हर्ष वर्धन त्रिपाठी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुस्साहस के लिए जाने जाते हैं, लेकिन किसान आंदोलन के बीच में किसानों के मुद्दे पर इतना बड़ा दुस्साहस करने की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी किसानों के भले का नहीं, सिर्फ़ चुनावी कार्यक्रम है। माना जाता है कि 2009 में यूपीए के दोबारा सत्ता में आने की सबसे बड़ी वजह 2008 के बजट में की गई कृषि क़र्ज़ माफ़ी ही रही और, सरकारी बैंकों की बैलेंसशीट बिगाड़ने में 2008 के बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की कर्जमाफी का एलान भी महत्वपूर्ण रहा और कमाल की बात इससे छोटे और सीमांत किसानों को कोई लाभ ही नहीं हुआ। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने भी कृषि क़र्ज़ माफ़ी कर दी और दूसरे राज्य में भी किसानों ने क़र्ज़ माफ़ी के लिए सरकारों पर दबाव बनाया, जो अभी भी गाहे-बगाहे दिखता रहता है। इसका मतलब अगर 4 करोड़ किसानों को क़र्ज़ माफ़ी का लाभ हुआ मान लें तो भी देश का क़रीब 10 करोड़ किसान इस लाभ से वंचित रह गया। इसी का ज़िक्र सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 के बजट पर बात करते हुए किया था।
देश में किसानों की दशा और बैंकों की दशा बिगाड़ने वाले 2008 के बजट से जुड़ा एक अत्यावश्यक सन्दर्भ मुझे याद आ रहा है। उसका ज़िक्र ज़रूरी है। टीवी 18 के फाउंडर एडिटर और मैनेजिंग एडिटर राघव बहल प्रतिवर्ष बजट के बाद वित्त मंत्री का साक्षात्कार किया करते थे या यूँ कहें कि राघव बहल सिर्फ़ एक ही साक्षात्कार सालाना करते थे, लेकिन उसका इंतज़ार सबको रहता था। ख़ासकर बजट में की गई घोषणा को ठीक से समझने के लिए। 28 फ़रवरी 2008 के बजट के बाद वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साक्षात्कार राघव बहल कर रहे थे। टीवी 18 समूह के चैनल सीएनबीसी आवाज़ पर वही साक्षात्कार लाइव चल रहा था। साक्षात्कार शुरू ही हुआ था कि अचानक वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने माइक निकाल दिया और उठकर खड़े हो गए। तमतमाए हुए चिदंबरम को राघव बहल ने सँभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। दरअसल, राघव बहल ने वित्त मंत्री पी चिदंबरम से बजट में क़र्ज़ माफ़ी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और बैंकों को होने वाले घाटे की भरपाई के इंतज़ाम से सवालों की शुरुआत कर दी थी और दो बार चिदंबरम ने उस सवाल को टालने की कोशिश की, लेकिन तीसरी बार राघव के घुमाकर सवाल पूछने पर चिदंबरम बुरी तरह से नाराज़ हो गए और माइक निकालकर उठकर चल दिए। इसके बाद बड़ी मुश्किल से चिदंबरम दोबारा साक्षात्कार देने को तैयार हुए और उस प्रश्न को साक्षात्कार से बाहर रखने की शर्त पर ही तैयार हुए।
देश का हर अर्थशास्त्री यह बात लगातार कहता रहा कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी से किसानों का भला नहीं होने वाला और इससे बैंकिंग तंत्र भी ध्वस्त हो जाता है। इसी से समझा जा सकता है कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी कितना बड़ा चुनावी कार्यक्रम था और इससे किसानों का क़तई भला नहीं होता था। वरना तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम तो खुश होते कि इस पर तीन प्रश्न ही क्यों, पूरा साक्षात्कार ही इसी पर होना चाहिए।
