Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
पूर्वोत्तर के राज्यों से राष्ट्रीय मीडिया में समाचार तभी बनता है, जब वहाँ से विवाद, संघर्ष का समाचार आता है। जुलाई 2021 में असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद को लेकर ऐसा संघर्ष हुआ कि, असम पुलिस के 6 पुलिस वालों की जान चली गई। पूर्वोत्तर के राज्यों में विवाद, संघर्ष कुछ इसी तरह का है कि, उसे सुलझाना असंभव मानकर दिल्ली में बैठी सरकारें विवाद, संघर्ष को टालते रहने में स्वयं को सफल देखने लगीं थीं। 2014 से पहले पूर्वोत्तर के मामलों पर दिल्ली में बैठी सरकार इसलिए भी कम चर्चा चाहती थी क्योंकि, पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच सीमा का विवाद, जनजातियों के बीच का विवाद इतना पेचीदा और, खतरनाक है कि, किसी को भी सहमति तक लाने के लिए मध्यस्थता का भी दुस्साहस कोई नहीं करता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में असम सबसे बड़ा राज्य है और, अधिकतर राज्य उसी में से निकलकर नए राज्य बने हैं। इस वजह से सबसे अधिक विवाद असम राज्य का ही दूसरे राज्यों के साथ है। जब असम और मिजोरम राज्य के बीच सीमा विवाद हुआ तो उसकी भयावहता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि, दोनों राज्यों की पुलिस आपने सामने थी और, खूनी संघर्ष कर रही थी। भावनात्मक तौर पर दोनों में से किसी मुख्यमंत्री का पीछे हटने पर अपने राज्य में राजनीतिक हानि की प्रबल आशंका थी। उस पर यह भी था कि, पूर्वोत्तर के राज्यों के विकास के लिए बनाए मंच नेडा के प्रमुख के तौर पर असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा थे और, पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में सरकारें भाजपा की या, उसके सहयोग से चल रहीं थीं। 2014 में नरेंद्र मोदी ने सत्ता सँभालने के साथ ही पूर्वोत्तर को विकास की मुख्य धारा में लाने का लक्ष्य तय करने के साथ ही पूर्वोत्तर में सीमा विवाद से लेकर जनाजातीय विवादों को समाप्त करने का भी लक्ष्य तय किया था। सामान्य दृष्टि से देखने पर असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा को भाजपा में लाने का प्रयास असम में सरकार बनाने के तौर पर देखा जाता है, लेकिन असम चुनावों की रिपोर्टिंग करते मुझे समझ आया कि, नरेंद्र मोदी का भरोसा हेमंत विश्व शर्मा पर दूसरे दो बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए है। पहला लक्ष्य- पूर्वोत्तर में सांस्कृतिक विरासत को स्थापित करना, उसकी मूल पहचान को भारत के साथ जोड़कर आगे बढ़ाना और, दूसरा लक्ष्य- पूर्वोत्तर में हर तरह के विवाद को समाप्त करना। यही वजह रही कि, मुख्यमंत्री बनाने से पहले ही नरेंद्र मोदी ने हेमंत विश्व शर्मा के जिम्मे यह महत्वपूर्ण कार्य लगा दिया और, हेमंत विश्व शर्मा इस पर पूरी तरह से खरे उतरे। मुख्यमंत्री पद पर स्थापना का आधार वही था।
अब असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा और, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एक बड़े समझौते पर सहमति बनाई। समझौते पर हस्ताक्षर हुआ, लेकिन इस समझौते पर सहमत होते दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जो कहा, उसे पूरे देश को सुनना चाहिए। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने कहा कि, मैं अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का आभार प्रकट करता हूँ। हमारे जोरहाट शहर में ऐतिहासिक तौर पर जमीन का एक बड़ा हिस्सा अरुणाचल प्रदेश का है। आपस में सहमति बनी तो अरुणचाल प्रदेश ने उस भूमि का अधिकार असम को दे दिया। इस पर पेमा खांडू ने कहा कि, यह असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा की राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से हो सका है। अब असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच में शांति और सह अस्तित्व अधिक होगा। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि, रिपोर्ट के आधार पर दोनों राज्यों ने सहमति बनाकर ऐतिहासिक और बहुत बड़ी सफलता प्राप्त की है। आठ सौ किलोमीटर का सीमा विवाद समाप्त हुआ है। दोनों राज्यों के बीच विवाद कितना बड़ा था, इससे भी समझा जा सकता है कि, कुल 123 गांवों के बीच भूमि विवाद था, जिसमें अरुणाचल के 12 जिले और, असम के 8 जिलों की भूमि शामिल थीं। 71 गावों का विवाद समाप्त कर लिया गया है, लेकिन अभी भी 49 गावों का विवाद बचा हुआ है। अगले 6 महीने में इस विवाद को भी पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य दोनों राज्यों ने तय किया है। पूर्वोत्तर के लोगों के बीच के विवाद समाप्त हों, इस तरह का लक्ष्य तय करके उसे हासिल करने का काम दिल्ली में बैठी सरकार इस तेजी से पहली बार कर रही है। ब्रू जनजाति, एनएलफटी, बोडो, कार्बी-आंगलोंग और, दूसरे आदिवासी समूहों के बीच मध्यस्थता करके केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और, असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने कमाल का काम किया है। यही वजह रही होगी कि, त्रिपुरा में वहाँ के राजपरिवार के अलग पार्टी बनाकर आदिवासी हितों की बात करने के बावजूद वहाँ की जनता ने भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बना दी।
हर विवाद को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार और पूर्वोत्तर के राज्य स्थानीय सहभागिता पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। असम और अरुणाचाल प्रदेश के बीच विवाद समाप्त करने के लिए भी 12 क्षेत्रीय समितियों को ही आगे रखा गया, जिन्होंने स्थानीय लोगों को सहमत कराया। पिछले वर्ष असम ने मेघालय के साथ भी करीब सत्तर प्रतिशत विवाद समाप्त कर लिया है। अब असम नागालैंड के साथ भी विवाद समाप्त करने की ओर बढ़ रहा है हालाँकि, नागालैंड के साथ विवाद का मसला सर्वोच्च न्यायालय में है, इसलिए निर्णय आने के बाद ही उस पर कोई सहमति बन पाएगी, सेकिए एक बड़ा काम यह हुआ है कि, असम और नागालैंड ने सीमा विवाद के बीच भी एक साथ तेल निकालने की परियोजना पर सहमति जताई है। नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा कि, हमने सीमा विवाद और विकास के मुद्दों पर बात की। हमें एक दूसरे के समर्थन से ही आगे बढ़ना है। अब हम दोनों राज्यों की जनजातियों को भरोसे में लेकर सीमा विवाद को सर्वोच्च न्यायालय से बाहर सुलझाना चाहते हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच इतने सौहार्दपूर्ण वातावरण में कभी बात नहीं होती थी। इस सौहार्द के मूल में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार का होना है। और, राष्ट्रीय एकता के लिए इससे बड़ी पहल शायद ही कभी हुई है। जम्मू कश्मीर की चर्चा तो दूसरी वजहों से हो भी जाती थी, लेकिन पूर्वोत्तर की पीड़ा की ओर किसी ध्यान भी नहीं जाता था। अब अच्छा है कि, पीड़ा समझकर उसे समाप्त करने का काम हो रहा है। राष्ट्रीय एकता के लिए उम्मीद की नई रोशनी दिख रही है और, इसके लिए नरेंद्र मोदी, अमित शाह, हेमंत विश्व शर्मा के साथ ही पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों के नेताओं की भी प्रशंसा मुक्त कंठ से की जानी चाहिए।