देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Tuesday, July 12, 2011
सुस्त बाजार, गायब पब्लिक ऑफर
इस साल शेयर बाजार की डांवाडोल रफ्तार बाजार के जरिए पैसा जुटाने की इच्छा रखने वाली नई कंपनियों पर भारी पड़ती दिख रही है। साल 2011 आधा बीत रहा है और अभी तक शेयर बाजार के प्राइमरी मार्केट में पैसा लगाने वालों के लिए ज्यादा विकल्प नहीं दिख रहे हैं। पिछले साल की तेजी के भरोसे इस साल कई कंपनियों ने अपना आईपीओ लाने का इरादा कर रखा था। लेकिन, प्राइमरी मार्केट में कंपनियां उतरने का साहस ही नहीं जुटा पा रही हैं। जनवरी से जून महीने की ही बात करें तो, 15 आईपीओ बाजार में उतरने थे लेकिन, समयसीमा खत्म होने के बाद भी वो, बाजार में नहीं आए। ये वो 15 आईपीओ यानी इनीशियल पब्लिक ऑफर थे जिन्हें, बाजार रेगुलेटर सेबी से मंजूरी मिल चुकी थी। एक बार समय सीमा खत्म होने का सीधा सा मतलब ये हुआ कि अब इनके पब्लिक ऑफर फिलहाल तो नहीं आ सकेंगे।
जिन कंपनियों के आईपीओ सेबी से मंजूरी के बाद भी बाजार में नहीं आ सके। वो, कंपनियां हैं जिंदल पावर, रिलायंस इंफ्राटेल, गुजरात स्टेट पेट्रोलियम, स्टरलाइट एनर्जी, लोढ़ा डेवलपर्स, बीपीटीपी, एंबियंस, ग्लेनमार्क जेनेरिक्स, नेपच्यून डेवलपर्स, कुमार अर्बन डेवलपर्स और एएमआर कंसट्रक्शंस। इनमें से ज्यादातर कंपनियां या तो रियल एस्टेट सेक्टर की हैं या फिर पावर सेक्टर की। वैसे, इन कंपनियों के आईपीओ न आ पाने की बड़ी वजह ये है कि रियल एस्टेट सेक्टर के हालात अंदर से खराब हैं। ज्यादातर कंपनियों के प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं और पिछले छे महीने में कीमतें भी स्थिर रही हैं। इसके अलावा पावर सेक्टर की कंपनियों के आईपीओ के लटकने की जो वजह बताई जा रही है वो, ये कि पावर सेक्टर की कंपनियों को निवेश पर मुनाफा कमाना मुश्किल हो गया।
अब ये 15 आईपीओ बाजार से बाहर हो चुके हैं। अगर ये आईपीओ बाजार में आते तो, करीब 25 हजार करोड़ रुपए बाजार से जुटाते। लेकिन, फिलहाल आईपीओ बाजार में दिख रही सुस्ती से निवेशकों को सिर्फ सेकेंडरी बाजार के सहारे ही रहना पड़ रहा है। सेकेंडरी बाजार यानी वो, शेयर जो पहले से ही शेयर बाजार में लिस्टेड हैं। आईपीओ बाजार में कमजोरी की सबसे बड़ी वजह यही मानी जा रही है कि साल 2011 की पहली छमाही में एफआईआई निवेश की रफ्तार बहुत घटी है। इसकी वजह से सेंसेक्स जो, दिवाली पर 21000 का स्तर पार कर गया था। उसके बाद 18000-19000 के बीच में ही लटक रहा है।
दरअसल पिछले साल के आखिर में जिस तरह से बाजार में तेजी आई थी। और, देश की तरक्की दस अंकों के नजदीक जाती दिख रही थी। उसने निवेशकों का सेंटिमेंट बेहद मजबूत कर दिया था। बाजार के कई तो, सेंसेक्स के इस साल जुलाई के महीने तक 25000 के नजदीक पहुंचने की भविष्यवाणियां भी करने लगे थे। लेकिन, एक के बाद एक घपले-घोटालों की सरकार के कारनामे जैसे-जैसे सामने आने लगे, धीरे-धीरे सारे सेंटिमेंट उल्टी दिशा में चल पड़े। महंगाई को 5-6 प्रतिशत के बीच में लाने का भरोसा बार-बार दिलाने वाली ये सरकार अब बात करने लगी है कि 7-8 प्रतिशत की महंगाई दर ही अभी की सही महंगाई दर है।
