हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत की आलोचना ही सबसे अधिक इसी बात के लिए हो रही है कि, संघ की जैसी छवि बनाकर दशकों से प्रस्तुत किया जा रहा था, उस छवि के मुताबिक, न व्यवहार कर रहे हैं और न ही बात कर रहे हैं। संघ को मुस्लिम विरोधी प्रस्तुत करके सम्पूर्ण विश्व में भारत की छवि एक ऐसे देश की बनाने की यह कोशिश भी धूमिल होती जा रही है कि, भारत के लोगों ने ऐसे विचार वाली पार्टी को चुना है जो मुस्लिम विरोधी है। सरसंघचालक के बाद दूसरे नंबर के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने एक कार्यक्रम में स्पष्ट तौर पर कहाकि, किसी कारणवश कोई गौ मांस भक्षी हो गया और वापस आना चाहता है तो उसे भी हमें खुले मन से स्वीकार करना चाहिए। डॉक्टर मोहनराव भागवत और दत्तात्रेय होसबाले, दोनों के ही इन वक्तव्यों पर लगातार चर्चा हो रही है और, कई अतिवादी हिन्दू इस पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि, संघ भी अब मुस्लिमों का तुष्टीकरण करने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन क्या इसमें जरा सा भी सच्चाई दिखती है। दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसे लेकर अपनी स्थापना के समय से ही बहुत स्पष्ट रहा है। संघ हिन्दू एकता के लिए कार्य करने वाला संगठन है। डॉक्टर मोहनराव भागवत भी हिन्दू एकता के लिए ही एक कुआँ, एक मंदिर, एक श्मशान को अभियान के तौर पर आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही संघ इस बात को लेकर सतर्क रहता है कि, भारत की छवि मुस्लिम या किसी वर्ग की विरोधी न बन जाए। उसकी इस सतर्कता के पीछे की एक बड़ी वजह अभी की सत्ता में संघ विचार से प्रभावित पार्टी भारतीय जनता पार्टी का होना और, संघ प्रचारक नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना है। संघ प्रचारक से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे नरेंद्र मोदी के निर्णयों से संघ विचार में भारत और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिन्दुओं से इतर वर्गों को कैसे देखा जाता है, यह भी स्पष्ट होता है। यही वजह है कि, राम मंदिर, काशी विश्वनाथ धाम और दूसरे हिन्दू आस्था के प्रतीकों पर रंचमात्र समझौता न करने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार की योजनाओं में किसी के लिए कोई भेदभाव नहीं दिखता। दरअसल, इसी हिन्दू विचार की बात बारंबार संघ और नरेंद्र मोदी करते हैं।
अभी तुर्किए और सीरिया में भूकंप से भारी तबाही हुई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना देरी किए भारतीय दल को तुर्किए में राहत पहुँचाने के लिए रवाना कर दिया। ऑपरेशन दोस्त के नाम से तुर्किये को भारत की सहायता संघ और, भाजपा की दृष्टि को विश्व के सामने और स्पष्ट कर देती है। ऑपरेशन दोस्त के भारतीय दल की प्रमुख सदस्य मेजर बीना तिवारी का तुर्किये में अस्पताल के बिस्तर पर लेटी एक बच्ची के साथ चित्र वायरल हो रहा है। एक मुस्लिम महिला के साथ गले मिलते मेजर बीना तिवारी के चेहरे पर जो भाव हैं, उसमें सबको अपने परिवार जैसा मानने का भाव बिना बहुत प्रयास के पढ़ा जा सकता है। हिन्दू विचार के तौर पर वसुधैव कुटुंबकम सिर्फ शाब्दिक भर नहीं है। ऑपरेशन दोस्त के तहत तुर्किये की मदद इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि, तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोगन ने लगातार भारत विरोधी अभियान को विश्व मंचों पर हवा देने की कोशिश की है। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मिलकर अर्दोगन इस्लामोफोबिया की बात कहकर भारत पर तगड़ा निशाना साध रहे थे। