अंतरिम
बजट में जब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने छोटी कारों के साथ एसयूवी गाड़ियों
पर भी एक्साइज ड्यूटी घटाने का एलान किया तो उसे बेहद कमजोर बिक्री
आंकड़ों से मूर्छित सी हो रही ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को संजीवनी देने के
लिहाज से देखा गया। खुद वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी यही दलाल देकर
एक्साइज ड्यूटी घटाई। लेकिन, बजट अंतरिम भले था। बजट चुनावी भी था। इसलिए
इसमें चुनावी वजह खोजना स्वाभाविक है। निजी तौर पर मुझे लगता है कि ऑटो
इंडस्ट्री के साथ एसयूवी गाड़ियों पर एक्साइज ड्यूटी घटाकर वित्त मंत्री पी
चिदंबरम ने अपनी नेताओं की जमात का भी बड़ा भला किया है। ये कोई छिपा तथ्य
नहीं है कि देश में ज्यादातर राजनेताओं की पहली पसंद एसयूवी कारें हैं।
यानी वो गाड़ियां जो थोड़ी ऊंची और बड़ी होती हैं। जो आम जनता के बीच ही
खास का अहसास देती है। खैर, भले ही वित्त मंत्री पी चिदंबरम के इस फैसले से
नेताओं को चुनावी जरूरत के समय थोड़ी सस्ती एसयूवी मिले। लेकिन, इतना तो
तय है कि अगर ये एसयूवी गाड़ियां थोड़ा कम दामों में भी बिकती हैं तो भले
सरकारी खजाने में एक्साइज टैक्स के तौर पर कम रकम आए। इंडस्ट्री को इस
फैसले से जरूर तेजी मिलेगी। और सिर्फ एक अंतरिम बजट के फैसले का ही सवाल
नहीं है। दरअसल लंबे समय से आर्थिक स्थिरता की शिकार भारत की अर्थव्यवस्था
के लिए भारतीय लोकतंत्र का ये महोत्सव इकोनॉमिक स्टिमुलस के तौर पर दिख रहा
है। लोकतंत्र के महोत्सव के बहाने भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलने वाला ये
स्टिमुलस यानी राहत पैकेज न सिर्फ अर्थव्यवस्था में तेजी लाएगा। बल्कि,
नौजवान भारत की सबसे बड़ी समस्या यानी रोजगार के लिए भी बड़ी राहत का काम
करेगा। चुनावी
खर्च के तौर पर जो अनुमानित रकम भारतीय अर्थव्यवस्था में सिस्टम में आएगी।
उसका अंदाजा लगाइए। ये रकम है तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा। ये रकम
2008 की मंदी से उबरने के लिए उद्योगों के दिए गए हर तरह के राहत पैकेज से
ज्यादा है। 2008 की मंदी से उबरने के लिए भारत सरकार ने कुल बीस हजार करोड़
रुपये के राहत पैकेज का एलान किया था। जो ज्यादातर उद्योगों को तरह-तरह की
छूट और भविष्य की योजनाओं के लिए प्रोत्साहन के तौर पर दिया गया था। अब
भारतीय लोकतंत्र के इस महोत्सव से तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम
अर्थव्यवस्था में शामिल हो जाएगी।
ये रकम इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इसके लिए सरकार को अपनी दूसरी योजनाओं में कटौती नहीं करनी पड़ेगी और न ही जनता पर अलग से कई तरह के टैक्स का बोझ लादना पड़ेगा। और ये भी अच्छी बात है कि इस रकम का बड़ा हिस्सा वो काला धन होगा जिसका जिक्र भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी बड़े ठसके से इस तरह करते हैं कि काला धन देश में वापस आ जाए तो देश की सारी समस्या का हल हो जाएगा। दरअसल मैं ये मानता हूं कि देश के बाहर कितना काला धन है और वो कैसे आएगा ये अलग विषय लेकिन, देश के अंदर का काला धन अगर सिस्टम में ठीक से आ जाए तो देश का बड़ा भला हो जाए। मोटे तौर पर देश की 543 लोकसभा सीटों से कम से कम दो हजार महत्वपूर्ण प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे। और अगर ये माना जाए कि इनमें से हर प्रत्याशी औसत चार करोड़ रुपये भी खर्च करेगा तो कम से कम सिर्फ इन प्रत्याशियों के खर्च से ही सिस्टम में आठ हजार करोड़ रुपये से ज्यादा आ जाएंगे। जाहिर है इसमें पार्टियों के निजी खर्चे और स्टार प्रचारकों के ऊपर खर्च होने वाली रकम शामिल नहीं है। एक मोटे अनुमान के तौर पर दोनों राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के कम से कम 25 स्टार प्रचारक होंगे। जिनके लिए पार्टी निजी विमान किराए पर लेगी। इसका सीधा सा मतलब ये होगा कि सिर्फ निजी विमानों को किराए के तौर पर ही दोनों राष्ट्रीय पार्टियां चुनाव के दौरान बड़ी रकम निजी विमान चलाने वाली कंपनियों को देंगी। और देश की कई क्षेत्रीय पार्टियां भी इस मामले में राष्ट्रीय पार्टियों को टक्कर देती नजर आती हैं। चुनाव के समय देश के विज्ञापन उद्योग के लिए मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा होता है। मोटे तौर पर देश के विज्ञापन उद्योग में कम से कम दो हजार करोड़ रुपये आते हैं। खबरें थीं कि इस चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से पांच सौ करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है। और भारतीय जनता पार्टी भी इसमें ज्यादा पीछे नहीं है। भारतीय जनता पार्टी का चुनावी विज्ञापन बजट करीब चार सौ करोड़ रुपये का बताया जा रहा है। यानी करीब एक हजार करोड़ रुपये तो सिर्फ कांग्रेस और भाजपा का ही चुनावी विज्ञापन बजट है। क्षेत्रीय पार्टियों के चुनावी विज्ञापन का बजट इसमें शामिल नहीं है।
(इसी पर ऑस्ट्रेलिया के एसबीएस रेडियो से हुई मेरी बातचीत भी यहां सुन सकते हैं।)
पता नहीं; एक जुमला चल रहा था कि हारती सेना पीछे हटते आग लगाती जाती है जिससे जीतने वाले को जीत में राख मिले!
ReplyDeleteचलिये, किसी को तो लाभ मिल रहा है, सब तो आशा छोड़ चुके थे।
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