ज्यादातर भारतीयों का सीना इस वक्त 2 से 4 इंच चौड़ा
हुआ दिख रहा है। हुआ हो न हो, लग ऐसा ही रहा है। और ये सीना चौड़ा होने की अद्भुत
घटना रातोंरात हुई इसकी वजह हमारी मजबूत सरकार के फैसले हैं। जी, ठीक सुन रहे हैं
आप मजबूत सरकार। पिछले करीब दस सालों से अमेरिका की पिछलग्गू, कमजोर विदेश नीति
वाली सरकार के तमगे से हमारे ‘सरकार’ पक गए।
इसलिए इस बार जब मौका मिला तो वो भला क्यों छोड़ते। खुद को मजबूत दिखाने का। वो भी
सीधे मामला ये था पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश नहीं सीधे-सीधे दुनिया के दादा
को ही उठाकर पटकने का मौका था। कोई मनमोहन सिंह बराक ओबामा की कुश्ती नहीं थी ये।
दरअसल भारत सरकार गुस्से में अपने एक डिप्टी कांसुलर जनरल के साथ गलत व्यवहार से।
देवयानी खोब्रागड़े नाम की महिला हैं। दो बच्चों की मां हैं। भारतीय विदेश सेवा की
अधिकारी हैं। और इस सबके ऊपर चुनाव का समय है। अब कई लोग इस बात से मनमोहन सरकार
की तरह गुस्सा हो सकते हैं कि इसमें चुनाव क्यों घुसेड़ रहे हो। हमारे देश की एक
राजनयिक के साथ दुर्व्यवहार हुआ है और हमारी सरकार इसका कड़ा विरोध कर रही है। संयोग-दुर्योग
से अमेरिका से एक प्रतिनिधिमंडल भी आया हुआ है। टेलीविजन स्क्रीन पर ये भी चौड़े
से चमकने लगा। अमेरिका को करारा जवाब। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिले मीरा
कुमार, सुशील शिंदे, नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी। खैर जब मैंने थोड़ा समझने की
कोशिश की तो ये समझ में आया कि ये जिसे अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मिलने से इनकार
किया टाइप चल रहा था। ये अमेरिका नॉर्थ कैरोलिना से आया प्रतिनिधिमंडल था। यानी
जैसे भारत के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल अमेरिका जाता है। अब सोचिए ऐसे
प्रतिनिधिमंडलों की खबर कैसे बनती है। नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके देश पर आपदा
के समय सरकारके साथ मजबूती से खड़े होने का फैसला कर लिया। आपदा ही तो थी ये। एक
राजनयिक को इस तरह से हथकड़ी लगाई गई। अपराधियों के साथ उसे रखा गया। चुनाव के समय
देश के मजबूत नेताओं में नाम लिखाने की होड़ मची हुई है।
अभी-अभी लोकपाल पास करके उठी सरकार ईमानदार,
मजबूत हो गई है। ऐसी मजबूत कि दुनिया के दादा पर चला बुलडोजर जैसी हेडलाइन लिखने
का मसाला टीवी न्यूज चैनलों को दे दिया। एक पल को लगा कि हर दूसरे दिन पाकिस्तान
से लतियाई जाती सरकार अमेरिका बुलडोजर लेकर कब चली गई। हमारे सैनिकों का सिर काटकर
जब पाकिस्तानी ले गए थे तब भी इतनी गुस्से में नहीं थी सरकार। चीनी सैनिक आते और
लाल निशान लगाकर हमारी सीमा में चले जाते फिर भी कभी हमारी सरकार का खून नहीं
खौला। फिर अचानक क्या हो गया कि भारत सरकार अमेरिका पर बुलडोजर चलाने लगी। दरअसल
ध्यान से खबर देखने पर पता लगा कि दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के सामने बैरीकेडिंग
लगी हुई थी। जिसे हटाने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल दिल्ली पुलिस ने किया था।
बाकायदा टीवी कैमरों के सामने ये सब हुआ। फर्स्ट विजुअल लिखकर ज्यादातर टीवी न्यूज
चैनलों ने चलाया भी। दौड़दौड़कर खबरें आ रही थीं। इतनी तेजी में तो कभी ये सरकार
पिछले दस सालों में काम करती दिखी ही नहीं थी। न यूपीए 1 में न यूपीए 2 में यानी
अभी। अन्ना बेचारे मरते रह गए लेकिन, उनका असल वाला लोकपाल तक इस सरकार ने नहीं
दिया।
धांय धांय कड़े फैसले हो रहे थे दुनिया के दादा
के खिलाफ। एक डिप्टी कांसुलर जनरल की इज्जत कब देश की इज्जत बन गई पता ही नहीं
चला। मेरा भी सीना करीब 4 इंच से ज्यादा चौड़ा हो गया था। लेकिन, फिर मुझे याद आया
कि हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की न्यूयॉर्क के एयरपोर्ट पर तलाशी ले
ली गई थी। और एक बार तो हमारी दिल्ली के ही चमकते एयरपोर्ट पर अमेरिकी कॉण्टिनेंटल
एयरलाइंस के लोगों ने तलाशी ले ली थी। रक्षामंत्री रहते जॉर्ज फर्नाण्डीज का तलाशी
वाली खबर भी आंखों के सामने घूम गई। प्रफुल्ल पटेल को भी तो विमानन मंत्री रहते ही
काफी मुश्किलों का सामना अमेरिकी एयरपोर्ट पर करना पड़ा था। फिर याद आया कि हमारे