इस सबने भारतीय बाजारों के सेंटिमेंट को बुरी तरह प्रभावित किया है। सेंसेक्स के दिग्गज रिलायंस के लिए एक के बाद एक उत्पादन से लेकर नीतियों में फेरबदल कराने तक की ऐसी खबरें आईं कि ये उबर ही नहीं पा रहा । यही वजह है कि कंपनियों नए आईपीओ बाजार में उतारने का साहस नहीं कर पा रही हैं। साल 2010 के आखिर में बाजार में आई शानदार तेजी के भरोसे आईपीओ में पैसा लगाकर निवेशकों ने जमकर मुनाफा कमाया। पिछले साल के आखिर में आए कोल इंडिया के आईपीओ ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। और, कोल इंडिया ही क्यों, साल 2010 शेयर बाजार में आईपीओ मार्केट के लिए कितना खास रहा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सिर्फ सरकारी कंपनियों के पब्लिक इश्यू में ही दस लाख से ज्यादा निवेशक शामिल हुए। हां, सबसे बड़ा धमाका रहा कोल इंडिया के काले सोने का।
साल 2010 में शेयर बाजार के प्राइमरी मार्केट की सबसे बड़ी खबर बनी करीब पंद्रह हजार करोड़ रुपए का कोल इंडिया का आईपीओ। कोल इंडिया ने देश का सबसे बड़ा IPO बाजार में उतारा और निवेशकों ने इसे हाथों हाथ लिया। दिवाली के पहले आए इस IPO ने निवेशकों को मालामाल भी किया। कोल इंडिया के पब्लिक इश्यू में पैसा लगाने वाले निवेशकों को 60 प्रतिशत तक मुनाफा कमाने को मिला। कोल इंडिया का IPO निवेशकों के लिए काला सोना साबित हुआ। ये शेयर ऐसा चढ़ा कि इसने मार्केट कैपिटलाइजेशन में ओएनजीसी तक को पीट दिया। इसके बाद तो जो भी IPO आए निवेशकों ने उसे हाथों हाथ लिया। सिर्फ सरकारी कंपनियों के ही पब्लिक इश्यू के लिए दस लाख से ज्यादा निवेशक लाइन में लगे। कोल इंडिया (CIL) के अलावा पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन (PGCIL), और मैंगनीज ओर (MOIL) के IPO को अच्छा रिस्पॉन्स मिला।
इसके अलावा साल 2010 में जितने IPO आए हैं वो, तेजी 3 साल के बाद दिखी है। 2007 में तेजी के दौर में 96 IPO आए थे लेकिन, जनवरी 2008 में शुरू हुई मंदी के असर से 2008 में 36 और 2009 में सिर्फ 21 कंपनियां ही बाजार में अपना IPO लाने की हिम्मत जुटा सकीं। 2010 में 72 IPO आए। यानी साल 2010 प्राइमरी मार्केट के लिए शानदार साबित हुआ है। लोगों को उम्मीद थी कि साल 2011 भी आईपीओ मार्केट के लिए धमाकेदार साबित होगा। लेकिन, आधा साल बीत जाने के बाद भी इस साल अब तक सिर्फ 24 आईपीओ ही बाजार में आए हैं। अब उम्मीद साल की अगली छमाही पर ही टिकी है। लेकिन, वो तेजी तभी आएगी जब महंगाई से राहत मिले और देश की तरक्की की रफ्तार फिर से तेज हो सके। साथ ही सबसे जरूरी ये कि देसी उद्योगपतियों को ये न लगे कि भारत से बेहतर मुनाफा भारत से बाहर पैसा लगाकर बनाया जा सकता है। ये सब हुआ तभी विदेशी निवेशक फिर से लौटेंगे और उनके भरोसे देसी निवेशक भी। इसलिए अभी प्राइमरी मार्केट में पैसा लगाने वाले निवेशकों के लिए सलाह यही है कि वो, सोच-समझकर ही किसी नई कंपनी में रकम लगाएं।
कुल 25000 करोड़ रुपए के आईपीओ बाजार में नहीं आए
2007 में 96 आईपीओ आए
2008 में 36 आईपीओ आए
2009 में सिर्फ 21 आईपीओ आए
2010 में 72 आईपीओ आए
2011 में अब तक सिर्फ 24 आईपीओ आए
(ये लेख शुक्रवार पत्रिका में छपा है)
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बाजार सुस्त है पर पैसा तो है ही, मँहगाई जो बढ़ रही है।
ReplyDeleteहालत खराब है,सही तस्वीर.
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