Wednesday, April 21, 2010

प्रतिबद्ध कार्यकर्ता, भ्रमित नेता

भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को आज दिल्ली में जो रैली की वो, अपने आप में एतिहासिक कई मायनों में है। सबसे बड़ी बात तो ये कि भारतीय जनता पार्टी की इस 42 डिग्री की गर्मी में दिल्ली में हुई इस रैली ने साबित कर दिया कि घर बैठे कांग्रेस सरकार के राज में महंगाई की गर्मी की तपिश दिल्ली आकर 41 डिग्री के तापमान में झुलसने से कहीं ज्यादा भारी है। साबित ये भी हुआ कि नितिन गडकरी कैसे अध्यक्ष होंगे, उनका बीजेपी के इतिहास में नाम कैसे लिखाएगा ये तो, वक्त बताएगा लेकिन, संघ के इस लाडले अध्यक्ष की ताकत पूरे देश ने देख ली। साबित ये भी हुआ कि अटल-आडवाणी-जोशी और उस दौर के सारे नेताओं को भी नमस्ते किया जा चुका है। पार्टी कार्यकर्ता के सामने सिर्फ और सिर्फ सरकार से महंगाई पर कड़े सवाल पूछते गडकरी ही दिख रहे थे।

लेकिन, इतना सबकुछ होने गडकरी के सबसे ताकतवर नेता के तौर पर प्रतिस्थापित होने के बावजूद गडकरी की बेहोशी ने मीडिया को विश्लेषण का वो बहाना दे दिया कि जब नेता खुद खड़ा नहीं हो पा रहा है तो, पार्टी क्या खड़ी करेगा। देश भर से आए बीजेपी कार्यकर्ताओं की जुबान में बोलते हुए बीजेपी के ताजा-ताजा प्रवक्ता बने तरुण विजय भले ही इसे मीडिया का फाउल गेम कहें कि मीडिया बेवजह उनके अध्यक्ष की बेहोशी को तूल दे रहा हो, मीडिया को देश भर से आए लाखों कार्यकर्ता नहीं दिखे। अब तरुण विजय कुछ भी कहें लेकिन, सवाल उनसे मीडिया अगर पूछे कि क्या कांग्रेस की किसी रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी धूप में बेहोश होकर गिर पड़ें तो, क्या बीजेपी इस बात का बतंगड़ नहीं बनाएगी। बनाएगी और जरूर बनाएगी।

प्रतीकों की राजनीति से सत्ता तक पहुंच जाने वाली पार्टियों के इस देश में ऐसे प्रतीक बड़ा असर करते हैं। और, गडकरी की बेहोशी का असर भी उसी तरह से हुआ। गडकरी को कुछ दिन पहले मैंने अपने लेख में एक सलाह दी थी, दूसरे उनके शुभचिंतक भी उनको ये सलाह जरूर देते होंगे अगर वो, उनका बात सुनते होंगे। वो, सलाह भी यही होती होगी कि गडकरी जी राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से लड़ना है तो, चुस्त-दुरुस्त रहिए। स्लिम मत होइए लेकिन, स्वस्थ रहिए-स्वस्थ दिखिए। वरना तो, राहुल गांधी के NREGS में तसला उठाए धूप में मिट्टी ढोती तस्वीरों के सामने आपकी रैली में करीब डेढ़ लाख की भीड़ होने पर भी बेहोश होकर गिरने की तस्वीरें कहां ठहर पाएंगी। सोचिए सिर्फ अच्छी बातें करने से कुछ नहीं होगा। अच्छी बातों पर अमल दिखे और इन बातों पर अमल करने वाला पार्टी अध्यक्ष अच्छा दिखे ये बड़ा जरूरी है। अभी ये शुरुआत है आगे इसे सुधार लें तो, शायद मामला संभल जाए।

बीजेपी की महारैली देखने के लिए मैंने राजीव चौक स्टेशन से रामलीला मैदान के लिए ऑटो वाले से पूछा तो, उसका जवाब था-साहब पिछले 25 सालों से ऑटो चला रहा हूं ऐसी रैली नहीं देखी। मैं नहीं जाऊंगा। दूसरा ऑटो वाला इस शर्त पर तैयार हुआ जहां ज्यादा जाम हुआ वहीं छोड़ दूंगा लेकिन, 30 रुपए लूंगा। मुझे लगा अतिशयोक्ति है लेकिन, रामलीला मैदान पर सचमुच ऐसा माहौल था जिससे कहीं से ये लग ही नहीं रहा था ये उस पार्टी की रैली है जिसके गर्त में जाने की भविष्यवाणी पिछले लोकसभा चुनाव में हार के बाद जाने कितने राजनीतिक विश्लेषक लगाने लगे थे। कार्यकर्ताओं में जबरदस्त जोश और जान दिख रही थी।

मंच पर बुढ़ाती पीढ़ी के आडवाणी-जोशी थे लेकिन, पोस्टरों से ये सब गायब थे। किसी-किसी को गडकरी के साथ आडवाणी की सुध आ गई दिख रही थी। मंच के एक-एक तरफ दीन दयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीरें टंगी थीं। और, मंच के एक तरफ बड़ा सा लहराता हुआ अटल बिहारी वाजपेयी का मुस्कुराता चित्र था जिस पर उनकी कविताएं लिखीं थीं। नारे लिखे बोर्ड्स पर आम जन या फिर नितिन गडकरी ही दिख रहे थे।

