Monday, January 13, 2025

भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है आम आदमी पार्टी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी



भारत में राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगना कोई नई बात नहीं है। कई नेता भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में न्यायालय से दोषी भी साबित हुए। कई नेताओं ने अच्छी-खासी सजा भी काटी। कई बार भारत में सरकारें भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर परिवर्तित होती दिखीं। यूपीए की पूरी सरकार ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरी रही, लेकिन भारतीय राजनीतिक इतिहास में शायद ही कभी हुआ हो कि, किसी राजनीतिक दल की नींव ही भ्रष्टाचार से मजबूत की गई हो। ऐसा पहला और अब तक का अकेला उदाहरण है, दिल्ली में एक दशक से अधिक समय से राज कर रही आम आदमी पार्टी। दिल्ली में यूपीए शासन के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के ऐसे मामले दिख रहे थे कि, आम जनता उससे बुरी तरह से त्रस्त दिखने लगी थी। देश की आम जनता को लगने लगा था कि, इस तरह से भारत सरकार चलती रही तो भारत बर्बाद हो जाएगा। देश में निवेशक आने से डरने लगे थे। इसी दौरान इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन को देश के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी से पढ़कर निकले और बाद में भारतीय राजस्व सेवा के लिए चयनित अरविंद केजरीवाल ने ऊबे आम आदमी के नाम पर आम आदमी पार्टी बनाई तो आम आदमी को लगा कि, अब भ्रष्टाचार से मुकाबले के लिए राजनीति में यह ताजी हवा के झोंके की तरह आया है। आम आदमी को लगा कि, आम आदमी पार्टी सत्ता में आएगी तो इसके नेता नोटों की गड्डियों के बिस्तर पर नहीं सोएंगे। पशुओं का चारा भ्रष्टाचार करके नहीं खा जाएंगे। नेताओं पर गंभीर भ्रष्टाचार के मामले होते हुए भी बरसों न्यायालयों में मामला लंबित रहेगा और नेताजी विधायक, सांसद और मंत्री, मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। कुछ ऐसे ही सपने दिखाकर अरविंद केजरीवाल और उनके साथ आम आदमी पार्टी के नाम से जनता के सामने आए थे। अरविंद के साथ कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, गाकर हिंदी में सर्वाधिक कमाई वाला कवि कुमार विश्वास था तो बरसों से मुँह चुनियाकर चुनावी गणित समझाने वाले एक राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव थे। जनहित याचिकाओं के जनता के मुद्दे उठाने वाले वकील के तौर पर चर्चित प्रशांत भूषण थे। टीवी की एंकर शाजिया इल्मी थी और टीवी के एक पत्रकार सौम्य छवि वाले मनीष सिसोदिया थे। सीएनएन आईबीएन नेटवर्क के अंग्रेजी और हिंदी चैनलों के संपादक राजदीप सरदेसाई और आशुतोष अपने चैनल पर भारत में अरविंद केजरीवाल के तौर पर आई भ्रष्टाचार विरोधी क्रांति को और धार दे रहे थे। हाथ मलते पुण्य प्रसून बाजपेयी हाथ मलते क्रांतिकारी, बहुत ही क्रांतिकारी बता रहे थे। जंतर-मंतर पर रवीश की रिपोर्ट जैसे ही अंदाज में रवीश कुमार भाषण देने भी चले आए थे। एडमिरल एल रामदास थे तो कर्नाटक के न्यायाधीश संतोष हेगड़े भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ही दम देते दिख रहे थे। ऐसा लग रहा था कि, देश के सारे ईमानदार मिलकर अब नेताओं को परिदृष्य से ही बाहर कर देंगे। यह भी दिख रहा था कि, अरविंद की आम आदमी पार्टी में भरोसा जताने वाले लोग तब तक राजनीति में सीधे तौर पर नहीं थे। रामलीला मैदान के अन्ना आंदोलन के लिए कहा गया कि, इस आंदोलन को लेफ्ट-राइट-सेंटर, हर तरह के विचार रखने वालों का समर्थन मिल रहा था। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले अलग-अलग ओपिनियन पोल यह बताने लगे थे कि, अरविंद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली में बड़ी शक्ति बनने जा रही है। हालांकि, लगभग सभी ओपिनियन पोल यह भी संकेत दे रहे थे कि, अरविंद केजरीवाल सरकार नहीं बनाने जा रहे हैं। लगातार 15 वर्ष की सत्ता के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब होने जा रहा है, इसका भी अनुमान शायद ही कोई लगा रहा था। टाइम्स नाऊ और सी वोटर का ताजा ओपिनियन पोल कह रहा था कि दिल्ली में कांग्रेस-बीजेपी में कड़ा मुकाबला है। साथ ही इसमें ये भी बात सामने रही थी कि अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी बड़ी ताकत बनकर रही है। इस सर्वे में बीजेपी को 25, कांग्रेस को 24 और AAP को 18 सीटें मिल रही थी। साफ दिख रहा था कि, दिल्ली विधानसभा में किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने वाला था और आप दिल्ली के लोगों को पसंद रही था। काफी हद तक ये ओपिनियन पोल सही दिख रहा था। सच्चाई यही थी कि, दिल्ली को अरविंद केजरीवाल लुभा रहे थे। अरविंद केजरीवाल मुझे निजी तौर पर बहुत लुभाते थे। 13 दिन के अन्ना आंदोलन के दौरानपार्टी बनाने के बाद भी। इस लुभाने में ही अरविंद केजरीवाल की पार्टी के मूल में छिपा भ्रष्टाचार शामिल है। देश का कोई भी राजनीतिक दल हो, कितने भी बुरे काम उसके खाते में हों, लेकिन बुनियादी तौर पर, सैद्धान्तिक तौर पर कभी भी अपने मूल सिद्धांतों को एकदम से तिलांजलि नहीं दी। अरविंद केजरीवाल की पार्टी अकेली पार्टी थी जो आम आदमी के नाम पर बनी थी और ईमानदारी पर उस पार्टी की बुनियाद मजबूत की जा रही थी। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि, अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने आम आदमी और ईमानदारी में उसके विश्वास के साथ ही छल किया था, यह बात आज पूरी तरह से प्रमाणित हो रही है।


2013 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर उसे निगल लिया। कमाल की बात यह थी कि, जनता के सामने किया गया वादा और कसम अरविंद केजरीवाल ने तोड़कर सत्ता हासिल की थी, लेकिन घनघोर भ्रष्टाचार और नेतृत्वहीनता के संकट से गुजर रही कांग्रेस को अरविंद की राजनीतिक बेईमानी का नुकसान उठाना पड़ा था। 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी का अपना ओपिनियन पोल भी आम आदमी पार्टी को 38-50 सीटें ही दे पा रहा था। भाजपा के आंतरिक सर्वे में 36 सीटों के साथ भाजपा सरकार बना रही थी। इंडिया टुडे ओआरजी का ओपिनियन पोल भी 36 सीटों के साथ ही भाजपा की सरकार बनने का अनुमान लगा रहा था, लेकिन सभी सर्वे के अनुमान कांग्रेस का बुरी हालत का अंदाजा लगाने में चूक गए थे। 