Sunday, March 19, 2023

अडानी पर हमला करके राहुल गांधी बुनियादी गलती कर रहे हैं

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी



अडानी समूह की संपत्तियाँ नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से तेजी से बढ़ी हैं, इसे एक आरोप के तौर पर प्रचारित करके विपक्षी दल इसका उपयोग राजनीतिक रूप से नरेंद्र मोदी के विरुद्ध कर लेना चाह रहे हैं। एक विदेशी रिसर्च फर्म हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी समूह की कंपनियों के शेयर में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। हालाँकि, अडानी समूह की कंपनियों में पिछले दो सप्ताह से अच्छी रिकवरी भी देखने को मिल रही है। बाजार के जानकारों का अडानी समूह को लेकर यह कहना रहा है कि, निश्चित तौर पर अडानी समूह के शेयरों के भाव थोड़ा ऊपर हैं, लेकिन यह भी सच है कि, अडानी समूह जिन क्षेत्रों में कारोबार कर रहा है, उसमें उसके पास संपत्ति बहुत अधिक है। कंपनी के फंडामेंटल मजबूत हैं। इंफ्रास्ट्रक्टर के क्षेत्र में अडानी समूह के मुकाबले देश में कुछ गिनी चुनी कंपनियाँ ही टिकती हैं। पोर्ट के क्षेत्र में अडानी के सामने कोई नहीं टिकता है। देश के 24 प्रतिशत बंदरगाह अडानी समूह के ही पास हैं। इसके बावजूद हिंडेनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट ने जब अडानी समूह पर हमला बोला तो शेयर बाजार में अडानी समूह के शेयरों की क़ीमतें 75 प्रतिशत तक गिर गईं। अडानी समूह ने बाजार भावनाओं को सुधारने के लिए पूरे बिक चुके एफपीओ को भी वापस ले लिया और, एफपीओ में पैसा लगाने वाले निवेशकों को वापस कर दिया। 2023 की विश्व के सर्वाधिक अमीर लोगों की सूची में भारत के मुकेश अंबानी 11वें और, गौतम अडानी 24वें स्थान पर हैं। हिंडेनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद और, भारत में विपक्षी नेता राहुल गांधी के दिन रात अंबानी-अडानी की सरकार चिल्लाने का भावनात्मक दुष्प्रभाव बाजार में अडानी के शेयरों पर पड़ने से पहले गौतम अडानी विश्व के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए थे। अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि, क्या नरेंद्र मोदी की सरकार में सिर्फ कुछ उद्योगपतियों को ही बढ़ने का अवसर मिला है? क्या उद्योगों में सिर्फ अंबानी-अडानी या अब कहें कि, सिर्फ अडानी समूह का एकाधिकार हो गया है। इसे समझने के लिए भारत में दूसरी कंपनियों की बढ़त और, उनको मिलने वाले लाभ पर दृष्टि डालना आवश्यक हो जाता है। 

