राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में दो वर्ष के सजा के आधार पर लोकसभा सदस्यता रद्द करने को विपक्ष कानूनी दाँवपेंच का राजनीतिक दुरुपयोग बता रहा है जबकि, भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि, सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है, जिसके बाद जनप्रतिनिधि कानून में परिवर्तन हुआ और, उसी के आधार पर दो वर्ष या उससे अधिक की सजा के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि रहने का अधिकारी नहीं रह जाता। गुरुवार, 23 मार्च 2023 को सूरत के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने मोदी उपनाम के लोगों को चोर कहने वाले राहुल गांधी के बयान पर भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी की मानहानि याचिका पर निर्णय सुनाते दो वर्ष की सजा सुनाई। हालाँकि, सजा सुनाने के साथ ही जमानत देते हुए तीस दिनों के भीतर ऊपरी न्यायालय में याचिका दाखिल करने का अधिकार भी दिया। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि, कांग्रेस पार्टी में इतने बड़े-बड़े वकील हैं, फिर भी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी की सजा समाप्त कराने के लिए ऊपरी न्यायालय में जाने के लिए किस बात की प्रतीक्षा कर रही थी। लोकसभा सचिवालय ने 23 मार्च 2023 की तारीख से ही वायनाड सांसद राहुल राहुल गांधी सदस्यता खारिज करने का आदेश उसी आधार पर दिया, जिसके तहत दोषी होते ही सदस्यता समाप्त हो जाती है। अब कांग्रेस भले ही यह आरोप लगाए, लेकिन सच यही है कि, इससे पहले भी ढेरों सांसदों और विधायकों की सदस्यता इसी नियम के आधार पर गई है। उसमें भाजपा के भी जनप्रतिनिधि शामिल हैं। इस मसले पर प्रेस कांफ्रेंस में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा- आज शहजादे की सदस्यता जाने पर उनके चाटुकार छाती पीट रहे हैं। कांग्रेस में तमाम बड़े वकील होने के बाद भी बीते 24 घंटे में इस फैसले के खिलाफ कोर्ट से राहत क्यों नहीं ली गयी? क्या जानबूझकर कांग्रेस के नेताओं ने राहुल गांधी के साथ षड्यंत्र रचा? कांग्रेस में राहुल जी के खिलाफ कौन है।आज साहिबजादे (राहुल गांधी) के चाटुकार छाती पीट रहे हैं, हाय-तौबा कर रहे हैं। आज जो फैसला हुआ है उन्हीं की सरकार में ऑर्डिनेंस के आधार पर हुआ है। आज जब उनकी सदस्यता गई तो, उन्हीं के पार्टी के लोग हाय-तौबा मचा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भले ही राहुल गांधी के साथ साजिश होने की बात कह रहे हों, लेकिन मुझे लगता है कि, 2019 की हार के बाद से भारत जोड़ो यात्रा तक, राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के खिलाफ हर कोशिश करके हार चुके हैं। उन्हें और पूरी कांग्रेस पार्टी को लगता है कि, 2024 का लोकसभा चुनाव हारने का मतलब सिर्फ कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार की राजनीतिक समाप्ति ही नहीं होगा बल्कि, गांधी परिवार के विरुद्ध चल रहे मामलों में सजा से भी बचना मुश्किल होगा। कुल मिलाकर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी, अभी नहीं तो कभी नहीं, वाले अंदाज में 2024 का चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
अब सवाल यही है कि, गांधी परिवार और, कांग्रेस के जैसे ही क्या देश के दूसरे राजनीतिक दलों को भी लग रहा है कि, मोदी 2024 भी जीत गए तो किसी की भी राजनीति नहीं बचेगी। दरअसल, यह राग तो 2019 और, कुछ तो 2014 से ही अलाप रहे हैं कि, भाजपा के सत्ता में आने का मतलब ही है कि, लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा और, दूसरे दलों को राजनीति का अवसर ही नहीं मिलेगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। भाजपाई जीत की इसी प्रचंड राजनीति के दौर में अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, केसीआर, जान मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक, एम के स्टालिन के राजनीतिक सूर्य चमक रहे हैं। इसी दौर में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली दो-दो बार पूर्ण बहुमत से जीतने के साथ ही दिल्ली नगर निगम से भी भाजपा को बाहर कर दिया है और, पंजाब में भी पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली है। ममता बनर्जी की पार्टी मेघालय में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। कमाल की बात यह भी है कि, जितने भी राजनीतिक सूर्य चमक रहे हैं, इन सबको पता है कि, अगर कांग्रेस और, राहुल गांधी के राजनीतिक सूर्य की आभा बढ़ी तो इन सबकी राजनीतिक स्थिति चंद्रमा जैसी हो जाएगी जो, सिर्फ कांग्रेस की रोशनी से ही चमकता है। अब सवाल यही है कि, क्या सभी विपक्षी दल कांग्रेस की ही तरह भारतीय जनता पार्टी से अभी नहीं तो कभी नहीं, वाले अंदाज में चुनाव लड़ेंगे और, इससे भी बड़ा सवाल यह है कि, राहुल गांधी और, कांग्रेस को मजबूरी में भी कितना स्वीकार कर पाएँगे। लालू प्रसाद यादव से आजम खान तक की राजनीति चौपट करने में राहुल गांधी और, कांग्रेस का ही हाथ कहा जा सकता है क्योंकि, राहुल गांधी ने विधेयक फाड़ दिया था, जिसके बाद कांग्रेस की सरकार ने अपराधी नेताओं को बचाने वाला विधेयक वापस ले लिया था। यह तथ्यात्मक स्थिति है, लेकिन राजनीतिक तौर पर भी कांग्रेस पार्टी लालू प्रसाद यादव से लेकर आजम खान तक, किसी की भी सदस्यता जाने पर उद्वेलित नहीं हुई। अखिलेश यादव ने तुरंत की प्रतिक्रिया में यह बात कह भी दी। इसलिए अभी भले ही फ़ौरी तौर पर विपक्षी एकता दिखे, लेकिन लोकसभा चुनाव आते विपक्षी पार्टियाँ राहुल गांधी और, कांग्रेस से दूरी बनाने में ही बेहतरी दिखेगी। साथ आ भी गए तो सजायाफ्ता नेताओं की एकता नरेंद्र मोदी का कितना नुक़सान कर पाएगी, इसमें संदेह है।
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