चाइनीज
वायरस का प्रकोप खत्म होने के बाद विश्वनेता कौन सा देश होगा। यह प्रश्न अब
तर्कों, तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर दुनिया में पूछा जाने लगा है। इसके उत्तर
में ढेर सारे विकल्प सामने आते हैं, लेकिन एक विकल्प पर आश्चर्यजनक रूप से दुनिया
सहमत होती जा रही है कि अमेरिका अब पहले जैसा दुनिया के किसी संकट में प्रभावी
भूमिका में नहीं रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प बड़बोले बयानों की वजह से चर्चा में रहते
हैं, लेकिन जब किसी बड़े फैसले को अमेरिका के लिहाज से अपने पक्ष में करने की बात
आती है तो हमेशा एक कदम पीछे जाते हुए दिखते हैं। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम
जोंग उन का मसला हो, ईरान के साथ युद्ध जैसी स्थिति में पहुंचने का या फिर हाल ही
चीन के साथ कारोबारी युद्ध विराम का, हर मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड,
व्हाइट हाउस में विराजने वाले दुनिया के सर्वशक्तिमान व्यक्ति की तरह प्रभावी नहीं
दिखे। इसमें कोढ़ में खाज चाइनीज वायरस से लड़ाई में दुनिया की अगुआई नही कर पाना
हो गया है। चाइनीज वायरस के बारे में खुलकर बोलने भर से अमेरिकी राष्ट्रपति को
दुनिया पहले की तरह नहीं देख रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन
का फंड भी रोक दिया, लेकिन इससे मामला ज्यादा उलट हो गया है। विश्व स्वास्थ्य
संगठन के प्रमुख टेड्रोस अब अमेरिकी राष्ट्रपति को सीख दे रहे हैं, साथ ही चीन के
पक्ष में खुलकर माहौल बनाने लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख इसमें अगर
कहीं थोड़ी सी रियायत बरत रहे हैं तो वह देश भारत है। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है
कि भारत ने चाइनीज वायरस पर देश के भीतर और बाहर बहुत बेहतर तरीके से विश्व नेता
राष्ट्र की तरह व्यवहार किया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यवहार
कुछ उसी तरह का है जैसा एचआईवी एड्स या इबोल की विश्वव्यापी बीमारी में पहले के
अमेरिकी राष्ट्रपति करते रहे हैं।
अब
प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या अमेरिकी-सोवियत संघ के बाद अमेरिका-चीन वाले
ध्रुवीय विश्व की संरचना चाइनीज वायरस का प्रकोप खत्म होने के बाद विश्व चीन-भारत
ध्रुवीय होने जा रहा है। सामान्य तरीके से देखने पर यह प्रश्न आधारहीन सा दिखने
लगता है। क्योंकि अमेरिका और चीन दोनों हर तरह से महाशक्ति हैं। फिर सामरिक मसला
हो या आर्थिक। दोनों के पास अपनी गोलबंदी भी है, लेकिन भारत उन पैमानों पर इन
दोनों देशों के आगे खड़ा नहीं होता है। चाइनीज वायरस से निपटने में समय से लिए गए
नरेंद्र मोदी सरकार के निर्णय से भारत इस बीमारी पर काबू पाने की ओर बढ़ता दिख रहा
है, लेकिन आर्थिक तौर पर होने वाला गम्भीर नुकसान भारत को चीन-भारत ध्रुवीय विश्व
की परिकल्पना से आसानी से बाहर कर देता है। हालांकि, यह सिक्के का एक पहलू है। अब
सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर डालते हैं। यूरोपीय राष्ट्र और अमेरिकी जब सिर्फ अपने
लोगों की जान बचाने के लिए जूझ रहे थे, उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने भारतीयों के जीवन की सुरक्षा के लिए देशबंदी जैसा कड़ा निर्णय लेने के साथ ही
भारत के पड़ोसी देशों के संगठन सार्क का आह्वान किया कि इस लड़ाई में हम साथ रहकर
ही जीत सकते हैं और पाकिस्तान की जाहिल हरकत के बावजूद सभी सार्क देश भारत की
अगुआई में इस लड़ाई से लड़ने की अच्छी तैयारी करने में कामयाब रहे। कोविड 19 से
लड़ने के लिए भारत की अगुआई में सभी सार्क देशों ने फंड तैयार किया और भारत ने
सबसे बड़े देश होने के अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन किया, जिससे दुनिया ने भारत
को देखने का नजरिया बदला है। इसके बाद एक वाकया और हुआ, जिसे मोदी विरोधी भारतीय
मीडिया के साथ ही विश्व मीडिया ने भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की
छवि एक कमजोर राष्ट्र के तौर पर पेश करने की कोशिश की और वह घटनाक्रम था, अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का बड़बोलेपन में एक रिपोर्टर के सवाल का जवाब देना।