32 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे पार्टी तो बन गई, लेकिन सरकार नहीं बना पाई। डॉक्टर हर्षवर्धन जैसा सौम्य चेहरा था। भाजपा ने कोई तोड़फोड़ नहीं की और अरविंद केजरीवाल ने सबसे बड़ी राजनीतिक बेईमानी करते हुए कांग्रेस के 8 विधायकों का समर्थन लेकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। यह बात इतिहास में दर्ज है कि, अरविंद की पार्टी 28 विधायक ही जीते थे। कांग्रेस नेता अजय माखन अब इसे कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती बता रहे हैं, लेकिन राजनीतिक जीवन हो या निजी जीवन, टाइम मशीन जैसी कोई व्यवस्था तो होती नहीं है कि, पीछे जाकर अनी गलतियां सुधारी जा सकें। इससे भी बड़ा सच यह है कि, कांग्रेस ने लगातार गलतियां ही कीं और उस अरविंद केजरीवाल को हर कठिन समय में बड़ा होने में मदद की, जिस समय कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस ले सकती थी, लेकिन राहुल गांधी जैसा अपरिपक्व नेता कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के बजाय सिर्फ अपनी राजनीति बचाने के चक्कर में अरविंद को मजबूत करता रहा। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला, जब दिल्ली सेवा अधिनियम पर कांग्रेस पार्टी अपने स्थापित रुख के विपरीत जाकर कांग्रेस के साथ खड़ी हो गई। कुछ समय बीतने पर कांग्रेस का कोई नेता अंतरात्मा की आवाज सुनेगा तो दिल्ली सेवा अधिनियम और लोकसभा चुनाव 2024 में अरविंद केजरीवाल को दिए समर्थन को भी कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल बताएगा। एक आंदोलन जिसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ सामूहिक आस्था बसी थी उसके आधार पर भ्रष्टाचार की लड़ाई के सबसे बड़े चेहरे अन्ना हजारे को किनारे करके अगर अरविंद इतनी जल्दी सत्ता में आना देश के लिए ठीक नहीं होगा, ऐसा मुझे लगने लगा था। छात्र राजनीति में भी इतनी तेजी से राजनीतिक उबाल से सत्ता पाने वालों का हश्र देश देख चुका है। असम गण परिषद देश में कितने लोगों को याद होगा पता नहीं। इसी तरह एक झटके में अपने-अपने विचारों को तिलांजलि देकर एक जनता पार्टी बनाकर इंदिरा की तानाशाही से लड़ने का भी हश्र देश देख चुका है। इसलिए जरूरी था कि अरविंद केजरीवाल राजनीति करते, संघर्ष करते और अच्छे से राजनीति करके राजनीति अच्छी करने का माध्यम बनते, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपने जीवन में कहीं भी टिककर कार्य नहीं किया। अरविंद केजरीवाल ने एक हवा-हवाई दिल्ली मॉडल दिल्ली वालों के मन में बसा दिया। शीला दीक्षित के समय में शानदार तरीके बुनियादी ढांचे बनती देखने वाले दिल्ली के लोग भी अरविंद केजरीवाल के झांसे में फँस गए थे। 2015 में अरविंद केजरीवाल के साथ कांग्रेस का लगभग पूरा मतदाता समूह चला गया। कांग्रेस के खाते में सिर्फ 10 प्रतिशत मत ही बचे थे। इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का यह अनुमान एकदम गलत है कि, यह वोट अरविंद केजरीवाल को कट्टर ईमानदारी की वजह से मिले थे। दरअसल, यह मतदाता भारतीय जनता पार्टी और मोदी विरोध वाला मतदाता था, जिसे कांग्रेस इतनी कमजोर दिख रही थी कि, उसने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर दिल्ली में नरेंद्र मोदी का विरोध किया और एक वर्ग वह भी था जो नरेंद्र मोदी के साथ केजरीवाल को भी उम्मीद से देख रहा था। वही वर्ग है जो दिल्ली लोकसभा में भाजपा को सात की सात सीटें और दिल्ली विधानसभा में विधानसभा में केजरीवाल को प्रचंड बहुमत देता रहा। मोदी विरोधी वर्ग में सबसे बड़ा हिस्सा मुसलमानों का था। मुसलमान कैसे मोदी विरोध में केजरीवाल के साथ खड़ा हुआ था, इसका अनुमान इस तथ्य से और अच्छे से लग जाता है कि, 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा को 282 लोकसभा सीटें मिलीं तो 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास कुल मत 9.7 प्रतिशत ही रह गया। कांग्रेस के मतों में 14.