तीसरे-चौथे मोर्चे को तो खड़े होने में बी कुछ वक्त लगेगा।