Saturday, April 03, 2010

इस अपराध बोध से मुक्ति कैसे मिले

 दरअसल मैं कुछ गलत नहीं कर रहा हूं लेकिन, फिर भी मुझे अपराध बोध हो रहा है। पानी पीते वक्त ले में अंटक जाता है। लगता है कि जितना पानी मैं पी रहा हूं उससे कई गुना ज्यादा पानी बर्बाद करने का दोषी भी मैं बन रहा हूं।

मुंबई से जब दिल्ली आया था तो, महीने- दो महीने में ही नोएडा का पानी जहर लगने लगा था। पता चला कि हमारा एक्वागार्ड यहां के जहरीले पानी को साफ नहीं कर पा रहा है। हेमामालिनी और उनकी दो बेटियों के भरोसे मैंने केन्ट की RO (REVERSE OSMOSIS) मशीन लगवा ली। भरोसा काम आया और सचमुच एकदम बोतलबंद पानी जैसा बढ़िया पानी पीने को मिलने लगा।

कुछ दिन तो अच्छा लगा लेकिन, बेहद संवेदनशील ये मशीन वैसे तो, हर दूसरे तीसरे महीने पानी के कम बहाव या फिर टंकी में पानी खत्म होने से कुछ न कुछ मुश्किल बढ़ाने लगी। उस पर एक बोतल पानी भरने पर RO सिस्टम बहुत देर तक पानी बहाता रहता। अभी एक दिन मैंने एक बोतल पानी निकालने के बाद बर्बाद होने वाले पानी को बोतल में नापा तो, पता लगा कि हर एक लीटर शुद्ध पानी के लिए हमारे घर में केन्ट मशीन की वजह से करीब 5 लीटर पानी बह जाता है।

अब मजबूरी ये है कि नोएडा में रहते हुए परिवार का स्वास्थ्य ठीक रखना है तो, यही पानी पीना पड़ेगा क्योंकि, सप्लाई का जहरीला पानी तो, हलक से नीचे उतरने से रहा। लेकिन, इस चक्कर में कितना पानी कम होता जाएगा इस अपराध का भागी मैं और हमारे जैसे ज्यादातर नोएडा में रहने वाले बन रहे हैं। और, फिलहाल इससे मुक्ति के कोई आसार नहीं हैं। ग्रोथ, GDP जैसे शब्दों से सरकार अकसर ये बताती रहती है कि भारत बड़ी तरक्की कर रहा है लेकिन, इन बड़े-बड़े वायदों के बीच दाना-पानी जैसी सबसे बुनियादी जरूरत ही नहीं पूरी हो रही है। दाना महंगाई के मारे हलक से नीचे जाते कड़वाता है। पानी इतना जहरीला हो गया है कि हलक से नीचे जाते कड़वाता है। उस पर सरकारें तो बस प्रतीकात्मक अभियानों के तामझामी प्रचार से ही दुनिया बचा लेने का मंसूबा संजोए हैं।

10 comments:

  1. समस्या बड़ी है ।

    ReplyDelete
  2. सरकार तो सिर्फ तामझामी प्रचार से ही अपने कर्त्‍तव्‍यों की इतिश्री कर ले रही है। पानी वाली बात ही तालाबों पर भी लागू होती है। जितने नए तालाब खोदे जा रहे हैं, उससे कहीं काफी अधिक पुराने तालाब व आहर पाटे जा रहे हैं।

    ReplyDelete
  3. आप एकदम सही कह रहे हैं,जल्दी ही इसका विकल्प कुछ सोचना होगा वर्ना दस गुना पानी की बर्बादी तय है.

    ReplyDelete
  4. हेमामालिनी वाला तो हमने भी ले रखा है - तसल्ली के लिये!

    ReplyDelete
  5. हम तो जी चांदनी चोक की लाजपत राय मार्केट से ले आये थे ,ये ro system ,हेमामिलानी जी १५००० में दे रही थी वह ६००० में मिल गया ,बढिया काम कर रहा है

    ReplyDelete
  6. मेरे दफ्तर में जो आर ओ लगा है वह चौबीसों घंटे चलता है और रोज़ सैकड़ों लीटर पानी नाली में बहा देता है.

    ReplyDelete
  7. इस मामले में हेमा मालिनी पर कोई केस नहीं बनता है क्या?:)

    ReplyDelete
  8. आऱ ओ तो नही है हमारे पास एक्वा गार्ड का िनोवा है और अच्छा काम कर रहा है । पानी कहीं बहता दिखाई तो नही देता । पर आपकी बात सही है सरकार नें दिखावे के लिये पर्यावरण मंत्रालय बनाया है पर माइनिंग और जंगल कटाई जोरों से जारी है ।

    ReplyDelete
  9. निशांत मिश्र की बात का जबाब खोज रहे हैं।

    ReplyDelete

शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...