सबसे बड़ी बात ये थी कि रैली में ज्यादातर जगहों कम से कम उत्तर प्रदेश से तो कार्यकर्ता जुटाकर नहीं लाए गए थे। छिटपुट 10-20 की टोली में आए थे। किसी बड़े नेता के साथ जुटकर नहीं आए थे। उम्मीद में चले आए थे पता नहीं अगर वो, रैली के बाद नेताओं के व्यवहार से ठगे न महसूस कर रहे होंगे तो, उत्तर प्रदेश में जमीन से चिपकी पार्टी थोड़ी तो, ऊपर उठेगी। उत्तर प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा की वजह समझ में आई जब पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह बोलने खड़े हुए तो, एक कार्यकर्ता मेरे ठीक पीछे से बोला अब तो ग आधी भीड़। ये कोई पैमाना नहीं है लेकिन, ऐसी कच्ची-पक्की लाइनें किसी गंभीर सर्वे से ज्यादा महत्व रखती हैं। हां, रैली में इंतजाम से कार्यकर्ता बहुत खुश थे। पानी के टैंकर से लेकर पैंकेटबंद पानी तक मुफ्त था। लखनऊ से आने वाले करीब डेढ़ हजार कार्यकर्ताओं के लिए सांसद लालजी टंडन के घर भोजन का इंतजाम था। लखनऊ के कार्य़कर्ताओं की बसें तो, जाम में फंस गईं वो तो, समय से नहीं पहुंच सके। हां, उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों से आए कार्यकर्ताओं को शानदार भोजन मिल गया।

अब बीजेपी इस रैली की सफलता से गदगद होगी लेकिन, लगे हाथ उसे ये भी आंकलन जरूर करना चाहिए कि इतनी बड़ी भीड़ की मंशा पार्टी नेता क्यों नहीं भांप सके जो, इस गर्मी में भी पुलिस की लाठी खाने को तैयार थी लेकिन, नेता जी लोग गर्मी झेलने से डर रहे थे। और, बार-बार कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे। जितनी बार बीजेपी के बड़े नेता सिर्फ दस हजार लोगों के जंतर-मंतर तक जाने की प्रशासन की इजाजत बताकर कार्यकर्ताओं को अनुशासित करने की कोशिश कर रहे थे। उतनी बार कार्यकर्ता नेताओं पर खीझ रहा था। दरअसल ये वही कार्यकर्ताओं की भीड़ थी जो, 2004 के लोकसभा चुनावों के समय भी बीजेपी के साथ थी जिसे देखकर पूरे मीडिया ने बीजेपी की जीत का अनुमान लगाया था। और, ये भीड़ 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी के साथ थी लेकिन, नेताओं इन कार्यकर्ताओं के जोश को वोट में नहीं बदल सके। बीजेपी और उसके नए अध्यक्ष ये बात समझ लें तो, शायद एक बार फिर बाजी पलट सकती है।
(this article is published on peoples samachar's edit page)

7 comments:

  1. अभी तो पलटना मुश्किल ही लगता है जब तक खुद को न संभाल लें.

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  2. ....लेकिन, नेताओं इन कार्यकर्ताओं के जोश को वोट में नहीं बदल सके....
    इससे सबक लेने की जरूरत है,अच्छी पोस्ट.

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  3. Jald hi badlav dikegha.sankhnaad ho chuka hai .

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  4. भाजपा ने तीन लाख की रैली करके अपनी ताकत दिखा दी और अगर किसी को शक हो तो दस करोड़ हस्ताक्षर कराकर दिखायेंगे। गडकरी जी के कमान सम्हालने के बाद सबको उम्मीद थी कि चेहरा बदलने के बाद चाल और चेहरा भी बदलेगा पर शायद इसके लिये वक्त लगेगा। भाजपा को पुराने राजनीतिक टोटके बंद करके कामकाज में बदलाव लाने पर विचार करना चाहिये। यदि मंहगाई से जनता को राहत दिलाना है तो जमाखोरों और मुनाफ़ाखोरों बेनकाब करें और कानून के हवाले करके जनता का विश्वास हासिल करें। भाजपा सरकारी अमले के जनता को लूटने वाले अफ़सरों, व्यापारियों और नेताओं से जनता को राहत दिलाने में अपनी संगठन क्षमता - ताकत को इस्तेमाल करके देश की राजनीति को एक नयी दिशा दें।

    जगदीश गुप्ता

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  5. भाजपा ने तीन लाख की रैली करके अपनी ताकत दिखा दी और अगर किसी को शक हो तो दस करोड़ हस्ताक्षर कराकर दिखायेंगे। गडकरी जी के कमान सम्हालने के बाद सबको उम्मीद थी कि चेहरा बदलने के बाद चाल और चरित्र भी बदलेगा पर शायद इसके लिये वक्त लगेगा। भाजपा को पुराने राजनीतिक टोटके बंद करके कामकाज में बदलाव लाने पर विचार करना चाहिये। यदि मंहगाई से जनता को राहत दिलाना है तो जमाखोरों और मुनाफ़ाखोरों बेनकाब करें और कानून के हवाले करके जनता का विश्वास हासिल करें। भाजपा सरकारी अमले के जनता को लूटने वाले अफ़सरों, व्यापारियों और नेताओं से जनता को राहत दिलाने में अपनी संगठन क्षमता - ताकत को इस्तेमाल करके देश की राजनीति को एक नयी दिशा दें।

    जगदीश गुप्ता

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  6. if bjp has to rejuvenate itself,it has to make a mark in UP where it is confused with its strategy
    in view of direct clash between Rahul and Mayavati.

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