Wednesday, April 16, 2008

खुद ही देख लीजिए उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए संकेत

मायावती के मस्त हाथी की चाल के आगे सबको रास्ता छोड़ना पड़ा। उत्तर प्रदेश के आधार के भरोसे दिल्ली फतह करने का इरादा रखने वाली मायावती को राज्य के उपचुनावों ने और बल दिया होगा। आजमगढ़ लोकसभा सीट से बसपा के अकबर अहमद डंपी ने जीत हासिल कर भाजपा की रही-सही साख भी बरबाद कर दी। डंपी ने भाजपा के टिकट पर लड़े दागी रमाकांत यादव को 54 हजार से ज्यादा मतो से हरा दिया। डंपी ने इससे पहले भी बसपा के ही टिकट पर रमाकांत यादव को हराया था। ये अलग बात है कि 1998 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत किसी गंभीर रोग से ग्रसित मरीज के लिए दी जाने वाली आखिरी दवा के रिएक्शन (उल्टा असर) कर जाने जैसी हो गई है। राजनाथ सिंह ने कैडर, कार्यकर्ताओं को दरकिनारकर चुनाव एक लोकसभा सीट जीतने के लिए रमाकांत जैसे दागी को टिकट दिया लेकिन, फॉर्मूला फ्लॉप हो गया।

दूसरी लोकसभा सीट भी बसपा की ही झोली में गई है। खलीलाबाद लोकसभा सीट से भीष्मशंकर तिवारी ने 64,344 मतों से सपा के भालचंद्र यादव को हरा दिया है। भीष्मशंकर (कुशल तिवारी) लोकसभा तक पहुंचने में कामयाब हो गए। खलीलाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा चौथे नंबर पर चली गई है। भीष्मशंकर, चतुर राजनीतिज्ञ हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे हैं। और, इससे पहले 1998 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। हरिशंकर के छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी इससे पहले बसपा के ही टिकट पर बलिया लोकसभा उपचुनाव हार चुके हैं। ये अलग बात है कि बलिया में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर की जीत पूरी तरह से भावनात्मक जीत थी। सबसे दिलचस्प बात ये है कि विधानसभा चुनाव में खुद हरिशंकर तिवारी अपनी परंपरागत चिल्लूपार विधानसभा सीट बसपा के ही राजेश तिवारी के हाथों गंवाकर दशकों बाद पहली बार विधानसभा में जाने से रोक दिए गए।

विधानसभा सीटों में भी हाथी ने सबको रौंद दिया है। बिलग्राम, कर्नलगंज और मुरादनगर विधानसभा सीटों पर मायावती का कब्जा हो गया है। बिलग्राम (हरदोई) से बसपा की रजनी तिवारी ने सपा के विश्राम सिंह को 38,168 को हरा दिया है। कर्नलगंज (गोंडा) से बसपा की बृज कुंवरि सिंह ने सपा के योगेश प्रताप सिंह को 9,737 वोटो से हरा दिया है। मुरादनगर (गाजियाबाद) विधानसभा से बीएसपी के राजपाल त्यागी जीते हैं। भाजपा बिलग्राम में तीसरे और कर्नलगंज में चौथे नंबर पर रही है। जबकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद की मुरादनगर सीट पर तो, चौथे नंबर पर भी उसे जगह नहीं मिल सकी हैं। इस सीट पर लोकदल के अयूब खां दूसरे नंबर पर हैं।

मैंने अभी कुछ दिन पहले भी लिखा था कि उत्तर प्रदेश में अब तक विधानसभा चुनाव के समय के समीकरण बदले नहीं हैं। और, उत्तर प्रदेश की तीन विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर बसपा के जोरदार कब्जे से ये साफ भी हो गया है। भाजपा आजमगढ़ को छोड़कर सभी जगह तीसरे नंबर पर रही है। मायावती के तानाशाही रवैये का हवाला देकर प्रदेश में मायावती के विरोधी ये कहने लगे थे कि अब जनता मायाराज के खिलाफ हो रहा है लेकिन, सच्चाई यही है कि मायाजाल बढ़ता ही जा रही है। और, अब तो इस बात की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की चाभी उसी को मिलेगी जिसको मायावती का साथ मिले।


आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव
अकबर अहमद डंपी (बसपा)- 2,27,340 मत
रमाकांत यादव (भाजपा)- 1,73,089 मत
बलराम यादव (सपा)- 1,56,621 मत
एहसान खां (कांग्रेस)- 11,210 मत

