Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
विपक्षी पार्टियों ने सारे अंतर्विरोधों के बावजूद एक साथ मिलकर नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए लड़ना तय कर लिया है। 26 पार्टियों के विपक्षी गठजोड़ ने अपना नाम भी कुछ इस तरह से चुना है कि, नरेंद्र मोदी की लड़ाई “इंडिया” से हो रही है, यह संदेश जाए। राजनीति में प्रतीकों का बहुत महत्व होता है। और, इस लिहाज से विपक्षी पार्टियों के गठजोड़ के नामकरण का संक्षिप्त अंग्रेजी में इंडिया बन जाता है। अब इसे प्रतीकों के लिहाज से महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। अब इसके आगे का प्रतीक से भी महत्वपूर्ण प्रश्न है। वह प्रश्न यह है कि, प्रतीक के साथ कौन सा नेता या चेहरा दिखता है। इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस को संक्षिप्त में इंडिया कह देने से क्या सचमुच यह 26 राजनीतिक दल भारत देश का पर्यायवाची, समानार्थी बन जाएँगे। और, एक प्रश्न यह भी है कि, क्या अब नरेंद्र मोदी का कहा- एक अकेला, सब पर भारी- सटीक नहीं बैठ रहा है। इन्हीं दोनों प्रश्नों का उत्तर 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणामों की दिशा बता देगा। पटना की पहली बैठक में नीतीश कुमार की अगुआई में 12 जून को होने वाली बैठक टल गई थी। वजह, मल्लिकार्जुन खरगे और, राहुल गांधी उपलब्ध नहीं थे। जैसे ही समाचार आया कि, मल्लिकार्जुन खरगे और, राहुल गांधी नहीं आएँगे। कांग्रेस के पुराने गठजोड़ यूपीए के सारे साथियों ने एक-एक करके 12 जून की पटना बैठक से किनारा कर लिया। नीतीश कुमार का खीझना स्वाभाविक था। गठजोड़ की बुनियाद पड़ने से पहले ही कांग्रेस ने अपनी शर्तों को धीरे-धीरे लादना शुरू कर दिया था। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से कांग्रेस को दरकिनार करना इतना किसी दूसरे विपक्षी दल के लिए नहीं था। इसी का लाभ उठाते हुए कांग्रेस पार्टी ने अप्रत्यक्ष दबाव विपक्षी गठजोड़ के दूसरे साथियों पर बनाना शुरू कर दिया है। कर्नाटक चुनावों में जीत भी कांग्रेस की अकेले की ही है। जनता दल सेक्युलर को कांग्रेस ने दूर ही रखा है। और,कांग्रेस को यह भी पता है कि, इसी वजह से ममता बनर्जी और, अरविंद केजरीवाल जैसे घोर कांग्रेस विरोधी भी मन मारकर राहुल गांधी के पीछे खड़े होने को तैयार हो रहे हैं। यही ममता बनर्जी और, अरविंद केजरीवाल अकसर राहुल गांधी को कांग्रेस की सारी कमजोरियों की वजह बताते थे। कांग्रेस पार्टी को असहज रखने के लिए ही आम आदमी पार्टी ने पटना बैठक के पहले और, बाद में अध्यादेश के समर्थन के बाद ही विपक्षी गठजोड़ में शामिल होने की जिद पकड़ ली थी। ममता बनर्जी ने पंचायत चुनावों में विपक्षी गठजोड़ की चर्चा के बीच में भी कांग्रेस को कोई रियायत नहीं दी, लेकिन कांग्रेस यहाँ स्पष्ट है। कांग्रेस चाहती है कि, किसी तरह से कांग्रेस को धुरी बनाकर एक राष्ट्रीय गठजोड़ बन जाए। उसके बाद इस गठजोड़ में से कुछ लोग छोड़कर चले भी जाएँगे तो कोई विशेष अंतर नहीं पड़ने वाला। राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी नहीं कर रहे, लेकिन कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी की छवि मजबूत करने में यही विपक्षी गठजोड़ काम आ रहा है, जिसके पीछे कतार में अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और, दूसरे नेता खड़े हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस के बिना कहे ही विपक्षी गठजोड़ के प्रतीक