बड़ी मुसीबत है। सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से कह दिया है कि वो काला धन वाली सूची हमें तो दे ही दो। हम उसको किसी को नहीं बताएंगे। अच्छा रहा कि सुप्रीमकोर्ट अभी ये नहीं कह रहा है कि देश के हर काला धन वाले की सूची हमें सौंपो या देश को सौंपो। फिर तो मामला एकदम गड़बड़ा जाएगा साहब। देश की सरकार को जनसंख्या जानने से भी बड़ी मुहिम चलानी पड़ जाएगी। सड़क पर बैठा मोची, सुबह दूध देने वाला, हमारा धोबी, हमारी गाड़ी साफ करने वाला, हमारा सब्जी वाला, हमारी काम वाली सब काले धन के खातेदार हैं। हालांकि, इन काले धन वालों में कितनों का खाता खुला होगा। भगवान जानता होगा या वो काले धन वाले खुद जानते होंगे। सोचिए हर रोज जो चाय नाश्ता हम-आप सड़क किनारे की दुकान पर करते हैं। कितने की रसीद लेते हैं। तो जाहिर बिना बिल का कोई भी भुगतान काला धन हो गया। अब भारतीय रुपये का नोट हरा हो, लाल हो या फिर और रंग का। लेकिन, कानूनी पैमाने पर तो एक झटके में हर नोट काला हुआ जाता है। सोचिए घर का खर्च चलाने का पैसा नहीं है ये सड़क पर बैठा मोची हर रोज कहता होगा। लेकिन, उसने कब कहा कि उसके पास भी काला धन है। अब सोचिए देश के हर काला धन वाले का हिसाब लगाना पड़ा तो मोदी सरकार के पांच साल तो इसी में बीत जाएंगे। सारा आधार, जनसंख्या रजिस्टर, बायोमीट्रिक सिस्टम सब गड़बड़ा जाएगा।
अर कौन-कौन से तो विभाग हैं। बिना पंजीकरण के दुकान लगी तो उसके लिए जिम्मेदारी अधिकारी, कर्मचारी, विभाग भी काला धन का जिम्मेदार। नौकरी करने वाला पूरी ईमानदारी से टैक्स भरे लेकिन, काला धन में वो भी जिम्मेदार। चाय की दुकान सड़क किनारे लगी तो नगर निगम, प्राधिकरण का अधिकारी जिम्मेदार। और वो सेल्स टैक्स वाला जो हर कारोबारी का टिन नंबर जांचता है वो भी तो काला धन का जिम्मेदार। अमूल दूध की अरबों की कंपनी। लेकिन, दूध के आधा लीटर पैकेट का बिल नहीं दिया तो वो भी काला धन की जिम्मेदार। मतलब सफेद दूध की क्रांति करने वाली कंपनी भी जाने-अनजाने गजब काले धन की क्रांति में शामिल है। फिर सोचिए। देश का हर सरकारी विभाग क्या कर रहा होगा। सिर्फ एक काम। नोटिस जारी करना। सेल्स टैक्स विभाग के अधिकारी, कर्मचारी खड़ें होंगे सड़क किनारे की दुकानों पर एक दिन में कितना कमाया। इस कमाई के लिहाज से उस दुकान को कितना सेल्स टैक्स देना होगा। फिर वहीं खड़ा होगा इनकम टैक्स विभाग वाला। पूछेगा- इतना बेचा तो कितना कमाया। और इतना कमाया तो टैक्स कितने का दिया। टैक्स नहीं दिया तो क्यों नहीं दिया। और दिया तो कम क्यों दिया। मतलब काला धन बढ़ाया। सारे स्वच्छता अभियान, जनधन योजना, सीधे खाते में सब्सिडी की रकम -- सबके रंग इस काले धन वाली मुहिम के सामने उतर जाएंगे। वैसे भी काले रंग के आगे भला कौन सा रंग टिका है आजतक।
किसी ने कहा तो भगवान श्रीकृष्ण के संदर्भ में होगा कि सब रंग कच्चा संवरिया रंग पक्का। ऐसे ही थोड़े न ब्लैक इज ब्यूटीफुल लिखी लाइनें खूब चलीं होगीं। लेकिन, काला दिखाने का प्रचलन द्वापरयुग के बाद खत्म सा हो गया। और ये तो घोर कलियुग है साहेब। इस कलियुग में तो काला रंग छिपाने के लिए ढेर सारी क्रीम मौजूद है। जब काला रंग छिपाने के लिए इतना इंतजाम हमारे कलियुग में है तो भला काला धन छिपाने के लिए क्यों न हो। काले धन को तो हम जबर्दस्ती काला कह रहे हैं। कम से कम भारत में तो किसी नोट का रंग काला नहीं है। फिर भी सुप्रीमकोर्ट ने कह दिया है तो नई-नई श्रेणियों में सुप्रीमकोर्ट में काला धन वालों के लिफाफे जाएंगे। छोटे काले धन वाले की सूची, मोटे काले धन वालों की सूची। सड़क किनारे काला धन वालों की सूची, म़ॉल के काला धन वालों की सूची। और बढ़िया होगा कि शहरों की भी काला धन सूची आए। और शहरों में मोहल्ले और फिर मोहल्ले में गलियों की काला धन सूची आए। देश के व्यवस्थित चंडीगढ़, नोएडा, गुड़गांव और ग्रेटर नोएडा जैसे व्यवस्थित शहरों से सेक्टरों की अलग-अलग काला धन सूची आ जाएगी। कितना मजा आएगा जब किसी अखबार की हेडलाइन होगी। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव ने काला धन के मामले में मुंबई के कफ परेड इलाके को पीछे छोड़ा। लग जाओ सरकार। इससे बड़ी मुहिम दुनिया में कहीं-कभी नहीं चली होगी। भारत विश्व का नेता बनने जा रहा है। नया उदाहरण पेश होगा।
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