भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी राजनीति बिल्कुल कारोबार की तरह कर रहे हैं। कब, कहां, कितना और किसका निवेश करना है। ये इससे तय करते हैं कि उस निवेश से कितना मुनाफा हो पाएगा। बड़ी कंपनियां, बड़े कारोबारी अकसर बड़े निवेश लंबे समय के मुनाफे और हित को ध्यान में रखकर करते हैं लेकिन, नितिन गडकरी राजनीति में शायद बड़े हो नहीं पाए हैं। इसीलिए छोटे हित और छोटी अवधि के हितों के मुताबिक, फैसले कर रहे हैं।
2-5 सीट जिताने के समीकरण के आधार पर दागी- भ्रष्टाचारी, अपराधी- चलेगा। क्यों, नजर इसी विधानसभा चुनाव पर जो, है। ऐसी ही 2-2, 5-5 सीटों के आधार पर गडकरी की बीजेपी हो सकता है कि यूपी में 51 से आगे कुछ सीटें जीत ले। लेकिन, कांग्रेस या क्षेत्रीय पार्टियों को जिन मुद्दों पर बीजेपी घेरती थी। उनमें से कोई भी मुद्दा अब बीजेपी के पास नहीं है। वजह, छोटे और छोटी अवधि के हितों के लिए गडकरी ऐसे कर्जे ले ले रहे हैं जो, शायद उतार पाना इस राजनीतिक कंपनी भारतीय जनता पार्टी के लिए संभव नहीं होगा। भले ही ये राजनीतिक कंपनी फिलहाल की चुनौती पार कर ले। गडकरी संघ प्रमुख भागवत की पसंद हैं। और, संघ स्थापना से लेकर अब तक कभी हड़बड़ी में नहीं दिखता। कभी ऐसे फैसले नहीं लेता, न अपने स्वयंसेवकों को ऐसे फैसले लेने के लिए उकसाता या कहता है कि वो, छोटी अवधि के हित तो, हो जाएं। लेकिन, लंबे समय की साख को खतरा पहुंचा दे। लेकिन, उसी संघ के पूर्ण समर्थन वाले नितिन गडकरी ये पता नहीं क्यों समझ नहीं पा रहे या समझना नहीं चाहते।
इतने बड़े आंदोलन के बाद का चुनाव था। लेकिन, नितिन गडकरी के शॉर्ट टर्म निवेश और मुनाफे वाले फैसलों से बीजेपी पहले ही पिछड़ गई। अब भ्रष्टाचार, अपराध का कर्ज लेकर उमा भारती को बीजेपी की यूपी यूनिट के सीईओ की दौड़ में फिर से लगा दिया। उमा भारती नितिन गडकरी से अति प्रसन्ना थीं कि किसी तरह राजनीतिक संक्रमण सम्मान पूर्वक गडकरी ने खत्म करने में मदद की और उन्हें बीजेपी में ले आए। फिर बेहद नाराज हुईँ कि सारा कार्यकर्ताओं का जोश खत्म कर दिया। कार्यकर्ता छोड़ गडकरी दूसरी पार्टी के लतियाए लोगों को टिकट देने में जुट गई। उमा भारती ने चुनाव प्रचार से दूर तक रहने की बात कर दी। बादशाह सिंह और बाबू सिंह कुशवाहा के खिलाफ पूरा दम लगाकर भी उमा भारती गडकरी के फैसले को बदल नहीं सकीं। और, अब आखिरकार गडकरी ने कारोबारी कौशल दिखाते हुए उमा भारती को मना लिया कि वो, चुनाव लड़ें।
राजनीतिक जमीन बचाने के संकट से जूझ रहीं उमा भारती के पास शायद कोई विकल्प नहीं है। इसीलिए उमा ने मान भी लिया। लेकिन, अब संघ सोचे कि ऐसे छोटे हितों वाले फैसले से गडकरी बीजेपी को क्या बना रहे हैं और, क्या उसमें संघ परिवार से निकले कार्यकर्ताओं के लिए जगह बचेगी। और, जगह बचेगी भी तो, क्या मजबूर संघ विचार के नेताओं के लिए ही। संघ विचार-परिवार के नेताओ को मजबूर करके ही बीजेपी में लाना है तो, फिर बीजेपी की जरूरत ही क्या है। इस सवाल पर संघ को अच्छे से सोचना होगा।
अटलजी और आडवाणी के बाद भाजपा में अब एक भी ऐसा नेता नहीं दिखता जिससे कुछ भी उम्मीद लगायी जा सके। यूपी में तो इतने घटिया और अयोग्य लोगों की भरमार हो गयी है कि भाजपा इस चुनाव के बाद शायद इतिहास में दफ़न हो जाएगी। इसके राज्यस्तर के नेता औरों की तरह ही परम भ्रष्ट रहे ही हैं अब बाबूसिंह कुशवाहा को लाकर इन्होंने अपना असली चेहरा उजागर कर दिया है। उमा भारती को लाने से शायद ही कोई फ़ायदा हो। इन मूर्खों के कारण बहन जी के सितारे अभी बुलन्द ही रहने वाले हैं।
ReplyDeleteउमा भारती को बीजेपी की और से हमेशा हलका लि.या गया है मध्यप्रदेस के चुनाव जीतने के बाद उन्हे किस तरह दूध की मख्खी की तरह बाहर निकाल फेंका । अब उत्तर प्रदेश में भी यही होने वाला है । हमारी पुरुष प्रधान संस्कृति, महिला को नाम करता देखना, सह नही सकती ।
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