सुपरस्टार शाहरुख खान को नेवार्क इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर घंटों रोककर पूछताछ की गई
थी। दूसरे सुपरस्टार आमिर खान के साथ भी ऐसे ही व्यवहार की खबर याद आ गई। जॉन
अब्राहम के साथ भी ऐसा ही बर्ताव याद आया। नेता, अभिनेता फिर मुझे लगा कि हो सकता
है अधिकारियों को लेकर ही हमारी सरकार ऐसे मजबूत बनती हो। तो तुरंत याद आ गया कि अमेरिका
में हमारी राजदूत रही मीरा शंकर के साथ भी कपड़ो उतारकर तलाशी जैसी ही खबर आई थी। ऐसी
ढेर सारी खबरें याद आ रहीं थीं। लेकिन, दिमाग पर बहुत जोर देने पर भी हमारी मजबूत
सरकार का कोई मजबूत कदम याद नहीं आया था। मेरा 4 इंच चौड़ा हुआ सीना तेजी से घट
रहा था।
फिर भी मैं पूरी खबर पढ़-देख रहा था। भारत ने देश
में सभी अमेरिकी कांसुलर दफ्तरों से पहचान पत्र वापस करने को कह दिया था। इरादा
उनके अधिकार और छूट की फिर से समीक्षा का। अमेरिकी राजनयिकों को दिए गए सारे
एयरपोर्ट पास भी वापस ले लिए गए थे। अमेरिकी दूतावास की गाड़ियों की पार्किंग के
अधिकार भी रद्द हो गए। जो आयात मंजूरी थी वो भी रद्द। अमेरिकी राजनयिकों को शराब
तक की किल्लत हो जाएगी खबर ऐसा बता रही थी। अमेरिकी दफ्तरों, स्कूलों में भारतीयों
को कितनी तनख्वाह मिल रही है इसकी जानकारी मांग ली गई। कोई नौकर/नौकरानी
रखी हो तो उसकी भी पूरी जानकारी। और सबसे बड़ा कड़ा फैसला वही जो टीवी पर पहली
तस्वीर लिखकर चला कि अमेरिकी दूतावास के सामने लगे सीमेंट के बैरीकेड को बुलडोजर
से हटाया गया। अब सवाल ये है कि अगर ये सब दो देशों के बीच संबंधों में जो कानून
लागू होता है उसके अंदर हमारी मजबूत सरकार ने किया तो अभी तक अमेरिकियों को ये
सारी सहूलियतें क्यों थीं। और अगर वियना समझौते के तहत दूसरे देश के राजनयिकों को
ये सहूलियतें मिलती हैं तो ये तरीका हमारी सरकार क्यों अपना रही है। क्या ये कड़ा रुख
हमारी विदेश नीति का नियमित हिस्सा बनेगा या फिर सिर्फ देवयानी खोब्रागड़े मामले
के चर्चा में रहने तक रहेगा। अमेरिकी विदेश विभाग से जो कहा गया- वो बहुत साफ है
कि कानूनों के तहत ही देवयानी खोब्रागड़े पर कार्रवाई हुई। क्या कभी किसी अमेरिकी
या विदेशी पर हमारी सरकार भी कानूनों के तहत कार्रवाई करके ऐसे बयान दे पाएगी। राज्यसभा
में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा है कि हमारी विदेश नीति की समीक्षा की जरूरत
है। मुझे लगता है कि विदेश नीति की नहीं देश नीति की समीक्षा की जरूरत है।
ये सबकुछ ऐसे समय में हो रहा है जब लोकपाल पास
करके सरकार ईमानदार रहने की हर कोशिश कर लेना चाहती है। सरकार के साथ विपक्षी
पार्टियां भी। ये ऐसा समय भी है जब आप वीआईपी कल्चर को ही खत्म करने की बात कर रही
है। ये ऐसा समय है जब लोगों को फिर से लगने लगा है कि आम लोग भी चुनाव जीत सकते
हैं। तो क्या हमारी सरकार (अभी की हो या आगे कोई और) ये तय कर सकती है कि ये समय
ऐसा भी बनेगा जिसमें वीआईपी होने से कुछ नहीं बदलेगा। कानून अपना काम करेगा।
लेकिन, इसके लिए पहले हमें अपनी देश नीति सुधारनी होगी। कानून हर किसी पर काम करे
ये दिखाना होगा। तब जाकर विदेशियों पर भी हम उसी तरह की कानूनी कार्रवाई कर
पाएंगे। और तभी देवयानी खोब्रागड़े या आगे किसी और को सचमुच न्याय मिल सकेगा।
हमारी बिना गलतियों और छोटी गलतियों पर भी अमेरिकी कानून हमारे बड़े नेताओं, अधिकारियों,
राजनयिकों, अभिनेताओं को अपमानित कर देता है। इसलिए देश नीति सुधरेगी तभी हमारे
जैसे लोगों सीना सचमुच चौड़ा हो पाएगा वरना वरना सिर्फ चुनाव
जीतने के लिए कड़े, मजबूत कदम उठाने से कुछ नहीं होगा। ऐसे
ही फूले गुब्बारे से हवा निकलेगी और कुपोषित छाती के साथ ही दुनिया में हमारी
पहचान होगी।
बाहरी दबाव के आगे मजबूती से खड़े होने की जरुरत है ! बढ़िया आलेख !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
बहुत सटीक बात !
ReplyDeleteराज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा है कि हमारी विदेश नीति की समीक्षा की जरूरत है। मुझे लगता है कि विदेश नीति की नहीं देश नीति की समीक्षा की जरूरत है।
ReplyDeleteसिर्फ खेद प्रकट किया है अमरीका ने। मामला वापस नहीं लिया गया है राजनयिक के खिलाफ ,न माफ़ी मांगी है।
सरकार के तम्बू चार राज्यों से उखड जाने के बाद सरकार जल्दी में है शहज़ादे की ताज़पोशी होनी है। मत चूके चौहान।