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी। 2015 में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली तो इसका सीधा सा अर्थ था कि, दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस पर भरोसा समाप्त होता जा रहा था और जब 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा 303 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब हो गई तो दिल्ली के मुसलमान ने कांग्रेस का हाथ एकदम से छोड़ दिया। कांग्रेस के पास सिर्फ चार प्रतिशत मत रह गए थे। 2020 में कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल को इतनी शक्ति दे दी थी जबकि, भारतीय जनता पार्टी ने अपना मत प्रतिशत बढ़ाकर लगभग 39 प्रतिशत कर लिया था। कांग्रेस थोड़ा भी टिकी रह पाती तो दिल्ली विधानसभा में भले ही आम आदमी पार्टी के विधायक सरकार बनाने की संख्या प्राप्त कर लेते, लेकिन विधानसभा  सत्रों का दुरुपयोग केजरीवाल कर पाते। यह तथ्य जानना इसलिए आवश्यक है कि, ईमानदार केजरीवाल के भ्रम में उनके साथ खड़े एक बड़े वर्ग का केजरीवाल से मोहभंग हो चुका था। बड़ी मुश्किल यह थी कि, कांग्रेस में तो नेतृत्व बचा था, कार्यकर्ता और ही अरविंद केजरीवाल के सामने पूरे मन से लड़ने की इच्छा। भारतीय जनता पार्टी का भी बड़ा संकट यह था कि, जबरदस्त कार्यकर्ता, संगठन होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल से भिड़कर लड़ने वाला नेता नहीं था। अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक बेईमानी के मूल में एक बात यह भी छिपी थी कि, दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। आधे-अधूरे मन से लड़ रही कांग्रेस और मजबूत नेतृत्व के बिना लड़ रही भाजपा अरविंद के लिए सोने पर सुहागा जैसा हो गया था। अरविंद केजरीवाल ने मॉडल के तौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य को चुना। इसमें भी चतुराई दिखाते हुए कुछ प्राथमिक विद्यालयों को सुधारा, पेंटिंग कराई, नई कुर्सी-मेज लगवाए और कुछ सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में स्वीमिंग पूल आदि सुविधाएं दे दीं। स्वास्थ्य करे नाम पर मोहल्ला क्लीनिक का विचार भी राजनीतिक बेईमानी की वजह से ही था। कम लागत में मॉडल के तौर पर इसका प्रचार वॉशिंगटन पोस्ट से लेकर अल जजीरा तक कराने में जितनी रकम खर्च हुई होगी, उतने में ऐसे कुछ और विद्यालयों में व्यवस्था दुरुस्त हो जाती या मोहल्ला क्लीनिक खुल जाते। मोहल्ला क्लीनिक की असली पोल तब खुली, जब चाइनीज वायरस कोविड के समय में मोहल्ला क्लीनिक इसके वायरस को और तेजी से फैलाने का अड्डा बन गए। केजरीवाल की सरकार ने पूर्वांचल के लोगों को बसों में भरकर आनंद विहार तक पहुंचा दिया। शिक्षा व्यवस्था की भी पोल खुली, जब पता चला कि, 9वीं और 11वीं में बच्चों में फेल कर दिया जाता है, जिससे सरकारी विद्यालयों का परिणाम अच्छा दिखे। 