खलीलाबाद लोकसभा उपचुनाव
भीष्म शंकर तिवारी (बसपा)- 2,18,393 मत
भालचंद्र यादव (सपा)- 1,53,761 मत
संजय जायसवाल (कांग्रेस)- 94,565 मत
चंद्रशेखर पांडे (भाजपा)- 60,384 मत

बिलग्राम विधानसभा उपचुनाव
रजनी तिवारी (बसपा)- 92,196 मत
विश्राम यादव (सपा)- 54,088 मत
यदुनंदन लाल (भाजपा)- 8,168 मत
सुरेश चंद्र तिवारी (कांग्रेस)- 2,766 मत

कर्नलंगज विधानसभा उपचुनाव
बृज कुंवरि सिंह (बसपा)- 50,283 मत
योगेश प्रताप सिंह (सपा)- 40,546 मत
रामा मिश्रा (कांग्रेस)- 21,478 मत
कृष्ण कुमार (भाजपा)- 4,387 मत

मुरादनगर विधानसभा उपचुनाव
राजपाल त्यागी (बसपा)- 58,687 मत
अयूब खां (लोकदल)- 51,834 मत
मनीष (सपा)- 12,850 मत
प्रदीप त्यागी (कांग्रेस)- 5,030 मत

9 comments:

  1. आज जो हाथी हैं, कल साइकल थे, परसों कमल होंगे और नरसों पंजा!
    इन का क्या!

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  2. राजनीति में जीत-हार तो लगी रहती है लेकिन परिवर्तन की राजनीति का दावा करने वाली मायावती पूर्वांचल के सबसे बड़े गुंडे गिरोहबाज ब्राह्मण नेता का सहारा लेकर कांशीराम और अंबेडकर का नाम जपती हैं, इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। आप कहें तो मैं उन बसपा कार्यकर्ताओं के नाम-पते बता सकता हूं जिनकी हत्या तिवारी और शाही के गिरोहों ने गोरखपुर में अपनी साख डगमगाते देख करा डाली थी। इसके बावजूद मायावती के कहे पर बसपा का जनाधार अलाना तिवारी और फलाना तिवारी के पीछे टंगा घूम रहा है तो इसे किसी विचार के बजाय ताड़ी या कच्ची के नशे जैसा ही प्रभाव मानना चाहिए।

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  3. कभी न कभी तो जनता की मति ठीक होगी ही !

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  4. आजमगढ़ में हार का मार्जिन क्या था?

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  5. मायावती कह रही है कि राजनीतिक सत्ता के बिना दलितों का कल्याण नहीं होगा। लेकिन क्या मायावती की सत्ता को दलितों के हाथ में सत्ता का आना माना जा सकता है?

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  6. Anonymous11:13 AM

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  7. माया जाल फैलता ही जा रहा है सही कहा आपने पर मै ज्ञानदत्त जी से सहमत हूँ ।

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  8. @चंद्रभूषणजी
    आपकी बात सही है कि मायावती सत्ता के लिए अभी भी किसी तिवारी मिश्रा के कंधे का सहारा ले रही हैं। लेकिन, समाज के एक वर्ग का सत्ता में दखल तो हमेशा ही रहता है। वो, कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा में छलांग लगाते रहते हैं। और, इसी आधार पर किसी दल-पार्टी-नेता (विचारधारा तो अब किसी पार्टी की नहीं रही) के पक्ष में हवा चलने की बात की जा सकती है। मैंने खुद भी लिखा है कि हरिशंकर तिवारी को विधानसभा से बाहर का रास्ता बसपा ने ही दिखाया। अब, अगर आंतक के सहारे सत्ता के गलियारे में दखल रखने के आदी तिवारी को अपने और अपने बेटों के लिए सत्ता के संरक्षण के लिए मायावती का मुंह ताकना पड़ रहा है तो, इसे क्या कहेंगे। और, अगर ये कच्ची या ताड़ी का नशा भी है तो, ये नशा अगले लोकसभा चुनाव में और चढ़ने वाला है। मायावती के 35-45 सांसद देश भर से लोकसभा में पहुंचेगे।
    @अनिलजी
    अगर बाभन अटल बिहारी के प्रधानमंत्री और ठाकुर वी पी सिंह, चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने से खुद को सत्ता में शामिल समझते थे तो, मायावती का सत्ता में आने का मतलब तो दलितों का ही राज हुआ। और, राज्य में ये काफी हद तक दिख रहा है। कई ब्राह्मण मायावती की सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं लेकिन, जिले के प्रभारी दलित के आगे हाजिरी लगा रहे हैं। और, इन्हीं प्रतीकों के सहारे ही बदलाव होते हैं।

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  9. @संजयजी
    आजमगढ़ में हार का मार्जिन 50 हजार से ज्यादा था।

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