हिन्दू
महिलाएं वट सावित्री की पूजा करती हैं। इस पूजा का मूल उद्देश्य अपने पति की
दीर्घायु की कामना होता है और इसमें पूजा भी उसी सावित्री की होती है, जिसने अपने
पतिव्रत धर्म के पालन से उच्च आदर्शों वाले पति सत्यवान को यमराज से भी वापस ले
लिया था। सावित्री के साथ उस बरगद वृक्ष की भी पूजा इस व्रत में हिन्दू महिलाएं
करती हैं, जिसके नीचे सावित्री की गोद में बैठकर सत्यवान के प्राण निकल गये थे,
लेकिन पतिव्रता सावित्री ने यमराज को भी विवश कर दिया की पति सत्यवान को उन्हें
फिर से जीवन देना पड़ा। संयोग से इस वर्ष का यह व्रत कोरोना वायरस के बीच में हुआ
जब चौथे चरण की देशबंदी के बीच देश गुजर रहा है। सामान्य गतिविधियां बंद हैं,
ज्यादातर मंदिरों पर ताले पड़े हुए हैं। गांवों में तो महिलाओं को मंदिरों पर ताले
पड़े होने या फिर सामान्य गतिविधि चलने न चलने से खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि लगभग
हर गांव के अगल-बगल 2-4 बरगद के विशाल वृक्ष होते ही हैं, जहां हिन्दू महिलाओं ने
जाकर अपने पति की दीर्घ आयु के साथ बरगद की परिक्रमा करते हुए अपना व्रत किया,
लेकिन शहरों में संकट खड़ा हो गया। जहां ज्यादातर मंदिरों के दरवाजों पर ताले लगे
हुए थे। देश के करोड़ों मंदिरों के पुजारियों के लिए जीवनयापन का संकट खड़ा हो गया
है क्योंकि, मंदिरों पर ताला लगा हुआ है और इस ताले में मंदिरों के भीतर लगे बरगद
वृक्ष पर भी ताला लग गया। वट सावित्री की पूजा करने वाली शहरी महिलाओं के लिए सबसे
बड़ा संकट बरगद कगा वृक्ष खोजना हो गया। शहरों में बरगद के पेड़ ना के बराबर हो
गये हैं। शहरों में बहुत से लोगों के लिए बरगद का वृक्ष पहचानना भी असहजता की वजह
बन जाता है। वट सावित्री पूजा में आस्था रखने वाली महिलाओं ने सड़क किनारे कहीं भी
मिल गये बरगद के चक्कर लगाकर या फिर गमले में बरगद की टहनी लगाकर और बच्चों में
पूड़ी हलवा और चना बांटकर अपना व्रत पूरा किया। कहीं-कहीं इस आस्था के चक्कर में
एक ही बरगद के इर्द गिर्द चक्कर लगाती कई महिलाओं की तस्वीर एक साथ दिखी और तुरन्त
तथाकथित निष्पक्ष वामपंथी बुद्धिजीवियों ने सवाल पूछा कि आखिर सोशल डिस्टेंसिंग
कहां चली गयी और वट सावित्री का व्रत रखने वाली हिन्दू महिलाओं का मजाक बनाया गया।
कांग्रेस
की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश सरकार को 1000 बसों का प्रस्ताव
पेश किया और कहाकि 1000 बसों का प्रयोग उत्तर प्रदेश की सीमा पर जुटे मजदूरों को
उनके घरों तक पहुंचाने के लिए किया जाए। उत्तर प्रदेश सरकार ने 1000 बसों की सूची
मांगी और फिर बसों की सूची में ऑटो, दुपहिया और ट्रक भी शामिल होने की जानकारी
सार्वजनिक की गयी। इसके बाद कांग्रेस और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच तीखे
आरोप-प्रत्यारोप हुए और आखिरकार कांग्रेसी बसों को स्वीकृति नहीं दी गयी। कांग्रेस
और देश के तमाम निष्पक्ष बुद्धिजीवियों ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार
पर निकृष्ट राजनीति करने का आरोप लगाया, लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसके जवाब
में कोटा से उत्तर प्रदेश के छात्रों को लाने के लिए राजस्थान सरकार को भरा गया
बिल सार्वजनिक कर दिया गया। इससे स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका
गांधी वाड्रा को मजदूरों की या छात्रों को भेजने की चिंता से ज्यादा विशुद्ध
राजनीति करके योगी आदित्यनाथ सरकार की छवि खराब करने की ज्यादा चिंता हो रही थी और
कांग्रेस की इस राजनीति को कांग्रेस की रायबरेली की विधायक अदिति सिंह ने सार्वजनिक
आलोचना करके कांग्रेस को निरुत्तर किया तो उनको नोटिस भेज दिया गया, लेकिन उसी समय
कांग्रेस पंकज पुनिया ने ट्विटर पर लिखा कि कांग्रेस सिर्फ मजदूरों को अपने खर्च
पर उनके घर भेजना चाहती थी। बिष्ट सरकार ने राजनीति शुरू की। भगवा लपेटकर यह नीच
काम संघी ही कर सकते हैं और इसके बाद जो कांग्रेसी नेता पंकज पुनिया ने लिखा उसे मैं
यहां नहीं लिख सकता। पंकज पुनिया ने हिन्दू, भगवा और हिन्दुओं के आराध्य भगवान
श्रीराम तक को अपने ट्वीट में लपेट लिया। बाद में पंकज पुनिया की गिरफ्तारी की
