Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
शरद पवार पुराने कांग्रेसी हैं। कांग्रेसी शैली के सिद्धहस्त राजनेता हैं। आज की कांग्रेस में उसने अधिक कांग्रेसी दाँवपेंच जानने वाले नेता शायद ही हो। कांग्रेस की शक्तिशाली कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य के तौर पर 1999 में उन्होंने अपने दो पुराने कांग्रेसी मित्रों के साथ मिलकर एक ऐसा काम कर दिया था, जिसने कांग्रेस पार्टी की पूरी राजनीति बदल दी थी। अब एक बार फिर से शरद पवार का एक साक्षात्कार कांग्रेस की पूरी राजनीति बदलता दिख दिख रहा है। 1999 में शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर सोनिया गांधी की राजनीतिक के लिए बड़ा संकट खड़ा किया था और, आज 2023 में शरद पवार को राहुल गांधी की राजनीति ध्वस्त करने के लिए किसी के साथ की आवश्यकता भी नहीं पड़ी। अडानी मीडिया समूह के सीईओ संजय पुगलिया का सीधा सवाल था, जिसका उससे भी सीधा जवाब शरद पवार ने दे दिया। एनडीटीवी के सभी चैनलों पर इसका प्रसारण हुआ, लेकिन इसमें शरद पवार ने ऐसी बातें कह दीं थीं कि, मीडिया के लिए यह सही मायने में ब्रेकिंग न्यूज बन गया। संजय पुगलिया ने सवाल पूछा- एक विदेशी शॉर्ट सेलर बाजार में पैसा कमाने के लिए एक रिपोर्ट लेकर आता है और, इंडियन बिजनेसमैन के ऊपर सवाल खड़ा करता है। और, उसको हम सबसे बड़ा मुद्दा मान लेते हैं, बिना यह सोचे कि, उसका हमारे फ़ाइनेंशियल सिस्टम पर, इंवेस्टर कॉन्फ़िडेंस पर, इकोनॉमी पर क्या असर पड़ता है। एक माँग रखी थी कि, सुप्रीमकोर्ट का जाँच या जेपीसी की जाँच, सुप्रीमकोर्ट की जाँच अब हो रही है। फिर जेपीसी का क्या तुक है ? सवाल से साफ लग रहा था कि, शरद पवार बस इसी सवाल का जवाब देने के लिए साक्षात्कार देने के लिए तैयार हुए हों। शरद पवार ने इस सवाल के जवाब में जो बोला, किसी को पता न हो कि, आवाज शरद पवार की है तो लगेगा कि, नरेंद्र मोदी सरकार या भारतीय जनता पार्टी का कोई प्रवक्ता बोल रहा है। शरद पवार ने कहाकि, जिन लोगों ने रिपोर्ट बनाई, उनका किसी ने नाम नहीं सुना था। इससे पहले भी ऐसे बयान दिए गए हैं, संसद में हंगामा भी होता है, लेकिन किसी एक व्यक्ति को टार्गेट करने का ऐसा मामला पहले कभी नहीं हुआ। जेपीसी की माँग सिरे से खारिज करते हुए शरद पवार ने कहाकि, अभी संसद में सत्ताधारी पार्टी का बहुमत है और, जेपीसी बनेगी तो उसमें भी उन्हीं बहुमत होगा। ऐसे में जेपीसी से सच सामने आएगा, इसमें संदेह हो सकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की एक्सपर्ट कमेटी से सच आने की संभावना अधिक है। अब जेपीसी का कोई मतलब नहीं है। गौतम अडानी समूह पर लगे आरोपों की अगुआई कर रहे राहुल गांधी की पूरी राजनीति पर शरद पवार ने काला कपड़ा डाल दिया। और, कमाल की बात यह काम भी शरद पवार ने अडानी समूह के चैनल एनडीटीवी पर साक्षात्कार देकर ही किया। 2024 के चुनाव में राहुल गांधी और पूरा विपक्षा इसी मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को घेर लेने की उम्मीद लगाए बैठा था और, शरद पवार ने उम्मीद की बुनियाद ही हटा दी।
शरद पवार ने जेपीसी की माँग खारिज कर दी, अडानी समूह में गड़बड़ी के आरोपों को खारिज कर दिया और, सबसे बड़ी बात जो समझने की है। शरद पवार ने राहुल गांधी सहित पूरे विपक्ष की समझ पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। शरद पवार ने जो कुछ कहा है, अडानी मुद्दे पर राहुल गांधी सहित सभी विपक्षी नेताओं के हमले के विरुद्ध सबसे बड़ा हथियार बन जाएगा। ऐसा हथियार, जो चलेगा और, विपक्ष की मोदी-अडानी को जोड़ने की हर कोशिश को शुरुआत में ही काटकर रख देगा। शरद पवार ने वीर सावरकर के मुद्दे पर राहुल