हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi
दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में हर कोई हैरान-परेशान मुद्रा में है कि नरेंद्र मोदी ने किस आधार पर मंत्रियों को हटाया और नये मंत्रियों को किस आधार पर मंत्रालय दिया। इसे समझने के लिए दो उदाहरण काम के हैं। गुजरात में 1998 तक सहकारी संस्थानों, बैंकों में कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था। सिर्फ़ एक सहकारी बैंक पर भारतीय जनता पार्टी क़ाबिज़ थी। अमित शाह को यह बात चुभती थी, उन्होंने सहकारी संस्थानों से कांग्रेस को बेदख़ल करने की योजना तैयार की और उसे सलीके से लागू किया। धीरे-धीरे कांग्रेस गुजरात के सहकारी संस्थानों से पूरी तरह से ग़ायब हो गई। अमित शाह की अगुआई में सहकारी संस्थानों में कमल खिल गया और भारतीय जनता पार्टी की पकड़ ग्रामीण क्षेत्रों में मज़बूत हो गई। अमित शाह अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन बने और एक वर्ष के भीतर ही घाटे में चल रहा एशिया का सबसे बड़ा सहकारी बैंक लाभ में आ गया। अमित शाह की यही क्षमता थी कि 2001 में भारतीय जनता पार्टी की सहकारी समिति के राष्ट्रीय संयोजक का ज़िम्मा उन्हें दे दिया गया। और, अब जब नरेंद्र मोदी ने नया सहकारिता मंत्रालय बनाया तो उसके मंत्री के तौर पर अमितभाई से उपयुक्त कौन होता। केंद्रीय गृह मंत्री के साथ अब सहकारिता मंत्री भी अमित शाह हैं। दरअसल, यह दृष्टांत ही तय कर देता है कि नरेंद्र मोदी के इस सबसे बड़े बदलाव के मूल में क्या है। पारंपरिक तरीक़े से राजनीति को देखने पर शायद ही समझ में आए कि गृह मंत्रालय के साथ सहकारिता मंत्रालय एक ही व्यक्ति को भला कैसे दिया जा सकता है और यही सोच है जो देश के नये स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया को ख़ारिज करती है कि मांडविया रसायन और उर्वरक मंत्रालय के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय का ज़िम्मा कैसे ठीक से सँभाल पाएँगे। जब देश में चाइनीज़ वायरस के क़हर की दूसरी लहर चरम पर थी और देश में दवा का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने की चुनौती भी विकराल रूप धरे दिख रही थी। सरकार से लेकर विपक्ष तक तरह-तरह के सुझाव आ रहे थे। इसी बीच 18 मई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने एक आयोजन किया, जिसमें रसायन उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया और राष्ट्रीय राजमार्ग और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी को अपनी बात रखना था। मनसुख मांडविया पहले बोल चुके थे और उसके बाद नितिन गड़करी ने वैक्सीन की कमी को दूर करने के लिए देशी कंपनियों को, बंद पड़े प्लांट को दुरुस्त करके उसमें उत्पादन तेज़ी से करने का सुझाव दिया। नितिन गडकरी बेबाक़ मंत्री के तौर पर जाने जाते हैं और अपने मंत्रालय में शानदार कार्य कर रहे हैं। कई बार उनके बयान को विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करने के लिए भी उपयोग में लेने की कोशिश करता है। ऐसी ही कोशिश कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने नितिन गड़करी के वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने वाली सलाह के बाद की। नितिन गड़करी ने कहाकि वैक्सीन की माँग की तुलना में आपूर्ति बहुत कम है तो यह स्थिति अच्छी नहीं है। अच्छा होगा कि एक के बजाय दस और कंपनियाँ वैक्सीन बनाएँ, उन्हें वैक्सीन उत्पादन की स्वीकृति दी जाए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तो एक कदम आगे बढ़कर यहाँ तक कह दिया कि यही सुझाव पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह भी दे चुके हैं, लेकिन गडकरी जी के बॉस सुन कहां रहे हैं। नितिन गड़करी के बयान को तीर की तरह मोदी सरकार पर साधने की कांग्रेस की कोशिश को तगड़ा झटका उसके अगले ही दिन लग गया। 