हालांकि, ये कोई देशभक्ति का पक्का वाला पैमाना नहीं है। इसलिए भी कि अब दुनिया के काम करने का तरीका बदल गया है। दुनिया में सबकुछ ग्लोबल है, लोकल भी है। लेकिन, इस बार जब देश की राजनीति ऐसे बदली कि तीन दशक बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। वो भी उस दल की जो, कई मायने में जबरदस्त अछूत है। तो इस पैमाने को फिर से तैयार किया गया। पता नहीं वो संदेश सचमुच नरेंद्र मोदी ने किसी को एक बार भी भेजा था या नहीं। लेकिन, लाखों बार ये संदेश एक दूसरे को भेजा गया। सोशल मीडिया के हर मंच पर भेजा गया। मेरे पास भी आया। संदेश कह रहा है कि इस दीपावली पर भारतीय, स्वदेशी सामानों का ही इस्तेमाल करना है। खासकर Made in China से बचने की सलाह है। वजह भी ये कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Make In India की बात कर रहे हैं। हालांकि, ये प्रधानमंत्री Make In India कहकर देसी उद्योगपतियों से ज्यादा विदेशी उद्योगपतियों का आह्वान कर रहे हैं। फिर भी हमने सोचा कि इस प्रधानमंत्री की ये बात सुनते हैं। इसलिए खुद के खरीदे अपने घर की पहली दीपावली के लिए रोशनी Make In India या Made In India उत्पाद से ही करने का इरादा बनाया। लेकिन, पूरे भारतीय बाजार में चीन से आई, चमकती रोशनी की लड़ियों के बीच में एक भी भारतीय लड़ी मुझे नहीं दिखी। हारकर ये लड़ी मैं ले आया। घर की बालकनी में लटका दी।
ये परेशानी पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी मेरे मन में कई बार स्वदेशी की बात आई। लेकिन, बार-बार ये अहसास हुआ कि ऐसा भावनात्मक प्रयास इस बाजार के समय में संभव नहीं है। क्योंकि, बाजार में जो सस्ता है, अच्छा है। वही बिकेगी, चलेगा। फिर चाहे चीन के पटाके, बिजली की लड़ियां हों या फिर लक्ष्मी गणेश की मूर्ति। लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति तो मुझे मिट्टी से बनी मिल गई। और मुझे लगता है कि कम से कम ये तो चीन से नहीं आई होगी। लेकिन, इस चीन के कारोबार में जो छिपी बात है। Make In India अभियान को सफल बनाने के लिए ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझ में ये बात होगी, मैं मानता हूं। 25 रुपये से 150 रुपये में एक बालकनी को चमकाने भर की बिजली की लड़ी अगर चीन से चलकर यहां आ पा रही है। तो ये सोचने-समझने-अनुकरण करने की बात है। भारत को इसी पर काम करना होगा। और ये ज्यादा जोर शोर, आक्रामक रणनीति के साथ इसलिए भी करना होगा कि नरेंद्र मोदी के Make In India के खतरे को भांपते हुए शी जिनपिंग ने Made in China का नारा और बुलंद कर दिया है। शुभ दीपावली।
ये परेशानी पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी मेरे मन में कई बार स्वदेशी की बात आई। लेकिन, बार-बार ये अहसास हुआ कि ऐसा भावनात्मक प्रयास इस बाजार के समय में संभव नहीं है। क्योंकि, बाजार में जो सस्ता है, अच्छा है। वही बिकेगी, चलेगा। फिर चाहे चीन के पटाके, बिजली की लड़ियां हों या फिर लक्ष्मी गणेश की मूर्ति। लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति तो मुझे मिट्टी से बनी मिल गई। और मुझे लगता है कि कम से कम ये तो चीन से नहीं आई होगी। लेकिन, इस चीन के कारोबार में जो छिपी बात है। Make In India अभियान को सफल बनाने के लिए ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझ में ये बात होगी, मैं मानता हूं। 25 रुपये से 150 रुपये में एक बालकनी को चमकाने भर की बिजली की लड़ी अगर चीन से चलकर यहां आ पा रही है। तो ये सोचने-समझने-अनुकरण करने की बात है। भारत को इसी पर काम करना होगा। और ये ज्यादा जोर शोर, आक्रामक रणनीति के साथ इसलिए भी करना होगा कि नरेंद्र मोदी के Make In India के खतरे को भांपते हुए शी जिनपिंग ने Made in China का नारा और बुलंद कर दिया है। शुभ दीपावली।
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