यूपी में मायाराज हो गया है। और, ये सबसे बुरी खबर दिखती है मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी के लिए। लेकिन, नतीजे आने के बाद माया मैडम का गुणगान करने वाले बीजेपी औऱ कांग्रेस नेताओं के लिए ये बड़ा सबक है क्योंकि, देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के पास अपना कोई वोटबैंक ही नहीं रह गया है।
यूपी का जनादेश सचमुच सबसे बुरी खबर मुलायम सिंह यादव के लिए ही लेकर आया है। मुख्यमंत्री रहते हुए माया मेमसाहब से उन्होंने जो व्यक्तिगत दुश्मनी पाल ली थी। अब मायाराज होने से उन्हें अपने सारे कारनामों का तगड़ा हिसाब देना पड़ सकता है। और, चुनाव के पहले से ही हाथी की चिंघाड़ से डरा सपा का कार्यकर्ता शायद ही अपने नेताजी के साथ मुखर होकर खड़ा हो सके। लेकिन, मुलायम के लिए अच्छी खबर ये है कि उनकी जमीनी ताकत बढ़ी ही है भले सीटें कम हुई हों। मुलायम को दो हजार दो के चुनाव से दो प्रतिशत ज्यादा 27 प्रतिशत वोट मिले हैं।
मुलायम से यूपी का राज छिना तो, ब्राह्मण-दलित-अति पिछड़ों के हाथी की सवारी से साफ है कि ये फॉर्मूला चलता रहा तो, 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का कमल खिलने में बहुत मुश्किलें हैं। अब बीजेपी को ये भी सोचना होगा कि वो आडवाणी के ही नेतृत्व की ओर फिर मुंह ताके या फिर नए नेतृत्व की तलाश करे। साथ ही सवाल ये भी है कि क्या आडवाणी हिंदुत्व और जयश्रीराम के नारे के दम पर ही सत्ता तलाशता रहेगा। या फिर अपने कैडर-कार्यकर्ता को मजबूत करके दिल्ली की गद्दी पर मजबूती से काबिज होने की कोशिश करेगा। वैसे बीजेपी के लिए बुरी खबर ये है कि हिंदुत्व के नाम पर अब तक उसके पाले में आता रहा उसका ब्राह्मण-बनिया वोटबैंक भी इस बार बसपा के साथ सरक गया है। साफ है कि माया मेमसाहब ने बीजेपी का वो हाल कर दिया है जो, कांग्रेस का 1989 के बाद हुआ था। यानी साफ है कि देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के पास अब अपना कोई वोटबैंक नहीं रह गया है।
राजनीति में राहुल बाबा अभी बच्चे ही हैं ये भी इन चुनावों ने साबित किया है। राहुल गांधी को उनके जनता से पूरी तरह कट चुके सलाहकारों ने जो समझाया -- और उसके बाद जो वो बोले -- उससे वो भी कांग्रेस से जुड़ने से पहले ही कट गए। जो, राहुल गांधी के रोड शो में आई भीड़ को कांग्रेस की तरफ आता वोटबैंक समझकर कांग्रेस के लिए वोट डालने का मन बना रहे थे। कुल मिलाकर इन चुनावों से ये बात और पुख्ता हो गई कि फिलहाल तो कांग्रसे बस यूपी के दो जिलों सुल्तानपुर-रायबरेली की ही पार्टी बनकर रह गई है। वैसे कांग्रेस के लिए अच्छी खबर ये है कि माया मैडम को पूर्ण बहुमत मिल गया है। लेकिन, ये अच्छी खबर तभी रहेगी जब पार्टी राज्य में सत्ता की भागीदारी के सुख की तलाश छोड़कर अगले पांच साल कार्यकर्ताओं को खड़ा करने में लगाए। लेकिन, मायावती जिस तेवर में नजर आ रही हैं उसमें दोनों राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी-कांग्रेस के लिए यूपी से होकर दिल्ली जाने वाला रास्ते की मुश्किलें बहुत बढ़ गई हैं। और, मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने जो, कुशल प्रशासक और खांटी नेता जैसे तेवर दिखाएं हैं उससे दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का आने वाले लोकसभा चुनाव और कठिन हो सकता है।