19 मई को नितिन गड़करी ने ट्वीट करके कहाकि, कल मैंने कुछ सुझाव वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने को लेकर दिए थे, लेकिन मुझे जानकारी नहीं थी कि केंद्रीय रसायन उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया पहले ही बता चुके थे कि यह सब हो चुका है और 12 कंपनियों-प्लांटों को वैक्सीन उत्पादन के लिए स्वीकृति दी जा चुकी है। वैक्सीन की ही तरह रेमडेसिविर के उत्पादन के लिए देश में 6 दूसरी कंपनियों को भी तेज़ी में उत्पादन की स्वीकृति दी गई और इस तेज़ क्रियान्वयन का ज़िम्मा मनसुख मांडविया ही सँभाल रहे थे।
स्वास्थ्य और सहकारिता मंत्रालय की ही तरह दूसरे मंत्रालयों का ज़िम्मा जिन मंत्रियों को दिया गया है, उसके पीछे बहुत सोची समझी रणनीति है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि मंत्रिमंडिल से हटाए गए क़ानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, सूचना प्रसारण, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर को हटाने के पीछे वही एक सूत्र है और वह सूत्र है कि नरेंद्र मोदी की सरकार के राष्ट्रीय विमर्श को स्थापित करने में यह महत्वपूर्ण मंत्री कामयाब नहीं रहे। सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर प्रकाश जावड़ेकर को लेकर ढेरों सवाल थे। नरेंद्र मोदी सरकार के बारे में एक बात पक्के तौर पर कही जाती है कि यह सरकार फ़ीडबैक पर काम करने वाली सरकार है और विशेषकर जनता क्या सोचती है, यह मोदी सरकार के लिए बहुत महत्व रखता है। रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर और रमेश पोखरियाल निशंक को लेकर जनता में, नागरिक मीडिया में बहुत ख़राब प्रतिक्रिया दिख रही थी और मंत्रिमंडल में बदलाव के वक़्त नरेंद्र मोदी के मन-मस्तिष्क में वही प्रतिक्रिया मज़बूती से जमी हुईं थीं। किसी भी सरकार के वैचारिक विमर्श को स्थापित करने में सूचना प्रसारण मंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन प्रकाश जावड़ेकर उस भूमिका को निभाने में कामयाब नहीं रहे और अब अनुराग सिंह ठाकुर को उस भूमिका को मज़बूती से निभाने के लिए लाया गया है। अभी की स्थिति में अनुराग सिंह ठाकुर ने मोदी-शाह का पूरा भरोसा प्राप्त कर लिया है। युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अनुराग ठाकुर का पहला कार्यकाल बेहद शानदार रहा था। शिक्षा मंत्री के तौर पर निशंक का पूरा समय सिर्फ़ विवादों और निर्णय को टालने में ही बीतता रहा। देश के आधे से ज़्यादा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति नहीं हैं। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार करके स्वीकृति दे दी, लेकिन इसे लागू करके राष्ट्रीय विमर्श को आगे बढ़ाने की दिशा में शिक्षा मंत्रालय कुछ ख़ास नहीं कर सका। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दृष्टि भी सबसे ज़्यादा इसी मंत्रालय के कामकाज पर रहती है और शैक्षणिक संस्थानों में विरोधी विचार का ही क़ब्ज़ा बना रहा, इसे संघ ने बेहद गंभीरता से लिया। अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिहाज़ से राष्ट्रीय विमर्श को मज़बूती से स्थापित करने का काम धर्मेंद्र प्रधान के ज़िम्मे आ गया है। धर्मेंद्र प्रधान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं। छात्रों, शिक्षकों और परिसर की समस्या और उसके समाधान का अनुमान होने के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय विमर्श को भी व्यवहार रूप में जानते समझते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सही सन्दर्भों में लागू करने के लिए शिक्षा मंत्री बनाए गए हैं। धर्मेंद्र प्रधान के बाद अब पेट्रोलियम मंत्रालय में हरदीप सिंह पुरी पहुँच गए हैं। पुरी के पास आवास और शहरी विकास बना हुआ है। पंजाब चुनावों से पहले सिख चेहरे के तौर पर और सेंट्रल विस्टा परियोजना पर कांग्रेस का प्रोपागैंडा ध्वस्त करने के लिहाज़ से विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी पुरी की उपयोगिता बहुत ज़्यादा है।
