Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
राहुल गांधी पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप भारतीय जनता पार्टी के लोग अकसर लगाते रहे हैं, लेकिन देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के लिए यह बेहद चिंता की बात है कि, देश का बहुतायत भारतीय अब यह मानने लगा है कि, राहुल गांधी विचार से राम विरोधी और राष्ट्र विरोधी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने कहा कि, हमने नरेंद्र मोदी का आत्मविश्वास फाड़ दिया है। देश की जनता ने उन्हें बड़ा अवसर दिया था। राहुल गांधी की कांग्रेस को देश ने इतनी सीटें दीं कि, राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बन गए, लेकिन सदन में शिव जी का चित्र लेकर जाने से लेकर अभय मुद्रा का गलत वर्णन करना दिखा रहा था कि, राहुल गांधी को हिन्दू धर्म की बहुत सतही समझ है। इसके बावजूद बहुत से लोगों को लगता रहा कि, शायद राहुल गांधी की समझ कुछ बेहतर हो जाए, लेकिन अब उन्होंने एक साथ राम और राष्ट्र विरोधी होने की अपनी छवि को और पुख्ता कर लिया है।
कांग्रेस के लिए नई शुरुआत का अवसर था। कांग्रेस के नये बने मुख्यालय के उद्घाटन का अवसर था। इस अवसर पर कांग्रेस को नियमित तौर पर रिपोर्ट करने वाले रिपोर्टरों को भी कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया था। यह अलग बात है कि, इस अवसर पर राहुल गांधी ने जो बोल दिया, वही देश में सबसे बड़ी चर्चा का मुद्दा बन गया है। वैसे तो नई शुरुआत के अवसर पर कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की इतनी चर्चा से कांग्रेसियों को प्रसन्न होना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस मुख्यालय के उद्घाटन के अवसर पर राहुल गांधी के बोल ने कांग्रेसियों को चिंता में डाल दिया है। देश के बहुतायत लोग लगातार राहुल गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस को खारिज करते ही रहे हैं। दो बार लगभग 50 लोकसभा सांसद जीतने में कांग्रेस को पसीने छूट गए। इस बार सारी मशक्कत करके भी 100 का आंकड़ कांग्रेस नहीं छू सकी। अगर यह उपलब्धि है तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी को जाता है। दरअसल, राहुल गांधी जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उस राजनीति को देश का एक बड़ा वर्ग भारत विरोधी मानता है और कांग्रेस मुख्यालय के उद्घाटन के अवसर पर राहुल गांधी के बोल ने इस धारणा और पक्का कर दिया है। राहुल गांधी ने कांग्रेस नेता और कार्यकर्ताओं को समझाते हुए कह दिया कि, अगर आप समझ रहे हैं कि, हमारी लड़ाई और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है तो आप गलत समझ रहे हैं, हमारी लड़ाई सीधे तौर पर ‘इंडियन स्टेट’ से हैं। राहुल गांधी लंबे समय से जिस तरह की भारत विरोधी भाषा बोल रहे थे, उसका यह सामान्य विस्तार भर नहीं था। यह बोल उसका चरम था। राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर जाकर बोला कि, भारत में लोकतंत्र समाप्त हो रहा है और अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देश बेखबर हैं। राहुल गांधी ने विदेशी दौरे में चीन के मॉडल की जमकर प्रशंसा की थी। राहुल गांधी विदेशी दौरे पर भारत विरोधी अमेरिकी सांसद इल्हान ओमर से मिलते हैं और स्पष्ट तौर पर दिख रही राहुल गांधी की इन भारत विरोधी हरकतों को कांग्रेस पार्टी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राहुल गांधी के कहे को गलत तरीके से समझा गया, जैसे कुतर्क देकर बचाव करने की कोशिश करती रही। राहुल गांधी हिन्दी भाषा में प्रवीण नहीं हैं। उनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है। राहुल गांधी अंग्रेजी भाषा में ही सोचते हैं और सहज तरीके से बोल पाते हैं, इसलिए मैं उन उदाहरणों को दे रहा हूं, जहां राहुल गांधी अंग्रेजी में ही बोल रहे थे। इसका सीधा सा अर्थ हुआ कि, सत्ता से पंद्रह वर्षों के लिए बाहर हो चुकी कांग्रेस के नेता को लगता ही नहीं है कि, नरेंद्र मोदी से लड़कर जीतने का अब कोई और रास्ता बचा भी है। जिस तरह की भाषा राहुल गांधी की है, ऐसी ही भाषा में देश के अलग-अलग हिस्सों में हथियारबंद क्रांति की बात करने वाले नक्सली आतंकवादी बोलते हैं। नक्सली भी यही कहते हैं कि, हमारी जल-जंगल-जमीन पर सरकार ने कब्जा कर लिया है और बंदूक चलाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है