करीब एक
महीने पहले ही ये तय हो गया था कि स्वाति सिंह को उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी
की महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन, एक सही मौके का इंतजार किया जा
रहा था। और जब मायावती ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सरकार को नसीहत दी और कहाकि बीजेपी
को इसका राजनीतिक फायदा नहीं उठाना चाहिए, तो भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश
में एक राजनीतिक “सर्जिकल
स्ट्राइक” कर दी।
ये राजनीतिक “सर्जिकल
स्ट्राइक” है
स्वाति सिंह को भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना। ये
वही स्वाति सिंह हैं, जिनकी पहचान अभी भी @BJPSwatiSingh
की पहचान ट्विटर पर बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष
दयाशंकर सिंह की पत्नी के तौर पर ही है।
स्वाति
सिंह के पति दयाशंकर सिंह जिस मायावती के खिलाफ टिकट बेचने के आरोप को लेकर
शर्मनाक बयान देने की वजह से निकाले गए। उन्हीं मायावती की पार्टी के नसीमुद्दीन
सिद्दीकी और दूसरे बड़े नेताओं की मौजूदगी में दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह
और उनकी नाबालिग बेटी के खिलाफ अभद्र बयानों ने स्वाति सिंह को घर की दहलीज से
बाहर लाकर उत्तर प्रदेश में नारी स्वाभिमान की लड़ाई का बड़ा चेहरा बना दिया। इतना
बड़ा चेहरा कि स्वाति के पति दयाशंकर सिंह को पार्टी से 6 साल से निकालने वाली
भाजपा को स्वाति सिंह के पीछे खड़ा होना पड़ा।
पूरे
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने बेटी के सम्मान में भाजपा मैदान में नारे के साथ
बड़ा प्रदर्शन किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर राजनीति शुरू करने
वाले दयाशंकर सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय के महामंत्री और अध्यक्ष रहे। लखनऊ
विश्वविद्यालय की राजनीति के दौरान ही दयाशंकर सिंह और स्वाति सिंह का प्रेम हुआ,
जिसकी परिणति विवाह के तौर पर हुई। लेकिन, स्वाति सिंह कभी भी सीधे तौर पर राजनीति
में नहीं रहीं। बलिया जिले से आने वाले दयाशंकर सिंह ने विद्यार्थी परिषद से
भारतीय जनता युवा मोर्चा का रास्ता पकड़ा। युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे दयाशंकर
सिंह ने बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री और उपाध्यक्ष का जिम्मा भी
संभाला। दयाशंकर की पहचान भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में एक ऐसे नेता के तौर
पर होती रही है जिसके संबंध हर दौर में प्रदेश नेतृत्व से अच्छे रहे। यही वजह रही
कि 2007 में दयाशंकर सिंह को बलिया से विधानसभा टिकट मिला। हालांकि, दयाशंकर सिंह
चुनाव हार गए। और इसके बाद 2 बार विधान परिषद का प्रत्याशी घोषित होने के बाद वहां
भी हार का ही सामना करना पड़ा।
लक्ष्मीकांत
बाजपेयी के बाद जब केशव प्रसाद मौर्या प्रदेश अध्यक्ष बने, तो दयाशंकर सिंह को फिर
से प्रदेश की टीम में उपाध्यक्ष के तौर पर शामिल कर लिया गया। लेकिन, उपाध्यक्ष
बनने के बाद मऊ दौर पर गए दयाशंकर सिंह ने टिकटों की बिक्री पर मायावती के खिलाफ
ऐसा शर्मनाक बयान दे दिया कि भारतीय जनता पार्टी के गले की हड्डी बन गए। हालात ऐसे
कि न उगलते बन रहा था, न निगलते। मायावती की बहुजन समाज पार्टी सड़कों पर आ गई। और
लगा कि 2017 का विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी राज्य की
राजनीति से बाहर हो गई। लेकिन, उसी समय स्वाति सिंह ने कमान संभाली और इस
क्षत्राणी ने अपने तीखे तेवरों से राज्य की राजनीति का रुख बदल दिया। 48 घंटे में
ऐसे हालात बन गए कि राज्य की जनभावना स्वाति सिंह के साथ मजबूती से खड़ी दिखने
लगी। दयाशंकर से कन्नी काट रही भाजपा स्वाति सिंह के साथ खड़ी हो गई। लेकिन, इसके
बावजूद भारतीय जनता पार्टी दयाशंकर सिंह को वापस पार्टी में लेने का फैसला करने का
साहस नहीं कर पा रही थी। जबकि, पार्टी के भीतर भी दयाशंकर सिंह के खिलाफ हुई
कार्रवाई से लोगों में नाराजगी थी।
खासकर
सवर्णों में इस बात को लेकर बेहद आक्रोश था, इसीलिए बीजेपी नेतृत्व भी भ्रम की
स्थिति में था। इसी बीच दयाशंकर सिंह और उनकी पत्नी स्वाति सिंह ने उत्तर प्रदेश
के 7-8 जिलों में क्षत्रिय स्वाभिमान रैली की। रैली में स्वाति सिंह की शैली ने
बीजेपी नेताओं को आश्वस्त कर दिया। स्वाति सिंह लगातार मायावती को चुनौती देती
रहीं कि अगर वो किसी सामान्य सीट से लड़ेंगी, तो स्वाति सिंह उनके खिलाफ चुनाव
लड़ेंगी। दयाशंकर लगातार प्रदेश बीजेपी से लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व से अपनी वापसी
की गुहार लगा रहे थे। और अंत में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बीच का रास्ता
निकाला। स्वाति सिंह को महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। मायावती के
एलओसी पार हुई “सर्जिकल
स्ट्राइक” का
राजनीतिक लाभ न लेने की बात कही और बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में स्वाति सिंह को
अध्यक्ष बनाकर राजनीतिक “सर्जिकल स्ट्राइक” कर दी है। इतना तो तय है कि ये राजनीतिक “सर्जिकल स्ट्राइक” उत्तर प्रदेश की
राजनीति के कई स्थापित समीकरणों को ध्वस्त करेगी।
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