महात्मा गांधी भारत के ही
नहीं दुनिया के महानतम नेता हैं। गांधी इतने बड़े हैं कि भारत में कोई भी नेता
कितनी भी ऊंचाई तक पहुंच जाए, गांधी बनने की वो कल्पना तक नहीं कर सकता। गांधी ने
भारत को आजाद कराया और साथ ही ऐसा जीवन दर्शन दिया, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक
है। और हमेशा रहेगा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और
अटल बिहारी वाजपेयी कई बार भारतीय जनमानस के बीच प्रतिष्ठित हुए। लेकिन, इनमें से
कोई भी ऐसा नहीं रहा जो, लम्बे समय तक भारतीय जनमानस पर ऐसी तगड़ी छाप छोड़ पाता
जो, किसी भी परिस्थिति में अमिट होता। दरअसल भारतीय जनमानस के लिए किसी को
प्रतिष्ठित करने का आधार सत्ता या सरकार नहीं होती है। यही वजह रही कि महात्मा
गांधी के बाद कौन वाला सवाल हमेशा अनुत्तरित रह जाता है। करीब 17 साल नेहरू देश के
प्रधानमंत्री रहे और करीब 16 साल इन्दिरा गांधी। लेकिन, इन्दिरा प्रधानमंत्री बनीं
तो नेहरू की छाप मिटने सी लगी। इन्दिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते बांग्लादेश को
पाकिस्तान से अलग कराकर अमिट छाप छोड़ी। लेकिन, आपातकाल का कलंक उनकी सारी
प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला गया। उसी आपातकाल के खिलाफ लड़कर जयप्रकाश नारायण
गांधी के बाद सबसे बड़े नेता के तौर पर प्रतिष्ठित हुए। हालांकि, कई आलोचक ये कहते
हैं कि जयप्रकाश नारायण का करिश्मा बहुतों के करिश्मे से मिलकर तैयार हुआ। और
जयप्रकाश नारायण को आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में एक सहमति वाले नेता के तौर पर
ज्यादा जाना जाता है।
महात्मा गांधी जननेता के रूप
में एक ऐसा आदर्श रहे हैं, जिसके
नज़दीक पहुँचना भी उनके बाद के किसी नेता के लिए सम्भव न हो सका। अब
नरेंद्र मोदी ‘गांधी के बाद कौन’ वाले सवाल का जवाब बनने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। पहले गुजरात
के मुख्यमंत्री के तौर पर और फिर देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अपना
व्यक्तित्व नई ऊंचाई तक पहुंचा दिया है। नरेंद्र मोदी आम लोगों के जीवन के उन
मुद्दों को छूते, उस पर काम करते दिखते हैं, जिसे गांधी के बाद के किसी बड़े नेता
ने अभियान की तरह लेना उचित नहीं समझा। गांधी के बाद अब नरेंद्र मोदी आज़ाद भारत
के सबसे करिश्माई, सबसे बड़े
जनाधार वाले नेता के तौर पर दिख रहे हैं। आलोचक जमात भले इसे अलग-अलग चश्मे से
देखकर कुछ पुराने हो चुके पैमानों पर ख़ारिज करने की असफल कोशिश करती है, सच्चाई
यही है नरेंद्र मोदी इतने लम्बे समय तक जनता के बीच प्रतिष्ठा बनाए रखने में
कामयाब रहने वाले गांधी के बाद सबसे बड़े नेता हैं। 2017 में देश के प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जनता के बीच भरोसे के मामले में उस ऊंचाई तक पहुंच गए हैं, जहां
भारतीय जनता पार्टी ही नहीं, कांग्रेस या दूसरी पार्टियों के भी नेता बहुत छोटे
दिखने लगे हैं। और सबसे कमाल की बात ये है कि नरेंद्र मोदी ने जनता के मन में ये
भरोसा सत्ता में रहते हुए जगाया है। सत्ता से नेता बड़ा होता है और प्रभावी होता है।
लेकिन, भारतीय पारम्परिक पैमाने पर कोई भी नेता सत्ता में रहते हुए जनता की नजरों
में उतना प्रतिष्ठित नहीं हो पाता है। शायद यही वजह रही कि गांधी के बाद कौन? इस सवाल के जवाब में गांधी के बाद के नेताओं की कतार लम्बी
दिखती है और अलग-अलग वजहों से अलग-अलग नेताओं की प्रतिष्ठा है। नेहरू, इन्दिरा से
लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी तक गांधी के बाद वाली कतार में खड़े
ही रहे गए। जयप्रकाश नारायण भी गांधी न बन सके। इसको आज सिरे से ख़ारिज किया जा
सकता है लेकिन इतिहास में तो ये ऐसे ही याद किया जाएगा, जैसे मैं कह रहा हूँ।
लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के मुक़ाबले की कोई यात्रा हालिया राजनीति में नहीं
मानी जाती। सोमनाथ से अयोध्या की अधूरी यात्रा ने आडवाणी को बहुत बड़ा नेता बना
दिया था। वो प्रधानमंत्री भी नहीं बन सके लेकिन, इसी आधार पर लम्बे समय तक वो देश
के सबसे जनाधार वाले नेता माने जाते रहे। देश के ज़्यादातर बड़े नेताओं को ऐसे ही
याद किया जाता है कि कोई यात्रा, कोई अभियान उन्हें अपने दौर में सबसे बड़ा नेता स्थापित करने
में मदद करता है। हालांकि, 21वीं सदी की अभी शुरुआत ही है। फिर भी जिस तरह से
नरेंद्र मोदी भविष्य की योजना के साथ आगे बढ़ते दिख रहे हैं, उसमें 21वीं सदी के
भारत के सबसे बड़े नेता के तौर पर मोदी स्थापित होते दिख रहे हैं। देश उन्हें ऐसे
ही याद करेगा। 21वीं सदी के अनुकूल जरूरतों के लिहाज से नरेंद्र मोदी नए नारे
गढ़ने और उस पर अमल करने में कामयाब होते दिख रहे हैं।
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