Saturday, May 31, 2014

मोदी के 10 का कितना दम?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काम की शैली कुछ ऐसी है कि एक बात तो लगने लगी है कि इस सरकार में मंत्री हो या बाबू काम किए बिना काम नहीं चलेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय में नरेंद्र मोदी की अधिकारियों के साथ बात करती एक तस्वीर मीडिया और सोशल मीडिया में गजब छाई हुई है। नरेंद्र मोदी की ये एक ऐसी छवि है कि प्रधानमंत्री होने के बाद भी नरेंद्र मोदी ऑफिस की कुर्सी पर ही चिपके रहकर सिर्फ फैसले नहीं लेते हैं। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही था कि आखिर नरेंद्र मोदी की सरकार के काम करने का तरीका क्या होगा। उसकी प्राथमिकता क्या होगी। और नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों को साफ-साफ निर्देश दे दिए हैं कि काम की प्राथमिकता क्या होगी। खबरें हैं कि नरेंद्र मोदी दस के दम के जरिये इस सरकार का प्रभाव आम लोगों के दिमाग में बसाने की योजना तैयार की है। नरेंद्र मोदी को पता है कि इस देश में लोग सबसे ज्यादा त्रस्त यूपीए के कार्यकाल में दो बातों से रहे। पहला उनकी तरक्की कम होती गई और उस पर कोढ़ में खाज ये कि महंगाई लगातार बढ़ती रही। इसलिए मोदी सरकार की दस प्राथमिकताओं में पहली प्राथमिकता भी यही है। सभी मंत्रियों को खासकर आर्थिक, बुनियादी मंत्रालयों को कहा गया है कि आर्थिक तरक्की के रास्ते में आ रही सारी बाधाएं तेजी से दूर की जाएं। महंगाई घटाई जाए। हालांकि, ये सबसे कठिन काम होगा। क्योंकि, वित्तीय वर्ष 2014 की तरक्की की रफ्तार के आंकड़े पांच प्रतिशत के नीचे ही रहने वाले हैं। यूपीए दो के आखिरी दिनों में तरक्की की रफ्तार किस कदर बिगड़ चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगातार छे तिमाही में तरक्की की रफ्तार साढ़े चार प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही रही है। इस रफ्तार को पांच प्रतिशत करने के लिए जिस तरह के फैसले लेने के साथ लागू करने की जरूरत है उसमें कम से कम थोड़ा समय लगेगा। हां, अच्छी बात ये है कि इस सरकार के आने के साथ दुनिया का भरोसा भारत में बड़ी तेजी में लौटा है। लेकिन, महंगाई घटाने की प्राथमिकता इससे भी बड़ी चुनौती होगी। अच्छी बात ये है कि ढेर सारे राजन रहेंगे या जाएंगे अनुमानों के बावजूद वित्त मंत्री अरुण जेटली फिलहाल तुरंत तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन को नहीं हटाने जा रहे। राजन की नियुक्ति भले ही पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने की हो। 

लेकिन, राजन ने जिस तेजी में रुपये को संभाला और कुछ हद तक महंगाई को काबू में करने की कोशिश की वो, सराहनीय है। लेकिन, एक बात जो सबसे जरूरी है वो है ब्याज दरों का घटना। अब इस मोर्चे पर नए वित्त मंत्री के साथ राजन कैसे संतुलन बैठाएंगे और नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता को कैसे अमल करा पाएंगे ये बड़ा प्रश्न है। नरेंद्र मोदी गुजरात राज्य की बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के आधार पर ही चुनाव लड़े। इसलिए नरेंद्र मोदी का अपने मंत्रियों को साफ निर्देश है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और सड़क की सुविधाएं जितनी जल्दी जितने ज्यादा लोगों को पहुंचे उस पर काम किया जाए। ये चुनौती और भी बड़ी इसलिए हो जाती है कि शिक्षा का जिम्मा जिस मानव संसाधन विकास मंत्रालय के जिम्मे है उसे स्मृति ईरानी को देने से खूब विवाद हो चुका है। लेकिन, स्मृति ईरानी ने जवाब दिया है कि मेरे काम से मेरी क्षमता आंकें तो बेहतर होगा। वैसे ये माना जाता है कि नरेंद्र मोदी खुद शिक्षा को लेकर बहुत कुछ सोचते हैं इसीलिए उन्होंने अपने दृष्टिकोण को बिना किसी तरह की रुकावट के लागू करने के लिए ही स्मित ईरानी को ये महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया है। लेकिन, नरेंद्र मोदी की शिक्षा को लेकर एक नीति में थोड़ी सी स्पष्टता आनी जरूरी है कि वो वोकेशनल, प्रोफेशनल कोर्सेज की पढ़ाई से तैयार जवान भारत देखने की इच्छा रखते हैं या फिर दुनिया के सबसे बड़े शोध संस्थानों में भी भारत का शुमार हो ये भी उनकी योजना में है। जहां तक स्वास्थ्य, बिजली, सड़क और पानी का सवाल है तो उसके लिए लंबी योजना बनाकर उसे टुकड़ों में जल्दी-जल्दी लागू करना होगा। जिससे दिखे कि इस प्राथमिकता पर मोदी सरकार काम कर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से इतना तो साबित हो चुका है कि काम करने के लिए पांच-छे साल का समय भी बहुत होता है।

