मेरे मित्र रवीश इस बार बहराइच गए तो, उन्हें दर्दनाक खबर सुनने को मिली। उनके दोस्त की हत्या कर दी गई जिसे पुलिस दुर्घटना बता रही है। पत्रकार होने के बावजूद वो, बहराइच में कुछ खास नहीं कर पाए। उन्होंने ये वाकया मेरे पास भेजा जिसे में ब्लॉग पर छाप रहा हूं। कोई और मदद तो हम दूर बैठकर शायद नहीं कर सकते। लेकिन, आवाज तो उठा ही सकते हैं।
अब जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है कम से कम राकेश की मौत ने यह बता दिया...मैं पिछले दिनों अपने शहर बहराईच गया था वहीं पता चला कि मेरे दोस्त राकेश साहू का क़त्ल हो गया....हालांकि पुलिस ने बताया कि उसकी हत्या नहीं बल्कि दुॆघटना हुई...लेकिन मौके-ए-वारदात और मेरे दोस्त महेद्र के प्रयासों के चलते हम यह समझाने में कामयाब रहे कि राकेश का बाकायदा क़त्ल किया गया है....राकेश रंगकॆमी..साहित्यकार..और मददगार शख्श था...हमेशा हंसते हुए वो दूसरों की मदद करता था लेकिन पैसों से नहीं बल्कि साथ खड़े होकर..मैं जब भी अपने घर से वापस दिल्ली या कहीं और जाने लगता तो वह कोशिश करके मुझे छोड़ने रोडवेज तक आता था..और बाद में नम आंखों से हाथ हिलाता रहता तब तक जब तक मेरी बस उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती
...जब उसकी मौत की खबर मुझे पता चली तब मैं कोतवाली से लेकर लोकल अखबार के दफ्तरों के चक्कर काटता रहा कि शायद उसके क़ातिलों को पकड़ने में कोई दिलचस्पी दिखाए..लेकिन अखबार ने रोज़ाना मिलने वाले पुलिस को नाखुश न ही किया....और वही छापा जो पुलिस बता रही थी..लेकिन बाद में एसपी चंद्रप्रकाश से जब हमने बात की तो उन्होंने कहा कि यह मॆडर और हम जल्द ही वॆक आउट कर लेंगे....लेकिन २० दिन बीतने को है कोई भरोसा पैदा करने वाला काम पुलिस ने नहीं किया..ऊपर से जो राकेश शहर के लिए बेगाना नहीं था उसकी लाश को पुलिस ने लावारिश बनाकर जला डाला...बहराईच में मेरे जैसे उसके दोस्त,साहित्यकार और रंगकॆमी सब उसके क़ातिलों को सजा दिलवाना चाहते हैं..लेकिन कोई पचड़े में नहीं पड़ना चाहता है
...मैं जब तक शहर में था तब तक उसके लिए भाग दौड़ करता रहा लेकिन जैसे ही मैं दिल्ली आया लोगों का उत्साह ठंडा पड़ गया... जब भी सोचता हूं कि क्या राकेश का यही हश्र होना चाहिए क्या राकेश को चार अदद कंधे भी उस शहर में नहीं मिल पाया जिसके बारे में उसने बहुत कुछ सोच रखा था....जब मैं बहराईच जाता था तो अक्सर हम मिलते खाते-पीते और बड़ी बातें करते लेकिन सोचता हूं राकेश के मामले में कितना असहाय हो गया हूं...मीडियाकॆमी होने के नाते ज्यादा कोफ्त से मन भर जाता है..कभी..कभी अवसाद से सिर भिन्नाने लगता है....
राकेश के बारे में अगर मैं आपको बताऊं तो वह बहराईच का ब्लैक बेल्ट था...रंगकॆमी था....साहित्यकार था..और अधिकतर कस्बाई लड़कों की तरह थोड़ी आवारागॆद भी था...उसने झटके में प्यार किया फिर शादी भी की...लेकिन झटके में ही शादी टूट भी गई..उसने कभी खुल कर बताया नहीं कि आखिर जिसे इतना प्यार करता था उससे इतनी नफ़रत क्यों हो गई लेकिन एक बार झोंके में उसने कहा था कि पत्नी की मां ठीक नहीं है
..हमने इसलिे ज्यादा पूछा नहीं कि घरेलु मामला है..लेकिन फोन पर अक्सर कहता था कि रवीश भाई मेरी जान को ख़तरा है मैं अपनी पत्नी को तलाक नहीं दूंगा..लेकिन वो राकेश से छुटकारा चाहती है...उसका क़त्ल क्यों हुआ..कैसे हुआ..नहीं मालूम है....लेकिन उसकी लाश का जब फोटो मैंने देखा तो उसका गला कटा था....कमीज़ और जूते मोजे गायब थे...जेब से मोबाइल और पॆस नदारद था..कैसे हो सकती है राकेश की हत्या .....आरुषि को कवर करते हुए मैने जाना कि ब्लाइंड मॆडर किसे कहते हैं....लेकिन इतना ब्लाइंड होगा राकेश के मामले में मुझे अंदेशा नहीं था..
प्लीज अगर कुछ कर सकते हों तो करिए......