मांग तेज हुई तो ट्विटर पर माफी मांगकर मामले को रफा दफा करने की कोशिश की, लेकिन
इसका कोई फायदा नहीं हुआ और करनाल में पंकज पुनिया की गिरफ्तारी हुई। अदिति सिंह
को नोटिस देने वाली कांग्रेस ने पंकज पुनिया पर दिखावे के लिए भी कुछ नहीं किया और
तथाकथित निष्पक्ष बुद्धिजीवियों का एक वर्ग उस समय पंकज पुनिया का लानत भेजने के
बजाय कुम्भ के समय प्रयागराज में खड़ी बसों की कतार दिखाकर बता रहे थे कि कांग्रेस
की भेजी बसों को योगी आदित्यनाथ सरकार ने मंजूरी दी और निष्पक्ष बुद्धिजीवियों में
बचे योगी सरकार पर आरोप लगाते कह रहे थे कि अगर कुम्भ में इतनी बसें लग सकती हैं
तो मजदूरों को भेजने के लिए क्यों नहीं। इस देश के तथाकथित निष्पक्ष बुद्धिजीवी
धरातल की वास्तविकता से कितने कटे हुए हैं, इसका अनुमान कुम्भ पर की गयी टिप्पणी
से ही लग जाता है। इन्हें अनुमान नहीं है कि आज जो मजदूर सड़कों पर है या फिर
ट्रेनों-बसों के जरिये अपने घरों तक पहुंचाया जा चुका है, उसी के लिए योगी
आदित्यनाथ की सरकार ने बसों का भव्य इंतजाम किया था। उत्तर प्रदेश में भाजपा की
सरकार है और एक योगी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है, इतना तो देश के निष्पक्ष
बुद्धिजीवियों के विरोध के लिए मजबूत आधार बन जाता है। इस विरोध में यह जरूरी
आंकड़ा भी उन्हें नहीं दिखता कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अब तक 20 लाख से
ज्यादा मजदूरों को वापस प्रदेश में लाने का कार्य पूरा किया है। इसके लिए बसों और
विशेष ट्रेनों का उपयोग किया गया। देश में ट्रेनों से कुल 21 लाख के करीब प्रवासी
मजदूर आए, इसमें सबसे ज्यादा 1154 ट्रेनों का उपयोग करके उत्तर प्रदेश ने अपने 15
लाख 27 हजार श्रमिकों को राज्य में वापस बुलाया।
उत्तर
प्रदेश के नोएडा स्थित फिल्मसिटी में ज्यादातर टीवी चैनल हैं। एक टीवी चैनल के कई
कर्मचारियों को कोरोना हो गया और जब इसकी खबरें बाहर आईं तो देश के तथाकथित
निष्पक्ष बुद्धिजीवी अद्भुत तरीके से प्रसन्न हो गये। तुरन्त उन्होंने उस मीडिया
चैनल के कार्यालय को निजामुद्दीन के तबलीगी जमात के मुख्यालय, मरकज जैसा बता दिया।
पत्रकार, बुद्धिजीवी अगर इस बात पर प्रसन्न हो रहे हों कि उस मीडिया हाउस के
कर्मचारियों को कोरोना हो गया है, जिसने मरकज के खिलाफ जमकर कहानियां लोगों को
दिखाईं तो इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि देश का निष्पक्ष बुद्धिजीवी दरअसल तब्लीगियों
की बेहूदगी पर चुप्पी साधे बैठा तो इसकी वजह कोई मुसलमानों से उनका प्रेम नहीं था,
दरअसल यह उनका हिन्दू विरोध था जो अलग-अलग घटनाओं पर निकलकर सामने आ जाता है। हिन्दू
विरोध में किसी भी हद तक जाने वाले तथाकथित निष्पक्ष बुद्धिजीवियों को हिन्दू अब
पहचान गया है, लेकिन दुर्भाग्य से मुसलमान इन्हें अपना हितैषी मान लेता है और उसका
नुकसान हिन्दू-मुसलमान दोनों को बराबर हो रहा है। सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि देश
में महामारी से लड़ने में जब देश को एकसाथ होना चाहिए तो देश के तथाकथित
बुद्धिजीवी हिन्दू मुस्लिम विभाजन कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
(यह लेख इंदौर से निकलने वाले अखबार प्रजातंत्र में 25 मई को छपा है)
सावित्री वट वृक्ष पूजन कयी वर्षों से हमारे घर में मनाया जाता है। हमारे गांव भागलपुर बिहार में काफी धूम धाम से यह त्योहार मनाया जाता है। हमारे घर के साथ विशाल बरगद का पेड़ था जहां पूरे गांव की महिलाओं पूजन करने आती थी। बङे उल्लास से यह त्योहार मनाया जाता है।
ReplyDeleteसवाल उठता है कि आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती जिस हिंदू शब्द को गाली बताते थे, उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इतना सम्मानित क्यों और कैसे बना दिया? जो शब्द ही भारत में 11वीं सदी में आया है, उसी का बाना पहनकर सदियों का अल्पसंख्यक ब्राह्मण धर्म अचानक हिंदू धर्म कैसे बन गया, यहां तक कि उसे सनातन धर्म का पर्याय बना दिया गया? हर्ष बाबू, आज इन सवालों का जवाब हर भारतीय को खोजना ही पड़ेगा।
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