हिन्दुस्तान
में आज जो कुछ भी होता है, उसकी बुनियाद सोशल मीडिया पर ही तैयार होती है। यहां तक
कि खुद को मुख्य धारा कहने वाले, टीवी और अखबार, मीडिया संस्थान भी सोशल मीडिया से
ही खबरों को ले रहे हैं, विस्तार दे रहे हैं। लेकिन, इस बात का अन्दाजा कितने
लोगों को होगा कि इस बुनियाद की बुनियाद हिन्दुस्तान में कैसे तैयार हुई होगी। आपको
क्या लगता है कि फेसबुक या ट्विटर आया और इसी वजह से इस देश में सोशल मीडिया खड़ा
हो गया। ये बहुत बड़ा भ्रम है। दरअसल, फेसबुक और ट्विटर या फिर दूसरे ऐसे माध्यम
आए ही तब, जब हिन्दुस्तान में सोशल मीडिया का आधार तैयार हो गया। एक पक्की बुनियाद
बन गई थी, जिस पर फेसबुक, ट्विटर जैसे मंच कमाई कर सकते थे। एक दशक से भी ज्यादा
समय पहले जब देश में सोशल मीडिया नाम का कोई मंच नहीं था, उस समय ब्लॉगर पर कुछ
लोगों ने लिखना शुरू किया था। जानबूझकर मैं किसी का नाम नहीं लिख रहा हूं। लेकिन,
एक बड़ी जमात थी। उस समय मैं मुम्बई सीएनबीसी आवाज में हुआ करता था। और हमारे
मित्र शशि सिंह मुझे भी ब्लॉग बनाने के लिए कहते थे। सीएनबीसी आवाज में मेरी
जिम्मेदारी प्रोड्यूसर की थी, इसलिए रिपोर्ट करने की इच्छा रह जाती थी। और उस
रिपोर्ट करने की रह गई इच्छा को पूरा करने का काम मैंने अपने ब्लॉग के जरिए किया।
10
जनवरी 2006 को मैंने एक ब्लॉग बनाया। लेकिन, उसका नाम बिना सोचे-समझे रख दिया था।
और धीरे-धीरे उस पर निष्क्रियता इस कदर बढ़ गई कि उसे भूल ही गया। हां, कुछ दूसरे
सामूहिक ब्लॉग मंचों पर लिखना शुरू कर दिया। लेकिन, धीरे-धीरे ये समझ में आया कि
अपना खुद का ब्लॉग ही रिपोर्ट करने की भूख शान्त कर पाएगा। अप्रैल 2007 में अपना
ब्लॉग बनाया बतंगड़ www.batangad.blogspot.com तब से लेकर अब तक का ये सफर जारी है। 2008 के आखिर तक मुम्बई रहते
जमकर ब्लॉग लिखा। ब्लॉग के जरिए निजी सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए। मुम्बई में शशि सिंह,
अनिल सिंह, अभय तिवारी, प्रमोद सिंह, बोधिसत्व, अनीता कुमार। सिद्धार्थ शंकर
त्रिपाठी ने इलाहाबाद में ब्लॉगिंग पर एक बड़ी चर्चा कराई, जिसमें देश भर के
ब्लॉगर इकट्ठा हुआ। बाद में वर्धा में भी दो बार हम ब्लॉगरों का जुटान हुआ।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी और उनकी पत्नी रचना त्रिपाठी दोनों जमकर ब्लॉगिंग करते
हैं। इलाहाबाद से अब भदोही में अपने गांव रह रहे ज्ञानदत्त पांडेय, कनपुरिया मौजी
अनूप शुक्ल, जबलपुरिया समीर लाल, जबलपुरिया महेंद्र मिश्रा। घुमक्कड़ ब्लॉगर ललित
शर्मा, नागपुर की संध्या शर्मा, सब ब्लॉगिंग से ही मिले। भोपाल निवासी रविशंकर
रतलामी हों या फिर अहमदाबाद के संजय बेंगाणी ब्लॉग की वजह से ही नजदीकी बनी। भास्कर
से इंडिया टुडे होते अभी नेटवर्क 18 पहुंची मनीषा पांडेय से भी ब्लॉग की वजह से
पहचान बढ़ी। दिल्ली विश्वविद्यालय के मास्टर साहब विजेंद्र मसिजीवी और फतेहपुर से
प्राइमरी का मास्टर वाले प्रवीण त्रिवेदी ब्लॉग से ही परिचित हुए।
विस्फोटक
संजय तिवारी, भड़ासी यशवन्त सिंह, मोहल्लेदारी से फिल्म निर्देशक बन गए अविनाश दास
सब ब्लॉग की ही देन हैं। प्रवक्ता वाले संजीव सिन्हा से अब हर दूसरे-चौथे मिलना
होता है। लेकिन, कड़ी ब्लॉग ही बना। विनीत कुमार आज दूसरी वजहों से भी जाने जा रहे