यूपी का जनादेश सचमुच सबसे बुरी खबर मुलायम सिंह यादव के लिए ही लेकर आया है। मुख्यमंत्री रहते हुए माया मेमसाहब से उन्होंने जो व्यक्तिगत दुश्मनी पाल ली थी। अब मायाराज होने से उन्हें अपने सारे कारनामों का तगड़ा हिसाब देना पड़ सकता है। और, चुनाव के पहले से ही हाथी की चिंघाड़ से डरा सपा का कार्यकर्ता शायद ही अपने नेताजी के साथ मुखर होकर खड़ा हो सके। लेकिन, मुलायम के लिए अच्छी खबर ये है कि उनकी जमीनी ताकत बढ़ी ही है भले सीटें कम हुई हों। मुलायम को दो हजार दो के चुनाव से दो प्रतिशत ज्यादा 27 प्रतिशत वोट मिले हैं।
मुलायम से यूपी का राज छिना तो, ब्राह्मण-दलित-अति पिछड़ों के हाथी की सवारी से साफ है कि ये फॉर्मूला चलता रहा तो, 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का कमल खिलने में बहुत मुश्किलें हैं। अब बीजेपी को ये भी सोचना होगा कि वो आडवाणी के ही नेतृत्व की ओर फिर मुंह ताके या फिर नए नेतृत्व की तलाश करे। साथ ही सवाल ये भी है कि क्या आडवाणी हिंदुत्व और जयश्रीराम के नारे के दम पर ही सत्ता तलाशता रहेगा। या फिर अपने कैडर-कार्यकर्ता को मजबूत करके दिल्ली की गद्दी पर मजबूती से काबिज होने की कोशिश करेगा। वैसे बीजेपी के लिए बुरी खबर ये है कि हिंदुत्व के नाम पर अब तक उसके पाले में आता रहा उसका ब्राह्मण-बनिया वोटबैंक भी इस बार बसपा के साथ सरक गया है। साफ है कि माया मेमसाहब ने बीजेपी का वो हाल कर दिया है जो, कांग्रेस का 1989 के बाद हुआ था। यानी साफ है कि देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के पास अब अपना कोई वोटबैंक नहीं रह गया है।
राजनीति में राहुल बाबा अभी बच्चे ही हैं ये भी इन चुनावों ने साबित किया है। राहुल गांधी को उनके जनता से पूरी तरह कट चुके सलाहकारों ने जो समझाया -- और उसके बाद जो वो बोले -- उससे वो भी कांग्रेस से जुड़ने से पहले ही कट गए। जो, राहुल गांधी के रोड शो में आई भीड़ को कांग्रेस की तरफ आता वोटबैंक समझकर कांग्रेस के लिए वोट डालने का मन बना रहे थे। कुल मिलाकर इन चुनावों से ये बात और पुख्ता हो गई कि फिलहाल तो कांग्रसे बस यूपी के दो जिलों सुल्तानपुर-रायबरेली की ही पार्टी बनकर रह गई है। वैसे कांग्रेस के लिए अच्छी खबर ये है कि माया मैडम को पूर्ण बहुमत मिल गया है। लेकिन, ये अच्छी खबर तभी रहेगी जब पार्टी राज्य में सत्ता की भागीदारी के सुख की तलाश छोड़कर अगले पांच साल कार्यकर्ताओं को खड़ा करने में लगाए। लेकिन, मायावती जिस तेवर में नजर आ रही हैं उसमें दोनों राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी-कांग्रेस के लिए यूपी से होकर दिल्ली जाने वाला रास्ते की मुश्किलें बहुत बढ़ गई हैं। और, मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने जो, कुशल प्रशासक और खांटी नेता जैसे तेवर दिखाएं हैं उससे दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का आने वाले लोकसभा चुनाव और कठिन हो सकता है।
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