पूरा
बॉलीवुड अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उठ खड़ा हुआ है। संजय लीला भंसाली को
लतियाए जाने के बाद ये स्वतंत्रता बोध हुआ है। फ़िल्म, कहानी समाज में कोई भी सन्देश देने का सबसे
प्रभावी माध्यम है। इसी में टीवी धारावाहिक भी जोड़िए। कब किसी फ़िल्म में हिन्दू
समाज की किसी कुरीतियाँ को दिखाए जाने पर कोई भी विरोध करके स्वीकार्यता पा सका
है। यहाँ तक कि भारतीय समाज ने लगातार कहानी/फ़िल्मों से भी खुद को सुधारा है और
उस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा सम्मान किया है। लेकिन भंसाली को लतियाए जाने पर किसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बॉलीवुड के प्रगतिशाली कमर कस रह हैं। उस अभिव्यक्ति ने लगातार स्वतंत्रता के नाम पर भारतीय समाज को लतियाने की कोशिश की है। अपराधियों को फिल्में ऐसे महान बना दे रही हैं कि समाज
का नौजवान अपराधी बन जाना चाहता है। इतनी प्रसिद्धि, प्रभाव
अपराधी को दिखाया जाता है, कौन
भला ये नहीं चाहता। इतिहास के चरित्र इनकी कलात्मकता में परिहास बन जात हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई में भंसाली के साथ खड़ा कोई हंसल मेहता है जो
कह रहा है कि बॉलीवुड को राष्ट्रगान के समय खड़े न होकर भंसाली पर हुए हमले का
विरोध करना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ये पैरोकार इतने छिछले, बेहूदे
हैं। अब बताइए हंसल मेहता जैसे निर्देशक को लतियाने का मन हो रहा है कि नहीं। ये
इतिहास को ग़लत तरीक़े से पेश करके अपराधी को महान बनाकर करोड़ों की कमाई करने
वाले बॉलीवुड की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। आइए हम सब अपनी अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता के अधिकार के तहत इन्हें वैसे ही लतियाएं, जैसे
मैं अभी लतिया रहा हूँ।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Monday, January 30, 2017
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों
हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
राहुल-रघुराम की बातचीत से निकला क्या ? दुनिया के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने चाइनीज वायरस के संकट के दौर में शिकागो से दिल्...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
No comments:
Post a Comment