अभी हाल में हुए गुजरात चुनाव से ठीक पहले वेदांता ने फॉक्सकॉन के साथ एक समझौता किया। इस समझौते के तहत गुजरात में भारतीय कंपनी वेदांता ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के साथ मिलकर सेमीकंडक्टर यूनिट लगा रही है। वेदांता ने इस साझा उपक्रम के लिए डेविड रीड को सीईओ बनाया है। डेविड रीड एनएक्सपी सेमीकंडक्टर्स के एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट थे। यहाँ यह बताना आवश्यक हो जाता है कि, वेदांता इससे पहले सेमीकंडक्टर बनाने के कारोबार में नहीं रहा है। अगले ढाई वर्षों में यूनिट शुरू होने के बाद भारत विश्व में पाँचवां देश हो जाएगा, जिसने सेमीकंडक्टर बना लिया है। यह नये भारत की सफलता की कहानियाँ हैं। भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तो उसकी कंपनियाँ भी उसी तेजी से बड़ी हो रही हैं। और, उस बड़े होने में सिर्फ अंबानी-अडानी ही शामिल नहीं है। यह संभव है कि, अडानी ने इस का अधिक लाभ लिया हो। अगर, अडानी समूह की कंपनियों के बड़े होने में किसी तरह की गड़बड़ी हुई है तो, निश्चित तौर पर उसकी जाँच होनी चाहिए और, दोषी पाए जाने पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई भी, लेकिन किसी कंपनी की विकास की रफ्तार बहुत तेज है, सिर्फ इस आधार पर कंपनी को भ्रष्टाचार के आरोपों से घेरकर उसे सरकार से जोड़ने की विपक्षी कोशिश बेहूदगी है। इसको आप ऐसे भी समझ समझते हैं कि, रिलायंस का कारोबार जब बंटा तो धीरूभाई अंबानी की विरासत में दोनों भाइयों को बराबर हिस्सेदारी मिली, लेकिन मुकेश अंबानी का रिलायंस आज भारत की सबसे बड़ी कंपनी है, विश्व में रिलायंस की एक बड़ी पहचान है और, अनिल अंबानी वाले रिलायंस दीवालिया हो चुकी है। विश्व के अमीरों की 2014 की जिस सूची में गौतम अडानी के 609वें स्थान पर होने को लेकर राहुल गांधी हल्ला मचाते हैं। उसी  सूची में मुकेश अंबानी 40वें स्थान पर, वेदांता वाले अनिल अग्रवाल 580वें, लक्ष्मी मित्तल 52वें , अजीम प्रेमजी 61वें और, अनिल अंबानी 281वें स्थान पर थे। 2015 में इसी सूची में मुकेश अंबानी 39वें स्थान पर पहुँच गए और, अनिल अंबानी 418वें स्थान पर चले गए। वेदांता वाले अनिल अग्रवाल 1054वें, लक्ष्मी मित्तल 82वें और, अजीम प्रेमजी 48वें स्थान पर चले गए। इसी सूची में गौतम अडानी 208वें स्थान पर पहुँच गए थे। जाहिर है, मई 2014 में मोदी सरकार के पास अलादीन का चिराग़ नहीं था कि, अडानी को आते ही ऐसा लाभ दे देते। इसका सीधा सा मतलब था कि, यूपीए की सरकार में ही अडानी समूह तेजी से बढ़ रहा था। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि, भले ही सभी विपक्षी दल अडानी पर हमला कर रहे हों, लेकिन ममता बनर्जी के शासन वाले पश्चिम बंगाल में बंदरगाह अडानी बना रहा है। भूपेश बघेल का शासन वाले छत्तीसगढ़ में कोयला अडानी निकाल रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री का निवेश के लिए गौतम अडानी से दीप प्रज्ज्वलन कराना सबको याद है। यह उदाहरण मैं सिर्फ इसलिए दे रहा हूँ कि, आपको यह बात समझ आए कि, गुजरात का होने की वजह से और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पुराने रिश्ते होने की वजह से राहुल गांधी चाहते हैं कि, अडानी की कामयाबी की कहानी को भ्रष्टाचार की कहानी बताकर और, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शामिल करने राजनीतिक लाभ ले लिया जाए, लेकिन सच यही है कि, गौतम अडानी एक दुस्साहसी और, अतिरिक्त जोखिम लेने वाले कारोबारी हैं। इस वजह से उन्हें केंद्र सरकार के साथ हर राज्य सरकार का भी सहयोग मिल रहा है। और, उसकी वजह से गौतम अडानी सर्वाधिक अमीरों की सूची में तीसरे स्थान पर पहुँच गए थे। हिंडेनबर्ग और भारत के विपक्षी दलों के हल्ले से कुछ समय के लिए भले अडानी के शेयर पिटे, लेकिन अडानी फिर से वापसी कर रहा है। अडानी ने निवेशकों का भरोसा और, बाजार की भावना अपने पक्ष में करने के लिए कई कर्ज समय से पहले ही लौटा दिए। जब हिंडेनबर्ग और, भारत का विपक्ष अडानी समूह पर आरोप लगा रहा था, उसी समय अडानी समूह पर बंदरगाह बनाने के लिए इजरायल भरोसा जता रहा था। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री भी स्पष्ट कर चुके हैं कि, अडानी के कामों में कोई गड़बड़ नहीं है। दुनिया में दूसरा ऐसा कोई देश नहीं है, जहां का विपक्ष अपने देश के कारोबारियों को खत्म करके अपना समाप्त होती राजनीति को बचाने का ऐसा मूर्खतापूर्ण प्रयास करता हो, लेकिन राहुल गांधी ने यह करके दिखाया है। यह अलग बात है कि, अब जनता पहले जैसी नहीं रही। अब जनता पहले से अधिक समझदार हो चली है। कारोबारियों ने लोगों को जीवनस्तर में बेहतरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नया भारत पहले की तरह कारोबारियों को बुरी नजर से नहीं देखता है, इसीलिए राहुल गांधी की घिटी-पिटी राजनीति बुरी तरह से पिट रही है। एयर इंडिया के लिए अडानी समूह ने भी पहले रुचि दिखाई थी, लेकिन इसमें टाटा सफल हुआ और, टाटा ने हाल ही में 470 विमानों का सौदा किया है जो, दुनिया में सबसे बड़ा है। भारतीय कंपनियों की सफलता की हजारों कहानियाँ हैं, उसमें से एक अडानी समूह भी है। 140 करोड़ से अधिक के देश में उद्यमियों की सफलता की कहानियाँ और अधिक होनी चाहिए, लेकिन राहुल गांधी सूट-बूट की सरकार कहकर हर उद्यमी को अपमानित, हतोत्साहित करना चाहते हैं। जबकि, भारतीय कंपनियाँ तेजी से लाभ कमा रही हैं। ताजा रिपोर्ट बता रही है कि, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध 500 भारतीय कंपनियों पर कर्ज पिछले 6 वर्षों में सबसे कम हो गया है। अनुमान है कि, इस वर्ष मार्च के अंत तक भारतीय कंपनियों का कुल कर्ज घटकर 8 लाख करोड़ रुपये तक सकता है जबकि, पिछले वर्ष 2020 में मार्च समाप्त होते इन्हीं भारतीय कंपनियों पर कुल कर्ज 12 लाख 26 हजार करोड़ रुपये था। अगले कुछ वर्षों में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। और, इसमें भारतीय कंपनियों का बढ़ना भी शामिल रहेगा। आत्मनिर्भर भारत के नरेंद्र मोदी के अभियान से भारतीय कंपनियों को खूब फायदा मिल रहा है। और, इस समय जो भी कंपनी और, कारोबारी जोखिम लेगा, उसे जमकर लाभ होना तय है। और, उस लाभ से सिर्फ कंपनी का कर्ज नहीं घटेगा। उससे लोगों को रोज़गार मिलेगा, लोगों का जीवनस्तर बेहतर होगा। ऐसे में राहुल गांधी को अपनी राजनीति समाप्त होती दिखती है। इसीलिए भारत की तेजी से बढ़ती हुई कंपनियों को संदेह के दायरे में लाकर समाप्त कर देना चाहते हैं। नया भारत राहुल गांधी की इस मूर्खतापूर्ण कोशिश को सफल नहीं होने देगा।

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