Saturday, December 03, 2016

नोटबंदी की मुश्किल और मोदी सरकार के खिलाफ खड़ी बड़ी आफत की पड़ताल

दृष्य 1-
8 नवंबर को 8 बजे जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को अब तक के सबसे बड़े फैसले की जानकारी दी, तो देश के हर हिस्से में हाहाकार मच गया। देश में काला धन रखने वालों, रिश्वतखोरों के लिए ये भूकंप आने जैसा था।
दृष्य 2-
दिल्ली के चांदनी चौक, करोलबाग इलाके में गहनों की दुकान पर रात आठ बजे आए भूकंप का असर अगली सुबह तक दिखता रहा। नोटों को बोरों में और बिस्तर के नीचे दबाकर रखकर सोने वालों की बड़ी-बड़ी कारें जल्दी से जल्दी सोना खरीदकर अपना पुराना काला धन पीले सोने की शक्ल में सफेद कर लेना चाहती थीं। और ये सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, देश के लगभग हर शहर में हुआ। पीला सोना काले धन को सफेद करने का जरिया बन गया।
दृष्य 3-
उत्तर प्रदेश और पंजाब इन दो राज्यों में स्थिति कुछ ज्यादा ही खराब हो गई। दोनों ही राज्यों में चुनाव नजदीक होने की वजह से राजनीतिक दलों से लेकर चंदा देने वालों के पास ढेर सारी नकद रकम जमा थी। इस रकम को ठिकाने लगाने की मुश्किल साफ नजर आ रही थी। जाहिर है जिन राजनेताओं के पास बड़ी रकम पुराने नोट के तौर पर आ गई थी, उनके लिए मोदी सरकार का ये फैसला जहर पी लेने के समान दिख रहा था।  
दृष्य 4-
मुंबई, दिल्ली से लेकर देश के छोटे बड़े शहरों में अब तक बैंकिंग की सेवाओं से काफी हद तक बाहर रहने वाला समुदाय इसे अपने खिलाफ मोदी सरकार की साजिश मान बैठा। लेकिन, विदेशों से आने वाले चंदे की रकम अब पूरी तरह से मिट्टी होती दिख रही थी।
दृष्य 5-
काले धन के बल पर चल रहा रियल एस्टेट क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी पहले ही दिवालिया होने के हाल में पहुंच रहे थे। अचानक काले धन पर इतनी बड़ी चोट से बौखलाए रियल एस्टेट कारोबारियों ने इसमें भी रकम बनाने का रास्ता निकालने की कोशिश शुरू कर दी।

हिन्दुस्तान के लोकतांत्रिक इतिहास में किसी राजनेता के इतना बड़ा फैसला लेने की ये पहली घटना थी। और इस घटना के बाद देश में ऊपर जैसे ही नजारे आम हो गए। जिस देश में काला धन और भ्रष्टाचार को एक कभी न खत्म होने वाली सच्चाई के तौर पर स्वीकार कर लिया गया हो, वहां ऐसे किसी फैसले की कल्पना भी नहीं की जा रही थी। यही वजह थी पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम से शुरू हुआ नोटों के बिस्तर पर सोने का सिलसिला भारतीय समाज में कोढ़ की तरह फैल गया। इसीलिए जब इस कोढ़ के इलाज की कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू की तो इस कोढ़ में आनंद खोजने के आदती समाज के एक बड़े हिस्से ने इसे ध्वस्त करने का बड़ा अभियान शुरू कर दिया।