बुनियादी सुविधाओं को तेजी से लागू करने के लिए ढेर सारा निवेश भी चाहिए और इसके लिए एफडीआई आए इसका इंतजाम करना होगा। हालांकि, इस मोर्चे पर नरेंद्र मोदी की जो साख दुनिया में गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान बनी है तो ज्यादा मुश्किल इस मोर्चे पर नहीं होनी चाहिए। माना जा रहा है कि एफआईआई और एफडीआई दोनों मिलाकर इस वित्तीय वर्ष में साठ बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का विदेशी निवेश भारत में होगा। नरेंद्र मोदी देश के ऐसे नेता हैं जिन्होंने तकनीक और सोशल मीडिया का समय से और बेहतर इस्तेमाल करके अपनी छवि बेहतर की और देश की सर्वोच्च सत्ता पर आसीन हुए। अब वो इसका इस्तेमाल अपनी सरकार के बेहतर कामों को लोगों तक पहुंचाने और उस काम को और बेहतर बनाने के लिए जनता की सहभागिता तय करने के लिए करना चाहते हैं। इस काम में उनकी टीम की विशेषज्ञता और प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय की चमकती वेबसाइट साबित करती है कि इसमें उन्हें ज्यादा मुश्किल नहीं आने वाली। पिछली सरकार की एक सबसे बड़ी कमी ये रही कि ढेर सारे प्रोजेक्ट में लगातार देरी होती रही। अब नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों को कहा है कि कोई भी काम एक तय समय में पूरा किया जाए। करीब अस्सी हजार करोड़ रुपये की परियोजनाएं पर्यावरण से लेकर अलग-अलग वजहों से अभी तक रुकी हुई हैं। इसीलिए नरेंद्र मोदी की दस प्राथमिकताओं में मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय की बात भी शामिल है। जिससे एक मंत्रालय की फाइल दूसरे मंत्रालय में बिना वजह लंबे समय तक न रुकी रहे। सरकारी नीतियां लगातार बदलती रहें तो फिर कोई भी निवेश करने वाला निवेश करने से डरेगा और यूपीए के कार्यकाल में यही हुआ। यहां तक कि सबसे ज्यादा चर्चित मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई तक के फैसले को वापस लिया गया और फिर से लागू किया गया। उसी का नतीजा था कि यूपीए दो में सरकार की हरसंभव कोशिश के बाद भी कोई विदेशी दुकान दिखाने के लिए भी नहीं खुल सकी। नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि नीतियां जो एक बार अमल में आएं उसमें बार-बार बदलाव न हो। इसमें ज्यादा मुश्किल इसलिए भी आती नहीं दिखता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी साफ कर दिया है कि संघ आर्थिक तौर पर रुढ़िवादी नहीं है। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि नरेंद्र मोदी की सरकार को फैसले लेने या बदलने के लिए बेवजह का दबाव कम से कम संघ की तरफ से तो नहीं झेलना पड़ेगा। नरेंद्र मोदी ये भी चाहते हैं कि उनकी सरकार में सबकुछ पारदर्शी हो और लोगों को सरकारी काम लेने में सहूलियत हो। इसके लिए मोदी सरकार ई ऑक्शनिंग पर जोर देगी। इसका मतलब ये हुआ कि लालफीताशाही के जरिये बरसों से हो रही टेंडर प्रक्रिया को ज्यादा तेजी से और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाएगा। ये पूरी तरह से किसी सरकार के काम करने के तरीके पर निर्भर होता है और नरेंद्र मोदी ने जो शुरुआती संदेश दिए हैं उसमें तो ये नहीं लगता कि कोई भी मंत्रालय या विभाग इसमें जरा भी कोताही बरतना चाहेगा। बार-बार ये कहा जाता है कि सरकार तो बाबू चलाते हैं। लेकिन, यूपीए दो में एक और जो सबसे खराब बात हुई कि उद्योगपतियों से लेकर सरकारी बाबुओं तक, सबका मनोबल टूटा। उसमें भी ये संदेश गया कि ईमानदार अधिकारियों को फैसले लेने पर फंसने का खतरा है। नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि आधिकारियं का मनोबल बढ़ाया जाए। जिससे वो बड़े और कड़े फैसले ले सकें। इसी शुरुआत नरेंद्र मोदी ने एक ईमानदार और बेहद कड़ी छवि के नृपेंद्र मिश्रा को प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाने के लिए अध्यादेश लाकर कर दी है। मतलब संदेश साफ है कि आप काम करना चाहते हैं तो ये सरकार आपके लिए है। और सबसे बड़ी बात कि दस प्राथमिकताओं में नरेंद्र मोदी ने बहुत साफ किया है कि आपकी सरकार बहुत ऊंची अकांक्षाओं पर आई है। जनता को बहुत उम्मीदें हैं इस सरकार से। इसलिए जनादेश पूरा करने में जरा सा भी कोताही नहीं होनी चाहिए। अब नरेंद्र मोदी की सरकार उनके दस का दम दिखाकर अर्थव्यवस्था और देश की मजबूती वापस ला पाएगी। इसके लिए तो थोड़ा इंतजार करना होगा। लेकिन, शुरुआती संकेत में जिस तरह से मंत्रियों में जल्दी से जल्दी काम करने की होड़ लगी है उससे साफ है कि 100 दिन बाद देश को बताने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार के पास काफी कुछ होगा।

No comments:

Post a Comment

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...