अरविंद केजरीवाल की एक के बाद एक क्रांतिकारी हरकतों के बाद कई लोग दिल्ली की जनता का
मजाक उड़ाते दिख रहे हैं। क्योंकि, दिल्ली
की जनता ने साल भर में ही दो बार अरविंद और उनकी आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंपी।
अब जरा सोचकर देखिए कि दिल्ली की जनता कितनी समझदार है। उसका मजाक उड़ाने वाले
मूर्खता कर रहे हैं। लोकतंत्र संतुलित रहे, इसे
दिल्ली की जनता ने तय कराया। बीजेपी दिल्ली चुनाव के समय जिस तरह का व्यवहार कर
रही थी, क्या उस समय बीजेपी का दिल्ली जीतना
लोकतंत्र के लिए बेहतर होता। अरविंद को राजनीति के एक नए प्रयोग के तौर पर दिल्ली
की जनता ने परखने की कोशिश की। एक बार अल्पमत में और दोबारा बहुमत में सत्ता देकर।
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र की यही खूबी है। जब कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के
साथ लोकतंत्र में राजशाही जैसा व्यवहार करने लगी थी। तभी क्षेत्रीय पार्टियों का
उदय हो गया। और ऐसा उदय हुआ कि कांग्रेस को इन क्षेत्रीय पार्टियों के सामने नाक
रगड़नी पड़ी। राष्ट्रीय पार्टियों की तानाशाही से क्षेत्रीय पार्टियों के चंगुल
में फंसी राष्ट्रीय पार्टियों की सरकार का चक्र पूरा हुआ। लगने लगा था कि अब तो
देश में पूर्ण बहुमत की सरकार आने से रही। उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर राष्ट्रीय
परिदृष्य तक ऐसा ही दिखने लगा। फिर अचानक उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर राष्ट्रीय
सरकार तक परिपक्व लोकतंत्र की परिपक्व जनता ने पूर्ण बहुमत की सरकारें बनाना शुरू
कर दिया।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Sunday, May 10, 2015
बेवकूफ कौन- आम आदमी पार्टी या दिल्ली की जनता?
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राजनीतिक संतुलन के साथ विकसित भारत का बजट
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