इस सन्दर्भ के बाद यह समझना और आसान हो गया है कि प्रधानमंत्री का कृषि क़र्ज़ माफ़ी को किसानों के हितों के ख़िलाफ़ सार्वजनिक तौर पर बताना कितना ख़तरनाक है, लेकिन राजनीतिक दुस्साहस के लिए जाने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवालय से पहले शौचालय की बात करके स्वच्छता अभियान को सफल बना दिया और इसी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़रूरतमंद परिवारों को मुफ़्त रसोई गैस दिया तो साथ ही क्षमतावान लोगों को रसोई गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी छोड़ने की अपील की और स्वैच्छिक तौर पर बहुत से लोगों ने रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ दी। एक और छोटा सा सन्दर्भ याद दिलाने से बात ज़्यादा स्पष्ट हो जाएगी कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने 10 लाख रुपये से ज़्यादा सालाना कमाई करने वालों को सब्सिडी ख़त्म करने का सुझाव मनमोहन सरकार को दिया था और वह प्रस्ताव औपचारिक तौर पर पेश होने से पहले ही हल्ले हंगामे की भेंट चढ़ गया। इस सन्दर्भों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सोमवार 8 फ़रवरी को राज्यसभा में बोलते हुए कृषि क़र्ज़ माफ़ी को ख़त्म करने की बात कहना अतुलनीय साहस का प्रदर्शन है। तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग के साथ दिल्ली की सीमाओं को किसान घेरकर बैठे हुए हैं। 26 जनवरी को किसान आंदोलन अराजकता के चरण तक जा पहुँचा और अब तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस अराजकता को स्थापित करने की कोशिश हो रही है और ऐसे समय में राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क़र्ज़ माफ़ी ख़त्म करने की एक ऐसी बात कह दी है जिसको बोलना देश का हर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री चाहता था, लेकिन यह बात बोलने की साहस सार्वजनिक तौर पर कोई नहीं कर पाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में कहाकि कृषि क़र्ज़ माफ़ी किसानों के भले का नहीं चुनावी कार्यक्रम होता था और इससे छोटे किसानों को कभी लाभ नहीं होता था। उन्होंने इसके अलावा भी पारंपरिक तरीक़े से किसानों के भले के नाम पर की जाने वाली राजनीतिक खानापूरी और उससे सिर्फ़ बड़े किसानों को मिलने वाले लाभ के बारे में स्पष्ट तौर पर कह दिया। जब दिल्ली में किसान आंदोलन इस अराजक स्वरूप में है, उस समय कृषि क़र्ज़ माफ़ी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर स्पष्ट राय रखना राजनीतिक तौर पर ख़तरनाक हो सकता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की बेहतरी के लिए एक के बाद एक जिस तरह के निर्णय लिए हैं और उन्हें सफलतापूर्वक लागू किया है, उससे किसानों का मोदी पर बढ़ा भरोसा ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुलेआम कृषि क़र्ज़ माफ़ी ख़त्म करने की बात उच्च सदन में कह दे रहे हैं। सोमवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क़र्ज़ माफ़ी के बहाने होने वाले राजनेताओं के चुनावी कार्यक्रम की बखिया उधेड़ दी और स्पष्ट संदेश दे दिया कि किसी भी क़ीमत पर अब कृषि क़र्ज़ माफ़ी की किसान विरोधी व्यवस्था को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।
(यह लेख 13 फरवरी 2021 को दैनिक जागरण में छपा है)
SHANDAR
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteGood,i respect your opinion
ReplyDeleteThat is like a real leader... nation first,
ReplyDeleteMain rahun ya na rahun Bharat ye rehna chahiye... MODI JI HAIN TO MUMKIN HAIN
इतनी सारी सबसीडी मिलती है कुटुंब।
ReplyDeleteवृध्दि होती जाती है और जमीन बटवारा
होता रहेगा है, और बेंकमेसे किसान
सोसाइटी से भी लोन उठाने है
लेकिन लडका, लड़की की शादी में
अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च वाहवाही की
खातीर करते है बादमें बरबाद होनेका
हौवा बोलके टेक्षपेयरकी पसीनेकी
कमाईसे सरकार ने वसूली हुई रकम
हर साल वो ट
किसान के नाम पर लूटते है। टेक्षपेयरको
नहीं मिलती उतनी सवलत वो ले जाते है,
फिरभी अन्नदाता हम उसे बनाते है
असली गरीब किसान गरीब ही रहता है,
बडे जमीनदार पुरा लाभ लुंटता है।
Bahut sahi hai ray
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का" (चर्चा अंक- 3985) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--