दुनिया को बचाने की तथाकथित अर्थ आवर मुहिम में भारत भला कैसे पीछे रहता। और, दिल्ली-मुंबई हमेशा की तरह ऐसी प्रतीकात्मक मुहिम में इस बार भी देश में सबसे आगे रहे। कम से कम इलेक्ट्रॉनिक-प्रिंट मीडिया के जरिए तो ऐसा ही दिखा। हमेशा ही ऐसा दिखता है। लेकिन, मैं मीडिया में होने, जागरूक होने और दिल्ली से सटे दिल्ली जैसे ही नोएडा शहर में रहने के बावजूद इस अभियान से खुद को जोड़ नहीं सका।
मैंने 27 तारीख को साढ़े आठ बजे से साढ़े नौ बजे के दौरान एक भी बत्ती नहीं बुझाई। बल्कि, IPL भी देख रहा था। वैसे आमतौर पर हमारे घर में जिस कमरे में हम होते हैं या जहां जरूरत होती है वहीं की बिजली जल रही होती है। ये बचपन से आदत मिली है। इलाहाबाद से मुंबई, दिल्ली पहुंच जाने के बाद भी ये आदत बची हुई है। शायद इसीलिए मुझे ज्यादा चिढ़ हो रही थी इस भेड़ियाधसान आयोजन से। कुछ चैनलों ने तो अपने न्यूजरूम में अंधेरा करके गजब का तिलिस्म तैयार किया था।
लेकिन, ये अर्थ आवर कितना बड़ा ढकोसला था। इसका अंदाजा मुझे तब लगा जब मैंने ये अंदाजा लगाने की कोशिश की कि आखिर दुनिया भर में पिछले तीन सालों से चल रही इस मुहिम में आखिर कितनी बिजली बची और इससे कितनी धरती बची। आपको आश्चर्य होगा ये जानकर कि अर्थ आवर की अधिकृत वेबसाइट पर भी सबसे प्रमुखता से यही जानकारी फ्लैश हो रही थी कि 4000 से ज्यादा शहर और 120 देशों ने अर्थ आवर अभियान में हिस्सा लिया। कहीं ये जानकारी नहीं दिख रही है कि आखिर इस अभियान से कितनी बिजली बची, कितनी धरती बची।
वेबसाइट पर दुनिया के मशहूर स्थलों शहरों की, रोशनी में और रोशनी बुझाने के एक घंटे दौरान की तस्वीरें गजब चमक रही हैं। खुद इंडिया गेट पर एक घंटे की बत्ती बुझाने के प्रायोजित कार्यक्रम से पहले शानदार रंगारंग समारोह हुआ। अब ये कौन बताएगा कि दुनिया को बचाने की इस मुहिम को प्रचारित करने में धरती को कितने जख्म मिले हैं। और, ज्यादा आंकड़े लिखने का कोई मतलब नहीं है बस इतना बता दे रहा हूं कि पिछली बार इस दिखावटी बिजली बचाओ अभियान में दिल्ली में करीब 700 मेगावॉट बिजली बची थी। इस बार ये घटकर 250 मेगावॉट रह गई।
साफ है धरती को बचाना है तो, रोज की आदतें सुधारनी होंगी। एक घंटे की बिजली बुझाना भारत जैसे देश में तो वैसे भी किस काम का जहां, वैसे ही बिजली करीब 25 प्रतिशत तक कम है। अभी भी हजारों गांवों को बिजली की रोशनी देखने को नहीं मिली है। ऐसे में घंटों बिजली कटौती की मार झेलने वाले लोग एक घंटे के दिखावटी बिजली बचाओ अभियान में शामिल भला क्यों होने लगें। ये विकसित दुनिया का चोंचला है जिसमें सारी दुनिया फंसी है। अर्थ आवर धरती के साथ घटिया मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन, भेड़ियाधसान के युग में कुछ हटके कहे-सोचे कौन।
सत्यवचन
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अभिनन्दन:
आर्यभटीय और गणित (भाग-2)
SAHEE KH RHE HAIN.
ReplyDeleteपुरे उत्तर प्रदेश मैं वैसे ही २४ घंटे में से १६ घंटे बिजुली देवी के दर्शन होते हैं। और आप कह रहे हैं की अर्थ आवर मैं बत्ती बुझा के रखो कमल की बात है। उत्तर प्रदेश मैं तो रोज अर्थ आवर मनाया जाता है।
ReplyDeleteKAMAL KO KAMAAL PADHA JAYE.
ReplyDeleteupar se bachhan pariwar ka natak aur.
ReplyDeleteवही ऊपर वाली टिपण्णी करने मैं भी आया था. जब वैसे ही बिजली नहीं रहती तो क्या बुझायें :)
ReplyDeleteयह एक सांकेतिक मिशन था -आपने नहीं बुझाई तो कोई बात नहीं -इश्वर न करें आपकी बत्ती कभी गुल हो !
ReplyDeleteaadmi ek bhed hai....har taraf relampel hai...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबिहार में मेरे गांव ने इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 24 घंटे बिना बिजली के रहे, बिना किसी हो-हल्ला के। ये एक दिन की बात नहीं है... सालों से गांववाले ऐसे ही हैं। मेरे गांव में 21वीं सदी के दूसरे दशक तक बिजली नहीं पहुंची है। इस अर्थ-अनर्थ आवर की तो ऐसी की तैसी।
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