सर्बानंद सोनोवाल भाजपा में ही और ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही कांग्रेस से भाजपा में आए, लेकिन दोनों को उनके राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने के लिए पुरस्कृत किया गया है। सर्बानंद सोनोवाल पहले भी केंद्र में मंत्री रहे हैं और असम के मुख्यमंत्री पद से बिना किसी ना नुकुर के हट गए। ज्योतिरादित्य के लिए सही मायने में भारतीय जनता पार्टी के नये नेतृत्व के साथ अब साबित करने का अवसर मिला है। सर्बानंद सोनोवाल असम से आते हैं और अरुणाचल से आने वाले किरेन रिजीजु को भी पदोन्नति मिल गई है। 43 नये मंत्रियों में असम, त्रिपुरा, अरुणाचल और मणिपुर से एक-एक मंत्री शामिल किए गए हैं जो पूर्वोत्तर के प्रति नरेंद्र मोदी की दृष्टि को प्रमाणित करता है। चीन से लगी सीमा वाले अरुणाचल प्रदेश से सांसद किरेन रिजीजु को देश के क़ानून मंत्री की कुर्सी देना दिखाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए रणनीतिक तौर पर किरेन रिजीजु कितने महत्वपूर्ण हो गए हैं। पूर्व नौकरशाह अश्विनी वैष्णव को रेलवे, कम्युनिकेशंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय देने के पीछे बहुत स्पष्ट वजह है। अश्विनी वैष्णव अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उपसचिव रहे हैं और बाद में निजी सचिव। वैष्णव ओड़िशा से राज्यसभा सांसद हैं और महत्वपूर्ण यह है कि बीजू जनता दल के समर्थन से भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं। रेलवे के कायाकल्प की प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजना को तेज़ी से लागू करने के साथ ही पेशेवर अनुभवों का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्युनिकेशंस और आईटी मंत्रालय में बड़े बदलाव की उम्मीद पूरी होती दिख सकती है। 2 पूर्व नौकरशाह और 24 पेशेवर नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल बदलाव का हिस्सा बने हैं। 43 नये मंत्रियों में 61% मंत्री अन्य पिछड़े, अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं। 27 ओबीसी, 12 एससी और 8 एसटी मंत्रियों को नरेंद्र मोदी ने शामिल किया तो कई टीवी चैनलों ने अबकी बार ओबीसी सरकार तक लिख दिया। एक समय में विशुद्ध रूप से ब्राह्मण-बनिया की पार्टी मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने समय के साथ कितनी शानदार यात्रा की है, इससे आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। गुजरात में हार्दिक पटेल वैसे ही कहीं प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे थे। इस मंत्रिमंडल विस्तार से रही-सही हवा भी निकालने की कोशिश नरेंद्र मोदी ने की है। मनसुख मांडविया और पुरुषोत्तम रुपाला जैसे पटेल नेताओं का महत्व बढ़ गया है। डॉ महेंद्र मुंजापारा भी कोली पटेल समुदाय से आते हैं। सूरत से आने वाली दर्शना जरदोश पिछड़े दर्ज़ी समुदाय से और देवूसिंह चौहान ठाकोर हैं। गुजरात में पटेल और पिछड़ों को प्रतिनिधित्व देने की हवा निकल गई है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पटेलों की भावनाओं को उभारकर राजनीति करने वाले हार्दिक पटेल कह रहे हैं कि जातीय आधार पर राजनीति ठीक नहीं है।