अरविंद केजरीवाल राजनीतिक बेईमानी के नित नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने पर दिया गया उनका शपथपत्र दिल्ली वालों को चिढ़ा रहा है, लेकिन अरविंद केजरीवाल राजनीतिक बेईमानी की नई पैकेजिंग करके उसे कट्टर ईमानदारी के तौर पर बेचने के उस्ताद हैं। दिल्ली विधानसभा के 2013 के चुनावों के दौरान योगेंद्र यादव के सर्वे के आधार पर अरविंद सुबह से शाम तक दिल्ली के एफएम रेडियो पर ये बताते रहते थे कि, 70 में से 47 सीटें आप को मिल रही हैं। एफएम रेडियो पर ही एक और विज्ञापन आता था। अरविंद केजरीवाल रेडियो पर जब कहते हैं कि, फूल वाला मुझे मिला और उसने बताया कि उसकी दुकान से फूल लेने वाले 10 में से 8 AAP को वोट देंगे। दिल्ली के बड़े वर्ग को यह विज्ञापन चिढ़ाता था, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक भ्रष्टाचार करके फूल वाले के नाम पर दिल्ली वालों को FOOL बना दिया। अब ये बताइए कि ये कौन सा फूल वाला है। और किसी फूल वाले की दुकान पर 60 दिनों के चुनाव को भी मान लें तो कितने लोग फूल लेने पाएंगे। रोज 30 लोग भी फूल लेने आते हों तो 1800 लोग ही हुए। उसमें भी सारे ये बताएंगे कि वो किस पार्टी को वोट देंगे या फिर फूल लेकर निकल लेंगे। अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण एमसीडी चुनाव के समय देखने को मिला जब पूरी बेशर्मी से अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, यमुना की सफाई की बात 2025 विधानसबा चुनावों के समय करिएगा। केजरीवाल ने दिसंबर 2022 में भी पूरी ठसक के साथ कहा कि, अगले वर्ष छठ पर सपरिवार यमुना स्नान करूंगा। एमसीडी चुनाव में सिर्फ गाजीपुर के कूड़े के पहाड़ पर कूड़ा पर्यटन करके अरविंद केजरीवाल ने 15 वर्ष से काबिज भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष में धकेल दिया। जैसे यमुना नदी पहले से अधिक जहरीली हो गई, वैसे ही गाजीपुर और दिल्ली के दूसरे कूड़े के पहाड़ भी और बड़े, बीमारी फैलाने वाले हो गए हैं। अरविंद केजरीवाल की राजनीति बेईमानी, भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण उनके लिए बना आलीशान मुख्यमंत्री निवास भी है। दो साइज बड़ी शर्ट पहनकर अरविंद दिल्ली के झुग्गी-ऑटोवालों को लुभाने वाले और दूसरे दिल्ली वालों को नई ईमानदार राजनीतिक व्यवस्था की उम्मीद जगाने वाले केजरीवाल अब शायद ही लुभाते हैं बल्कि, सच तो यह है कि, केजरीवाल दिल्ली के उस वर्ग को चिढ़ाते दिखते हैं जो असल दिल्ली है। या उनको जो असल दिल्ली बनना चाहते हैं। शीला दीक्षित ने कहा था कि, दिल्ली में कमाई ज्यादा है, इसलिए महंगाई भी ज्यादा है। शीला दीक्षित की खूब आलोचना हुई, लेकिन जरा सोचिए कि, राजनीतिक बेईमान अरविंद केजरीवाल ताल ठोंककर कह रहा है कि, हमारी दी हुई रेवड़ियों की वजह से दिल्ली की जनता को महंगाई से राहत मिल जाती है। कल्पना करिए कि, दिल्ली आने वाले इसीलिए आते हैं कि, उनकी कमाई बढ़े। उनको अरविंद केजरीवाल ने रेवड़ी की लत लगा दी है। राजनीति में सत्ता प्राप्त करने के बाद राजनीतिक दलों की कोशिश यह होनी चाहिए कि, हर हाल में नागरिक को सशक्त, समृद्ध बनाए, लेकिन केजरीवाल ने उल्टा कर दिया। केजरीवाल नागरिकों को कमजोर कर रहे हैं और इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर बता रहे हैं। नीली वैगन आर दिखाकर महंगी एसयूवी में चलना, छोटे से फ्लैट में काम चलाने की बात कहकरशीशमहलबना लेना, चल जाता, लेकिन केजरीवाल ने ईमानदार राजनीति के आवरण में राजनीतिक बेईमानी को चरम पर पहुंचा दिया है। सर्वाधिक प्रति व्यक्ति औसत आय वाली दिल्ली को रेवड़ी पर जीवन जी रही जनता में बदल दिया है। देश में ऐसे संदेश जा रहा है कि, दिल्ली के लोगों को अच्छी सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य से कोई वास्ता नहीं है, उनके लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी ही चाहिए। कमाल की बात यह भी है कि, दिल्ली वालों को शीला दीक्षित के समय में भी लगभग 90 प्रतिशत सब्सिडी पर पानी मिल रहा था। अब भी पानी साफ नहीं हुआ। टैंकर माफिया पहले से शक्तिशाली हुआ है। दिल्ली आकर कोई भी फटेहाल नहीं रहना चाहता या कहें कि, दूसरे राज्यों से लोग दिल्ली आते ही इसीलिए हैं कि, उनकी आमदनी बेहतर हो, जीवनस्तर बेहतर हो। अरविंद केजरीवाल ने रेवड़ी को ऐसा स्थापित कर दिया है कि, रेवड़ी कल्चर के खिलाफ देश को जगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कहना पड़ा कि, कोई भी योजना बंद नहीं होगी। राजतीनिक भ्रष्टाचार में  केजरीवाल ने नागरिकों को हिस्सेदार बना दिया है। यह ठीक शराब के नशे के जैसा ही है कि, शराब पीने वाले को वही अच्छा लगता है दो शाम को दो पैग पीने के लिए दे दे। भारतीय राजनीति का ऐसा पतन कभी नहीं हुआ, जितना पतन केजरीवाल की लगभग डेढ़ दशक से कम की राजनीति ने कर दिया है। शायद यही वजह है कि, भारतीय जनता पार्टी को भी यह लग रहा है कि, इस रेवड़ी वाली लत को छुड़ाने के लिए भी पहले जनता को यह समझाना पड़ेगा कि, मुफ्त की रेवड़ी बुरी चीज है और इसके लिए सत्ता में आना अति आवश्यक है। किसी भी लोककल्याणकारी राज्य में शासन का दायित्व होता है कि, कमजोर लोगों को योजनाओं के जरिये या दूसरे जरिये से सशक्त करे, लेकिन जनता के ही पैसे से जनता को मुफ्त की रेवड़ी बांटना किसी को उसकी कमाई से ही शराब खरीदवाकर देना है और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल यही कर रहे हैं। पूरे देश में अरविंद केजरीवाल यही करना चाह रहे हैं। जहरीली यमुना, कूड़े का पहाड़ और कूड़ा बन गई दिल्ली, शीशमहल, शराब घोटाला या दूसरे घोटाले सब अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे हैं, लेकिन नागरिकों को भ्रष्ट करके अरविंद केजरीवाल लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। सत्ता में रहते इमामों को तनख्वाह देना और अब जाती सत्ता में पुजारियों और ग्रंथियों के लिए तनख़्वाह का ऐलान उसी राजनीतिक भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाने की कोशिश है। अरविंद  हताश से दिख रहे हैं, हताशा में उनके एलान उनकी खराब होती स्थिति को ही दिखा रहे हैं। जाट आरक्षण का मुद्दा उठाना हो या उत्तर प्रदेश-बिहार के लोगों को फर्जी मतदाता बताना हो, अरविंद केजरीवाल राजनीतिक भ्रष्टाचार करते विवेक शून्य सा व्यवहार कर रहे हैं। अब दिल्ली की जनता को तय करना है कि, भारतीय राजनीति के सबसे बड़े भ्रष्टाचार आम आदमी पार्टी पर लगाम लगाएगी या नहीं। 

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