नाम “इंडिया” के चेहरे के तौर पर राहुल गांधी ही नजर आ रहे हैं। वही राहुल गांधी जो विदेश में जाकर कहते हैं कि, भारत में लोकतंत्र खतरे में है और, अमेरिका-यूरोपीय यूनियन के देश बेखबर हैं। अब खबर यह भी आ रही है कि, विपक्षी गठजोड़ के नाम का संक्षिप्त “इंडिया” बने, इसका सुझाव राहुल गांधी की तरफ से ही आया। पहले आम आदमी पार्टी की तरफ से यही चलवाया गया। कहा गया कि, अरविंद केजरीवाल के सुझाव को सबने माना। फिर आया कि, ममता बनर्जी का सुझाव था और, अब कांग्रेस की तरफ से कुछ ऐसे कहा जा रहा है कि, सुझाव राहुल गांधी का ही था, लेकिन हम श्रेय लेने की होड़ नहीं लगा रहे। पहले प्रश्न का उत्तर स्पष्ट हो गया कि, जिन राहुल गांधी के नाम ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और, अखिलेश यादव जुड़ने को तैयार नहीं थे। जिन राहुल गांधी को अपने से बड़ा नेता मानने को यह तीनों तैयार नहीं थे, अब मजबूरी में ही सही, तीनों को राहुल गांधी को अपना नेता मानना पड़ रहा है। विपक्षी गठजोड़ की बैठक के बाद अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और, उद्धव ठाकरे के अलावा राहुल गांधी के भाषण भी उसी तरह का दृश्य दिखा रहे हैं। राहुल गांधी पहले से भी एक आइडिया ऑफ इंडिया की बात बारंबार करते रहे हैं। उसी को राहुल गांधी दोहरा रहे हैं कि, यह लड़ाई भाजपा और, हमारे बीच नहीं है। यह लड़ाई दो विचारों के बीच है। तो स्पष्ट हुआ कि, एक विचार के नेता, चेहरे के तौर पर राहुल गांधी ही हैं। अब यह चेहरा कितना काम करेगा, चुनाव में तय होगा। राहुल गांधी का आइडिया ऑफ इंडिया विभाजन, विद्वेष की ही बात करते हुए शुरू होता है। चाहे देश में उत्तर दक्षिण के भेद की बात हो, कर्नाटक चुनाव में अमूल के विरोध की बात हो या, विदेशी धरती पर भारत में लोकतंत्र के कमजोर होने की बात कहकर अमेरिका और, यूरोपीय यूनियन के देशों को खबरदार करना हो।
अब दूसरे प्रश्न का उत्तर जानने का प्रयास करते हैं। दूसरा प्रश्न है कि, क्या अब नरेंद्र मोदी का कहा- एक अकेला, सब पर भारी- सटीक नहीं बैठ रहा है। कांग्रेस पार्टी तर्क दे रही है कि, भाजपा को भी 38 दलों का एनडीए बनाना पड़ रहा है। अब एक अकेला सब पर भारी कहां रह गया। हालाँकि, कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत के एक ट्वीट ने इस प्रश्न का उत्तर बखूबी दे दिया है। सुप्रिया ने दोनों बैठकों के चित्र एक साथ साझा किए हैं। विपक्षी गठजोड़ की बैठक वाले चित्र में दिख रहा है कि, यूनाइटेड वी स्टैंड के नारे तले एक गोले में सारे विपक्षी नेताओं का चित्र पीछे के बैनर पर है। जबकि, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक के सामूहिक चित्र के पीछे लगे बैनर में सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी का बड़ा चित्र लगा है। इसे दिखाकर लिखा है कि, यही अंतर है “इंडिया” और एनडीए में। अब इसे यह दिखाने के लिए कांग्रेस ने लगाया है कि, उधर सिर्फ मोदी ही मोदी हैं, लेकिन उससे यह प्रमाणित भी हो गया कि, नरेंद्र मोदी ने सदन में जो कहा था कि, एक अकेला, सब पर भारी, कहीं से भी कमजोर नहीं पड़ा है। बल्कि, जिस तरह से सभी राजनीतिक दल नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक तौर पर बड़ा मानकर एनडीए का हिस्सा बन रहे हैं, उससे एक अकेला सब पर भारी और, अच्छे से प्रमाणित होता है। दूसरे प्रश्न का उत्तर आ जाने के बाद अब 2024 लोकसभा चुनाव के परिदृश्य को अच्छे से समझा जा सकता है। इसका सीधा सा मतलब