महाराष्ट्र में पूर्व शिवसैनिक और आक्रामक नेता नारायण राणे को एमएसएमई मंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने शिवसेना को स्पष्ट संदेश दे दिया है। नारायण राणे दोधारी तलवार जैसा हैं। और, इस दोधारी तलवार का उपयोग नरेंद्र मोदी एक साथ उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए करेंगे। मराठा नेता के तौर पर पवार को नियमित तौर पर चुनौती देने की योजना से यह किया गया है। राणे पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोप शरद पवार पर लगने वाले कई गुना बड़े आरोपों के सामने कहीं टिकते नहीं, इसलिए एनसीपी राणे को भ्रष्टाचार के मसले पर घेरने से बचेगी। मुम्बई-पुणे का आक्रामक शिवसैनिक नारायण राणे के ज़रिये भाजपा की तरफ़ आ सकता है। दिल्ली से डॉक्टर हर्षवर्धन गये तो मीनाक्षी लेखी आईं और इसी तरह से उत्तराखंड से ब्राह्मण रमेश पोखरियाल निशंक गये तो अजय भट्ट आए, लेकिन सबसे शानदार तरीक़े से जाति और क्षेत्र का संतुलन बैठाने में नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिली है। सपा-बसपा से आए आगरा के सांसद एसपीएस बघेल हों या फिर मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर। कौशल किशोर ने योगी सरकार के कोरोना इंतज़ाम पर भी सवाल उठाए थे, लेकिन उनको मंत्री बनाया गया। बघेल और पासवान समाज के बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करके मोदी ने दोनों संदेश दिया है। पहला- सामाजिक समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया, दूसरा- किसी भी पार्टी के ताकतवर नेता के लिए भाजपा में सम्मानपूर्वक रहने का पूरा अवसर है। शाहजहांपुर से जितिन प्रसाद आए तो चर्चा चल पड़ी कि क्या भाजपा के पास अपने ब्राह्मण चेहरे नहीं हैं। मोदी ने लखीमपुर खीरी से दो बार के भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्र को मंत्री बनाकर उसका जवाब दे दिया। अनुप्रिया पटेल को सहयोगी और पटेलों में संदेश देने के लिए मंत्री बनाया तो लगे हाथ महाराजगंज से लगातार सांसद बनने वाले कुर्मी नेता पंकज चौधरी को मंत्री बनाकर यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा में किसी भी जाति के नेताओं की कमी नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेहद नज़दीकी, राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे बीएल वर्मा को मंत्री बनाकर लोध समाज में कल्याण सिंह के समर्थकों को खुश कर दिया है। चाइनीज़ वायरस के क़हर की वजह से मंत्रिमंडल विस्तार टलता रहा और, सही मायने में पूरे देश में राजनीतिक संतुलन के साथ सुशासन के पैमाने पर नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी अब शुरू हुई है, लक्ष्य 2022 के पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही 2024 का लोकसभा चुनाव है।
(यह लेख 9 जुलाई को दैनिक जागरण में छपा है https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-political-message-of-cabinet-expansion-bjp-has-taken-a-wonderful-journey-of-inclusion-with-time-jagran-special-21814340.html)
Very good and indepth analysis. Excellent observations and reasoning.
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteSir
ReplyDeleteSudhanshu Trivedi is an excellent orator
His one speech in lok sabha is viral which shows his deep knowledge he could have been given a ministry maybe Education
What is your opinion
Very good knowledge of facts. Very few have this level of depth in facts. Rest have just depths in their ideologies.
Deleteअगर सरकार फीडबैक पर कार्य करती तो वितमंत्री को कभी का बाहर का रास्ता दिखा देती
ReplyDeleteVery in-depth analysis, Dhanyawad Tripathi ji
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