अब तो
आंदोलन के मंच वाली तस्वीर आ रही है। उससे पहले की हार्दिक पटेल की तस्वीर यही
वाली है। जिसमें वो बंदूक कंधे पर रखे नजर आ रहे हैं। इससे समझा जा सकता है कि इस
पटेल को आरक्षण की कितनी जरूरत है। गुजरात में भाजपा के 120 में से 40 विधायक
पटेल हैं। मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल सहित सात मंत्री पटेल हैं। खेती तो कहने को
पटेलों की है। टेक्सटाइल, डायमंड और फार्मा की बड़ी-छोटी
कंपनियों पर पटेल ही काबिज हैं। कुल मिलाकर एक नौजवान पटेल नेता की राजनीतिक जमीन
की वजह बन रहा है ये आरक्षण आंदोलन और बुढ़ाई आनंदीबेन पटेल के अलावा सौरभ और नितिन पटेल जैसे पटेल नेताओं की
विफलता की कहानी भी कह रहा है ये पटेल आरक्षण आंदोलन। तथ्य ये भी है कि हार्दिक
पटेल के पिता बीजेपी नेता हैं। और तथ्य ये भी है कि केशुभाई पटेल ने नरेंद्र मोदी
को पलटने के लिए जाने कितने साल पटेलों का स्वाभिमान जगाने की कोशिश की। लेकिन, असफल
रहे। अब केशुभाई कहां हैं ये भी पता नहीं चल रहा। लेकिन, वो
खुश हो रहे होंगे। और खुश तो लोग दिल्ली से लेकर बिहार तक हो रहे होंगे। देखिए
किसकी खुशी कब तक टिकती है।
वैसे सबसे बेहतर इस आरक्षण के आंदोलन का
नतीजा यही हो कि इसी बहाने आरक्षण किसे और कितना और कब तक। इसकी पक्की वाली बहस
हो। पक्की वाली बहस के बाद, पक्का वाला नियम भी बन जाए। यूपी-बिहार का यादव और
गुजरात का पटेल आरक्षण लेगा तो सच में मुख्य धारा में आने के लिए घिसट रहा समाज कब
सहारा पाएगा। देश बात करे। जेपी आंदोलन में बिहार की भूमिका की बात बार-बार होती
है। गुजरात के छात्रावास में मेस फीस पर हुआ आंदोलन कम याद रहता है। मौका बढ़िया
है। बिहार का चुनाव है और गुजरात में पटेलों के लिए आरक्षण का आंदोलन है। देश का
भला करने के लिए ये बेहतर समय, आधार है।
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