दिल्ली में एक डॉक्टर के ऊपर हुए एसिड हमले के बाद सरकार ने तेजी से ये दिखाने की कोशिश की है कि उसने अपना काम कर दिया है। सरकार ने इस जघन्यतम अपराध की श्रेणी में डाल दिया है। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि इस तरह के अपराध करने वालों को उम्र कैद या फिर फांसी की सजा हो सकती है। लेकिन,
क्या इससे इस अपराध पर रोक लग सकेगी। फांसी की सजा या ज्यादा से ज्यादा सजा देकर अपराध रोकने का एक सिद्दांत है और वो काफी हद तक काम भी करता है। बलात्कार के मामले में भी इसीलिए बार-बार ये मांग उठती रही कि बलात्कार के अपराधियों को सीधे फांसी की सजा दी जाए। और किसी लड़की के चेहरे या फिर उसके शरीर पर तेजाब फेंककर उसे सजा देने की कोशिश भी काफी हद तक किसी लड़की के साथ बलात्कार करने जैसा ही है। बल्कि, कई मायने में तो किसी लड़की के शरीर या चेहरे पर तेजाब फेंकना, जान से मारने या बलात्कार करने से भी ज्यादा जघन्य है। क्योंकि, किसी लड़की के शरीर या चेहरे पर तेजाब फेंकने के अपराधियों के खिलाफ सरकारी या कानूनी तरीके से जितनी भी कड़ी से कड़ी सजा दी जाए वो, जायज ही है। सरकार ने अपनी तरफ से इसको लेकर समाज में गुस्से को कम करने की हरसंभव कोशिश की है। और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जिस तरह से तेजी से इस मसले पर प्राथमिकता दिखाई है उसकी तारीफ की जा सकती है। गृहमंत्रालय की ओर से बयान में कहा गया है ऐसे मामलों में 60 दिनों के भीतर फैसले की कार्रवाई की जाएगी। साथ ही सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर एक प्रस्ताव पर काम कर रही है।
जिससे एसिड हमले की शिकार लड़की का इलाज बिना किसी भी परेशानी के कैशलेस हो सके। ऐसी पीड़ित महिलाओं को विकलांग श्रेणी में आरक्षण देने, सरकार की तरफ से कर्ज देने और दूसरी सहायता की बात भी सरकार कर रही है। शायद ये सब पिछले साल 16 दिसंबर को हुए निर्भया मामले का भी दबाव है। दिल्ली में
पिछले साल हुई 16 दिसंबर के बाद कम से कम लड़कियों के मानवाधिकारों को लेकर संवेदनशीलता बढ़ी है। लेकिन, अभी हमारा भारतीय समाज शायद आधी आबादी को लेकर अपने मनस को संतुलित करने में नाकाम ही रहा है।
दरअसल किसी लड़की के ऊपर तेजाब फेंकने की घटना को सिर्फ उसके शरीरिक नुकसान के तौर पर हम देखेंगे तो फिर हर इस तरह की घटना के बाद सरकारों का हरकत में आना, कड़े से कड़ा कानून बनना और उसके लागू होने को ही हम इस समस्या का हल मान लेंगे। और फिर अगली इसी तरह की नीच सोच की घटना के बाद फिर से जागेंगे। यही दरअसल हम भारतीयों का आधी आबादी की समस्याओं को लेकर ज्यादातर बर्ताव रहता है। इसलिए जरूरी है कि आधी आबादी के खिलाफ पुरुषों के बलात्कार और एसिड फेंकने की घटना के मनोविज्ञान पर बात हो। इसकी निंदा हो। उसकी शिकार महिला को अलग से सम्मान न मिले तो कम से कम तेजाब फेंकने से पहले जैसे सम्मान मिले। दरअसल हमारे समाज में दो तरह की तरह मान्यताएं
