Thursday, June 16, 2022

Agnipath Scheme और Agniveer के बहाने बिहार और देश के नौजवानों की बात

हर्ष वर्धन त्रिपाठी



#Bihar के कोचिंग माफिया और देश में हताश राजनेता मिलकर देश के नौजवानों से ही देश में आग लगवा रहे हैं। अभी तक हंगामा था कि, नौकरियाँ नहीं हैं। लंबे समय बाद सेना में भर्ती हो रही है और अब हंगामा हो रहा है कि, हमारी शर्तों पर भर्ती हो। ऐसा कहीं होता है #Bihar
बिहार के लोगों की योग्यता, क्षमता पर जरा सा भी संदेह नहीं किया जा सकता, लेकिन बिहारी क्या अपना घर बार छोड़कर ही उद्यमी, समझदार और प्रतिभावान हो पाता है। जब तक बिहार में रहेगा, आग ही लगाता रहेगा। बिहार से बाहर रह रहे बिहारियों को इस सन्दर्भ में चर्चा का नेतृत्व करना चाहिए।
4 दिन का भविष्य भी निश्चित न होने पर एक बिहारी दिल्ली-बंबई जाता है, 40 साल तक जम जाता है. 4 पीढ़ियाँ भी वहीं जमा लेता है। अपनी कुशलता से सब अर्जित करता है। फिर वही बिहारी 4 वर्ष की निश्चित धनराशि वाली नौकरी के खिलाफ सड़कों पर हंगामा क्यों कर रहा है? सोचना तो बिहार के लोगों को है।
बिहार में चुनाव के समय एक चर्चा बड़ी जोर से होती है कि, बिहार में राजनीतिक विकल्पहीनता की स्थिति क्यों बनी है, इतने वर्षों से ? जहां सामाजिक जड़ता आ जाए, वहाँ यह सामान्य है। मेरे लिए आश्चर्यजनक यह है कि, बिहार के लोग प्रतिभा में हर स्थान पर अव्वल हैं, फिर बिहार जाकर ऐसे क्यों?

एक समय उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही लगने लगा था, लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ हर राजनीतिक दल को अवसर दिया कि, समाज, राज्य की दशा बदलने में जो कर सकते हैं, करिए। देखिए, उत्तर प्रदेश में कितना बड़ा बदलाव हो चुका है। हालांकि, उत्तर प्रदेश और बिहार इतने जुड़े हैं कि, कब इस मामले में बिहार का दुष्प्रभाव उत्तर प्रदेश पर भारी पड़ जाए, कहा नहीं जा सकता। बिहार की आग उत्तर प्रदेश में फैलने के लिए कुछ भी नहीं चाहिए। सब रेडीमेड तैयार रहता है। देश के हर राज्य में नौजवानों को भड़काने पर लगातार लोग लगे हुए हैं। आपको ध्यान में होगा कि, किस तरह से नागरिकता कानून के विरोध में मुसलमान नौजवान और फिर कृषि कानून के विरोध के नाम पर सिख नौजवानों को हिंसक बनाने का प्रयास किया गया जो, बहुत हद तक सफल भी रहा। नौजवानों को रोजगार मिलना एक बड़ी समस्या है, जिसके समाधान के लिए सरकारों को कार्य करना है। इसमें केंद्र और राज्य सरकार की लगभग समान भूमिका है। केंद्रीय नीतियों के आधार पर राज्य सरकारें अपने निवासियों को रोजगार का खाका तैयार कर सकती हैं, लेकिन आसानी से रोजगार के मसले पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं। जितना रोजगार कुल केंद्रीय सरकारी नौकरियों का है, उससे अधिक बंबई नगरिया दे देती है। खैर, बहुत कुछ इस पर कहा जा सकता है, लेकिन मूल बात वही है कि, नौजवान कैसे सोच रहा है। उसके सोचने के तरीके में बदलाव न आया तो सरकारी नौकरी 4 वर्ष की हो या 40 वर्ष की, असंतोष और अराजकता कभी भी उभर जाएगी। इस पर भी टिप्पणी करते सोचिए जरूर। 

1 comment:

शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...