क्योंकि, हमारी लड़ाई किसी पार्टी से नहीं ‘इंडियन स्टेट’ से है। भारतीय नागरिकों को और सुरक्षा बलों को मारने वाले आंतकवादी भी यही कहते हैं कि, हमारी लड़ाई ‘इंडियन स्टेट’ से है। जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी की सिर्फ एक बार महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार रही है, लेकिन आतंकवादी हमेशा ‘इंडियन स्टेट’ से लड़ते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय भी नक्सली ‘इंडियन स्टेट’ से लड़ते रहे। राहुल गांधी इतनी सामान्य सी बात समझ नहीं रहे हैं या फिर उनके दिमाग़ में यह बस गया है कि, नरेंद्र मोदी को हराने के लिए हमने सब करके देख लिया। हर तरह के गंभीर से गंभीर झूठे आरोप लगाकर देख लिए। भ्रष्टाचार में नरेंद्र मोदी को खींचने की कोशिश से लेकर, संविधान और दलित-पिछड़ा आरक्षण समाप्त करने जैसा झूठ बोलने तक सब कर लिया। इस सबके बावजूद भारत की बहुतायत जनता का विश्वास नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी और समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर है। राहुल गांधी पर देश की बहुतायत जनता का विश्वास न बन पाने के तीन प्रमुख कारण दिखते हैं। पहला- कांग्रेस पार्टी के सरकार में रहते काम। दूसरा- नरेंद्र मोदी का विरोध करते देश विरोध तक जाने में भी राहुल गांधी का परहेज न करना और तीसरा- राम के देश में राम भक्तों की आस्था को अपमानित करने की लगातार कोशिश। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने कहा कि, 1947 में हमें राजनीतिक स्वतंत्रता मिली, अब हम अपने मन का कर सकते थे। भागवत ने आगे कहा कि, अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश को सच्ची स्वतंत्रता इस दिन मिली थी। इसमें कोई भी ऐसी बात नहीं थी कि, इस पर राहुल गांधी आक्रामक होते, लेकिन राहुल गांधी को देश का अर्थ गांधी परिवार लगता है। संविधान भी उनको अपने घर की कोई किताब जैसा लगता है जबकि, भारत का संविधान बनाने में उस समय के देश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले विद्वानों की भागीदारी है और प्रारूप समिति के अध्यक्ष के तौर पर डॉ भीमराव आंबेडकर ने उस संविधान को अंतिम रूप दिया। राहुल गांधी इसे स्वीकारना ही नहीं चाहते कि, उनके परिवार के अलावा किसी और को भारत की सत्ता मिल सकती है या मिलनी चाहिए। यही वजह है कि, किसी और को सत्ता मिलने से छटपटाए राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से लड़ने में हारकर, हताश होकर भारत विरोध तक चले जाते हैं। इसका अधिक चिंताजनक पक्ष यह है कि, भारतीय लोकतंत्र की अवधारणा कमजोर हो रही है। भारत संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश लगातार करते राहुल गांधी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि, भारत की बहुतायत जनता उनको राम विरोधी और राष्ट्र विरोधी के तौर पर चिन्हित करने लगी है। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह अच्छी बात नहीं है कि, मुख्य विपक्षी पार्टी की पहचान इस तरह से होने लगे। राहुल गांधी को सब कुछ विदेशी ही अच्छा लगता है। भाषा से लेकर जीवन व्यवहार तक। कई बार ऐसा भी लगता है कि, बीच-बीच में राजनीतिक मजबूरियों की वजह से राहुल गांधी हिन्दू पहचान धारण करते रहे, लेकिन अब उन्होंने तय कर लिया है कि, इससे उनको राजनीतिक लाभ नहीं होने वाला, इसलिए उन्होंने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से लेकर हर हिन्दू आस्था प्रतीक को उसी तरह से अपमानित करना तय कर लिया है। ऐसा नहीं होता तो राहुल गांधी भारत विरोधी बात में राम विरोध को भी शामिल करते हुए यह न कहते कि, संघ प्रमुख मोहन भागवत किसी दूसरे देश में होते तो उनको ऊपर देशद्रोह का मामला चलता और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाता। हालांकि, राम भक्त होने पर और राम मंदिर निर्माण की तिथि को सच्ची स्वतंत्रता बताने पर इस्लामिक मुल्कों को छोड़कर शायद ही कहीं जेल जाने का भय हो और इंडोनेशिया जैसे कई इस्लामिक मुल्क भी ऐसे हैं, जहां की पहचान ही राम हैं। वहां का राष्ट्रीय विचार संस्कृत का पंचशील है। वहां का सूत्रवाक्य अनेकता में एकता है। पता नहीं राहुल गांधी की समझ इतने वर्षों से भारत में ही रहने के बाद भारतीय की तरह विकसित क्यों नहीं हो पा रही है।
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