गांधी की बोलती पहले ही बंद कर दी है। अब अडानी पर भी राहुल नहीं बोल पाएँगे तो राजनीति कैसे करेंगे। और, यह राहुल कांग्रेस का यह संकट दिखने भी लगा है। कांग्रेस पार्टी की तरफ जयराम रमेश ने कहाकि, एनसीपी का अपना दृष्टिकोण हो सकता है, लेकिन सभी 19 विपक्षी पार्टियाँ इस मुद्दे पर एकमत हैं कि, प्रधानमंत्री से जुड़ा मोदी का मुद्दा गंभीर है। अब जयराम रमेश कुछ भी कहें, लेकिन मोदी के साथ अडानी को जोड़कर भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की राहुल गांधी की पूरी राजनीति पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है। इस प्रश्न चिन्ह को हटाने की कूवत राहुल सहित पूरे विपक्ष में दिखती नहीं है। और, सबसे बड़ी बात यह भी है कि, शरद पवार अभी भी नरेंद्र मोदी का विरोध करते यह सब कह रहे हैं। नरेंद्र मोदी के सामने विपक्षी एकता के सवाल पर पवार ने जो कहा, उससे यह भी स्पष्ट होता है कि, विपक्षी एकता फ़िलहाल सिर्फ़ भ्रम ही है। उन्होंने कहा कि, विपक्षी पार्टियों में एकता की जरूरत है, मगर इश्यूज़ के बारे में क्लियरिटी होनी चाहिए। आज क्या हो रहा है? देश का जो विपक्ष है, उसमें अलग-अलग इश्यूज़ हैं। हमारे जैसे लोग विपक्ष में एकता चाहते हैं, मगर हमारा जोर विकास पर है। विपक्षी एकता में हमारे दूसरे भी साथी हैं, वे भी चाहते हैं कि विपक्ष में एकता हो, मगर उनके मन में एक लेफ़्टिस्ट थिंकिंग कई सालों से रही है। वे इससे दूर जाने के लिए तैयार नहीं हैं। विपक्षी एकता विद स्पेसिफ़िक प्रोग्राम, स्पेसिफ़िक डायरेक्शन होगी तो कामयाब होगी। यदि प्रोग्राम और डायरेक्शन स्पेसिफ़िक नहीं होगा तो विपक्षी एकता देश के लिए लाभदायक नहीं होगी।
लंबे समय से यह बात कही जाती रही है कि, कांग्रेस पार्टी में कम्युनिस्टों की सलाह से ही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा अब चलते हैं। शरद पवार ने बहुत ही स्थिर भाव में कांग्रेस की इस बड़ी मुश्किल को भी उभारकर सबके सामने रख दिया है। शरद पवार का यह टीवी साक्षात्कार मई 1999 की कांग्रेस कार्य समिति के बैठक जैसा ही है। बस, अंतर इतना ही है कि, तब पीए संगमा और, तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया और, तीनों ने अलग पार्टी बना ली। आज अलग पार्टी में रहते भी विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर शरद पवार ही जाने जाते हैं और, शरद पवार ने जिस तरह से विपक्ष को सही मुद्दों से दूर जाने वाला बता दिया है, इससे चुनावी मैदान में मोदी की मजबूती पहले से भी अधिक हो गई है। राहुल गांधी की समझदारी वाली छवि निर्माण की कांग्रेसी कोशिश को भी पवार ने बड़े सलीके से ध्वस्त कर दिया। उन्होंने कहाकि, मुझे याद है, कई साल पहले जब हम राजनीति में आए थे, तब सरकार के खिलाफ बात करनी होती थी, तो हम टाटा-बिरला के खिलाफ बात किया करते थे। टारगेट कौन था? टाटा-बिरला। जब समझदारी आ गई हम लोगों को, तो फिर टाटा का क्या योगदान है, यह जानने के बाद हम क्यों टाटा-बिरला किया करते थे, यह समझा नहीं। इसे यूँ भी पढ़ सकते हैं कि, राहुल गांधी में अभी या तो समझ नहीं है और, समझ आ गई है तो फिर अंबानी-अडानी की बात क्यों करते हैं। पवार ने पूछा है कि, आज पेट्रोकेमिकल सेक्टर में अंबानी का योगदान है। आज देश को उनकी आवश्यकता है या नहीं? बिजली के क्षेत्र में अडानी का योगदान है, आज बिजली की आवश्यकता देश में है या नहीं? इस सवाल का जवाब अब कांग्रेस और, उन विपक्षी दलों को देना है जो अंबानी-अडानी राग अलाप रहे हैं। पवार ने राजनीतिक विमर्श का संतुलन बिगाड़ दिया है और, यह बिगड़ा संतुलन नरेंद्र मोदी को खूब भा रहा होगा।
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