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के भारत के निर्णय में हिन्दू मुसलमान करके दखल देने की भी हरसंभव कोशिश की थी। ऑपरेशन दोस्त पहला अवसर नहीं है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने मुस्लिम देशों में या गैर मुस्लिम देशों में आपदा के समय मदद के लिए पहला हाथ बढ़ाया है। श्रीलंका, नेपाल, भूटान मॉलदीव- हर देश में भारत उसी तरह से खड़ा रहता है, लेकिन दुनिया को परेशान कर रहे इस्लामिक आतंकवाद के मुद्दे पर भारत ने जरा सा भी समझौता नहीं किया। दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नरेंद्र मोदी यही बात दुनिया के साथ भारतीयों को भी समझाना चाह रहे हैं। संघ के एक और वरिष्ठ अधिकारी के हालिया बयान से इसमें और अधिक स्पष्टता आ जाती है। संघ बारंबार कह रहा है कि, सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू हितों के लिए ही संघ काम करता है और करता रहेगा, लेकिन साथ ही संघ यह भी कहता है कि, वसुधैव कुटंबकम की भावना ही हिन्दू हित के मूल में है। भारत भूमि पर सबका डीएनए एक होने की सरसंघचालक मोहन भागवत की बात भी उसी को आगे बढ़ाती है। भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते कितने कटु हैं, इसे बताने की भी आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान की धरती से लगातार इस्लामिक राज कायम करने के लिए आतंकवादी हरकतें जारी रहती हैं। आतंकवादियों को पालते-पोसते पाकिस्तान इस बुरे हाल में पहुँच गया है कि, वहाँ आटा, दाल भी मुश्किल से मिल पा रहा है। इस दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉक्टर कृष्ण गोपाल का एक वीडियो सामने आया। उसमें डॉक्टर कृष्ण गोपाल कह रहे हैं कि, इस समय भारत को दस बीस लाख टन गेहूं पाकिस्तान को दे देना चाहिए। सत्तर वर्ष पहले वह भी हमारे ही थे। कृष्ण गोपाल कह रहे हैं कि, पाकिस्तान में जो रहते हैं, हमको दिन रात गाली देते हैं, वो भी सुखी हों। अभी पाकिस्तान में ढाई सौ रुपये किलो आटा हो गया है। हमको दुख होता है। अपने ही देश के लोग है। हम भेज सकते हैं। भारत पचीस पचास लाख टन गेहूं उनको भेज सकता है, लेकिन वो माँगते ही नहीं। आने भी नहीं देते, लेकिन वहाँ की जनता को भूख से मरने के बजाय भारत के पास अतिरिक्त गेहूं है, दे सकता है। हमारे साथ ही थे। इतनी दूरी का क्या लाभ है। हालाँकि, पाकिस्तान चार-पांच बार हमसे झगड़ा कर चुका है। वही आक्रमण करता है, बार-बार। उसके बाद भी भारत के सब लोगों के मन में यह बात आई होगी कि, वहाँ यह हाल है गेहूं भेजवा दो।
तुर्किये, सीरिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर भारत का ऑपरेशन दोस्त हो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत के एक डीएनए की बात हो, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का गौ मांस खाने वालों की भी हिन्दू धर्म में वापसी की बात हो या फिर सह सरकार्यवाह डॉक्टर कृष्ण गोपाल की पाकिस्तान को इस संकट के समय गेहूं भेजने की बात हो, सबके मूल में भारत के विराट विचार को व्यवहार रूप में लागू करना ही है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि, इस्लामिक आतंकवाद, मतांतरण और दूसरे मुद्दों पर संघ परिवार या नरेंद्र मोदी अपनी बात से पलट रहे हैं। आधुनिक सन्दर्भों में आगे बढ़ने का यही रास्ता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुछ लोगों के मन में स्थापित धारणा के विपरीत दिख रहा है, लेकिन संघ ऐसे ही बढ़ता रहा है। संघ और नरेंद्र मोदी यही भारत आदर्श के तौर पर पूरी दुनिया में प्रस्तुत करना चाह रहे हैं। इसमें मुस्लिमों या किसी के भी तुष्टीकरण या उनको निशाने पर लेने की रंचमात्र भी इच्छा नहीं दिखती। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण कालखंड है, संघ इस बात को भी अच्छे से समझता है। इस कालखंड में कोई भी विभाजक विचार बड़ा न हो, यही कोशिश संघ कर रहा है।
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