रवीश रंजन शुक्ला
अब जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है कम से कम राकेश की मौत ने यह बता दिया...मैं पिछले दिनों अपने शहर बहराईच गया था वहीं पता चला कि मेरे दोस्त राकेश साहू का क़त्ल हो गया....हालांकि पुलिस ने बताया कि उसकी हत्या नहीं बल्कि दुॆघटना हुई...लेकिन मौके-ए-वारदात और मेरे दोस्त महेद्र के प्रयासों के चलते हम यह समझाने में कामयाब रहे कि राकेश का बाकायदा क़त्ल किया गया है....राकेश रंगकॆमी..साहित्यकार..और मददगार शख्श था...हमेशा हंसते हुए वो दूसरों की मदद करता था लेकिन पैसों से नहीं बल्कि साथ खड़े होकर..मैं जब भी अपने घर से वापस दिल्ली या कहीं और जाने लगता तो वह कोशिश करके मुझे छोड़ने रोडवेज तक आता था..और बाद में नम आंखों से हाथ हिलाता रहता तब तक जब तक मेरी बस उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती
...जब उसकी मौत की खबर मुझे पता चली तब मैं कोतवाली से लेकर लोकल अखबार के दफ्तरों के चक्कर काटता रहा कि शायद उसके क़ातिलों को पकड़ने में कोई दिलचस्पी दिखाए..लेकिन अखबार ने रोज़ाना मिलने वाले पुलिस को नाखुश न ही किया....और वही छापा जो पुलिस बता रही थी..लेकिन बाद में एसपी चंद्रप्रकाश से जब हमने बात की तो उन्होंने कहा कि यह मॆडर और हम जल्द ही वॆक आउट कर लेंगे....लेकिन २० दिन बीतने को है कोई भरोसा पैदा करने वाला काम पुलिस ने नहीं किया..ऊपर से जो राकेश शहर के लिए बेगाना नहीं था उसकी लाश को पुलिस ने लावारिश बनाकर जला डाला...बहराईच में मेरे जैसे उसके दोस्त,साहित्यकार और रंगकॆमी सब उसके क़ातिलों को सजा दिलवाना चाहते हैं..लेकिन कोई पचड़े में नहीं पड़ना चाहता है
...मैं जब तक शहर में था तब तक उसके लिए भाग दौड़ करता रहा लेकिन जैसे ही मैं दिल्ली आया लोगों का उत्साह ठंडा पड़ गया... जब भी सोचता हूं कि क्या राकेश का यही हश्र होना चाहिए क्या राकेश को चार अदद कंधे भी उस शहर में नहीं मिल पाया जिसके बारे में उसने बहुत कुछ सोच रखा था....जब मैं बहराईच जाता था तो अक्सर हम मिलते खाते-पीते और बड़ी बातें करते लेकिन सोचता हूं राकेश के मामले में कितना असहाय हो गया हूं...मीडियाकॆमी होने के नाते ज्यादा कोफ्त से मन भर जाता है..कभी..कभी अवसाद से सिर भिन्नाने लगता है....
राकेश के बारे में अगर मैं आपको बताऊं तो वह बहराईच का ब्लैक बेल्ट था...रंगकॆमी था....साहित्यकार था..और अधिकतर कस्बाई लड़कों की तरह थोड़ी आवारागॆद भी था...उसने झटके में प्यार किया फिर शादी भी की...लेकिन झटके में ही शादी टूट भी गई..उसने कभी खुल कर बताया नहीं कि आखिर जिसे इतना प्यार करता था उससे इतनी नफ़रत क्यों हो गई लेकिन एक बार झोंके में उसने कहा था कि पत्नी की मां ठीक नहीं है
..हमने इसलिे ज्यादा पूछा नहीं कि घरेलु मामला है..लेकिन फोन पर अक्सर कहता था कि रवीश भाई मेरी जान को ख़तरा है मैं अपनी पत्नी को तलाक नहीं दूंगा..लेकिन वो राकेश से छुटकारा चाहती है...उसका क़त्ल क्यों हुआ..कैसे हुआ..नहीं मालूम है....लेकिन उसकी लाश का जब फोटो मैंने देखा तो उसका गला कटा था....कमीज़ और जूते मोजे गायब थे...जेब से मोबाइल और पॆस नदारद था..कैसे हो सकती है राकेश की हत्या .....आरुषि को कवर करते हुए मैने जाना कि ब्लाइंड मॆडर किसे कहते हैं....लेकिन इतना ब्लाइंड होगा राकेश के मामले में मुझे अंदेशा नहीं था..
प्लीज अगर कुछ कर सकते हों तो करिए......
रवीश रंजन शुक्ला
रवीश जी,
ReplyDeleteमैं तो आपकी पीड़ा से सम्वेदना ही व्यक्त कर सकता हूँ। ईश्वर आपके दोस्त स्व.राकेश साहू की आत्मा को शान्ति दें।
बाकी... छोटे शहरों की मीडिया की असहाय स्थिति का आपकॊ अन्दाजा लग गया होगा। बड़ी निराशाजनक तस्वीर उभरती है, जो नजदीक से देखने की कोशिश करें।
मैने जो देखा है, बहराइच, गोरखपुर, बस्ती, देवरिया जैसे शहरों के जिलास्तरीय संवाददाता भी विज्ञापन का टार्गेट पूरा करने के फेर में अनेक समझौते करने को मजबूर हो जाते हैं। प्रशासन का विरोध करके कोई ‘बॉस’ के सामने अपनी परफ़ॉर्मेन्स खराब करने का जोखिम नहीं ले सकता।
यह दुःखद है लेकिन कुछेक अपवादों के बावजूद प्रायः सत्य है।
पुलीस के बहुत अपेक्षा नहीं करनी चाहिये।
ReplyDeletepuri jankari mail ker de to kuch kiya ja sakta hai .ambrish_kumar2000@yahoo.com
ReplyDeleteरवीश भाई, बहुत दुख हुआ स्व.राकेश जी के संबंध में पढ कर । हर्ष भाई इस मुद्दे को यहां प्रस्तुत कर आपने बहुत अच्छा काम किया है, अग्रज अम्बरीश जी से उम्मीद है वे इस मसले पर कुछ करेंगें । कम से कम प्रिट मीडिया से जुडे भाई इसे प्रकाशित कर जांच की मांग तो कर ही सकते हैं ।
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