सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया की गिरफ्तारी मीडिया के हित में है या लंबे समय में सरकार इसे ही 'आधार' (वो, वाला आधार नहीं जिससे सब्सिडी सीधे खाते में मिलेगी, वो, वाला आधार जिससे मीडिया को सब्सिडाइज्ड करने में मदद मिलेगी) बनाकर संपादक, संपादकीय सत्ता, मीडिया को निपटाने का प्रयास करेगी। सुधीर चौधरी के कृत्य पहले से इतने जगजाहिर हैं कि चाहकर भी कोई पत्रकार उधर खड़ा शायद ही दिखे। फिर BMW से चलने वाला संपादक बनने के बाद शायद सुधीर ने दूसरे पत्रकारों-संपादकों को कुछ अजीब किस्म का जंतु भी समझ लिया होगा। उसका भी दुष्परिणाम है कि एक भी व्यक्ति कम से कम सुधार के पक्ष में बात करने से रहा।
अपुष्ट खबरें ये भी आ रही हैं कि जिस सौदे को 100 करोड़ ले जाने के चक्कर में ये जेल चले गए। उस खबर पर कहीं-कहीं 20-25 करोड़ बन भी गए। इस सवाल का बस जवाब मिलना मुश्किल हो रहा है कि अभी सफाई कितनी और कैसे हो कि संपादक, प्रेस की व्यक्ति हित नहीं देश हित वाली सत्ता की छवि लौट पाए। एक विकल्प ये था कि जी ग्रुप विचारे और साफ सुथरी छवि वाले संपादक लाए। लेकिन, मुश्किल तो, ये है कि अगर खुद जी के लिए ही ये दोनों रणबांकुरे संपादक सारी कसरत कर रहे थे। तो, जी किनारा कैसे कर लेगा। डर है तो, बस इसी बात का कि छोटी दलाली के लिए छुटभैये चैनलों की कुछ दिनों की दलाली और फिर बंदी से पहले ही मीडिया की विश्वसनीयता खतरें में थी। और, मीडिया में भी अजीब सा ठहराव है। पत्रकार पूरी तरह से नौकरी ही करने लगे हैं। ऐसे में अगर कहीं जी जैसा बड़ा ग्रुप खबर छोड़ कुछ और करने लगा या फिर निपट गया तो, वैश्विक मंदी के दौर में क्या हो सकता है। ढेर सारे सवाल हैं जिसका जबाव खोजना, समझना मुश्किल है। सुधीर के जेल जाने की खबर पर कुछ प्रतिक्रिया मैंने फेसबुक पर दी थी उसको भी यहां चिपका रहा हूं। शायद कुछ और साफ हो सके
Gd news for media. Sudheer chaudhari & sameer ahluwalia arrested. Hope now zee find out any credible editor. #yellowjournalism #media #Coal
एक समय में हिंदी में विश्वसनीय खबरों और सिर्फ खबरों का चैनल जी न्यूज और ग्रुप का दूसरा जी बिजनेस आज ब्लैकमेलिंग मामले में अपने संपादकों की गिरफ्तारी पर सफाई के लिए मीडिया के सामने एक ढंग से विश्वास के साथ हिंदी बोलने वाला व्यक्ति नहीं खोज पाया। सफाई के लिए मीडिया के सामने आए आलोक अग्रवाल जो, पता चला CEO हैं। हिंदी पत्रकारों के सवालों के जवाब या जी की सफाई मांगने पर दाएं-बाएं देखने लगे। फिर अनुवादित हिंदी में पक्ष रखा। लेकिन, पत्रकारों को ये हिदायत की भरोसा अंग्रेजी वाली रिलीज पर ही करना। वाह रे हिंदी ..... मीडिया में ... #ZEENEWS #YELLOWJOURNALISM #MEDIA #COALGATE #MEDIAGATE
