सलमान खान ने अभी दो कमाल किए हैं। एक कमाल ये कि फिल्म में
पाकिस्तानी मुसलमान बच्ची के मुंह से जय श्रीराम कहलवा दिया। पूरे पाकिस्तान को
हिंदुस्तानी पवन चतुर्वेदी को वापस हिंदुस्तान अवैध तरीके से पहुंचाने के लिए सीमा
पर लाकर खड़ा कर दिया। और दूसरा कमाल ये कि लगे हाथ ये भी सवाल खड़ा कर दिया कि
टाइगर मेमन की गलती के लिए उसके भाई याकूब मेमन को फांसी क्यों दी जा रही है।
हालांकि, दूसरे कमाल के साथ ही उनके पिता सलीम खान ने तुरंत उससे भी बड़ा कमाल
करके तुरंत ये कह दिया कि सलमान को मामले की जानकारी नहीं है। इसलिए सलमान खान के
याकूब मेमन पर दिए गए बयान को गंभीरता से न लिया जाए। सलमान खान ने भी संस्कारी
पुत्र की तरह पिता का हवाला देते हुए अपनी गलती स्वीकार करके बयान वापस ले लिया।
ये कमाल ही था कि जिस दौर में साफ-साफ हिंदू-मुसलमान की रेखा खिंच गई थी। उस समय
भी सलमान खान यानी बजरंगी भाईजान के लिए उतनी कटुता हिंदू-मुसलमान दोनों तरफ से
नहीं दिखी। न तो बजरंगी भाईजान फिल्म में पाकिस्तानी मुसलमान बच्ची के मुंह से जय
श्रीराम कहलाने पर बहुतायत मुसलमानों ने लाहौल विला कुव्वत कहकर भारत में उनकी
फिल्म के कारोबार में जरा सा भी कमी आने दी। न ही बहुतायत हिंदुओं ने याकूब पर
उनके बयान के बाद भी उनको देश के दूसरे हिंदू धर्मनिरपेक्षों की तरह गालियां दीं।
दरअसल ये बहुत बड़ा उदाहरण है। ये सलमान खान की अपनी छवि, प्रतिष्ठा है कि सलमान
खान और उनके पिता सलीम खान को बहुतायत हिंदू भी अच्छी नजर से देखता है। सलमान खान
भी फिल्मी अभिनेता हैं। हर तरह की पिक्चरें करते हैं। हिंदू-मुसलमान सब बनते हैं।
ये फर्क अपने बयानों, व्यवहारों से बनाई छवि भर का ही है। ये फर्क है मौके की
संवेदनशीलता को समझने का। किसी को फांसी दिए जाने से कुछ लोगों को छोड़कर ज्यादातर
संवेदनशील हिंदुस्तानी दुखी ही होता है। लेकिन, इस समय देश के खिलाफ युद्ध जैसी
स्थिति बना देने वाला एक शख्स फांसी पर चढ़ रहा हो तो, विचार व्यक्त करने में
थोड़ा तो सोचना चाहिए। और वो बात कांग्रेसी सांसद शशि थरूर ने बोल देने के बाद समझ
में आई। शशि थरूर ने ट्वीट किया कि एक मनुष्य को फांसी पर चढ़ाया जा रहा है। और
सरकार हत्यारी हो गई है। इस पर शशि थरूर को जमकर विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, बाद
में मौके की नजाकत के लिहाज से शशि थरूर ने अपने बयान को गलत माना। उन्होंने कहाकि
किसी को भी फांसी की सजा देने के वो सिद्धांत रूप से खिलाफ हैं। लेकिन, उन्हें
याकूब की फांसी के समय ये मांग नहीं उठानी चाहिए थी। पता नहीं ये शशि थरूर ने स्वत: स्फूर्त किया या
बजरंगी भाईजान यानी सलमान खान की समझदारी से समझ बनाई। लेकिन, ये बेहतर सबक था जो,
उन्होंने तुरंत अमल में लिया।
सलमान खान यानी बजरंगी भाईजान से इस वक्त देश के लिए और देश में
बहुतों के लिए सीखने को बहुत कुछ है। सचमुच ये फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और
पाकिस्तानी प्रधाननमंत्री नवाज शरीफ को देखनी चाहिए। हालांकि, मैं ये भी मानता हूं
ये दोनों रिश्ते बेहतर करने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के फौजियों
को ये फिल्म जरूर देखकर सबक लेना चाहिए। इस फिल्म का सबसे बड़ा सबक दोनों देशों के
लिए यही है कि दोनों देशों के बच्चों को ज्यादा से ज्यादा मिलने का इंतजाम करना