काम करती है। और दुखद ये कि दोनों ही शर्मनाक मान्यताएं लड़कियों के ही खिलाफ जाती हैं। समाज की पहली मान्यता ये कि लड़की तो सुंदर ही होनी चाहिए। यानी लड़के के संदर्भ में ऐसी कोई मान्यता हमारे समाज ने तय ही नहीं की है तो उसे लड़के के सुंदर होने न होने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हमारे गांव देहात में एक कहावत बेहद प्रचलित है कि घी क लड्डू टेढ़मेढ़। इसका भावार्थ ये कि घी का लड्डू टेढ़ामेढ़ा भी हो तो खास फर्क नहीं पड़ता। मतलब लड़की के जन्म के साथ उसकी सुंदरता को हर पैमाने पर कसना शुरू हो जाता है। और इसी के साथ ये मान्यता भी हमारे समाज में घर कर चुकी है कि अगर किसी लड़की की सुंदरता में जरा भी कमी है या आ गई तो वो कमतर हो जाती है। या इसे थोड़ा और आगे ले जाएं तो कम सुंदर हुई लड़की के लिए ये दंड जैसा ही है। ठीक ऐसी ही सोच समाज लड़कियों के शीलभंग को लेकर रखता है। हालांकि, बदलते समय के साथ काफी वर्जनाएं टूटी हैं। काफी परिवर्तन हो रहा है। लेकिन, फिर भी किसी लड़की का शीलभंग समाज को बर्दाश्त नहीं है। ऐसी लड़की के लिए समाज का सामना करना मुश्किल होती है। और ये तब है जब हमारा समाज पहले से काफी जाग चुका है। वो बलात्कार की शिकार लड़की या फिर तेजाब फेंकने पर स लड़की के समर्थन में सड़कों पर उतरता दिखता है। आवाज उठाता दिखता है। लेकिन, ये सब सार्वजनिक तौर पर समाज में सभ्य रहने का शायद दबाव ज्यादा है। क्योंकि, निजी तौर पर अभी भी हमारे समाज में कितने पुरुष या कितनी महिलाएं होंगी जो बलात्कार या तेजाब की वजह से सुंदरता के सामाजिक पैमाने पर कमतर हुई लड़की को सम्मान की नजर से देखते हैं। दरअसल सारी मुश्किल इसी नजर की है। इसीलिए जब किसी पुरुष को कोई महिला उसकी इच्छा के खिलाफ जाती हुई दिखती है तो वो इन्हीं दोनों
पैमाने पर लड़की को कमतर करने की योजना बनाता है।
समाज के पैमाने पर महिलाओं को अपमानित करने की इसी गंदी, घिनौनी मानसिकता का शिकार लड़कियां हो रही हैं। पुरुष को लगता है कि उसने जिस लड़की का बलात्कार कर दिया तो अब समाज में किसी भी दूसरे पुरुष की नजर उसे सम्मान नहीं मिलेगा। ठीक इसी तरह से पुरुष अपनी इच्छा को नकारने वाली लड़की की
सुंदरता को सामाजिक पैमाने पर कुरूप करके भी सुख पाता है। क्या किसी लड़की का चेहरा तेजाब से जल जाने या फिर उसके साथ जबर्दस्ती शारीरिक संबंध बना लेने से उस लड़की के मूल व्यक्तित्व में कहीं से भी कोई कमी आती है। इसका जवाब है- बिल्कुल नहीं। लेकिन, समाज की नजर में वो कमतर हो जाती है। या कमतर नहीं तो थोड़ा उदार हृदय समाज के लोग ऐसी लड़की के साथ सहानुभूति जताने लगते हैं। यही ऐसी घटनाओं की मूल वजह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर मां-बाप लड़कों को टोंकने लगे तो हमारा
समाज अपने आप सुधर जाएगा। उसे मैं थोड़ा और आगे ले जाता हूं। अगर भारतीय मां-बाप, परिवार. समाज कुकर्मी लड़कों को हिकारत की नजर से देखने लगे। कुकर्म करने वाले लड़कों को अपमानित करके लड़कियों को सम्मान देने लगे तो शायद बलात्कार करके और तेजाब फेंककर लड़की को अपमानित करने की इच्छा रखने वाले पुरुषों की सोच बदले। जरूरत इस नजरिए समाज, परिवार को लड़के की परवरिश करने की है। कड़े कानून, ढेर सारी सहानुभूति मिलना ये तो पीड़ित होने के बाद का है। अगर लड़कियों को इस पीड़ा से बचाना है। लड़कियों को उनके सपने मरने से बचाना है। उनके लिए लड़कों के बराबर के मौके तैयार करना है तो समाज को अपना नजरिया बदलना होगा। वो नजरिया बदलना होगा जो बलात्कारी या तेजाब फेंकने वाले पुरुष को अपमान देने के बजाए पीड़ित लड़की को अपमानित करता है या फिर उसके साथ सहानुभूति जताता नजर आता है। इस तरह की घिनौनी घटनाओं की असल जड़ यही है।
