14 सितंबर 2015 को रामपाल के समर्थन में जुटे भक्त |
भक्त कबीर
साहेब के साथ रामपाल को पूर्ण संत बताने वाले पोस्टर लिए घूम रहे थे। रामपाल एकदम
सबको आशीर्वाद देने वाली मुद्रा में तस्वीर खिंचाए थे। खैर, लोकतंत्र है। और
लोकतंत्र में जंतर मंतर है। सबको पूरा मौका है कि अपनी बात कहे। हम न्यायालय तो
हैं नहीं कि कोई फैसला सुनाएं। और वैसे भी रामपाल के भक्त न्यायालय को भी बुरा भला
कहने में कोई कसर नहीं छोड़े हैं। इस दिन जंतर मंतर से गुजरते यही अहसास हुआ कि
कितने न्याय की आस में गुहार लगाते कब से जंतर मंतर पर पड़े हैं। ये सरकार से
न्याय मांग नहीं रहे हैं। इनके पैमाने वाले न्याय के न मिलने पर धमकी दे रहे हैं।
लेकिन, जंतर मंतर है तो, लोकतंत्र का ही ना। इसलिए भीड़तंत्र भी काम कर रहा है।
गुलामी तो हमारे खून में गजब घुसी है। बाबा मिल जाए गुलामी के लिए तो क्या बात है।
अच्छा बाबा नहीं उपलब्ध है, तो बुरा बाबा ही सही। नेताओं की गुलामी से थोड़ा आगे
का मामला दिखता है।
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