और, कोई वजह होती तो, सरकारी दमन के खिलाफ अपने संपादकों के साथ किसी मीडिया हाउस का खड़े होना पत्रकारीय मानदंडों को और ऊपर उठाता। लेकिन, अभी जी ग्रुप अगर इसी तरह अड़ा रहा तो, शायद पत्रकारीय मनदंड धव्स्त ही हो जाएंगे। #zeenews #yellowjournalism #media
मैं निजी तौर पर बेहद खुश हूं कि दलाली के जरिए पत्रकारिता में किस ऊंचाई तक पहुंचा जा सकता है और वहां क्या हश्र होता है ये साफ हुआ है। क्योंकि, हम तो सीधे पत्रकारिता करके ही कितनी भी ऊंचाई तक जा सकते हैं और शायद दलाल पत्रकारिता के दौर में थोड़ा मुश्किल हो रहा था हमारे जैसों का ज्यादा ऊंचा जाना। मुझे अपने ऊंचे-नीचे जाने से कोई खास परेशानी नहीं है। परेशानी ये है कि मीडिया के शिखर पर दलालों का समूह सम्मान पाने लगा है। शायद ये खत्म होगा या थोड़ा तो, कम होगा ही। #yellowjournalism #media #Coal
अपुष्ट खबरें ये भी आ रही हैं कि जिस सौदे को 100 करोड़ ले जाने के चक्कर में ये जेल चले गए। उस खबर पर कहीं-कहीं 20-25 करोड़ बन भी गए। इस सवाल का बस जवाब मिलना मुश्किल हो रहा है कि अभी सफाई कितनी और कैसे हो कि संपादक, प्रेस की व्यक्ति हित नहीं देश हित वाली सत्ता की छवि लौट पाए। एक विकल्प ये था कि जी ग्रुप विचारे और साफ सुथरी छवि वाले संपादक लाए। लेकिन, मुश्किल तो, ये है कि अगर खुद जी के लिए ही ये दोनों रणबांकुरे संपादक सारी कसरत कर रहे थे। तो, जी किनारा कैसे कर लेगा। डर है तो, बस इसी बात का कि छोटी दलाली के लिए छुटभैये चैनलों की कुछ दिनों की दलाली और फिर बंदी से पहले ही मीडिया की विश्वसनीयता खतरें में थी। और, मीडिया में भी अजीब सा ठहराव है। पत्रकार पूरी तरह से नौकरी ही करने लगे हैं। ऐसे में अगर कहीं जी जैसा बड़ा ग्रुप खबर छोड़ कुछ और करने लगा या फिर निपट गया तो, वैश्विक मंदी के दौर में क्या हो सकता है। ढेर सारे सवाल हैं जिसका जबाव खोजना, समझना मुश्किल है। सुधीर के जेल जाने की खबर पर कुछ प्रतिक्रिया मैंने फेसबुक पर दी थी उसको भी यहां चिपका रहा हूं। शायद कुछ और साफ हो सके
Gd news for media. Sudheer chaudhari & sameer ahluwalia arrested. Hope now zee find out any credible editor. #yellowjournalism #media #Coal
बिकने वाले या बिके हुए ये तो, बड़े कम पत्रकार अभी भी हैं। अभी एक दिन एकदम से इलाहाबाद से दिल्ली आया एक पत्रकार मिला। जिसे मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में किसी पढ़ाया भी था। उसने कहा कि सर अब मैं यहां काम कर रहा हूं तो, समझ में आ रहा है कि ...