आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद केंद्र सरकार ने जीएसटी की दरों पर
सहमति बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। जीएसटी परिषद की बैठक में चार कर दरें लागू
करने पर सहमति बनी है। जीएसटी को लेकर सबसे बड़ी आशंका इसी बात की जताई जा रही थी
कि जीएसटी लागू होने के बाद उसके अच्छे परिणाम तो देर से दिखेंगे लेकिन, बुरे
परिणाम पहले नजर आने लगेंगे। और उन बुरे परिणामों में सबसे बड़ा महंगाई का तुरंत
बढ़ना था। अब अच्छी बात ये है कि जीएसटी परिषद की हुई बैठक ने जिस तरह से जीएसटी
की दरों को 4 श्रेणी में बांटा है, उससे जरूरी सामानों की महंगाई तो कतई नहीं
बढ़ने वाली। सेवाओं पर कर बढ़ेगा। जिससे सेवाएं महंगी होंगी। लेकिन, इसे लेकर
सरकार बहुत ज्यादा चिंतित नहीं दिखती। क्योंकि, सरकार ने जरूरी कई सामानों को तो
करमुक्त तक कर दिया है। इस लिहाज से जीएसटी परिषद ने 5 दरें तय की हैं। शून्य, 5,
12, 18 और 28 प्रतिशत की कर दरें समझने से साफ होता है कि सरकार की प्राथमिकता में
महंगाई पर काबू रखना कितना ऊपर है। उसके पीछे सबसे बड़ी वजह संभवत: ये भी होगी कि बड़ी
मुश्किल से कर्ज पर ब्याज दरें काफी नीचे आई हैं। और इस बात पर सरकार और रिजर्व
बैंक के बीच सहमति सी बनती दिखी है कि ब्याज दरें कम रहनी चाहिए, जिससे लोगों और
कॉर्पोरेट को आसानी से सस्ता कर्ज मिल सके। रघुराम राजन पर रिजर्व बैंक का गवर्नर
रहते सबसे बड़ा आरोप यही लगता रहा कि महंगाई दर को लेकर वो इतने ज्यादा सशंकित रहे
कि ब्याज दरों को उस अनुपात में नहीं घटाया जितना उसे घटाया जाना चाहिए था। इसीलिए
केंद्र सरकार जीएसटी की दरों को तय करने में इस बात पर खास ध्यान दे रही है कि
किसी भी तरह से महंगाई के बढ़ने के संकेत नहीं मिलने चाहिए। और जीएसटी परिषद के
दरें तय करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली की बातों से इसकी गंभीरता आसानी से
समझी जा सकती है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली जीरो टैक्स रेट के बारे में बताते हैं कि
जीरो टैक्स रेट उन सामानों पर रखा गया है, जिनकी कीमत बढ़ने-घटने से कंज्यूमर
प्राइस इंडेक्स बास्केट का पचास प्रतिशत तय होता है। जेटली जोर देकर कहते हैं कि
हम इनके मुक्त कर वाले सामान नहीं कह रहे हैं। हम इनको जीरो टैक्स आइटम कह रहे
हैं।
दरअसल सरकार की मल्टिपल जीएसटी रेट तय करने में अगर कोई एक
सबसे बड़ी बात ध्यान में रही है, तो वो है महंगाई। अनाज और दूसरे आम लोगों पर सीधे
असर डालने वाले सामानों की कीमतों पर जीरो टैक्स लगेगा। इतना ही नहीं लोगों की रोज
की जरूरत चीजों पर 5 प्रतिशत टैक्स लगेगा। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ये बताया कि
प्रस्ताव 6 प्रतिशत का था। लेकिन, अंत में 5 प्रतिशत पर ही सहमति बनी। दरअसल जीरो
और 5 प्रतिशत टैक्स रेट जिन सामानों पर लगने वाला है, वही सामान हैं, जिनसे महंगाई
दर के घटने-बढ़ने पर सबसे ज्यादा असर होता है। यही वो सामान हैं जिससे सीधे रसोई
से लेकर आम लोगों के घर का खर्च बढ़ता-घटता है। इसीलिए केंद्र सरकार ने देश के
सबसे बड़े टैक्स सुधार को लागू करते वक्त दरें तय करने में इस बात का ध्यान रखा है
कि गलती से भी इसका दुष्परिणाम महंगाई बढ़ाने के तौर पर न दिखे। सरकार ने इसके बाद
दो स्टैंडर्ड रेट तय किए हैं। 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत। केंद्र सरकार ने दो
स्टैंडर्ड दरें तय करके कांग्रेस की 18 प्रतिशत का स्टैंडर्ड रेट रखने की मांग को
खारिज कर दिया है। इसके पीछे वित्त मंत्री अरुण जेटली का तर्क बड़ा साफ है। उनका
कहना है कि कई अनाज और रोजमर्रा के जरूरी सामानों के अलावा के सामानों में कई
सामान ऐसे हैं, जिस पर अभी 11 प्रतिशत का टैक्स लग रहा है। सीधे 18 प्रतिशत का कर
उन सामानों पर लगाने पर महंगाई के बढ़ने का खतरा होगा। इसलिए ऐसे आइटम पर 12
प्रतिशत का कर लगेगा। और जिन सामानों पर पहले से ही 18 प्रतिशत के आसपास या उससे