क्या इससे इस अपराध पर रोक लग सकेगी। फांसी की सजा या ज्यादा से ज्यादा सजा देकर अपराध रोकने का एक सिद्दांत है और वो काफी हद तक काम भी करता है। बलात्कार के मामले में भी इसीलिए बार-बार ये मांग उठती रही कि बलात्कार के अपराधियों को सीधे फांसी की सजा दी जाए। और किसी लड़की के चेहरे या फिर उसके शरीर पर तेजाब फेंककर उसे सजा देने की कोशिश भी काफी हद तक किसी लड़की के साथ बलात्कार करने जैसा ही है। बल्कि, कई मायने में तो किसी लड़की के शरीर या चेहरे पर तेजाब फेंकना, जान से मारने या बलात्कार करने से भी ज्यादा जघन्य है। क्योंकि, किसी लड़की के शरीर या चेहरे पर तेजाब फेंकने के अपराधियों के खिलाफ सरकारी या कानूनी तरीके से जितनी भी कड़ी से कड़ी सजा दी जाए वो, जायज ही है। सरकार ने अपनी तरफ से इसको लेकर समाज में गुस्से को कम करने की हरसंभव कोशिश की है। और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जिस तरह से तेजी से इस मसले पर प्राथमिकता दिखाई है उसकी तारीफ की जा सकती है। गृहमंत्रालय की ओर से बयान में कहा गया है ऐसे मामलों में 60 दिनों के भीतर फैसले की कार्रवाई की जाएगी। साथ ही सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर एक प्रस्ताव पर काम कर रही है।
जिससे एसिड हमले की शिकार लड़की का इलाज बिना किसी भी परेशानी के कैशलेस हो सके। ऐसी पीड़ित महिलाओं को विकलांग श्रेणी में आरक्षण देने, सरकार की तरफ से कर्ज देने और दूसरी सहायता की बात भी सरकार कर रही है। शायद ये सब पिछले साल 16 दिसंबर को हुए निर्भया मामले का भी दबाव है। दिल्ली में
पिछले साल हुई 16 दिसंबर के बाद कम से कम लड़कियों के मानवाधिकारों को लेकर संवेदनशीलता बढ़ी है। लेकिन, अभी हमारा भारतीय समाज शायद आधी आबादी को लेकर अपने मनस को संतुलित करने में नाकाम ही रहा है।
दरअसल किसी लड़की के ऊपर तेजाब फेंकने की घटना को सिर्फ उसके शरीरिक नुकसान के तौर पर हम देखेंगे तो फिर हर इस तरह की घटना के बाद सरकारों का हरकत में आना, कड़े से कड़ा कानून बनना और उसके लागू होने को ही हम इस समस्या का हल मान लेंगे। और फिर अगली इसी तरह की नीच सोच की घटना के बाद फिर से जागेंगे। यही दरअसल हम भारतीयों का आधी आबादी की समस्याओं को लेकर ज्यादातर बर्ताव रहता है। इसलिए जरूरी है कि आधी आबादी के खिलाफ पुरुषों के बलात्कार और एसिड फेंकने की घटना के मनोविज्ञान पर बात हो। इसकी निंदा हो। उसकी शिकार महिला को अलग से सम्मान न मिले तो कम से कम तेजाब फेंकने से पहले जैसे सम्मान मिले। दरअसल हमारे समाज में दो तरह की तरह मान्यताएं
काम करती है। और दुखद ये कि दोनों ही शर्मनाक मान्यताएं लड़कियों के ही खिलाफ जाती हैं। समाज की पहली मान्यता ये कि लड़की तो सुंदर ही होनी चाहिए। यानी लड़के के संदर्भ में ऐसी कोई मान्यता हमारे समाज ने तय ही नहीं की है तो उसे लड़के के सुंदर होने न होने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हमारे गांव देहात में एक कहावत बेहद प्रचलित है कि घी क लड्डू टेढ़मेढ़। इसका भावार्थ ये कि घी का लड्डू टेढ़ामेढ़ा भी हो तो खास फर्क नहीं पड़ता। मतलब