हैं लेकिन, आधार ब्लॉग ही बना। व्यंग्य सम्मानों की कतार में निरन्तर खड़े सन्तोष
त्रिवेदी तो ब्लॉगर मिलन के चक्कर में शाकाहारी से मांसाहारी तक हो बैठे। ब्लॉग की
निरन्तरता और इसके जरिए प्रभाव की बात करेंगे, तो उज्जैन के सुरेश चिपलूणकर भला
कैसे बच सकते हैं। इतने नाम मैं लिख पा रहा हूं, पता नहीं कितने छूट रहे हैं, जो
पोस्ट कर देने के बाद ध्यान में आएंगे। जिनका नाम नहीं ध्यान में आया, उनसे माफी। वो टिप्पणी करके मुझसे नाराजगी जाहिर करें। ऐसे ही हंसते, नाराज होते उस समय के ढेर सारे ब्लॉगरों के
इर्दगिर्द एक बड़ा ब्लॉगर परिवार तैयार हुआ। दरअसल यही वो हिन्दी का ब्लॉग परिवार
है, ये बहुत बड़ा है, इतना बड़ा कि किसी भी शहर में जाने पर कोई न कोई ब्लॉगर जरूर
मिल जाएगा। यही वो नागरिक पत्रकारिता का आधार है जिसके बूते हिन्दुस्तान में फेसबुक
और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया ने आने का मन बनाया। लेकिन, लोगों का मन अपनी बात कहने
के लिए तैयार करने का काम ब्लॉगिंग और उसमें भी #हिन्दी_ब्लॉगिंग ने किया। आज कोई एग्रीगेटर नहीं है। ब्लॉगवाणी वाले मैथिली
जी की अब ब्लॉगवाणी चलाने में रुचि नहीं रही।
आज
ब्लॉगर बहुत बढ़ गए हैं। एक से एक लिक्खाड़ ब्लॉगर हैं। अब तो कइयों का ब्लॉग कमाई
का जरिया भी बन गया है। हालांकि, हम ब्लॉग को कमाई से आजतक नहीं जोड़ सके हैं।
लेकिन, इसके आधार पर ढेर सारी कमाई का आधार बना है। इसे मैं अच्छे से समझता हूं। एक
समय मैं किसी से जरा सा इशारा पाते ही उसके कंप्यूटर, लैपटॉप में हिन्दी (मंगल)
फॉण्ट और ब्लॉगर जरूर डाल देता था। अब वैसा बहुत कम करता हूं। लेकिन, मैं ब्लॉग पर
अभी भी नियमित हूं। आज अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर दिवस के मौके पर सभी से, खासकर
हिन्दी वालों से #हिन्दी_ब्लॉगिंग के लिए आगे
आने की अपील करता हूं। आपने मीडिया की मठाधीशी खत्म की है। हिन्दी ब्लॉगरों ने ये
स्थापित किया है कि ब्लॉग लिखकर कोई कहीं से भी पत्रकारिता कर सकता है। इस जज्बे
को मजबूत करने की जरूरत है। सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर) उस ब्लॉगिंग बुनियाद पर
खड़ी मजबूत इमारत है, जिसमें हर तरह की स्थापित सत्ता को चुनौती दी है। और सबसे
अच्छी बात ये टेलीविजन के आने से 90 प्रतिशत टीवी में काम करने वाला मशीनी हो चला
था, उनको भी फिर से पत्रकार होने का अहसास हुआ और उससे भी अच्छा बात ये कि जो
पत्रकारिता नहीं भी कर रहे हैं, वो भी पत्रकार हैं और तथ्य के साथ उनका भी लिखा किसी
भी पत्रकार के लिखे से बेहतर हो सकता है, ये भी अहसास मजबूत हुआ है। फेसबुक ने एक
गड़बड़ की है कि ब्लॉग की टिप्पणियां छीन ले गया है। शुरुआती दौर में ब्लॉग पढ़ने
आने वाले 14 लोगों की 14 टिप्पणियां भी मिल जाती थीं। आज मेरे एक लेख को 500 से
5000 तक लोग पढ़ लेते हैं। किसी भी लेख को 200 से ज्यादा पाठक तो मिल ही जाते हैं।
लेकिन, टिप्पणियां 2-4 ही रह जाती हैं। यही टिप्पणियां निजी सम्बन्ध का आधार रही
हैं। आज अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर दिवस पर हिन्दी ब्लॉगिंग को हम और मजबूत करेंगे,
इसी के साथ हैपी हिन्दी ब्लॉगिंग। मजबूत नागरिक पत्रकारिता। और ब्लॉग लिखा है, तो टिप्पणी चाहिए ही चाहिए।
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