ऊपर का टैक्स लग रहा है, उन पर 18 प्रतिशत का टैक्स लगेगा। इस तरह 18 प्रतिशत के
स्टैंडर्ड रेट की जगह 12-18 प्रतिशत का स्टैंडर्ड रेट तय हुआ है।
रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन जैसे ज्यादातर होम अप्लायंसेज की श्रेणी में
आने वाले सामानों पर कर की दरों को 28 प्रतिशत रखा गया है। उद्योग जगत कंज्यूमर
ड्यूरेबल्स पर 28 प्रतिशत की टैक्स दरों से खुश नहीं है। उद्योग को उम्मीद है कि
ऐसे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स जो लोगों की रोज की जरूरत का हिस्सा बन गए हैं, उन्हें 18
प्रतिशत कर की श्रेणी में रखा जाएगा। 4 श्रेणियां तय होने के बाद भी अभी सामान
विशेष पर लगने वाले टैक्स को लेकर सफाई नहीं आ पाई है। वो श्रेणियों के लिहाज से
सामानों की सूची आने के बाद ही पक्का हो पाएगा। लेकिन, इतना तो तय दिख रहा है कि
सरकार हर हाल में ऐसे सामानों पर ज्यादा कर लगाने के पक्ष में नहीं है, जिससे
महंगाई दर बढ़े। खासकर आम लोगों के रोज के इस्तेमाल में आने वाले सामानों पर
महंगाई। यही वजह रही कि राज्यों को उनके राजस्व की भरपाई के लिए दी जाने वाली रकम
का इंतजाम करने के लिए जीएसटी परिषद ने सेस लगाने को मंजूरी दी है। हालांकि,
जानकार कह रहे हैं कि सेस लगने से जीएसटी पर टैक्स के ऊपर टैक्स लगता ही रहेगा। इस
पर सरकार का साफ कहना है कि सेस जीएसटी लागू होने के बाद से 5 साल तक के लिए ही
है। महंगी लग्जरी कारों और तंबाकू-पान मसाला जैसे उत्पादों पर ही सेस लगाने की बात
है। इससे इन उत्पादों पर कर की दर 40 प्रतिशत 65 प्रतिशत तक होगी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली की मानें, तो किसी भी उत्पाद पर पहले से
ज्यादा कर या सेस नहीं लगने वाला है। उन्होंने कहाकि राज्यों को राजस्व नुकसान की
भरपाई के लिए 50 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पहले साल होगी, जो सेस के जरिए वसूला
जाएगा। कुल मिलाकर सरकार तेजी से अप्रैल 2017 की समयसीमा तक जीएसटी लागू करने के
रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रही है। शायद यही वजह है कि सरकार ज्यादातर मसलों पर आम
सहमति बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन, अभी भारत जैसे विशाल देश में जीएसटी लागू
होने के बाद सामानों पर अलग-अलग राज्य में किस सामान पर कितना कर लगेगा, इसे बता
पाना बेहद मुश्किल है। इसके पीछे सिर्फ कर की 4 श्रेणियां होना ही नहीं है। बल्कि,
सबसे बड़ी बात ये भी है कि कहां, कौन सा सामान बिक रहा है। साथ ही अभी जीएसटी
परिषद को सामान विशेष के लिहाज से श्रेणी तय करके सूची बनानी होगी। इसके बाद ही
पूरी तरह से समझा जा सकेगा कि देश के इस सबसे बड़े सुधार से कर ढांचे में कितना
सुधार होने वाला है। और इससे आम लोगों से लेकर उद्योगों तक को कितनी सहूलियत मिलने
वाली है। लेकिन, प्रथम दृष्टया जीरो टैक्स और 4 टैक्स स्लैब को देखकर ये पक्की
टिप्पणी है कि सरकार किसी भी हाल में महंगाई दर बढ़ाने वाली दरों को नहीं लागू
करेगी, खासकर आम लोगों के रोज के सामान की महंगाई।
अभी भी आशंकित है उद्योग जगत
जीएसटी लागू करने में सरकार जिस तेजी से आगे बढ़ रही है, उस पर उद्योग
जगत खुश नजर आ रहा है। हालांकि, मल्टिपल जीएसटी दरों को लेकर उद्योग जगत थोड़ा
आशंकित दिखता है। लेकिन, ज्यादातर लोग जीएसटी लागू करने के सरकार के तरीके की
तारीफ करते नजर आ रहे हैं। हां, ये सलाह जरूर है कि ज्यादातर कंज्यूमर गुड्स पर 18
प्रतिशत का ही कर लगना चाहिए।
उद्योग संगठन फिक्की के प्रेसिडेंट हर्षवर्धन नेवतिया ने जीएसटी की 4 दरों
पर सहमति बनाने के लिए जीएसटी परिषद की तारीफ की है।
सीआईआई अध्यक्ष नौशाद फोर्ब्स का कहना है कि मॉडल जीएसटी कानून हर
राज्य में सामान और सेवाओं की आपूर्ति पर अलग-अलग कर की बात कर रहा है, इससे कर
संरचना के और कठिन होने की आशंका है। फोर्ब्स का सुझाव है कि सरकार को अधिकतम 2
दरें रखनी चाहिए।
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