हालांकि, अगले ही दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक टीवी चैनल को
साक्षात्कार देकर उसी स्पष्टता कर दी और भारत देश के साथ भारतीय प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की महानता के कसीदे पढ़े।
जाने-अनजाने
हुए इस वाकये ने भारत की छवि चाइनीज वायरस से जूझ रहे समय में एक विश्वनेता की बना
दी है। इस घटनाक्रम के पहले ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र ने जी 20 देशों का
आह्वान किया और रणनीतिक तौर पर उस बैठक में कोविड 19 की उत्पत्ति के मसले पर चर्चा
नहीं की, लेकिन चीन रहित सभी जी 20 देशों ने भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को समझा।
जिस हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन दवा को देने मसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड
ट्रम्प के बयान से दुनिया भर के मीडिया ने भारत की गलत छवि बनाने की कोशिश की थी,
अब उसी हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन ने विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों के सामने भारत की
छवि बहुत बड़ी बना दी है। ब्राजील के राष्ट्रपति ने भारत की मदद को वैसा ही बता
दिया जैसा मूर्छित लक्ष्मण को जीवन देने वाली संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान जी
की मदद थी। यहां यह याद रखना भी जरूरी है कि ब्राजील के शिक्षामंत्री ने खुले तौर
पर वुहान से उत्पन्न हुए वायरस को चाइनीज वायरस कहा था और बीजिंग के कड़े प्रतिरोध
के बावजूद उस पर सफाई देने के बजाय ब्राजील के शिक्षामंत्री अब्राह्म विनटॉब ने
कहाकि वो अपनी टिप्पणी पर कायम हैं। ब्राजील और अमेरिका सहित विश्व के 13 देशों को
भारत दवाई भेज रहा है। अमेरिका, स्पेन, जर्मनी, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील,
नेपाल, बहरीन, अफगानिस्तान, मालदीव, सेशेल्स, मॉरीशस, डोमिनिकन रिपब्लिक की चाइनीज
वायरस से लड़ाई में भारत की भेजी दवा काम आ रही है। जर्मनी दवाओं के लिए भारत का
धन्यवाद कर रहा है और जर्मनी के सबसे बड़े अखबार बिल्ड के प्रधान संपादक ने अपने
संपादकीय में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर सीधा हमला बोला है। अखबार लिखता है
कि शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन कोरोना वायरसस और कम्युनिस्ट शासन के
मानवाधिकार उल्लंघनों पर भयानक आरोपों से घिरा हुआ है। बिल्ड अखबार के प्रधान
संपादक जूलियन रीशेल्ट साफ लिखते हैं कि शी जिनिपंग, चीन की कम्युनिस्ट सरकार और
चीन के वैज्ञानिकों को बहुत पहले पता लग जाना चाहिए था कि कोरोना वायरस भयानक तौर
पर संक्रामक है, लेकिन आपने दुनिया को अंधेरे में रखा। आपके बड़े जानकारों ने
पश्चिमी शोधकर्ताओं की उस आशंका को खारिज कर दिया, जब उन्होंने वुहान वायरस के
खतरे के बारे में चेताया। चीन के लोगों से भी आपने इसे छिपाया, आपकी सरकार
राष्ट्रीय शर्म है। जर्मनी के सबसे बड़े अखबार के प्रधान संपादक का ऐसा खुला आरोप
साफ दिखा रहा है कि पश्चिमी देशों का चीन के प्रति अविश्वास कितना गहरा हो गया है।
चीन भी
दुनिया भर के देशों को लगातार उपकरण भेज रहा है, लेकिन ज्यादातर उपकरण खराब निकल
रहे हैं। दूसरे मेड इन चाइना उत्पादों की ही तरह इस महामारी के समय में भी चीन का
स्वास्थ्य संबंधी सामान भी खराब निकल रहा है। ज्यादातर देशों को बेचे गए चीनी
स्वास्थ्य उपकरण, टेस्ट किट खराब निकले हैं। खराब पाए जाने पर स्पेन ने 50 हजार
टेस्ट किट चीन को वापस कर दिया है। नीदरलैंड में भेजे गए चीनी मास्क नीदरलैंड के
पैमाने पर खरे नहीं उतरे और चीन की बेशर्मी देखिए को वो अपनी गलती मानने के बजाय
नीदरलैंड पर दोष मढ़ रहा है। दुनिया का चीन से भरोसा पूरी तरह से उठ गया है, चीन
ने पहले भी वुहान वायरस पर दुनिया को गफलत में रखा और अभी भी इस वायरस से होने
वाली मौतों की सही संख्या नहीं बता रहा है। अभी भी चीन में मौतें हो रही हैं,
लेकिन चीन ने कारोबार शुरू कर दिया है। इटली को तो चीन ने उसी का भेजा सामान वापस
बेच दिया है जबकि, इटली जी 7 देशों में अकेला देश है जिसने चीन के बोल्ट एंड रोड
इनीशिएटिव में शामिल होने का जोखिम उठाया और चीन के साथ आवाजाही बंद करने में देरी