जैसा मीडिया दिखता है वैसा है नहीं। सच्चाई भी यही है। लेकिन, मैंने उससे यही कहाकि तुम कम से कम ये मत सोचो डेढ़ दशक के बाद मुझमें ये वृत्ति या मुझसे वरिष्ठों में ये वृत्ति आए तो, समझ में आती है लेकिन, कम से कम तुम लोग इस वृत्ति को पीट के पटरा कर दो। पत्रकारिता चल रही है चलेगी जब ज्यादा दलाल बढ़ेंगे तो, ऐसे ही पुलिस उनके चेहरे लाल करेगी तो, मेरा और हर सही पत्रकार का चेहरा खुशी से लाल होगा। और, ये बेहूदगी की बात है कि जिसे मौका नहीं मिला वही ईमानदार है। दूसरों पर ईमानदारी का दबाव बनाने में भले धीरे-धीरे कमी आती हो लेकिन, ज्यादातर पत्रकार अभी भी दमदार हैं। कम से कम मैं जितने भी लोगों के साथ अखबार-टीवी में काम करके आया हूं। उस अनुभव के आधार पर।
एक समय में हिंदी में विश्वसनीय खबरों और सिर्फ खबरों का चैनल जी न्यूज और ग्रुप का दूसरा जी बिजनेस आज ब्लैकमेलिंग मामले में अपने संपादकों की गिरफ्तारी पर सफाई के लिए मीडिया के सामने एक ढंग से विश्वास के साथ हिंदी बोलने वाला व्यक्ति नहीं खोज पाया। सफाई के लिए मीडिया के सामने आए आलोक अग्रवाल जो, पता चला CEO हैं। हिंदी पत्रकारों के सवालों के जवाब या जी की सफाई मांगने पर दाएं-बाएं देखने लगे। फिर अनुवादित हिंदी में पक्ष रखा। लेकिन, पत्रकारों को ये हिदायत की भरोसा अंग्रेजी वाली रिलीज पर ही करना। वाह रे हिंदी ..... मीडिया में ... #ZEENEWS #YELLOWJOURNALISM #MEDIA #COALGATE #MEDIAGATE
और, कोई वजह होती तो, सरकारी दमन के खिलाफ अपने संपादकों के साथ किसी मीडिया हाउस का खड़े होना पत्रकारीय मानदंडों को और ऊपर उठाता। लेकिन, अभी जी ग्रुप अगर इसी तरह अड़ा रहा तो, शायद पत्रकारीय मनदंड धव्स्त ही हो जाएंगे। #zeenews #yellowjournalism #media
मैं निजी तौर पर बेहद खुश हूं कि दलाली के जरिए पत्रकारिता में किस ऊंचाई तक पहुंचा जा सकता है और वहां क्या हश्र होता है ये साफ हुआ है। क्योंकि, हम तो सीधे पत्रकारिता करके ही कितनी भी ऊंचाई तक जा सकते हैं और शायद दलाल पत्रकारिता के दौर में थोड़ा मुश्किल हो रहा था हमारे जैसों का ज्यादा ऊंचा जाना। मुझे अपने ऊंचे-नीचे जाने से कोई खास परेशानी नहीं है। परेशानी ये है कि मीडिया के शिखर पर दलालों का समूह सम्मान पाने लगा है। शायद ये खत्म होगा या थोड़ा तो, कम होगा ही। #yellowjournalism #media #Coal
सौ सौ करोड़ लोग मांग भी तो यूं रहे हैं कि जैसे पड़ोस से आधी कटोरी चीनी मांगने गए हों
ReplyDeleteजबसे यह मामला सामने आया है मैं विचलित सा महसूस कर रहा हूँ। विश्वास बहुत लम्बे समय के परिश्रम व तपस्या से अर्जित होता है लेकिन सिर्फ़ एक चूक इसे नष्ट करने के लिए काफी है।
ReplyDeleteअब तो किसी चैनेल की किसी भी खबर को देखते समय यह खटका लगा रहेगा कि इसमें जाने कितना कुछ छिपाया गया है और कितना कुछ प्लान्ट या स्पॉन्सर किया गया है। बिल्कुल क्रिकेट मै्च में फिक्सिंग के संदेह की तरह यह शक हमेशा हान्ट करेगा। ‘खबर हर कीमत पर’ का नारा तो अब अपना अर्थ ही बदल बैठा है। अब खबरों की दुनिया कभी भी वैसी नहीं रह जाएगी।