Tuesday, April 25, 2017

मूत्रपीता भारतीय किसान नहीं हो सकता

जन्तर मन्तर पर प्रदर्शन करते तमिलनाडु के किसान
जन्तर मन्तर पर तमिलनाडु से आए किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। नरमुण्ड के बाद नंगे होकर प्रदर्शन में अब वो अपना मूत्र पीकर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान सुनते ही लगता है कि इसका कुछ भी कहना जायज़ है। सही मायने में होता भी है, भारत में किसानों की दुर्दशा देश की दुर्दशा की असली वजह भी रही। इस दुर्दशा को रोकने के लिए आसान रास्ता सरकारों ने, नेताओं ने निकाल लिया है कि कुछ-कुछ समय पर क़र्ज़ माफ़ी करते रहो। नेताओं की दुकान चलती रही, खेती ख़त्म होती रही। अब उसी की इन्तेहा है कि तमिलनाडु के किसान नंगई पर उतरने के बाद मूत्र पीकर प्रदर्शन कर रहे हैं। अब मुझे पक्का भरोसा हो गया है कि ये भारत का किसान नहीं हो सकता जो धरती माँ की सेवा करके सिर्फ बारिश के पानी के भरोसे अन्नदाता बन जाता है। ये राजनीतिक तौर पर प्रेरित आन्दोलन दिख रहा है। ये किसान अगर इस बात की माँग के लिए जन्तर मन्तर पर जुटे होते कि इस साल हमने इतना अनाज उगाया, हमारी लागत के बाद कम से कम इतना मुनाफ़ा ही हमें किसान बनाए रख सकेगा। मैं भी जन्तर मन्तर पर इनके साथ खड़ा होता लेकिन नरमुण्ड, नंगई के बाद मूत्र पीकर वितण्डा करने वाले किसानों को भड़काकर मैं सरोकारी नहीं बनना चाहता। मैं बहुत अच्छे से जानता/मानता हूँ कि अच्छी कमाई वाले किसान नहीं बचे तो कोई भी जीडीपी ग्रोथ देश को आगे ले जाने से रही। लेकिन ऐसे वाले किसान प्रतिष्ठित हुए तो देश गर्त में ही जाएगा। सरकार अन्नदाता किसान की प्रतिष्ठा बढ़ाओ, मूत्रपीता किसान को लानत भेजो।

Top of Form

जन्तर मन्तर पर घृणित तरीक़े से प्रदर्शन करने वाले तमिलनाडु के किसानों पर मैंने सन्देह ज़ताया और ऊपर लिखी टिप्पणी की, तो मुझे संघी कहने से लेकर तमिलनाडु से क़रीब १५० साल में सबसे ख़राब सूखे की स्थिति तक की कहानी तथाकथित सरोकारी विद्वानों ने समझा दी। कई विद्वान जो जन्तर मन्तर से मीलों दूर बैठे हैं, उन्होंने मुझे बताने की कोशिश की कि कभी जन्तर मन्तर जाकर देखो, तब टिप्पणी करो। अब उन शिरोमणियों को कौन समझाए कि लगभग रोज़ जन्तर मन्तर से ही गुज़रना होता है। कई विद्वान शिरोमणि तो ऐसे हैं कि कुछ भी तमिलनाडु के किसानों जैसा प्रोयाजित आन्दोलन सन्देह के दायरे में आया तो वो तुरन्त जोर जोर से चिल्लाने लगते हैं। संघ, मोदी का विरोध करने वाला हर कोई देशद्रोही क़रार दे दिया जा रहा है। दुराग्रह बढ़ा तो उसमें गोली मरवा दो जैसी टिप्पणी भी जोड़ दी गई। अब सब ग़ायब (अवधी म कही तो बिलाय गएन) हो गए हैं कि क्यों मूत्र पीने, चूहा खाने जैसी घिनौनी हरकत करने वाले किसान दिल्ली के #एमसीडी का मतदान होते ही लौटने को तैयार हो गए। हे फ़र्ज़ी सरोकारियों, धर्मनिरपक्षों, संघ-मोदी विरोधियों थोड़ा तो सही आधार खोजकर टिप्पणी करो वरना बचे खुचे भी बस संग्रहालय भर के ही रह जाओगे। मेरी टिप्पणी, विश्लेषण ग़लत हुआ तो हाथ जोड़कर माफ़ी माँग लूँगा तुम्हारी तरह फर्जीवाड़े की दुकान नहीं चलाऊँगा। ख़ैर अब तो तमिलनाडु का किसान धरने से उठ गया है। तुम पर देश की जनता का भरोसा तो पहले ही उठ गया है। कुछ नया आधार, नई साज़िशें तैयार करो। 

No comments:

Post a Comment

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...