का खामियाजा इटली बुरी तरह भुगत रहा है। चीन की तानाशाही की वजह से दुनिया का
भरोसा चीन पर पहले से कम था और अब चाइनीज वायरस के संक्रमण से तबाह दुनिया को चीन
दैत्याकार नजर आ रहा है क्योंकि अमेरिका पहले जैसा शक्तिशाली नहीं दिख रहा है और
विश्व के एकध्रुवीय होने का खतरा है। इस खतरे के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अगुआई में भारत ही ऐसा देश दिख रहा है जो देवरूप नजर आ रहा है। भारत भी चाइनीज
वायरस से जूझ रहा है। चीन से आई 60 हजार पीपीई किट खराब निकली है। भारतीय कंपनियां
अपनी वैक्सीन बनाने पर काम कर रही हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद बाकायदा
इसके शोध पर काम कर रहा है। इस सबके बीच जब वामपंथी मीडिया के लोग नरेंद्र मोदी की
इस बात के लिए आलोचना कर रहे थे कि देश में जरूरत है और मोदी सरकार, सर्बिया दवा
भेज रही है, भारत सरकार ने सर्बिया को उस दौर में भी स्वास्थ्य संबंधी उपकरण भेजे,
दवाइयां भेजीं। भारत हर दृष्टि से चीन के सामने दूसरे ध्रुव के तौर पर सबसे अच्छी
पसंद हो सकता है। चीन से निकलने वाली दूसरे देशों की कंपनियों के भारत स्वाभाविक
पसंद भी बन सकता है, हालांकि ब्लैकस्टोन ग्रुप के CEO, चेयरमैन और को फाउंडर स्टीव श्वॉर्जमैन स्पष्ट
करते हैं ऐसा नहीं होगा कि सभी कंपनियां अपना पूरा कारोबार चीन से समेट लेंगी,
लेकिन बड़ा हिस्सा चीन से बाहर जाएगा। भारत दुनिया भर की कंपनियों को कैसे आकर्षित
कर रहा है, इसका अन्दाजा श्वॉर्जमैन की बात से लगाया जा सकता है। ब्लैकस्टोन ग्रुप
सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया में सबसे बड़ा जमींदार है, इसका मतलब कि सबसे
ज्यादा संपत्तियां इसी समूह के पास हैं। स्टीव श्वॉर्जमैन की बात इसलिए भी ज्यादा
महत्व की हो जाती है क्योंकि श्वॉर्जमैन को ही अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड
वॉर को खत्म कराने वाले कारोबारी के तौर पर देखा जाता है। एक साक्षात्कार में
श्वॉर्जमैन कहते हैं कि वो मार्च के पहले सप्ताह यूरोप में थे और उनकी मुलाकात एक
बहुत बड़े व्यक्ति से हुई जो एक बड़ी कंपनी के देश प्रमुख थे। उन्होंने कहाकि चीन
में कारोबार करने वाले, मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने वाले बहुत चिंतित हैं। एक ही
जगह पर पूरा कारोबार होने से अचानक आपूर्ति की बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। मनुष्य
का स्वभाव है कि एक स्थिति में संकट झेलने के बाद वह स्थिति परिवर्तन करता है और
अब चीन में स्थापित कंपनियां ऐसा ही सोच रही हैं। श्वॉर्जमैन कहते हैं कि भारत को
इस मौके का फायदा उठाने के लिए कई बड़े बदलाव करने की जरूरत है।
भारत के
लिए अच्छी स्थिति यह है कि कई देशों की सरकारें अपनी कंपनियों को चीन से निकलने के
लिए सहायता दे रही हैं। जापान की सरकार ने चीन से अपनी कंपनियों को वहां से निकलने
को कहा है। जापान के उप प्रधानमंत्री तारा आसो ने वहां की संसद में चाइनीज वायरस
बताया। इसके लिए जापान ने 2.2 बिलियन डॉलर की मदद का एलान किया है। बाकायदा जापान
की सरकार ने ऑनलाइन मदद की योजना डाल दी है। चीन, जापान का सबसे बड़ा कारोबारी
सहयोगी है। अमेरिका में भी इस तरह की मांग उठ रही है। आईएमएफ के मुताबिक, जी 20
देशों में भारत सहित सिर्फ 3 देश हैं, जिनकी जीडीपी ग्रोथ इस वर्ष भी पॉजिटिव
रहेगी। IMF के
मुताबिक FY 22 में
भारत की तरक्की की रफ्तार 7.4% रह सकती है। G 20 देशों में सबसे बेहतर ग्रोथ हमारी होगी। चाइनीज वायरस का प्रकोप खत्म
होने के बाद द्विध्रुवीय विश्व में चीन के सामने दूसरा ध्रुव भारत होने की भूमिका
मजबूत हो रही है।
(यह लेख दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 23 अप्रैल 2020 को छपा है)
Sir,I'm your regular social family member at YT.. Every day I hear Ur impartial opinions on every event taken in country and abroad....Not a single day passes without hearing You...It helps to make sure n perfect view to look towards any event.. Happening in country...
ReplyDeleteI thanks ,,n Happy to join U...
🌷🇮🇳
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteविश्व पुस्तक दिवस की बधाई हो।