ये मेरे पिताजी की लिखी हिंदी की किताब बिहारी विमर्श है। ये किताब इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल थी। मेरी पैदाइश के पहले लिखी ये किताब है। फिर वो बैंक मैनेजर हो गए। न कोई किताब लिखी, न इसी किताबको सहेज सके। शोध पूरा करके भी उसे जमा नहीं किया और डॉक्टर कृष्ण चंद्र त्रिपाठी नहीं हो सके। सेवानिवृत्ति के बाद भी वो बैंक की यूनियनबाजी के ही चक्र में फंसे हुए हैं। राज्यसभा टीवी पर दुष्यंत कुमार को देखते ये बात ध्यान में आई। डॉक्टर तो अब मैं भी नहीं बनता दिख रहा लेकिन ढेर सारी किताबें लिखने और उनकी वजह से पहचान की इच्छा मन में है। जिसे शायद पूरा कर सकूँ।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Tuesday, January 20, 2015
बिहारी विमर्श
ये मेरे पिताजी की लिखी हिंदी की किताब बिहारी विमर्श है। ये किताब इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल थी। मेरी पैदाइश के पहले लिखी ये किताब है। फिर वो बैंक मैनेजर हो गए। न कोई किताब लिखी, न इसी किताबको सहेज सके। शोध पूरा करके भी उसे जमा नहीं किया और डॉक्टर कृष्ण चंद्र त्रिपाठी नहीं हो सके। सेवानिवृत्ति के बाद भी वो बैंक की यूनियनबाजी के ही चक्र में फंसे हुए हैं। राज्यसभा टीवी पर दुष्यंत कुमार को देखते ये बात ध्यान में आई। डॉक्टर तो अब मैं भी नहीं बनता दिख रहा लेकिन ढेर सारी किताबें लिखने और उनकी वजह से पहचान की इच्छा मन में है। जिसे शायद पूरा कर सकूँ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी 9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
No comments:
Post a Comment