हर्ष वर्धन त्रिपाठी
सिंघू सीमा पर जिस तरह तालिबानी तरीके से निहंगों ने एक गरीब दलित युवक की हत्या कर दी, उसने कई तरह के प्रश्न खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि निहंग जिन गुरुओं की सीख के आधार पर, धर्म की रक्षा, उसके प्रचार-प्रसार के लिए अस्तित्व में आए, उसी की कोई प्रासंगिकता अब रह गई है क्या ? लखबीर सिंह दिहाड़ी मजदूर था। जाहिर है कि उसे लुभाना, ललचाना आसान था। अब वही बात सामने आ रही है। उसके गांव के लोग बता रहे हैं कि उसे लालच देकर ले जाया गया। अब तो यह भी प्रश्न खड़ा होता है कि क्या उसकी हत्या के मकसद से ही उसे लाया गया था। लखबीर पहले से ही नशे का शिकार था। लखबीर को लाकर और बेअदबी का आरोप लगाकर मारना और उसके वीडियो को प्रसारित करना देश में भय और आतंक का माहौल बनाने की बड़ा साजिश दिखती है। दिल्ली में अब यह बात कही जाती है कि नशे के कारोबारी तथाकथित किसान आंदोलन की आड़ में अपना धंधा चला रहे हैं क्योंकि वहां उन्हें पुलिस की पकड़ में आने का डर नहीं है।
अब तो यह प्रश्न भी बड़ा हो गया है कि जिस तरह से पहले 100 और फिर यह संख्या बढ़ाकर 1000 तक बताई जा रही है कि इतने किसान शहीद हो गए, कहीं यह भी लखबीर सिंह की हत्या जैसी साजिश तो नहीं है। जिस तरह से लखीमपुर खीरी में हुआ और फिर दिल्ली के प्रेस क्लब में बैठकर राकेश टिकैत ने क्रिया-प्रतिक्रिया का सिद्धांत प्रतिपादित किया, उससे यह आशंका उठ रही है कि पंजाब में कृषि कानून समर्थकों के साथ क्या-क्या किया जा रहा होगा। भारत के लोकतंत्र, संविधान के साथ बेअदबी हो रही है। और, कमाल का आंदोलन है कि इसके नेता हवाई यात्रा करते रहते हैं। इसके नेता होटलों में विश्राम कर आते हैं और जन संपत्तियों का नुकसान किया जा रहा है। लोगों की सुविधा के लिए बने राजमार्गों पर टेंट लगाकर उसे खराब किया जा रहा है। इस तरह से मध्ययुगीन, बर्बर, क्रूर तरीके से क्रिया-प्रतिक्रिया की बात करके जो कुछ करने की कोशिश हो रही है, बेहद खतरनाक है। नरेंद्र मोदी को यह बात समझना होगा कि इसे रोका नहीं गया तो इसका अंत अत्यंत खतरनाक हो सकता है।
No comments:
Post a Comment