संगठित तरीके से समूह में पुराने नोट बदलने की कोशिश
9 तारीख को बैंक और एटीएम बंद रहे। लेकिन, जैसे ही 10 तारीख को बैंक खुले। काले धन के कुबेरों ने अपना काम शुरू कर दिया। सरकार की तरफ से साफ किया गया था कि जिसका पैसा जायज है, उसे किसी तरह की कोई मुश्किल नहीं आने वाली। लेकिन, जिनके पास काला धन अब भी है, वो किसी भी कीमत पर बख्शे नहीं जाएंगे। काले धन के कुबेर डरे लेकिन, उन्होंने बैंकों में 500, 1000 के पुराने नोटों के बदले नए नोट लेने के लिए संगठित तरीके से लोगों को कतारों में खड़ा कर दिया। नोटबंदी के सरकार के फैसले पर सबसे बड़ी चोट इसी जरिये से की गई। काले धन के कुबेरों ने बाकायदा समूह में लोगों को एक ही शहर की अलग-अलग बैंकों की शाखाओं में और कई बार तो दूसरे इलाकों में भी समूह में लोगों को भेजकर नोट बदली कराई। आम लोगों को परेशानी न हो इसके लिए 4000 रुपये के नोटों की बदली के सरकार के फैसले को काले धन के कुबेरों ने अपना बड़ा अस्त्र बना लिया था। इससे उनका काला धन धीरे-धीरे ही सही सफेद हो रहा था। साथ ही बैंकों और बाद में एटीएम के सामने लगी लंबी कतारें सरकार के इस फैसले के खिलाफ जनमानस बनान की कोशिश कर रही थीं। हालांकि, आम जनता के इस फैसले के पक्ष में होने से ये कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी।

मीडिया की पहुंच वाले इलाके में भीड़ बढ़ाने की कोशिश
संसद मार्ग के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में लंबी कतारें लग गईं थीं। और सिर्फ संसद मार्ग के स्टेट बैंक में ही नहीं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लेकर लुटियन दिल्ली के हर इलाके में लंबी-लंबी कतारें थीं। और ऐसी ही कतार मुंबई के भी प्रमुख इलाके में लगनी शुरू हो गई थी। शास्त्री भवन के एटीएम की कतार में तो मेवात तक से आए लोग मिल गए। कमाल की बात ये कि ज्यादातर लोग किसी समूह में आए थे। पूछने पर उन लोगों का कहना था कि हमारे मेवात में एटीएम मशीन नहीं है। इसलिए हमे यहां आना पड़ा। लेकिन, बड़ा सवाल ये कि मेवात से चलकर दिल्ली के शास्त्री भवन में लगे एटीएम से पैसे निकालने के लिए कतार में ही क्यों लगे। दरअसल एक बड़ा ट्रेंड इस पूरे मामले में ये भी दिखा कि बड़ी भीड़ उन इलाकों में ही लग रही थी, जो ज्यादातर मीडिया की पहुंच के इलाके थे। नोटबंदी के फैसले के एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी मीडिया में किसी गांव के या छोटे शहरों के इलाके से ऐसी कोई खबर नहीं आई, जिसमें ये दिखता हो कि लोगों को नकद रकम की इतनी बड़ी दिक्कत हो गई हो कि नेताओं को इसे आर्थिक आपातकाल बोलना पड़ जाए। हां, दिल्ली-मुंबई के हर इलाके में जरूर एटीएम पर लंबी कतारें देखने को मिलीं। इसके पीछे बड़ी वजह वही कि कैमरे के सामने ये कतारें नजर आएं।

बैंकिंग सेवाओं के दायरे से बाहर का बड़ा वर्ग कतार में खड़ा हो गया
लोगों तक बैंकिंग सेवा पहुंचाने की सबसे बड़ी मुहिम जनधन के खाते खोलने के अतिसफल अभियान के बाद भी देश के करोड़ो लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच बैंकिंग सेवाओं तक है ही नहीं। बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो बैंकिंग सेवा में शामिल भी नहीं होना चाहता। यहां तक कि बैंक खाता खुला भी तो उसका इस्तेमाल सिर्फ रकम जमा करने तक ही सीमित रहा। ऐसा वर्ग दरअसल ज्यादातर नकद पूंजी के जरिये ही जीवनयापन कर रहा था। अब मजबूरी में घर में पड़े 500 और 1000 के पुराने नोटों की वजह से वो बैंक की कतार में आ खड़ा हुआ। टीवी पत्रकार ऋषिकेश कुमार कहते हैं कि दरअसल इस फैसले से एक बड़ा वर्ग बैंकिंग सिस्टम के दायरे में आ जाएगा, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेहतर होगा।