होगा। भले ही ये फिल्म थी। जिसमें एक प्यारी सी बच्ची शाहिदा, जो पाकिस्तानी मुसलमान
है। जमकर मांसाहार स्वाभाविक तरीके से करती है। एक हिंदुस्तानी हिंदू ब्राह्मण पवन
चतुर्वेदी, जिसके लिए मांस छूना भी धर्म भ्रष्ट होने जैसा है। उसके लिए बंधन बन
जाती है। लेकिन, सच्चाई भी यही है कि नफरत कम करने का काम सबसे आसानी से बच्चे ही
कर सकते हैं। क्या इस तरह का कार्यक्रम दोनों देशों की सरकारें तैयार कर सकती हैं
कि दोनों देशों के सर्वोच्च फौजी अफसर मिलें न मिलें। सचिव स्तर के अधिकारी मिलें
न मिलें। हर महीने हिंदुस्तान-पाकिस्तान के स्कूली बच्चे एक दूसरे के स्कूल में
जाकर कुछ समय बिताएं। ये गुरुमंत्र रामबाण साबित होगा।
मीडिया सिर्फ निगेटिव खबरों को ही दिखाता है। सिर्फ भारत-पाकिस्तान के
बीच नफरत ही बेचता है। ये कहकर कि बिकती ही नफरत है। पाकिस्तानी संवाददाता चांद
नवाब के पाकिस्तानी चैनल के मुखिया को बजरंगी भाईजान की खबर चलाने के लिए कहने पर
संपादक का बयान कि हम खबर बेचते हैं, अनाथालय नहीं चलाते। ये हिंदुस्तान-पाकिस्तान
दोनों के मीडिया के लिए बराबर लागू होता है। दिल्ली-मुंबई या फिर इस्लामाबाद में
बैठा मीडिया असल पत्रकारिता का जरिया बन सकता है। अगर वो देश भर में फैले
पत्रकारों को उचित सम्मान दे। टीवी न्यूज चैनल में सबसे ज्यादा बुरे हाल में अगर
कोई है तो वो चांद नवाब जैसे छोटे शहरों, दूर दराज के इलाकों में काम कर रहे
स्ट्रिंगर ही हैं। स्ट्रिंगर या संवाद सूत्र यानी वो जो चैनल की नौकरी पर नहीं है।
खबर के लिहाज से भुगतान पाता है। उनकी पत्रकारिता को धार देने की जरूरत है।
ज्यादातर चैनलों के संपादक या चैनल की रीति नीति तय करने की स्थिति में बैठे
पत्रकार बजरंगी भाईजान फिल्म की ही तरह अच्छी, समाज को जोड़ने वाली नफरत कम करने
वाली खबरों को नकार देते हैं। उसकी बुनियाद में पत्रकारिता की शुरुआती शिक्षा -
कुत्ता आदमी को काटे ये खबर नहीं। आदमी कुत्ते को काटे ये खबर- की बड़ी भयानक
भूमिका है। इससे मीडिया की खुद की प्रतिष्ठा भी बेहतर होगी। और समाज भी बेहतर
होगा।
दोनों देशों की फौज भी बजरंगी भाईजान से काफी कुछ सबक ले सकती है। इस
फिल्म में तो पवन चतुर्वेदी पाकिस्तानी शाहिदा को छोड़ने के इरादे से पाकिस्तान
अवैध तरीके से घुसता है। लेकिन, भारत-पाकिस्तान की सीमाएं कई जगह ऐसी हैं। जहां इस
तरह की दुर्घटनाएं अनजाने में हो जाती हैं। वो रास्ता जमीनी भी है, समुद्री भी। निश्चित
तौर पर अपनी सीमा सुरक्षित रखने और दुश्मनी, आतंकवाद और गलत इरादे से घुसे लोगों
को सबक देने के लिए फौज को अपना काम करना ही चाहिए। लेकिन, ऐसा तंत्र विकसित करना
चाहिए कि गलती से सीमा के संकट में कोई न फंस जाए।
सबसे आखिरी सबक वही सबसे पहला वाला ही है। जो, याकूब के मामले में
सलमान खान ने असल जीवन में दिया है। वो सबक है। किसी की संवेदनशीलता का सम्मान
करना। और जब मामला देश का हो तो, ये संवेदनशीलता ज्यादा ही सम्मान मांगती है। इसलिए
असल जीवन के सलमान खान और फिल्मी चरित्र बजरंगी भाईजान से अगर हम ये सबक ले सके तो
काफी कुछ बेहतर हो सकेगा। धरती के जन्नत कश्मीर को लेकर जो कुछ हो रहा है। वो ठीक
नहीं है। जन्नत का ज्यादा हिस्सा हम हिंदुस्तानियों के पास है तो थोड़ी जन्नत
पाकिस्तान के पास भी है। अपनी जन्नत बनाए रखने के लिए हमें ये सबक लेना होगा।
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