लड़की के जन्म के साथ उसकी सुंदरता को हर पैमाने पर कसना शुरू हो जाता है। और इसी के साथ ये मान्यता भी हमारे समाज में घर कर चुकी है कि अगर किसी लड़की की सुंदरता में जरा भी कमी है या आ गई तो वो कमतर हो जाती है। या इसे थोड़ा और आगे ले जाएं तो कम सुंदर हुई लड़की के लिए ये दंड जैसा ही है। ठीक ऐसी ही सोच समाज लड़कियों के शीलभंग को लेकर रखता है। हालांकि, बदलते समय के साथ काफी वर्जनाएं टूटी हैं। काफी परिवर्तन हो रहा है। लेकिन, फिर भी किसी लड़की का शीलभंग समाज को बर्दाश्त नहीं है। ऐसी लड़की के लिए समाज का सामना करना मुश्किल होती है। और ये तब है जब हमारा समाज पहले से काफी जाग चुका है। वो बलात्कार की शिकार लड़की या फिर तेजाब फेंकने पर स लड़की के समर्थन में सड़कों पर उतरता दिखता है। आवाज उठाता दिखता है। लेकिन, ये सब सार्वजनिक तौर पर समाज में सभ्य रहने का शायद दबाव ज्यादा है। क्योंकि, निजी तौर पर अभी भी हमारे समाज में कितने पुरुष या कितनी महिलाएं होंगी जो बलात्कार या तेजाब की वजह से सुंदरता के सामाजिक पैमाने पर कमतर हुई लड़की को सम्मान की नजर से देखते हैं। दरअसल सारी मुश्किल इसी नजर की है। इसीलिए जब किसी पुरुष को कोई महिला उसकी इच्छा के खिलाफ जाती हुई दिखती है तो वो इन्हीं दोनों
पैमाने पर लड़की को कमतर करने की योजना बनाता है।
समाज के पैमाने पर महिलाओं को अपमानित करने की इसी गंदी, घिनौनी मानसिकता का शिकार लड़कियां हो रही हैं। पुरुष को लगता है कि उसने जिस लड़की का बलात्कार कर दिया तो अब समाज में किसी भी दूसरे पुरुष की नजर उसे सम्मान नहीं मिलेगा। ठीक इसी तरह से पुरुष अपनी इच्छा को नकारने वाली लड़की की
सुंदरता को सामाजिक पैमाने पर कुरूप करके भी सुख पाता है। क्या किसी लड़की का चेहरा तेजाब से जल जाने या फिर उसके साथ जबर्दस्ती शारीरिक संबंध बना लेने से उस लड़की के मूल व्यक्तित्व में कहीं से भी कोई कमी आती है। इसका जवाब है- बिल्कुल नहीं। लेकिन, समाज की नजर में वो कमतर हो जाती है। या कमतर नहीं तो थोड़ा उदार हृदय समाज के लोग ऐसी लड़की के साथ सहानुभूति जताने लगते हैं। यही ऐसी घटनाओं की मूल वजह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर मां-बाप लड़कों को टोंकने लगे तो हमारा
समाज अपने आप सुधर जाएगा। उसे मैं थोड़ा और आगे ले जाता हूं। अगर भारतीय मां-बाप, परिवार. समाज कुकर्मी लड़कों को हिकारत की नजर से देखने लगे। कुकर्म करने वाले लड़कों को अपमानित करके लड़कियों को सम्मान देने लगे तो शायद बलात्कार करके और तेजाब फेंककर लड़की को अपमानित करने की इच्छा रखने वाले पुरुषों की सोच बदले। जरूरत इस नजरिए समाज, परिवार को लड़के की परवरिश करने की है। कड़े कानून, ढेर सारी सहानुभूति मिलना ये तो पीड़ित होने के बाद का है। अगर लड़कियों को इस पीड़ा से बचाना है। लड़कियों को उनके सपने मरने से बचाना है। उनके लिए लड़कों के बराबर के मौके तैयार करना है तो समाज को अपना नजरिया बदलना होगा। वो नजरिया बदलना होगा जो बलात्कारी या तेजाब फेंकने वाले पुरुष को अपमान देने के बजाए पीड़ित लड़की को अपमानित करता है या फिर उसके साथ सहानुभूति जताता नजर आता है। इस तरह की घिनौनी घटनाओं की असल जड़ यही है।
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