सोना कारोबारियों ने भी बढ़ाईं कतारें
8 तारीख की रात से 9 नवंबर की सुबह तक 20-40% ज्यादा भाव पर पुराने नोट लेकर सोना बेचने वालों के लिए अपने नोट बदलने का मौका 30 दिसंबर तक का ही दिख रहा है। इसीलिए उन्होंने दिहाड़ी मजदूरों को दिन भर के लिए कतारों में खड़ा कर दिया। हालांकि, काले धन के बदले सोना देकर फिर उसे सफेद करने की कोशिश में लगे गहना कारोबारियों पर सरकार, आयकर विभाग की कड़ी नजर है। लगातार पड़े छापों के बाद तेजी से चढ़ा सोने का दाम उसी तेजी से गिर भी गया।

राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की कतार
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं। वहां राजनीतिक पार्टियों से लेकर नेताओं ने चुनाव की तैयारी में बड़ी नकद रकम इकट्ठा कर रखी है। इस इकट्ठा रकम को ठिकाने लगाने के लिए रैली की शक्ल में बैंक और एटीएम में कतारें लग गईं। हर नेता इकट्ठा चंदे की रकम ज्यादा से ज्यादा बचा लेने की जुगत में लगा हुआ है। इतना ही नहीं विपक्ष के कई नेताओं के बयान जिस तरह से बार-बार कानून व्यवस्था बिगड़ने का हवाला दे रहे हैं। इससे ये भी आशंका बलवती होती है कि कहीं वो अपने कार्यकर्ताओं को संगठित तौर पर भीड़ बढ़ाने का संदेश तो नहीं दे रहे हैं। 

छोटे शहरों में बैंक अधिकारियों की गड़बड़
उत्तर प्रदेश के बलिया, आजमगढ़ जैसे जिलों से कुछ अलग तरह की ही खबरें आ रही हैं। बलिया के रहने वाले राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि 10, 11 तारीख को बैंकों में लोगों को कम नकद होना बताकर 500 रुपये ही दिए गए। लेकिन, आशंका इस बात की है कि लोगों का पहचान पत्र लेकर उनके हिस्से के बचे 3500 रुपये उन लोगों को दे दिए गए, जो बैंकों के बड़े खातेदार थे। जिनके पास पुराने 500 और 1000 के नोट बड़ी मात्रा में थे।

काला-सफेद करने में जुटे बिल्डरों की लगाई कतार
ये लगभग घोषित तौर पर छिपी हुई बात है कि सबसे ज्यादा काला धन रियल एस्टेट क्षेत्र में ही लगा हुआ है। और यही वजह है कि जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद रियल एस्टेट में काले धन पर रोक लगानी शुरू की, तो इस क्षेत्र में मंदी देखने को मिली। अब पुराने 500 और 1000 के नोट बंद करने का मोदी सरकार का फैसला 100-200% मुनाफा कमाने के आदी रहे बिल्डरों के लिए ये जीवन-मरण जैसा प्रश्न हो गया है। इसलिए बिल्डरों ने इसी का फायदा उठाते हुए चुनाव वाले राज्यों की राजधानी लखनऊ और चंडीगढ़ में अपने प्रतिनिधि बिठा दिए। इनके जरिए आने वाले काले धन को वो अपने यहां काम करने वाले मजदूरों के जरिए नोट बदली कराकर सफेद कराने में जुट गए। 30-50% रकम लेकर बिल्डर काला धन सफेद करने में जुटे हैं। बिल्डरों के यहां छापे इस बात का सबूत देते हैं कि सरकार को भी इस बात की जानकारी मिल रही है।

जनधन खाते खरीदने का सिंडिकेट
मुंबई, दिल्ली से लेकर देश के छोटे-छोटे शहरों तक जनधन खातों के जरिए काला धान सफेद करने की कोशिश ने भी बैंकों और एटीएम में कतार बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। जनधन खातों में 2-2.5 लाख रुपये जमा कराए जा रहे हैं और अगले 2-3 महीने बाद वो रकम वापस लिए जाएंगे। पहले पुराने नोट जमा कराए जा रहे हैं। उसके 2-3 महीने बाद वो रकम धीरे-धीरे वापस कर दी जाएगी।