हुआ कि, नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी यह चुनाव हो गया है और, कहने के लिए भले विपक्षी गठजोड़ अपना नामकरण यूपीए से “इंडिया” कर लें और, एनडीए नये सिरे से बने, लेकिन सच यही है कि, मुकाबला दोनों विचारों के बीच ही होने जा रहा है। एक राहुल गांधी का विचार कि, भारत में लोकतंत्र समाप्त हो रहा है और, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन के देश बेखबर हैं और, दूसरा नरेंद्र मोदी का विचार कि, दुनिया को भारत का महत्व स्वीकार करना ही होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थायी सदस्यता से लेकर हर मंच पर भारत की प्रभावी उपस्थिति के बिना विश्व की किसी भी समस्या का समाधान नहीं खोजा जा सकता। इसे एक पंक्ति में कहें तो विश्व में लोकतंत्र बचाने के लिए अब अमेरिका और, यूरोपीय यूनियन के देशों को भी भारत की तरफ देखना पड़ रहा है और, भारत बेखबर नहीं है। नरेंद्र मोदी का वह भारतीय विचार जो संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए कार्य करने की बात करता है और, उसमें विश्व के प्राचीनतम लोकतंत्र और, संस्कृति वाले देश भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है, यह बार-बार मजबूती से रेखांकित होता है। कल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक के बाद नरेंद्र मोदी के भाषण ने भी इस बात को और, स्पष्ट तरीके से देश के सामने रख दिया कि, एक अकेला सब पर भारी क्यों पड़ जाता है। कल नरेंद्र मोदी ने अपने 9 वर्षों में भारत सरकार की उपलब्धियों पर बहुत कुछ कहा, लेकिन एक ऐसी बात का भी उल्लेख किया, जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी और, राष्ट्रीय विचार के लोगों की नाराजगी भी नरेंद्र मोदी को झेलनी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि, हमारी सरकार विपक्षी दलों को दुश्मन की तरह नहीं देखती है। हमारी ही सरकार में प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिया गया। मुलायम सिंह यादव, शरद पवार, तरुण गोगोई, गुलाम नबी आजाद, मुजफ्फर बेग जैसे दूसरे दलों के नेताओं को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मोदी सरकार के यह ऐसे निर्णय हैं जो नरेंद्र मोदी को दलगत राजनीति से ऊपर दिखाते हैं, लेकिन यह भी सच है कि, भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता, समर्थक इससे दुखी होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, राजनीति में प्रतिस्पर्धा हो सकती है, लेकिन शत्रुता नहीं होती। आखिरकार हम एक ही देश के लोग हैं, एक ही समाज का हिस्सा हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आज विपक्ष ने अपनी एक ही पहचान बना ली है, हमें गाली देना, हमें नीचा दिखाना। इस सबके बाद भी एनडीए में शामिल राजनीतिक दलों ने देश को सबसे ऊपर रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकारी योजनाओं में भी यह स्पष्ट दिखता है जो भारत के संघवाद को और मजबूत करता है। दरअसल, अब यह अधिक स्पष्ट हो चला है कि, गठजोड़ कोई भी बने। किसी गठजोड़ में कोई भी पार्टी जुड़े या घट जाए, लेकिन लोकसभा चुनावों में देश की जनता को राहुल गांधी और, नरेंद्र मोदी के विचारों के बीच ही चयन करना है। देश में यह बात बहुत अच्छे से सबको पता है और, यहीं जाकर एक अकेला सब पर भारी पड़ जाता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वही होता हुआ दिख रहा है।
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