प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया कहा
करते थे कि जिन्दा कौमें 5 साल तक इंतजार नहीं करती हैं। लेकिन, देश के सबसे बड़े
सूबे में समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव 5 साल के बाद भी उत्तर प्रदेश की
जनता को “परिवर्तन की आहट” ही सुना पा रहे हैं। और इसी परिवर्तन की आहट के जरिये वो उत्तर प्रदेश की
जनता को संदेश देना चाह रहे हैं कि प्रदेश के लोगों की भलाई दोबारा समाजवादी
पार्टी की सरकार लाने में ही है। और इसे बौद्धिक तौर पर मजबूती देने के लिए अखिलेश
यादव के इस कार्यकाल पर एक किताब आई है। इस किताब में “परिवर्तन की आहट” बताता अखिलेश के भाषणों का संकलन है। कमाल की बात ये है कि आमतौर पर परिवर्तन
की बात विपक्ष सत्ता हासिल करने के लिए करता है। लेकिन, उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य
बनने जा रहा है, जहां चुनावी लड़ाई परिवर्तन के ही इर्द गिर्द हो रही है। फिर चाहे
वो सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। सरकार में आने के लिए विपक्ष सत्ता परिवर्तन की लड़ाई
लड़ता है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी का परिवर्तन पर खास जोर देना आश्चर्यजनक नहीं
लगता। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विशेषकर परिवर्तन पर जोर देते हैं। भारतीय जनता
पार्टी की पूरी चुनावी रणनीति इसी एक शब्द के इर्दगिर्द बुनी हुई दिखती है।
परिवर्तन रथयात्रा और परिवर्तन महारैली ये भारतीय जनता पार्टी के दो सबसे बड़े
चुनावी अस्त्र नजर आ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी अपनी यात्रा और रैली के जरिये ये
बताने की कोशिश कर रही है कि उत्तर प्रदेश की जनता को अगर देश के सबसे बड़े सूबे
का खोया हुआ सम्मान हासिल करना है, तो उसे परिवर्तन करना होगा। और वो परिवर्तन
भारतीय जनता पार्टी की सरकार के आने से होगा।
बीजेपी राजनीतिक तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार की
नाकामियों, कानून व्यवस्था और परिवारिक झगड़े को मुद्दा बनाए हुए है। साथ ही
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की उन योजनाओं का भी जिक्र परिवर्तन के साथ किया जा
रहा है जिससे देश के साथ उत्तर प्रदेश के लोगों को भी सीधे लाभ मिलता दिखे। और
इसीलिए अमित शाह हों या बीजेपी की परिवर्तन रथयात्रा के नेता, मोदी सरकार की हर
योजना को एक सांस में लोगों को बताना नहीं भूलते। राजनीतिक लड़ाई के साथ बौद्धिक
लड़ाई में भी भारतीय जनता पार्टी अब “परिवर्तन” की ही बात कर रही है। और इस बौद्धिक लड़ाई में “परिवर्तन” की ब्रांडिंग का
जिम्मा बीजेपी के थिंक टैंक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान ने ले लिया
है। संस्थान के निदेशक अनिर्बान गांगुली की मूल भाषा अंग्रेजी है। लेकिन, पिछले
कुछ समय में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान ने हिन्दी को लेकर ढेर सारे
शोध पत्र, पुस्तकें प्रकाशित की हैं। और अब “परिवर्तन की ओर” नाम से एक पुस्तक संस्थान लेकर आया है। अनिर्बान
गांगुली कहते हैं कि ये कहना गलत होगा कि बीजेपी ने ये पुस्तक लिखी या लिखवाई है। निश्चित
तौर पर इस पुस्तक में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद देश में अलग-अलग क्षेत्रों
में हुए परिवर्तन की चर्चा है। लेकिन, इसे लिखने वाले कहीं से भी बीजेपी से
सम्बद्ध नहीं हैं। ये स्वतंत्र लेखकों की ओर से स्वतंत्र तौर पर केंद्र सरकार की
नीतियों की समीक्षा है। वैसे तो ये किताब केंद्र सरकार की नीतियों के असर पर है।
लेकिन, बीजेपी इसका फायदा उत्तर प्रदेश के चुनावों में लेना चाहती है।
बीजेपी “परिवर्तन की ओर” ले जाने की बात कर रही है, तो समाजवादी पार्टी
या कहें कि अखिलेश यादव प्रदेश की जनता को “परिवर्तन की आहट” सुनाना चाह रहे हैं। डॉक्टर श्यामा प्रसाद
मुखर्जी शोध संस्थान की ये किताब 168 पन्ने की जिसमें कुल 28 लेखकों ने लिखा है। जबकि,
अखिलेश यादव की किताब “परिवर्तन की आहट” पूरी तरह से अखिलेश यादव के दिए गए भाषणों का
संग्रह है। करीब सवा दो सौ पृष्ठ की इस किताब में 34 शीर्षकों से प्रदेश में
समाजवादी सरकार के कामों का ब्यौरा दिया गया है। साथ ही अखिलेश यादव ने इस किताब
के जरिये भावनात्मक तौर पर भी यूपी की जनता से जुड़ने की कोशिश की है। बीजेपी
सरकार बदलने के लिए “परिवर्तन की ओर” जाने की बात कर रही है तो अखिलेश यादव “परिवर्तन की आहट” के जरिये प्रदेश की जनता को ये समझाना चाह रहे
हैं कि परिवर्तन की आहट पिछले 5 सालों में सुनाई देने लगी है लेकिन, परिवर्तन के
लिए जनता को उन्हें एक मौका और देना चाहिए। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की जनता के
सामने दो बड़ी पार्टियां परिवर्तन की दुहाई दे रही हैं। अब देखना है कि उत्तर
प्रदेश की जनता को “परिवर्तन की आहट” सुनाई देती है या वो “परिवर्तन की ओर” चल देती है।
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