हवाला कारोबारियों ने बढ़ाई कतारें
मुंबई में 17% से शुरू हुआ पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने का काम अब 40-50% पर हो रहा है। दरअसल सरकार ने शुरू में आम लोगों की परेशानी को ध्यान में रखकर जो कुछ रास्ते छोड़े थे, उन रास्तों से इस तरह के लोग घुस रहे थे। इन संगठित कारोबारियों में हवाला के जरिये पैसे उठाने वाला नेटवर्क शामिल था। जो एक शहर से रकम उठाकर दूसरे शहरों में नोटों की बदली संगठित तरीके से करा रहा था।

बेरोजगारों को मिला दिहाड़ी का काम, एटीएम-बैंकों में बढ़ी कतार
देश में बड़ी बेरोजगारी का फायदा उठाकर काला धन रखने वालों ने बाकायदा यही रोजगार दे दिया। 200-500 रुपये रोज पर लोगों को बैंकों और एटीएम की कतार में लगाया गया। ऐसे लोग दिन भर कतारों में खड़े होकर आम लोगों के हिस्से की रकम निकालते रहे।

महिलाओं का घर का पैसा बैंकों में पहुंचा
भारतीय परिवारों में ज्यादातर घरेलू महिलाओं ने बचाकर पैसे घर में रखे हैं। इसलिए जब अचानक सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करने का एलान किया, तो महिलाओं के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। वो जल्दी से जल्दी अपनी बचाई रकम जमा करने के लिए बैंक की कतार में खड़ी हो गईं। हालांकि, महिलाओं को डर भी है कि कहीं उन्हें नोटिस न भेज दी जाए। महिलाओं को आयकर विभाग की नोटिस भेजी गई, तो ये सरकार के खिलाफ जा सकता है। सरकार को ये व्यवस्था करनी होगी कि ऐसी नोटिस महिलाओं को न जाए। ऋषिकेश ने जनकपुरी की महिलाओं से बात की। उनका साफ कहना था कि हमारा पैसा तो सबके सामने आ गया। लेकिन, अब हमें इस बचत की सजा नहीं मिलनी चाहिए।

कतार में भी नाराज नहीं है आम आदमी
2 लाख एटीएम में से सिर्फ 1.20 लाख एटीएम ही सही हाल में हैं। इसलिए सचमुच लोगों को परेशानी तो हो रही है। लेकिन, इस सारी परेशानी के बावजूद ज्यादातर इलाके में घंटों कतार में खड़े होने के बावजूद आम आदमी इस फैसले में नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा नजर आ रहा है। दिल्ली के महरौली, बदरपुर इलाके में लोगों से बातचीत में ये सामने आया कि आम आदमी का भरोसा मोदी पर मजबूत हुआ है। यहां तक कि रोज खाने कमाने वाले तबके के लोग भी संगम विहार और देवली जैसी जगहों पर घंटों कतार में लगने के बाद भी ये कह रहे हैं कि इससे उन्हें जो तकलीफ है, वो झेल लेंगे। बड़ी चोट तो अमीरों को लगी है। वो कैसे झेलेंगे। नरेंद्र मोदी कतार में खड़े हिन्दुस्तान के नायक जैसे नजर आ रहे हैं।


कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये फैसला विपक्षियों को भी विरोध का मौका नहीं दे रहा है। क्योंकि, देश की आम जनता को लग रहा है कि ये फैसला उन्हें अच्छे से जीने की जमीन तैयार करेगा। और बड़ी मुसीबत उन लोगों के लिए करेगा जिनके पास काला धन, भ्रष्टाचार का पैसा है। इसीलिए कतारों में खड़ा, फंसा होने के बाद भी हिन्दुस्तान नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि सरकार एटीएम नेटवर्क दुरुस्त करे और बैंकों में आने वाले आम आदमी को उसकी जरूरत भर का पैसा आसानी से उपलब्ध कराए। जिससे संगठित तौर पर कतार तैयार करके इस बड़े फैसले को ध्वस्त करने की कोशिशों पर करारी चोट की जा सके। 

No comments:

Post a Comment

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...